किताबुल वसीया – अबू मूसा ई़सा अल बजली अल ज़रीर (मुतवफ़्फ़ा २२० हि.)
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वसायत पर किताबें ज़मानए क़दीम से लिखी जा रही हैं। “किताबुल वसीया” और “अल वसीया” जैसे नामों की किताबें फ़रहंगे इस्लामी में, बिलख़ुसूस अदबीयाते शीआ़ में, कसरत से मौजूद हैं। येह इस बात की दलील है कि अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम की वसायत पर अ़क़ीदे की एसालत तमाम शीआ़ मआ़शरों में मह़वर रही है। और तारीख़ी तह़व्वुलात और सियासी तब्दीलियों का इस पर कोई असर नहीं था।
जिस किताब का तआ़रुफ़ हम “आफ़ताबे वेलायत” के इस शुमारे में कराने जा रहे है वोह भी इसी मौज़ूअ़् पर एक क़दीमी किताब हैं जिसका नाम है “किताबुल वसीया” और उसके मुसन्निफ़ जनाब ई़सा बिन मुस्तफ़ाद बजली हैं (अ़रबी में अल मुस्तफ़ाद अल बजली) जो सातवें इमाम ह़ज़रत मूसा अल काज़िम .अलैहिस्सलाम के ख़ास अस्ह़ाब में शुमार किए जाते हैं।
इस किताब का असली नुस्ख़ा आज दस्तेयाब नहीं है। लेकिन इस किताब से अह़ादीस हमारी मोअ़्तबर किताबों में नक़्ल की गई हैं जैसे सेक़तुल इस्लाम कुलैनी रह़्मतुल्लाह अ़लैह की ग़राँक़द्र किताब अल काफ़ी, सैयद शरीफ़ रज़ी की तस्नीफ़ ख़साएसे अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम, सैयद इब्ने ताऊस की तराएफ़, अ़ली बिन युनूस बयाज़ी आ़मेली की अस्सेरातुल मुस्तक़ीम, वग़ैरह।
अब बारह सदियों के बअ़्द, एक मोह़क़्क़िक़े मोआ़सिर जनाब शेख़ क़ैस अ़त्तार ने इन मुन्दर्जा बाला मनाबेअ़् और मदारिक से ३६ ह़दीसें अख़्ज़ कीं और किताब नफ़ीसे काफ़ी से इनका मुक़ाएसा किया और अह्ले तह़क़ीक़ के लिए पेश किया। जनाब अ़त्तार ने एक तफ़्सीली मुक़द्दमा रक़म तराज़ किया है जिसमें आपने उ़लमाए रेजाल के नज़रियात इस किताब और उसके मुसन्निफ़ के बारे में पेश किए हैं और उनका तज्ज़िया किया है।
इस मुक़द्दमे के बअ़्द आपने किताबुल वसीया में ३६ ह़दीसें नक़्ल की हैं। जैसा कि बयान कर चुके हैं, मोह़क़्क़िक़ मोह़तरम ने इन अह़ादीस की बाज़याबी के लिए ६ किताबों पर इस्तेनाद किया है। वोह किताबें इस तरह़ हैं:
१- मिस्बाहुल अनवार – जो अब तक चाप नहीं की गई है लेहाज़ा इसके तीन मोअ़्तबर ख़त्ती नुस्ख़े कि जिनकी तरफ़ मोहक़्क़िक़ ने रुजूअ़् फ़रमाया था उनकी ख़ुसूसियात मुक़द्दमे में बयान की गई हैं।
२- किताबे तर्फ़ – जो ह़ाल ही में इसी मोह़क़्क़िक़ की कोशिशों से मन्ज़रे आ़म पर आई है और इसके ६ नुस्ख़ों की ख़ुसूसियात का ज़िक्र किया गया है।
३- बक़िया ४ किताबें – काफ़ी, ख़साएस, इस्बातुल वसीया और अस्सेरातुल मुस्तक़ीम के चाप शुदा नुस्ख़ों पर एअ़्तेमाद किया गया हैं।
