आयए तत्‌हीर और उ़लमाए अह़्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात – तीसरा हिस्सा

ज़ह़्ह़ाक ने दूसरे नज़रियात के मुक़ाबिले में नज़रिया पेश किया कि आयए तत्‌हीर में “अह्लेबैत” से मुराद अह्ले पैग़म्बर और उनकी अज़्वाज भी हैं। इब्ने जूज़ी ने इस नज़रीये को नक़्ल किया और लिखा कि येह नज़रीया सिर्फ़ ज़ह़्ह़ाक बिन मज़ाह़िम का है।

१- सीरे एअ़्‌लामुल बला ७/२०१, शुमारह ७९

ज़ह़्ह़ाक कौन था?

इब्ने जौज़ी ने अ़क़ीली की तरह़ ज़ह़्ह़ाक को उन अफ़राद में शुमार किया है जो नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ हैं। ज़हबी ने भी उन दोनों की पैरवी में उसे नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ क़रार दिया और उसके नाम को अपनी किताब “अल मुग़नी फ़िज़्ज़ोअ़फ़ा” में ज़िक्र किया है।

उन लोगों ने इस एह़तेमाल को कि उसने इब्ने अ़ब्बास को देखा है, इन्कार किया है, बल्कि उनमें से बअ़्‌ज़ ने लिखा है कि: ज़ह़्ह़ाक ने किसी एक सह़ाबिए पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से गुफ़्तुग़ू भी नहीं किया है।

ज़ह़्ह़ाक के बारे में यह़्या बिन सई़द से यूँ नक़्ल हुआ है: हमारी नज़र में ज़ह़्ह़ाक नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ है। कहते हैं कि वोह दो साल तक शिकमे मादर में रहा।१

१- तहज़ीबुल कमाल, ९/१७३, मीज़ानुल एअ़्‌तेदाल, ३/४४६, अल मुग़नी फ़िज़्ज़ोअ़फ़ा १/३१२

तीसरे गिरोह का एक नमूना

जैसा कि हमने इब्तेदा ही में येह बात नक़्ल की है कि तीसरे गिरोह ने भी रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और बुज़ुर्ग अस्ह़ाब के नज़रिए के बर ख़ेलाफ़ ज़ह़्ह़ाक के नज़रिए पर अ़मल किया है। ज़रा मुलाह़ेज़ा हो।

इब्ने कसीर दमिश्क़ी का शुमार हम तीसरे गिरोह में करते हैं। उन्होंने अ़करमा के झूठ को नक़्ल करने के बअ़्‌द लिखा:

“अगर अ़करमा का मक़सद येह है कि सिर्फ़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज इस आयत की शाने नुज़ूल हैं और अफ़रादे दीगर नहीं तो सह़ीह़ है और अगर मुराद येह है कि अज़्वाजे पैग़म्बर के अ़लावा कोई दूसरा इस आयत में मुराद नहीं है, तो येह बात मह़ल्ले तअम्मुल और ग़ौर-ओ-फ़िक्र के लाएक़ है। क्योंकि इस सिलसिले में वारिद होने वाली ह़दीसों में मुराद उससे वसीअ़्‌ तर है।”

इसके बअ़्‌द इब्ने कसीर बहुत सी ह़दीसों को नक़्ल करते हैं जो सराह़त से इस बात को बयान करती हैं कि येह आयत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम उनके ज़ानशीन अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़ली, ह़सनैन और सिद्दीक़ा ताहेरा अ़लैहिमुस्सलाम से मख़्सूस है और साबित करती हैं कि अ़करमा की बात किताब-ओ-सुन्नत के ख़ेलाफ़ है।

हाए रे तअ़स्सुब

लेकिन इसका तअ़स्सुब इजाज़त नहीं देता कि इस मौजूअ़्‌ का एअ़्‌तेराफ़ करे। यहाँ तक कि सेयाक़े आयत से रब्त के बअ़्‌द कहता है: आयत से मुराद अज़्वाजे पैग़म्बर भी हैं।

फिर इन्तेहाई ताकीद से कहता है: “जो क़ुरआन की आयतों में तदब्बुर करता है वोह तरदीद नहीं करेगा कि अज़्वाजे पैग़म्बर इस आयत के मसादीक़ से हैं।” क़ुरआन कहता है:

इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे-ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे-रकुम तत्हीरा.

