इमामत, फ़ितरत और अख़्लाक़ी क़दरें इन्नद्दी-न इ़न्दल्लाहिल इस्लाम

ख़ुदावंद आ़लम के नज़्दीक़ दीने इस्लाम ही एक तन्हा दीन है जिस के अ़लावा कोई और दीन क़ाबिले क़बूल नहीं होगा। इस एक क़बूल शुदा दीन के बारे में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का इर्शाद है कि दीने इस्लाम दीने फ़ितरत है। हर इंसान फ़ितरते इस्लाम पर पैदा होता है लेकिन उसे पैदाइश के बअ़्‌द जो माह़ौल मिलता है उस में वोह ढल जाता है और उसकी फ़ितरत पर माह़ौल के असरात से उसकी शख़्सियत उभरने लगती है। अगर येह असरात इंसानियत के मन्फ़ी पहलू से आए हैं तो गर्द-ओ-ग़ुबार की तरह़ उस पर बैठ जाते हैं और वोह उसकी फ़ितरत को छिपा देते हैं लेकिन उसे ख़त्म नहीं कर सकते और फ़ितरत वक़्त पाते ही अपने आप को ज़ाहिर करती है। इसी लिए हम ने देखा कि ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम के ख़ेलाफ़ की याद दहानियों और आगाही से बेदार हो कर वोह साह़िर जो फ़िरऔ़न को अपना ख़ुदा मानते थे और उसकी देफ़ाअ़्‌ में ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम के ख़ेलाफ़ मुक़ाबले पर आए थे फ़ौरन फ़ितरत के तक़ाज़ों को पूरा करते हुए वोह रब्बे मूसा अ़लैहिस्सलाम के ह़ुज़ूर में सज्दा रेज़ हुए।

 

येह मअ़्‌रेफ़ते फ़ितरी जिस की बेना पर हर इंसान अपने ख़ुदा को पहचानता है उसे उसकी पैदाइश से पहले आ़लमे ज़र में अ़ता की गई है। वोह मेह्रबान ख़ुदा जानता था कि इसांन इस दुनिया की चका चौंध में उसे भूल जाएगा और फिर अबदी अ़ज़ाब का मुस्तह़क़ हो जाएगा इसी लिए अपनी बेपनाह रह़मतों के तह़त उसने अंबिया और अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम को भेजा ताकि वोह इंसान को इस अ़ज़ीम नेअ़्‌मत की तरफ़ मुतवज्जेह कराएं और दअ़्‌वते फ़िक्र देते रहें।

 

हम येह भी देखते हैं कि हर इंसान फ़ितरतन एक हादी की ज़रूरत मह़सूस करता है। हर इंसान अपने वजूद में एक हादी को ढूंढ़ता रहता है। इस फ़ितरी ज़रूरत का कुछ लोग ग़लत फ़ाएदा भी उठाते हैं। इस दुनिया में हम देखते हैं कि जो लोग रेयासत की तमन्ना रखते हैं वोह अपने आपको लोगों का रहनुमा बनाकर पेश करते हैं। आ़म लोग ऐसे लोगों के मक्र-ओ-फ़रेब में फंस जाते हैं। लेहाज़ा हम येह देखते हैं कि इस्लाम की तारीख़ में कई झूठों ने महदवीयत का दअ़्‌वा किया और आ़म लोगों को बेवक़ूफ़ बना कर उनकी आख़ेरत तबाह-ओ-बर्बाद कर दी। येह चीज़ चूंकि फ़ितरत से मुतअ़ल्लिक़ है इसी लिए न सिर्फ़ मुसलमानों में बल्कि हर क़ौम में हमें ऐसे ख़ुद साख़्ता रहनुमा नज़र आते हैं जो मोह़ब्बते रेयासत में अपने आप को लोगों का रहनुमा बताते हैं और लोग अपनी कुन्हे फ़ितरत जिस पर दुनिया के ह़ुसूल की गर्द बैठी रहती है इससे ग़ाफ़िल होकर उन्हें मान भी लेते हैं।

 