यहाँ येह बताना लाज़िम और ज़रूरी समझते हैं कि बारहवीं सदी के मशहूर-ओ-मअ़्रूफ़ मोह़द्दिस मरह़ूम सैयद ह़ाशिम बहरानी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “अत्तोह़फ़तुल बहीया फ़ी इस्बातुल वसीया” में किताबे तर्फ़ से २१ ह़दीसें नक़्ल की हैं कि जिनमें २० ह़दीसें ई़सा बिन मुस्तफ़ाद की किताब से मन्कूल हैं कि कभी कभी इस किताब की तरफ़ भी रुजूअ़् किया गया है। दिलचस्प बात येह है कि इस किताब में अ़रबी की इ़बारतों पर एअ़्राब लगाए गए है और हर ह़दीस के नीचे नुस्ख़ों में एख़्तेलाफ़ और ह़दीस के मनाबेअ़् का ज़िक्र है।
आइए इस अहम और गराँक़द्र किताब की चन्द अह़ादीस पर ताएराना नज़र डालते हैं ताकि उनके मज़ामीन से मुस्तफ़ीद हों।
१- ई़सा इब्ने मुस्तफ़ाद ने इमाम काज़िम .अलैहिस्सलाम से अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम और उम्मुल मोअ्मेनीन मोह़्सिनतुल इस्लाम ह़ज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अ़लैहा के इस्लाम लाने की कैफ़ीयत और शराएत से मुतअ़ल्लिक़ सवाल किया। इमाम काज़िम .अलैहिस्सलाम ने उनके सवाल का जवाब अपने पेदरे बुर्ज़ुग़वार की रवायत से दिया। इस ह़दीस शरीफ़ में तौह़ीद, नबूवत और मआ़द पर १२ नुकात, अह़काम और अख़्लाक़ पर १६ नुकात, इमामत, तवल्ला और तबर्रा पर १० नुकात हैं। यहाँ तक कि इसमें वोह बातें मौजूद हैं जो अब तक वाक़ेअ़् नहीं र्हुइं और येह कि पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ह़ज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अ़लैहा से अ़ह्द-ओ-पैमान लिया कि वोह वेलायते ह़ज़रत अ़ली .अलैहिस्सलाम को तस्लीम करेंगी।
२- मदीनए मुनव्वरा हिजरत फ़रमाने के बअ़्द और जंगे बद्र के लिए निकलते वक़्त पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मुसलमानों से बैअ़त ली, इस मौक़ेअ़् पर अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम से तन्हाई में कुछ मतालिब बयान किए और आप .अलैहिस्सलाम से वअ़्दा लिया कि इन मतालिब को पोशीदा रखेंगे। इसके बअ़्द एक और मजलिस में ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन, ह़ज़रत ज़हरा और जनाब ह़मज़ा अलैहिमुस्सलाम को दरियाफ़्त किया और उन दोनों से दरख़ास्त की कि वोह अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम के हाथों पर बैअ़त करें। उस वक़्त आयए करीमा “यदुल्लाहे फ़ौ–क़ ऐदीहिम (सूरए फ़त्ह (४८), आयत १०)” नाज़िल हुई।
३- पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने तमाम लोगों से एक एक करके अह्लेबैत अलैहिमुस्सलाम के लिए बैअ़त ली। उसी रोज़ से ख़ानदाने नूर के ख़ेलाफ़ लोगों के दिलों में कीना और दुश्मनी आश्कार हुई।
४- ह़ज़रत ह़मज़ा .अलैहिस्सलाम की शहादत की शब, पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने आपके लिए इस्लाम के अह़काम और ईमान के शराएत बयान फ़रमाए जिसमें तौह़ीद, नबूवत और मआ़द के मुतअ़ल्लिक़ ९ नुकात थे और १० नुकात इमामत और वेलायत के बाब में थे। ह़ज़रत ह़मज़ा .अलैहिस्सलाम ने भी चन्द बार अपने ईमान और तस्दीक़ का एअ़्लान फ़रमाया।