क्योंकि सियाक़े आयत अज़्वाज के बारे में है।२

२- तफ़सीरुल क़ुरआनिल अ़ज़ीम, ३/४६५। तफ़सीरे इब्ने कसीर के नाम से मअ़्‌रूफ़ है। तालीफ़ अबुल फ़ेदा इस्माई़ल बिन कसीर क़रशी दमिश्क़ी, दारुल मअ़्‌रिफ़, बेरूत, लेबनान, तबअ़्‌ सेवुम, सन १४०९ हि.

इब्ने तैमिया का इस ह़दीस के सह़ीह़ होने का एअ़्‌तेराफ़: तअ़ज्जुब येह है कि इब्ने तैमिया ने इन दोनों नज़रियात में से किसी को क़बूल नहीं किया है, बल्कि अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह के इस ह़दीस के सह़ीह़ होने का इस्तेदलाल का इक़रार किया है।

अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह फ़रमाते हैं : हम यहाँ सिर्फ़ कुछ रवायतों को नक़्ल करते है जो अह्ले सुन्नत के नज़रिये के तह़त सह़ीह़ रवायतें हैं और उन लोगों ने अपने मोअ़्‌तबर अक़वाल-ओ-आसार के तह़त नक़्ल किया है। उन रवायतों को नक़्ल करते है ताकि रोज़े क़यामत उन पर हमारी ह़ुज्जत तमाम हो जाए। मिनजुम्ला एक रवायत है कि अबुल ह़सन अन्दलेसी ने अपनी किताब अल जमओ़ बैनस्से़हाह़िस्सित्ता में “मोवत्ता” मालिक, सह़ीह़ बुख़ारी, सह़ीह़ मुस्लिम, सुनने अबी दाऊद, सह़ीह़ तिरमिज़ी और सह़ीह़ नेसाई से नक़्ल किया है।

इस रवायत में उम्मे सलमा कहती हैं:

आयत (इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे-ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे-रकुम तत्‌हीरा) मेरे घर में नाज़िल हुई इस ह़ालत में कि मैं दरवाज़े के सामने बैठी थी। मैंने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से कहा: ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या मैं अह्लेबैत से नहीं हूँ?

पैग़म्बर ने फ़रमाया:

इन्नके अ़ला ख़ैरिन. इन्नके मिन अज़्वाजिन्नबीये.

तुम ख़ैर पर हो और पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बीवियों से हो।

उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा फ़रमाती हैं: मेरे घर में, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम थे, ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इन लोगों को अपनी अ़बा में दाख़िल किया और फ़रमाया:

अल्लाहुम्म हा ऊलाए अह्लो बैती फ़ज़्हब अ़न्हुमुर्रिज्स व तह्हेर्हुम तत्हीरा।१

बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं। आलूदगी को इनसे दूर रख और इन्हें वैसा पाक-ओ-पाकीज़ा रख जैसा पाक-ओ-पाकीज़ा होना चाहिए।

१- मिन्हाजुल करामत, फ़ी मअ़्‌रेफ़तिल इमामत/८४,८५ वज्‌हे शशुमे अज़ फ़स्ले दुवुम, तालीफ़ अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह

इब्ने तैमिया इस बारे में एक अलग फ़स्ल में कहता है: ह़दीसे किसा एक सह़ीह़ ह़दीस है, अह़मद बिन हम्बल और तिरमिज़ी ने इसे उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा से नक़्ल किया है। इस ह़दीस को मुस्लिम ने अपनी सह़ीह़ में आ़एशा से इस तरह़ नक़्ल किया है:

“एक रोज़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम घर से जल्दी निकले, इस ह़ालत में कि उन के दोशे मुबारक पर ऊन की एक सेयाह़ अ़बा थी। इस मौक़ेअ़्‌ पर ह़सन इब्ने अ़ली अ़लैहेमस्सलाम उनके नज़्दीक आए और आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उन्हें अपनी चादर में ले लिया, फिर ह़ुसैन बिन अ़ली अ़लैहेमस्सलाम आए और उन्हें भी अ़बा के दामन में ले लिया। कुछ देर बअ़्‌द फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहार् आइं वोह भी ज़ेरे किसा क़रार र्पाइं और उनके बअ़्‌द, अ़ली अ़लैहिस्सलाम आए और वोह भी चादर में आ गए।

फिर ह़ज़रत ने फ़रमाया:

इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हेब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हेरकुम तत्हीरा.