लेकिन अगर बात फ़ितरत की है तो वोह मेह्रबान ख़ुदा जिस ने इंसान की हर फ़ितरी ज़रूरत का ख़याल रखा है, कैसे मुमकिन है कि वोह उसके एक ह़क़ीक़ी रहनुमा की ज़रूरत को पूरा न करे और उस पर पड़ी हुई गर्द-ओ-ग़ुबार को हटाने के अस्बाब मुहैया फ़रमा दे। इसी लिए उसने आ़लमे ज़र ही में अपनी और अपने नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की मअ़्‌रेफ़त के साथ साथ आइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम की भी मोअ़र्रेफ़ी करा दी। लेकिन अफ़सोस कि जिस तरह़ इंसान ख़ुदाए वाह़िद को भुला कर झूठे ख़ुदा की परस्तिश करने लगा उसी तरह़ अल्लाह के मुअ़य्यन कर्दा इमाम को छोड़ कर झूठे इमामों

के लिए अपनी जान-ओ-माल क़ुर्बान करने के लिए तय्यार हो गया।

 

यहां ठहर कर क़ारेईन की ख़िदमत में अ़र्ज़ है कि ख़ुदा ने सूरए मुल्क में येह वाज़ेह कर दिया है कि येह दुनिया इम्तेह़ानगाह है और इंसान अपने अ़मल के मीज़ान पर परखा जाएगा। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि अश्रार का ज़ोर भी ख़ैर के सामने बढ़ता रहेगा। अश्रार के दो रास्ते हैं जिन के ज़रीए़ वोह फ़ितरते इंसानी को पीछे ठकेलते हैं, एक ग़स्ब और दूसरे जाह तलबी।

 

किसी का ह़क़ ग़स्ब करने के दो पहलू होते हैं। एक ग़ासिब का पहलू है जिस की नुमाइन्दगी रेयासत तलब अफ़राद करते हैं। और दूसरा अमानत में ख़यानत का पहलू है जिस की नुमाइन्दगी हर वोह इंसान करता है जो झूठे रहबर को मान कर उसकी इताअ़त करता है और जो ह़क़्क़े इताअ़त सिर्फ़ इलाही उलुल अम्र का है वोह उस ह़क़ को दूसरों को दे देता है। जिस तरह़ ग़ासिबाने इमामत गुनाहगार हैं उसी तरह़ वोह जो ग़ासिबों की पैरवी करते हैं और उनके पीछे पीछे ह़ेमायत करते हुए चलते हैं

वोह भी बराबर के गुनहगार हैं। दूसरा रास्ता जाह तलबी का है। ऐसे रहनुमा का मरकज़ी मक़सद जाह तलबी के अ़लावा और कुछ भी नहीं है। चुनाँचे अ़ल्लामा इक़बाल इसी मौज़ूअ़्‌ की वज़ाह़त करते हुए फ़रमाते हैं:

ये माल-ओ-दौलत येह रिश्ता-ओ-पेवंद

बुताने वह्‌म-ओ-गुमाँ ला इलाहा इल्लल्लाह

 

अल्लाह बड़ा मेह्रबान है। उसने अंबिया अ़लैहिमुस्सलाम को भेजकर झूठे ख़ुदाओं की परस्तिश करने वालों पर अपनी ह़ुज्जत को तमाम कर दिया और उन अंबिया अ़लैहिमुस्सलाम ने इंसान को ख़ुदा की तरफ़ दअ़्‌वत दी ताकि येह ग़ाफ़िल इंसान जिस की फ़ितरत पर रिश्ता-ओ-पेवंद और बुताने वह्‌म-ओ-गुमाँ की गर्द जमअ़्‌ होने की वजह से येह झूठे ख़ुदाओं को पूजने लगा था येह इंसान अंबिया अ़लैहिमुस्सलाम की याद दहानियों से अपनी फ़ितरत पर पड़ी हुई गर्द को साफ़ कर दे और ह़क़ तआ़ला की तरफ़ जिस का नूर उसके कुन्हे फ़ितरत में मौजूद है उसकी तरफ़ मुतवज्जेह हो जाए।

 

अल्लाह ने जिस रह़मत के साथ इंसान को अंबिया अ़लैहिमुस्सलाम के ज़रीए़ फ़ितरी इ़बादत और फ़ितरी ख़ुदाए ह़क़ीक़ी की तरफ़ मुतवज्जेह किया उसी तरह़ अपनी बेपनाह रह़मत के सबब उसने अपने आख़री नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ज़रीए़ उस ग़ाफ़िल इंसान को फ़ितरी इताअ़त जो कि इमामे ह़क़ीक़ी का ह़क़ है उसकी तरफ़ मुतवज्जेह किया। लेहाज़ा रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अल्लाह के ह़ुक्म से ग़दीर के मैदान में तमाम लोगों पर ह़ुज्जत तमाम कर दी और उस शख़्स की मोअ़र्रेफ़ी कराई जो इंसान के रहनुमा की ज़रूरत को ऐसे पूरा करे जैसे पाक-ओ-पाकीज़ा पानी प्यासे की ज़रूरत को पूरा करता है।

