आयए तत्‌हीर और उ़लमाए अह़्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात – दूसरा हिस्सा

दूसरे गिरोह का एक नमूना

जैसा कि हमने ऊपर बयान किया कि दूसरा गिरोह अह्ले सुन्नत का है जिसने अ़करमा और मक़ातिल के नज़रिए की ताईद की है, तो येह जानना ज़रूरी है कि अ़करमा और मक़ातिल का नज़रिया क्या है और येह कौन लोग हैं। इन दोनों का नज़रीया आयए तत्‌हीर के सिलसिले में तह़ावी और इमामिया से मुख़्तलिफ़ है।

अ़करमा और मक़ातिल कहते हैं कि इस आयत से मुराद अज़्वाजे पैग़म्बर हैं।

आया मक़सूद अज़ अह्लेबैत अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं?

अ़करमा येह जानते हुए कि इस आयत का नुज़ूल सिर्फ़ इतरते पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं फिर भी सबसे ज़्यादा मुख़ालेफ़त की है।

अ़करमा के बारे में मशहूर है कि वोह बाज़ार में चिल्लाता था : येह आयत सिर्फ़ अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की शान में नाज़िल हुई है।२

वोह कहता था : जो चाहे मुझसे मुबाहेला कर ले, क्योंकि ह़क़ मेरे साथ है और येह आयत अज़्वाजे पैग़म्बर की शान में नाज़िल हुई है।३

२- तफ़सीरे तबरी, १०/२९८ ह़दीस २८५०३, तफ़सीर इब्ने कसीर, ३/४६५, अस्बाबे नुज़ूल १९८। तालीफ़ इमाम वाह़ेदी निशापूरी।

३- अद्दुर्रुल मन्सूर, ६/६०३ (सुयूती), तफ़सीर इब्ने कसीर ३/४६५

अ़करमा मुसलमानों के मुसल्लेमा अ़क़ीदे की येह आयए इ़तरते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की शान में नाज़िल हुई है बर ख़ेलाफ़ कहता है: जिसके तुम (मुसलमान) मोअ़्‌तक़िद हो, सह़ीह़ नहीं है, बल्कि मक़सूद सिर्फ़ अज़्वाजे पैग़म्बर हैं।१

अ़करमा का येह नज़रिया दुरुस्त नहीं है सब्त इब्ने जौज़ी और ज़हबी ने इसकी ताईद की है। दुश्मनीए अह्लेबैत रखने वालों से इसी तरह़ की उम्मीद की जा सकती है।

१- अद्दुर्रुल मन्सूर, ६/६०३

अ़करमा के ह़ालाते ज़िन्दगी पर एक नज़र

अ़करमा बरबरी२ मशहूर तरीन ज़िन्दिकियों में था। इस्लाम में शक-ओ-शुब्ह ईजाद करने के लिए ह़दीस जअ़्‌ल करता था। मोअ़्‌तबर किताबों से इसके ह़ालाते ज़िन्दगी के कुछ गोशे पेश करते हैं।३

२- मग़रिबी अफ्रीक़ा की एक क़ौम “बराबर” है इससे बरबरी मन्सूब हैं। रुजूअ़्‌ कीजिए फ़र्हन्गे अबजदी १/१८०

३- अ़करमा के ह़ालात के लिए रुजूअ़्‌ कीजिए: अत्तबक़ातुल कुबरा ५/१२९ (मोह़म्मद बिन सअ़्‌द बसरी), वफ़यातुल अअ़्‌यान ३/२६५ (मोह़म्मद बिन ख़ल्लकान), मीज़ानुल एअ़्‌तेदाल ५/११६ (ज़हबी, शम्सुद्दीन)

१- दीन में शुब्हा इजाद करना

नक़्ल है कि अ़करमा इस्लाम में शुब्हे पैदा करता था और दीन का मज़ाक़ उड़ाता था और येह मशहूर तरीन गुमराहों और बद ख़ाहों में था…….

वोह कहता था : ख़ुदा ने आयाते मुतशाबेह क़ुरआन को नाज़िल किया ताकि इसके ज़रीए़ गुमराह करे!

ह़ज के ज़माने में भी कहता था : मुझे पसन्द है कि आज ह़ज के मौक़ेअ़्‌ पर हूँ और वोह नैज़ा जो मेरे हाथ में है, ह़ाज़ेरीन पर दाएँ से और बाएँ से ह़मला करूँ।

वोह मस्जिदुन्नबी के दरवाज़े पर खड़ा होकर कहता है: इस मस्जिद में, फ़क़द एक मट्टी भर के अफ़राद मौजूद हैं!