इब्ने तैमिया इस ह़दीस के नक़्ल करने के बअ़्‌द लिखता है:

पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इस ह़दीसे फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहा में ह़सन-ओ-ह़ुसैन को अ़ली अ़लैहिस्सलाम के साथ शरीक किया है, इस बेना पर येह फ़ज़ीलत (इ़स्मत) ह़दीस में सिर्फ़ उनसे मख़्सूस फ़ज़ीलत नहीं है और वाज़ेह़ है कि औ़रत इमामत की सलाह़ियत नहीं रखती, इस तरह़ मअ़्‌लूम हुआ कि येह फ़ज़ीलत (इ़स्मत) अइम्मा से मख़्सूस नहीं है। बल्कि अइम्मा के अ़लावा वोह भी इसमें शरीक़ हैं।

दूसरी तरफ़, मज़्कूरा ह़दीस का मज़्मून येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ कि ताकि वोह लोग आलूदगी से दूर हो जाएँ और पाक-ओ-मुनज़्ज़ह हो जाएँ और जो इन्तेहाई बात इस ह़दीस से इस्तेफ़ादा की जा सकती है येह है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ की ताकि वोह लोग परहेज़गारों में से हो जाएँ कि ख़ुदा ने रिज्स को उनसे दूर किया और उन्हें पाकीज़ा किया है, जब कि आलूदगी से इज्तेनाब मोअ्‌मिन के लिए वाजिब था और तमाम मोअ्‌मिन इसके लिए मामूर हैं। ख़ुदा का इरशाद है।

मा यूरीदुल्लाहो लेयज्अ़ल अ़लैकुम मिन ह़रजिव्वलाकिय्यूरीदो लेयोतह्हेरा कुम वलेयोतिम्मा नेअ़्‌मतहू अ़लैकुम

(सूरए माएदा, आयत ६)

ख़ुदा नहीं चाहता कि तुम पर किसी तरह़ की तंगी करे बल्कि वोह चाहता है कि तुमको पाक कर दे और तुम पर अपनी नेअ़्‌मत तमाम कर दे।

दूसरी आयत में इरशाद होता है:

ख़ुज़ मिन अम्वालेहिम सदक़तन तोतह्हेरहुम व तोज़क्कीहीम बेहा

(सूरए तौबा, आयत १०३)

ऐ रसूल तुम उनके माल की ज़कात लो और उसके वसीले से उन्हें पाकपाकीज़ा कर दो।

एक दूसरी आयत में आया है:

इन्नल्लाहा योह़िब्बुत्तवाबीना व योह़िब्बुल मोततह्हेरीना.

(सूरए बक़रा, आयत २२२)

ख़ुदा तौबा करने वालों को और जो लोग पाकीज़गी की तलाश करते हैं, पसन्द करता है।

ख़ुलासा येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने दुआ़ की कि वोह लोग वाजेबात पर अ़मल कर सकें और मोह़र्रेमात को तर्क करें।

एक तरफ़ ख़ुदा ने अबू बक्र के लिए यूँ फ़रमाया:

व सयोजन्नबोहल्अत्का. अल्लज़ी यूअ्‌ती मा लहू यतज़क्का. वमा लेअह़दिन इ़न्दहू मिन नेअ़्‌मतिन तुज्ज़ा.इल्लब्तेग़ाअ वज्हे रब्बेहिल अअ़्‌ला. वलसौफ़ यर्ज़ा.

