ख़ेलाफ़त-जानशीनी दर सेफ़ात-ओ-कमालात
दीने मुक़द्दसे इस्लाम में इमामत और ख़ेलाफ़ते ख़ुदा और रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का अ़क़ीदा एक नेहायत बुनियादी मसअला है। इसकी अहम्मीयत का अन्दाज़ा इस बात से बख़ूबी लगाया जा सकता है लोगों ने ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की वफ़ात के बअ़्द ख़लीफ़ा के इन्तेख़ाब को आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के कफ़न–ओ–दफ़्न पर तरजीह़ दी येह और बात है कि आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की पहली नमाज़े जनाज़ा उस शख़्स ने पढ़ाई जिसको ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अपना वसी बनाया था।
ख़ेलाफ़त यअ़्नी जानशीनी, इमामत यअ़्नी रहबरी, सवाल येह है कि येह ख़ेलाफ़त किसकी जानशीनी है और येह इमामत किन उमूर में रहबरी है। येह बात बिल्कुल ही वाज़ेह़ है एक मअ़्मूली शख़्स भी इस ह़क़ीक़त को बआसानी दर्क कर सकता है। जिस जगह के लिए इन्तेख़ाब किया जा रहा है उस जगह की ख़ुसूसियात का इ़ल्म ज़रूरी है। अगर आप किसी से कहें मुझे एक आदमी की तलाश है तो फ़ौरन सवाल करेगा किस काम के लिए। एक इन्जीनियर की ज़रूरत है सवाल करेगा किस मैदान में और किस काम के लिए। अगर घर की तामीर के लिए अफ़राद की ज़रूरत है तो मज़दूर की अलग ख़ुसूसियात हैं, कारीगरी की अलग ख़ुसूसियात हैं, निगराँ की अलग, ह़िसाब–ओ–किताब रखने वाले की अलग। हर आदमी हर जगह फिट नहीं हो सकता है। अगर कारीगरी को मज़दूर का काम और मज़दूर को कारीगरी का काम दे दिया जाए, घड़ीसाज़ को लोहार का काम दे दिया जाए और लोहार को घड़ीसाज़ का काम दे दिया जाए तो सारा काम ख़राब हो जाएगा।
लेहाज़ा येह जानना ज़रूरी है कि ख़ेलाफ़त किसकी जानशीनी है और इमामत किन उमूर में रहबरी है।
आया येह ख़ेलाफ़त ह़ज़रत मोह़म्मद बिन अ़ब्दुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की जानशीनी है। येह गद्दी नशीनी है जहाँ बेटा (फ़र्ज़न्द) बाप का वारिस होता है। येह वेरासत नस्ल की बेना पर मिलती है सलाह़ियत की बुनियाद पर नहीं?
या येह ख़ेलाफ़त ह़ज़रत ख़ातेमुन नबीयीन, अश्रफ़ुल मुरसलीन, ताहा–ओ–यासीन, साह़ेबे मक़ाम, क़ा–ब क़ौसेन अव अदना, व–मा यन्तिक़ो अ़निल हवा, व मा रमै तो इज़ रमै तो लाकिन्नल्ला–ह रमा, अलम नश्रह ल–क सद–र–क व रफ़अ़ना ल–क ज़िक–र–क, अ़ल्ल–म–क मा लम तकुन तअ़्लम….. की जानशीनी–ओ–ख़ेलाफ़त है।
अगर येह ख़ेलाफ़त–ओ–जानशीनी ह़ज़रत मोह़म्मद बिन अ़ब्दुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ख़ेलाफ़त–ओ–जानशीनी है तो येह जगह उसको मिलना चाहिए जो क़ानूने मीरास के एअ़्तेबार से ह़ज़रत मोह़म्मद बिन अ़ब्दुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से सबसे ज़्यादा क़रीब हो। उनकी नस्ल से हो उनके ख़ानदान से हो। इस मीरास में ग़ैर का कोई तअ़ल्लुक़े ह़क़ नहीं है। इसमें किसी सलाह़ियत–ओ–इस्तेअ़्दाद की ज़रूरत नहीं है। बस नस्ल से होना काफ़ी है। जैसा दुनिया की तमाम मीरास में होता चला आ रहा है। बेटा बाप का जानशीन क़रार पाता है चाहे उसमें बाप की ख़ुसूसियात न भी हों।