५- इस ह़दीस शरीफ़ में ह़ज़रत रसूले अअ़्ज़म सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मोअ़्तबर और आ़दिल सह़ाबा जनाब सलमान, जनाब अबूज़र और जनाब मिक़दाद रह़्मतुल्लाह अ़लैहिम के लिए इस्लाम के शराएअ़् और ईमान के शराएत बयान फ़रमाए जिसमें ८ नुकात तौहीद, नबूवत, क़ुरआन करीम और क़ज़ा-ओ-क़द्र के मुतअ़ल्लिक़ थे। १८ नुकात इमामत के मौज़ूअ़् पर थे। २३ नुकात अख़्लाक़ और अह़काम के बारे में थे। ५ नुकात अह्लेबैते अत्हार अलैहिमुस्सलाम से मोह़ब्बत के मुतअ़ल्लिक़ थे। ६ नुकात क़ुरआन करीम का रिश्ता ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम से और ७ नुकात मआ़द के मौज़ूअ़् पर थे।
इस ह़दीस शरीफ़ की इब्तेदा में ह़ज़रत मुरसले अअ़्ज़म सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया कि इस्लाम के शराएत और शराएअ़् इससे ज़्यादा हैं कि उनका शुमार किया जाए। फिर आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मज़्कूरा ४७ नुकात को नेहायत एख़्तेसार से और बहुत ही जामेअ़् अन्दाज़ में बयान फ़रमाया।
येह किताब (किताबुल वसीया) जो कम सफ़ह़ात पर मुश्तमिल है लेकिन मतालिब से भरपूर है। इसमें ज़बाने वह़ी से हम तक वोह रवायात पहुँची हैं जिनमें नबूवत के इब्तेदाई दिन और आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ह़याते दुन्यवी के आख़िरी दिनों की ख़बरें हैं और जिनको बनी उमय्या और बनी अ़ब्बास के ज़ालिम और जाबिर ह़ुक्मरानों ने मिटाने की ह़त्तल इम्कान कोशिश की।
येह “अस्ल” उन ४०० उसूलों में है कि जिन के मौज़ूअ़् में नज़्म और यकजेह्ती पाई जाती है। उसूले दीन में अहम तरीन अस्ल यअ़्नी इमामत और वेलायते अमीरुल मोअ्मेनीन .अलैहिस्सलाम पर बेपनाह ताकीद की गई है। लेहाज़ा मुख़्तलिफ़ जेहात की बेना पर इस अस्ल को ४०० उसूलों में एक ख़ास मक़ाम और एअ़्तेबार ह़ासिल है। येह ग़राँक़द्र अस्ल और उसकी मज्हूलुल क़द्र रवायतें हमें एक ऐसी शख़्सीयत के ज़रीए पहुँची हैं जिनका इस्मे गेरामी ई़सा बिन मुस्तफ़ाद था कि जिनके बारे में एक मक़ाम पर ख़ुद इमाम काज़िम .अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः
“तुम्हारी तमाम काविशों का दारोमदार इ़ल्म है। ख़ुदा की क़सम तुम्हारा सवाल सिर्फ़ और सिर्फ़ तफ़क़्क़ोह के लिए होता है।”
(पहली ह़दीस)
एक दूसरे मौक़ेअ़् पर इमाम काज़िम .अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः
“ऐ ई़सा तुम तमाम उमूर की गहराइयों में तह़क़ीक़ करते हो और जब तक उन्हें ह़ासिल नहीं कर लेते हो चैन नहीं लेते हो।”
ई़सा ने अ़र्ज़ कियाः
“मेरे माँ बाप आप पर फ़ेदा हों! मैं सिर्फ़ उन उमूर के बारे में सवाल करता हूँ जो मेरे दीन के लिए नफ़अ़् बख़्श हैं और दीन फ़ह्मी के लिए सवाल करता हूँ ताकि मैं अपनी जेहालत कि बेना पर गुमराह न हो जाऊँ। लेकिन सिवाए आपके और मैं किसको पाऊँ जो मुझे उन उमूर से आश्ना करे?”