(सूरए लैल, आयत १७२१)

और जो बड़ा परहेज़गार है वोह उससे (नार से) बचा लिया जाएगा जो अपना माल (ख़ुदा की राह में) देता है ताकि वोह पाक हो जाए और किसी पर उसका कोई अह़सान नहीं जिसका उसे बदला दिया जाता हो बल्कि वोह तो सिर्फ़ अपने बलन्द-ओ-अ़ज़ीम परवरदिगार की ख़ुशनूदी ह़ासिल करने के लिए देता है और अनक़रीब ही ख़ुश हो जाएगा।

इसी तरह़ इब्ने तैमिया सूरए तौबा की आयत नम्बर १०० के ह़वाले से नक़्ल किया है कि मुह़ाजेरीन-ओ-अन्सार ने ख़ुदा के फ़रमान को अन्जाम दिया और जो मनअ़्‌ किया गया उससे ख़ुद को रोका यअ़्‌नी उन लोगों ने ख़ुदा की रेज़ायत और दीन की पैरवी के ज़रीए़ ख़ुद को पाक-ओ-पाकीज़ा कर लिया। ख़ुलासा येह कि इब्ने तैमिया के मुताबिक़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ जो अह्ले किसा के लिए थी। इस दुआ़ का कुछ ह़िस्सा अन्सार-ओ-मुहाजेरीन के लिए भी था और इब्ने तैमिया ने इसीलिए येह कहा कि अन्सार-ओ-मुहाजेरीन से अफ़ज़ल नहीं हैं अह्ले किसा।१

१- तफ़सील के लिए रुजूअ़्‌ करो मिन्हाजुस्सुन्ना ५/१३-१५ (तालीफ़ इब्ने तैमिया ह़र्रानी, मिस्र चाप दुवुम १४०९)

इब्ने तैमिया की बातों का ख़ुलासा

१- एअ़्‌तेराफ़ किया है कि येह ह़दीस सह़ीह़ है कि आयए तत्‌हीर अह्ले किसा के लिए नाज़िल हुई और किसी दूसरे शख़्स के लिए नहीं।

२- एअ़्‌तेराफ़ है कि अ़ली-ओ-फ़ातेमा, ह़सन-ओ-ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम के अ़लावा इस आयत में कोई दूसरा शामिल नहीं हैं।

इस बेना पर पूछना चाहिए: अ़करमा की बातें, आयत का सेयाक़ और इब्ने कसीर के अ़क़ीदे का क्या हुआ?

इब्ने तैमिया अ़करमा के नज़रिए को और दूसरों के नज़रियात को रद्द करने के बअ़्‌द और आयत का इ़तरते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से मख़्सूस होने का एअ़्‌तेराफ़ करने के बअ़्‌द, अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह के इस आयत के ज़ैल में इस्तेदलाल को रद्द करते हुए, इस अन्दाज़ में इस्तेदलाल करता है कि उसका बुतलान कामिल तौर पर आश्कार है।

पहली बात येह कहता है कि “फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहा आयत की मिस्दाक़ हैं पस……”

अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपने इस्तेदलाल में दअ़्‌वा नहीं किया है कि येह ह़दीस ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की ख़ुसूसियात को बयान करती है, बल्कि येह आयए मुबारेका और ह़दीस शरीफ़ सिर्फ़ अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम यअ़्‌नी पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली मुर्तज़ा, फ़ातेमा ज़हरा, ह़सन-ओ-ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम की इ़स्मत पर दलालत करती है।

वाज़ेह़ है कि सिर्फ़ मअ़्‌सूम, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की इमामत के बअ़्‌द इमामत के लिए सलाह़ियत रखता है और जो बात ह़ज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा के लिए कही जा सकती है, ख़ुदा ने इमामत को मअ़्‌सूम मर्दों से मख़्सूस क़रार दिया है।

इसके आगे इब्ने तैमिया कहता है:

मज़्कूरा ह़दीस का मज़्मून येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उन लोगों के लिए दुआ़ की कि परहेज़गारों में हों कि ख़ुदा ने आलूदगी को उनसे दूर किया है……

लेहाज़ा ह़दीस का बलन्द तरीन मतलब येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ की है कि अम्र-ओ-नही पर अ़मल करें।

इब्ने तैमिया की कम फ़ह्मी या शिद्दते तअ़स्सुब

इब्ने तैमिया के तमाम एअ़्‌तेराज़ात के लिए एक अलग मज़्मून की ज़रूरत है इसलिए हम एख़्तेसार के साथ जवाबों पर इक्तेफ़ा करते हैं।