और अगर येह ख़ेलाफ़त–ओ–जानशीनी किसी साह़ेबे मन्सब–ओ–मक़ाम की जानशीनी है यअ़्नी येह ख़ेलाफ़त किसी ख़ास शख़्स की जानशीनी नहीं है बल्कि एक मन्सब की जानशीनी है। जानशीनी में साह़ेबे मन्सब की ख़ुसूसियात का होना ज़रूरी है। अगर किसी यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी अदबीयात के सद्र की जगह किसी की तक़र्रुरी होना है तो उस शख़्स का तक़र्रुर होगा जो अंग्रेज़ी अदबीयात में महारत रखता हो। क्या उस शख़्स को अंग्रेज़ी अदबीयात के शोअ़्बे का सद्र बनाया जा सकता है जिसको ए,बी,सी,डी ही न आती हो। अगर जबरदस्ती येह काम हो गया तो इस शोअ़्बे का ह़ाल क्या होगा येह सब पर ज़ाहिर है। वहाँ सब कुछ होगा अंग्रेज़ी अदब न होगा।
दूसरा अहम मसअला येह है कि सद्र की जगह पर तक़र्रुर करने का ह़क़ सिर्फ़ उन लोगों को है जिन लोगों ने इससे पहले के सद्र को मुक़र्रर किया हो। अगर किसी कमेटी ने मुक़र्रर किया हो तो वही कमेटी उसका जानशीन भी मुक़र्रर करेगी। मसलन हिन्दुस्तान में मरकज़ी यूनिवर्सिटी में वाइस चान्सलर का तक़र्रुर मुल्क का सद्र करता है उसकी दस्तख़त से तक़र्रुरी अ़मल में आती है लोग ज़्यादा से ज़्यादा अपना मशवरा पेश कर सकते हैं मगर आख़री फ़ैसला और तक़र्रुर मुल्क के सद्र को करना है। और बस सिर्फ़ उसी तक़र्रुरी को क़ानूनी ह़ैसियत ह़ासिल होगी जो सद्र की तरफ़ से होगी। अगर शोअ़्बे के लोग अपनी तरफ़ से किसी को मुन्तख़ब करके इस जगह पर बैठाएँ, जगह तो किसी तरह़ से पुर हो जाएगी मगर येह क़ानूनी न होगी।
तीसरा अहम मसअला येह है आया ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त और मुल्क की इन्तेज़ामिया थी, ताकि उनकी जानशीनी के लिए एक फ़ौजी जज़ल या एक सियासतदाँ की ज़रूरत हो जो मुल्क की सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त कर सके और मुल्क की इन्तेज़ामिया को सँभाल सके। या ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की सबसे अहम ज़िम्मेदारी लोगों को तौह़ीद का दर्स देना था जैसा कि क़ुरआने मजीद में इरशादे ख़ुदा वन्दी है:
व लक़द बअ़स्ना फ़ी कुल्ले उम्मतिर्रसूल–न अनेअ़्बुदुल्लाह वज्तनेबुत्ताग़ू–त. फ़ मिन्हुम मन हदल्लाहो व मिन्हुम मन ह़क़्क़त अ़लैहिज़्ज़ला–लतो. फ़सीरू फ़िल अर्ज़े फ़न्ज़ुरू कै–फ़ का–न आ़क़े–बतुल मुकज़्ज़ेबी–न.
(सूरए नह़्ल, आयत ३६)
“और हमने हर उम्मत में रसूल भेजा। (लोगों को येह पैग़ाम दें) बस ख़ुदा की ए़बादत करो और ताग़ूत से किनारा कशी करो।”
इस बेना पर तमाम अम्बिया–ओ–मुरसलीन अ़लैहिमुस्सलाम और ख़ास कर अशरफ़े अम्बिया–ओ–मुरसलीन ह़ज़रत मोह़म्मद सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बुनियादी ज़िम्मेदारी लोगों को ख़ुदा की मअ़्रेफ़त अ़ता करना है और तमाम ग़ैरे ख़ुदा की ताक़तों से दूर करना है। तौह़ीद का दर्स देने के लिए ख़ुद तौह़ीद की मअ़्रेफ़त ज़रूरी है क्योंकि दर्से तौह़ीद उन लोगों को भी दिया जाएगा जो तौह़ीद से बिल्कुन न आश्ना हैं और उन लोगों को भी दिया जाएगा जो ईमान–ओ–मअ़्रेफ़त के बलन्द दरजात पर फ़ाएज़ हैं क्योंकि रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम उनके लिए भी तो रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं। शायद इसीलिए ख़ुदा ने फ़रमाया:
व अ़ल्लमक मा लम तकुन तअ़्लमो व का–न फ़ज़्लुल्लाहे अ़लै–क अ़ज़ीमा.