 

जिस तरह़ अंबिया अ़लैहिमुस्सलाम की याद दहानी पा लेने के बअ़्‌द इंसान झूठे ख़ुदाओं की इ़बादत को न छोड़े तो वोह अबदी अ़ज़ाब का मुस्तह़क़ होता है उसी तरह़ एअ़्‌लाने ग़दीर के बअ़्‌द भी अगर कोई इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम को अमीरुल मोअ्‌मेनीन न माने तो वोह भी हमेशा जहन्नम में रहेगा।

 

इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम को अमीरुल मोअ्‌मेनीन मानना सिर्फ़ एक ज़बानी दअ़्‌वा नहीं होना चाहिए क्यूंकि वेलायत इंसान के पूरे वजूद और बर्ताव से मुतअ़ल्लिक़ है। इसी बात को रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने यौमे ग़दीर ही में वाज़ेह कर दिया था जब आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने एअ़्‌लाने वेलायत से पहले लोगों से येह सवाल किया कि क्या मैं तुम पर तुम से ज़्यादा इख़्तेयार नहीं रखता हूँ? और जब इस बात पर लोगों से इक़रार ले लिया तब फ़रमाया:

मन कुन्तो मौलाहो फ़-अ़लीयुन मौलाहो

 

लेहाज़ा इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम को हम सब पर हम से ज़्यादा इख़्तेयार ह़ासिल है। इसी इख़्तेयार के तह़त हमें अपने किरदार को ऐसा बनाना है जैसा कि वोह चाहें न कि जैसा हम और हमारा मआ़शरा चाहता है। इसी लिए जब जंगे सिफ़्फ़ीन में अ़ब्बास इब्ने रबीआ़ जिन्हें अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़ली अ़लैहिस्सलाम ने एक मख़्सूस जगह मुअ़य्यन किया था, एक दुश्मन की ललकार के जवाब में मैदाने जंग में उतर आए और उसका काम तमाम कर दिया तो अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने उन्हें येह कह कर तादीब की कि दुश्मन से लड़ना इतना ज़रूरी नहीं जितना कि ह़ुक्मे इमाम की पैरवी करना। और इस तरबियती तादीब के बअ़्‌द एक वालिदे शफ़ीक़ की तरह़ उन्हें मआ़फ़ भी कर दिया। 

 

अल्लाह की तरफ़ से जो मुक़र्रर कर्दा हादी होता है वोह ख़ुल्क़े अ़ज़ीम पर फ़ाएज़ होता है और अल्लाह की दी हुई बसीरत से इंसानों को ऐसे अ़मल की तरफ़ दअ़्‌वत देता है जो उन्हें हमेशा के लिए सई़द बना दे। जैसे ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम ने अपने सह़ाबियों से कहा कि रास्ता की कोई चीज़ न उठाना। लेकिन जब रास्ता पर तीन सोने कीर् इंट दिखाई पड़ी तो ह़ुब्बे दुनिया उन में से तीन पर ग़ालिब आ गई और उनर् इंटों को लेने के इरादे से रुक गए। लेकिन फिर ह़ुब्बे दुनिया ने उन में से हर एक से येह

मुतालेबा किया कि तीनोंर् इंटों के वोह अकेले मालिक बनें तो उन्होंने एक दूसरे का क़त्ल कर दिया और सब के सब एक साथ जहन्नम वासिल हुए। 

 

अल्लाह के मुक़र्रर कर्दा हादी की इताअ़त इंसान को फ़ाएदा पहुंचाती है बशर्तेकि उनको वाक़ई़ हम अपना मौला मानें और अपने आप को उनका ह़क़ीर ग़ुलाम समझें। हादिए बरह़क़ की शेनाख़्त के बअ़्‌द हमारी फ़ितरत हमें ऐसा करने पर आमादा करती है। फिर जब हम उन को एक नमूनए अ़मल बना कर उनकी इताअ़त करने लगते हैं तो अपने मक़सद ह़्यात की तरफ़ सफ़र करते हैं। इस मक़सद को पूरा करते हैं कि जिस के लिए नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बेअ़्‌सत फ़रमाई। आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का इर्शाद गेरामी है जो आप की बेअ़्‌सत के एक हम मक़सद को बयान