(ह़दीस ३२)
अलबत्ता येह बात ज़ेह्न नशीन रहे कि ई़सा ने इनमें कई ह़दीसें अपने वालिद अल मुस्तफ़ाद से सुनी हैं जो इमाम जअ़्फ़र सादिक़ .अलैहिस्सलाम के शागिर्दों में से थे। मुम्किन है कि ई़सा ने ताकीद और इत्मीनान के लिए या मज़ीद वज़ाह़त के लिए इन रवायात शरीफ़ को अपने इमामे वक़्त यअ़्नी इमाम काज़िम .अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में अ़र्ज़ किया होगा और ह़ज़रत .अलैहिस्सलाम से उसकी तस्दीक़ चाही होगी।
लेहाज़ा अ़ल्लामा बयाज़ी आ़मेली रह़्मतुल्लाह अ़लैह अपनी किताब “अस्सेरातुल मुस्तक़ीम” में किताबुल वसीया की रवायत का मा ह़सल पेश करने के बअ़्द तह़रीर फ़रमाते हैं:
स–अ–ज़–ओ़ मुह़स्स–लहा फ़ी हाज़ल बाबे ले–यह्तदे–य बेही उलुल अल्बाबे व ल–उतय्येमुन–न बेज़िक्रेहा व अ–तक़र्रबो इलल्लाहे तआ़ला बे–नश्रेहा फ़–इन–न फ़ीहा शिफ़ाउन लेमा फ़िस्सुदूरे यअ़्तमेदो अ़लैहा मँय्युरीदो तह़्क़ी–क़ तिल्कल उमूर.
मैं इस बाब में रवायात का मा ह़सल पेश कर रहा हूँ ताकि साह़ेबाने अ़क़्ल इससे हेदायत ह़ासिल कर सकें। मैं इन ह़दीसों के ज़िक्र से बरकत ह़ासिल करता हूँ। इनके नश्र के ज़रीए़ ख़ुदावन्द मुतआ़ल की बारगाह में क़ुर्बत और नज़्दीकी ह़ासिल करता हूँ। क्योंकि इन ह़दीसों में सीनों में जो भी दर्द है उसकी शेफ़ा है और जो भी इन उमूर की तह़क़ीक़ का ख़ाहिशमन्द है उसे चाहिए कि इन पर एअ़्तेमाद करे।
(अस्सेरातुल मुस्तक़ीम, जि. २, स. ४०)
शेख़ बयाज़ी, जो नवीं सदी हिजरी के बरजस्ता मुतकल्लिम थे, की येह गवाही मोह़क़्क़ेक़ीन के लिए काफ़ी है ताकि वोह इस बात को समझ लें कौन सा बेश क़ीमत गौहर और कौन सी अ़ज़ीम दौलत उनके हाथों में आई है। दूसरे लफ़्ज़ों में हमारे क़दीम मोह़द्देसीन की अन्थक कोशिश थी कि येह गराँक़द्र दौलत इतनी आसानी से हम तक पहुँची है। हम बारगाहे एज़्दी में दुआ़ करते हैं कि उनकी अरवाह़े मुक़द्देसा अपने मौला के दस्तरख़ान पर उनके उ़लूम से मालामाल हो।
नोट – येह मुख़्तसर लेकिन अहम किताब अब तक सिर्फ़ अ़रबी ज़बान में मौसूल है। हम अह्ले इ़ल्म और साहेबाने क़लम से दरख़ास्त करते हैं कि इसका तर्जुमा उर्दू ज़बान में कर दें ताकि उर्दू और हिन्दी पढ़ने वाले इससे इस्तेफ़ादा कर सकें। और साह़ेबाने सरवत से इल्तेमास है कि वोह इन राहों में फ़राख़ दिली से काम लें ताकि येह किताबें और येह रवायात उनके आख़ेरत का ज़ाद और बाक़ेयातुस्सालेह़ात बने।
परवरदिगारा! हमारे इमामे ज़माना अ़ज्जलल्लाहो तआ़ला फ़रजहुश्शरीफ़ के ज़हूरे पुरनूर में तअ़्जील फ़रमा ताकि हम आपके दहाने मुबारक से इन रवायाते शरीफ़ा को सुनें और उनके उ़लूम-ओ-मआ़रिफ़ से इस्तेफ़ादा कर सकें। आमीन या रब्बल आ़लमीन।