(सूरए निसा, आयत ११३)
“ख़ुदा ने आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को तअ़्लीम दी।”
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एक और ज़िम्मेदारी लोगों के नफ़्स को पाक–ओ–पाकीज़ा करना था जैसा सूरए मुबारका जुमुआ़ में इरशादे ख़ुदा वन्दी है: “वयुज़क्कीहिम”
जिसकी ज़िम्मेदारी लोगों के नफ़्स को पाक बनाना हो ख़ुद उसको पाकीज़गी की बलन्द तरीन मन्ज़िल पर फ़ाएज़ होना चाहिए। ख़ुदा ने अ़ज़मते रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को इस तरह़ बयान फ़रमाया:
इन्न–क लअ़ला ख़ोलोक़िन अ़ज़ीमिन.
“आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का दर्जा ख़ुल्क़े अ़ज़ीम से भी बलन्द तर है।”
एक और ज़िम्मेदारी: आयाते एलाही की तिलावत है।
यत्लू अ़लैहिम आयातेही।
“वोह उनके सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत करते हैं।”
यहाँ सिर्फ़ आयात की तिलावत नहीं है बल्कि उसके मफ़ाहीम–ओ–मतालिब को इस तरह़ बयान करना है कि बात दिल की गहराइयों तक भी उतर जाए और इस तरह़ घर कर जाए कि नफ़्स–ओ–शैतान का ग़ुलाम ख़ुदा का ख़ालिस बन्दा हो जाए। क़ुरआन करीम सिर्फ़ आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़बाने मुबारक पर नहीं था बल्कि इसका मर्कज़ आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का क़ल्ब भी था जैसा कि इरशादे ख़ुदा वन्दी है:
न–ज़–ल बेहिर्रूह़ुल अमीनो.
ॄ (सूरए शोअ़रा, आयत १९३)
“रूह़ुल अमीन आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के क़ल्बे मुतह्हर पर क़ुरआन लेकर नाज़िल हुए।”
व बिल ह़क़्क़े अन्ज़ल्नाहो व बिल ह़क़्क़े नज़ल. व मा अर्सल्ना–क इल्ला मुबश्शेरवँ व नज़ीरा.
(सूरए बनी इस्राईल, आयत १०५)
“हम ने येह क़ुरआन ह़क़ के साथ नाज़िल किया और येह ह़क़ के साथ नाज़िल हुआ येह अव्वल से आख़िर तक ह़क़ है इसमें ज़र्रा बराबर बातिल का गुज़र नहीं है।”
क़ुरआन मजीद ने तमाम जुम्ला उ़लूम के बारे में इस तरह़ इरशाद फ़रमाया:
व अन्ज़ल्ना इलै कज़् ज़िक–र लेतोबय्ये–न लिन्नासे मा नुज़्ज़ेला इलैहिम.
(सूरए नह़्ल, आयत ४४)
“और हमने आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर ज़िक्र नाज़िल किया ताकि जो कुछ हमने नाज़िल किया है आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम लोगों के लिए उसकी बाक़ाएदा वज़ाह़त कर सकें।”
इसके अ़लावा और भी ज़िम्मेदारियाँ है। अगर हम रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़िम्मेदारी या सबसे अहम ज़िम्मेदारी सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त और मुल्क की इन्तेज़ामिया क़रार दें तो मक्का की १३ साल की ज़िन्दगी में रेसालत का काम क्या था?