कर रहा है:

बुइ़स्तो लेउतम्मे-म मकारेमल अख़्लाक़

मुझे मब्ऊ़स किया गया ताकि मैं बेहतरीन अख़्लाक़

को पायए तकमील तक पहुंचाऊँ।

 

क़ुरआन ने भी ह़ज़रत हूद अ़लैहिस्सलाम की ज़बानी सूरए शोअ़रा की आयतों में एअ़्‌लान कर दिया: 

इन्नी लकुम रसूलुन अमीनुन फ़त्तक़ुल्ला-ह व अतीऊ़न

यक़ीनन मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।

पस तुम्हें चाहिए कि तक़वा इलाही इख़्तेयार करो और

मेरी इताअ़त करो।

 

इंसान जितना अख़्लाक़ की मंज़िलों को तै करता जाएगा उसे मुश्किल तरीन मरह़लों में इताअ़ते इमाम आसान नज़र आएगी। इसकी बेहतरीन मिसाल ह़ज़रत अबुल फ़ज़्लिल अ़ब्बास अ़लैहिस्सलाम हैं। उनको शुजाअ़त के लिए जाना जाता था। उनकी पैदाइश से पहले ख़ुद अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने उनकी तमन्ना की थी। बचपन से ले कर करबला तक उन्हें हमेशा याद दिलाया गया कि मैदाने करबला में उनकी शुजाअ़त बरूएकार आएगी। लेकिन उस शुजाअ़त के इज़हार के लिए वोह

अपने इमामे वक़्त की इजाज़त के मोह़ताज थे। इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम के फ़र्ज़ंद ने इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम का

किरदार दिखाया और जिस तरह़ इमाम अ़ली अ़लैहिस्सलाम ने बअ़्‌दे शहादते रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम

उनके ह़ुक्म की तअ़्‌मील करते हुए सब्र का मुज़ाहेरा किया उसी तरह़ ह़ज़रत अ़ब्बास अ़लैहिस्सलाम ने भी करबला में सब्र के जौहर दिखाए।

 

हाए वोह जोशे शुजाअ़त पे तसर्रुफ़ शह का उफ़ वोह दरिया कि जिसे इज़्न रवानी न मिला बहरह़ाल ग़दीर इंसान के फ़ितरी रहबर की ज़रूरत को पूरा करती है और इंसान को इताअ़ते इमाम की अदाएगी के लिए तक़वियत बख़्शती है और उस अ़ज़ीम

अमानत में ख़यानत करने से रोकती है।

 

अल्लाह की रह़मत वसीअ़्‌ है और वोह बड़ा मआ़फ़ करने वाला है। लेकिन रोज़े जज़ा अगर किसी इंसान पर ह़ुक़ूक़ुन्नास जैसा गुनाह आ़एद है तो अल्लाह उस गुनाह को मआ़फ़ नहीं करेगा क्यूंकि येह गुनाह इंसानों से मुतअ़ल्लिक़ है। तो जब ख़ुदा एक आ़म इंसान के छीने गए ह़क़ को मआ़फ़ नहीं करेगा तो अगर कोई शख़्स अल्लाह के मुक़र्रर कर्दा ह़ुज्जत का ह़क़ ग़स्ब कर ले

और उनके ह़क़ को पाएमाल करे तो येह कैसे मुमकिन है कि अल्लाह उसे मआ़फ़ कर दे।

 

ग़दीर उस बेहतरीन बशर की मुअ़र्रेफ़ी करवा कर हम पर येह एह़सान करती है कि हम ह़क़्क़े इताअ़त को सह़ीह़ जगह दे कर अपने आप को अख़्लाक़ की बलंदियों पर पहुंचाएं और अपने आपको हमेशा की रुसवाई से बचाएं।

 

आख़िर में जो मुशाहेदा टहोके दे रहा है येह है कि क्या हम इमाम अ़ली अमीरुल मोअ्‌मेनीन (अ़.स.) को वोह ह़क़ देने में कामियाब हो रहे हैं जिस का नाम औला बित्तसर्रुफ़ है और अगर हम बैन बैन हैं तो हमें मुतनब्बेह हो जाना चाहिए कहीं ऐसा तो नहीं कि बक़ौल अ़ल्लामा इक़बाल के :

सज्दा ख़ालिक़ का और इब्लीस से याराना भी ह़श्र में किस से इ़बादत का सिला मांगेगा

गो टू ऊपर