पहली बात येह कि इब्ने तैमिया की बातें सराह़त के साथ आयए मुबारका से मनाफ़ात रखती हैं, क्योंकि कलमा “इन्नमा” अ़रबी ज़बान में “ह़स्र” पर दलालत करता है, लेकिन उसकी बातें अ़दमे ह़स्र पर हैं। इस बेना पर उसकी बातें, ख़ुदा और रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बातों को रद्द करती हैं।

दूसरी बात येह कि दूसरी बहुत सी सह़ीह़ रवायतों मे आया है कि जब आयए मुबारका नाज़िल हुई तो रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अ़ली-ओ-फ़ातेमा-ह़सन-ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम को बुलाया और अ़बा में लेकर फ़रमाया:

अल्लाहुम्‌म हाऊलाए अह्लो बैती?

बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं……

जब ख़ुदा वन्द तआ़ला फ़रमाता है:

इन्नमा युरीदुल्लाहो लेयुज़्हेब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते……

और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम भी इस आयत के मिस्दाक़ को मुअ़य्यन फ़रमाते हैं तो क्या इब्ने तैमिया की अ़दमे हस्र की बात को क़बूल किया जा सकता है?

तीसरे येह कि फ़र्ज़ करें की पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ उन लोगों के लिए थी कि परहेज़गार हो जाएँ, और “तमाम मोअ्‌मिनीन को पाकी का ह़ुक्म दिया गया है” और उस दुआ़ का मक़सद “अम्र” के बजा लाने और नह़्य के तर्क करने के लिए है, तो इस सूरत में इस आयत में और ह़दीसे किसा में कोई फ़ज़ीलत की बात नहीं है जब कि ख़ुद उस (इब्ने तैमिया) ने पहले येह बात कही है कि: “मअ़्‌लूम हुआ कि येह फ़ज़ीलत सिर्फ़ अइम्मा के लिए नहीं है बल्कि दुसरों के लिए भी है”“!!

चौथे येह कि अगर “दुआ़ का मक़सद जिन चीज़ों के करने का ह़ुक्म हुआ है और जिन चीज़ों से मनअ़्‌ किया गया, उन पर अ़मल पैरा हों तो पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा को साथ होने की इजाज़त क्यों नहीं दी?

क्या उम्मे सलमा “मुत्तक़ीन और परहेज़गारों में से थी कि ख़ुदा ने उनसे आलूदगी को दूर कर दिया……” और वोह दुआ़ की ज़रूरत नहीं रखती थीं? या पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम नहीं चाहते थे कि वोह मुत्तक़ीन परहेज़गारों में से हों……..?

बहरह़ाल इब्ने तैमिया की येह कोशिश कि आयए तत्‌हीर में सिवाए इसके और कुछ नहीं कि ख़ुदा का इरादा और पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ है अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के ह़क़ में वोह परहेज़गार बनें ख़ेलाफ़ वाक़ेअ़्‌ है। और इब्ने तैमिया का अपने ख़याल को तक़वीयत देकर येह कहना कि येह दुआ़ क़बूल भी हो सकती है और रद्द भी, तो येह भी ख़ुद इब्ने तैमिया की अपनी सोच है, ह़क़ीक़त से इसका कोई तअ़ल्लुक़ नहीं है।

इन्शा अल्लाह अगर ख़ुदा ने ज़िन्दगी दी और तौफ़ीक़ रही तो किसी मौक़ेअ़्‌ पर एक मज़्मून इब्ने तैमिया के इन ख़ुराफ़ाती नज़रियात की रद्द में तह़रीर करेंगे और साबित करेंगे कि अन्सार-ओ-मुहाजेरीन, अबू बक्र-ओ-आ़एशा-ओ-दीगर अज़्वाज, किसी का अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से कोई मुक़ाबला नहीं है। जो लोग मुक़ाबले में आएँ या जो लोग मुक़ाबले में लाए जाएँ सब का अन्जाम ख़ुदा ही जानता है।

ख़ुदाया! मिस्दाक़े आयए तत्‌हीर ह़ज़रत महदी अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर में तअ़्‌जील फ़रमा और हमें उनके अअ़्‌वान-ओ-अन्सार में शुमार फ़रमा।

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