कहते हैं कि वोह नमाज़ नहीं पढ़ता था, सोने की अंगूठी पहनता और मौसीक़ी-ओ-ग़ेना सुनता था।

२- वोह ख़वारिज का ह़ामी था

अफ़्रीक़ा के लोगों ने अ़क़ीदए सफ़रिया ख़वारिज इफ़राती को अ़करमा से लिया है। नक़्ल है कि उसने इस अ़क़ीदे की झूठी निस्बत इब्ने अ़ब्बास की तरफ़ दी है। यह़्या बिन मोई़न कहते हैं: मालिक, ने अ़करमा का ज़िक्र नहीं किया है, क्योंकि अ़करमा ने अ़क़ीदए सफ़रिया को क़बूल किया था। ज़हबी इसके बारे में कहते हैं : लोग अ़करमा के बुरा कहते थे उसके ख़ारिजी अ़क़ीदे की वजह से।

३- अ़करमा का झूठा होना

अ़करमा अपने झूठ को इब्ने अ़ब्बास की तरफ़ निस्बत देता था। इसी वजह से अ़ली बिन अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास ने उसे अपने घर के बैतुल ख़ला में बन्द किया था।

अ़ली बिन अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास से पूछा गया: क्यों अपने ग़ुलाम से इस तरह़ का सलूक करते हो?

जवाब दिया: वोह मेरे वालिद पर झूठ की निस्बत देता है।

नक़्ल हुआ है कि: सई़द बिन मुसीब ने अपने ग़ुलाम से कहा: ऐ ग़ुलाम! ऐसा न हो कि तू भी अ़करमा की तरह़ मुझसे झूठी बातें मन्सूब कर दे जैसा कि वोह इब्ने अ़ब्बास की निस्बत झूठी बातें कहता था।

इब्ने उ़मर से भी नक़्ल हुआ है कि अपने ग़ुलाम से कहा: ऐ नाफ़ेअ़्‌ आगाह रहो! तक़वए एलाही एख़्तेयार करो और अ़करमा की तरह़ कि जिसने इब्ने अ़ब्बास पर झूठ की निस्बत दी, तू मुझ पर झूठ की निस्बत न देना!

क़ासिम, सैयदीन-ओ-यह़्या बिन सई़द और मालिक ने भी मुत्तफ़ेक़ा तौर पर कहा कि अ़करमा बहुत झूठा है। यहाँ तक कि मालिक ने इसकी रवायत को नक़्ल करने का ह़राम क़रार दिया।

इब्ने अबी ज़हब से नक़्ल हुआ है कि अ़करमा क़ाबिले एअ़्‌तेमाद नहीं है। मुस्लिम बिन ह़ेजाज ने भी इससे मुँह मोड़ लिया और मोह़म्मद बिन सई़द अ़करमा के बारे में कहते हैं : इसकी ह़दीस से इस्तेनाद नहीं हो सकता।

४- लोगों ने इसके जनाज़े का तन्हा छोड़ दिया

लोगों ने इसकी इन ह़रकतों की वजह से इसके जनाज़े को तन्हा छोड़ दिया। कोई इसकी मय्यत को उठाने तैयार न हुआ यहाँ तक कि चार सियाह पुस्त सूडानी ग़ुलामों को अजीर बनाया गया।

तज़क्कुर

अ़करमा जैसा दुश्मने अह्लेबैत की ख़बासत-ओ-नजासत के ह़ालात किताबों में दर्ज हैं। अ़करमा से ह़दीसों को नक़्ल करने वाले और उसकी ताईद करने वाले अपनी अस्लीयत की तरफ़ मुतवज्जेह हों। दुनिया शक़ावत से सआ़दत में बदलने के लिए है। दुनिया में मिलने वाली मोहलत का फ़ाएदा उठाना चाहिए। अब मुलाह़ेज़ा हो एख़्तेसार के साथ मक़ातिल और ज़ह़्ह़ाक के ह़ालात।

मक़ातिल कौन है?

मक़ातिल बिन सुलेमान बलख़ी ने भी आयए तत्‌हीर के बारे में अ़करमा के नज़रीए की ताई़द की है। इसकी ज़िन्दगी पर भी नज़र डाली जाए तो मअ़्‌लूम होगा कि वोह भी अ़करमा की तरह़ था। इसीलिए दारे क़तनी, अ़क़ीली, इब्ने जौज़ी, और ज़हबी ने इसका नाम उन अफ़राद में लिया है जो नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ है और उनके ज़रीए़ रवायत नक़्ल नहीं की जा सकती……

एख़्तेसार की बेना पर हम सिर्फ़ ज़हबी का क़ौल नक़्ल करते हैं। वोह कहते हैं: तमाम उ़लेमा मक़ातिल बिन सुलेमान को तर्क करने पर इत्तेफ़ाक़ रखते हैं।१

गो टू ऊपर