सिर्फ़ इन्हीं चन्द बातों की रोशनी में हर साह़ेबे अ़क़्ल–ओ–फ़ह्म के लिए येह बात बिल्कुल वाज़ेह़ है अगर तअ़स्सुब और आबा–ओ–अज्दाद की अन्धी तक़लीद ने दिल की बसारत–ओ–बसीरत न छीन ली हो या कुछ लोगों की मोह़ब्बत अ़क्ल के फ़ैसले की राह में रुकावट न हो तो येह बातें सामने आती हैं। रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बअ़्ज़ बुनियादी ज़िम्मेदारियाँ इस तरह़ हैं:
(१) लोगों को तौह़ीद की तअ़्लीम देना, ख़ुदा की मअ़्रेफ़त अ़ता करना।
(२) नफ़्स को पाक–ओ–पाकीज़ा करना।
(३) क़ुरआनी आयात की तिलावत।
(४) आयाते क़ुरआनी की वज़ाह़त।
और जब इस्लामी मआ़शरा वजूद में आ जाए तो सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त और मुल्क के तश्कील के बअ़्द इन्तेज़ामिया का सवाल है।
इसके अ़लावा ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बेअ़्सत सिर्फ़ एक ख़ास जगह और इ़लाक़े से मख़्सूस नहीं थी बल्कि येह तो सारी दुनिया के लिए थी। लेहाज़ा सारी दुनिया तक तौह़ीद का पैग़ाम पहुँचाना, ख़ुदा की मअ़्रेफ़त अ़ता करना, तमाम लोगों के नफ़्सों को पाक करना, हर एक तक क़ुरआन का पैग़ाम पहुँचाना और हर एक को क़ुरआनी आयात से आश्ना करना।
अब आप अपने आप से ख़ुद सवाल करें ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के जानशीन में किन ख़ुसूसियात को होना ज़रूरी है। वोह:
(१) बाक़ाएदा मअ़्रेफ़ते ख़ुदा रखता हो और मअ़्रेफ़ते ख़ुदा के बलन्द दर्जे पर फ़ाएज़ हो।
(२) बलन्द तरीन अख़्लाक़ का मालिक हो।
(३) क़ुरआन की तमाम आयात से वाक़िफ़ हो।
(४) तमाम क़ुरआनी उ़लूम से आश्ना हो।
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के बअ़्द वोह कौन है जिनमें येह तमाम ख़ुसूसियात मौजूद हों। वोह कौन है जिसने येह फ़रमाया हो:
“अगर आसमान के पर्दे हटा के भी रखे जाएँ तो मेरे यक़ीन में एज़ाफ़ा न होगा।”
वोह कौन है जिसकी तहारत के सिलसिले में आयए तत्हीर नाज़िल हुई हो।
वोह कौन है जिसके बारे में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हो:
“अ़ली मअ़ल् क़ुरआन व क़ुरआन मअ़ल् अ़ली।”
वोह कौन है जिसके इ़ल्म के बारे में फ़रमाया हो:
“अना मदी–नतुल इ़ल्म व अ़लीयुन बाबोहा।”
वोह कौन है जिसके बारे में लोगों ने कहा: “अगर अ़ली अ़लैहिस्सलाम न होते तो मैं हलाक हो गया होता।”
अब आख़िर में एक बात और बता दें। वोह कौन है जो येह बता सके किस शख़्स में येह तमाम सेफ़ात और ख़ुसूसियात पाई जाती हैं क्योंकि इन तमाम बातों का तअ़्ल्लुक़ बातिन से है।
मअ़्रेफ़ते ख़ुदा वन्दी, पाकीज़गीये नफ़्स, बलन्द अख़्लाक़ी, इ़ल्मुल क़ुरआन…..वोह कौन बता सकता है। उस शख़्स का नफ़्स वाक़ेअ़न पाक–ओ–पाकीज़ा है उसका वजूद मअ़्रेफ़ते ख़ुदा से माला माल है। पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ख़ुसूसियात की गवाही लोगों ने नहीं दी बल्कि ख़ुदा ने फ़रमाया:
इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकज़्ज़िक–र
तो अब ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन बस वही बन सकता है जिसकी ख़ुसूसियात की गवाही या ख़ुदा दे या उसका रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम।
चूँकि दुनिया का कोई एक शख़्स बल्कि सारी दुनिया मिल कर भी किसी एक शख़्स के अख़्लाक़–ओ–किरदार–ओ–मअ़्रेफ़ते ख़ुदा वन्दी की ज़मानत नहीं ले सकती है। इस बेना पर सारी दुनिया मिलकर किसी ऐसे शख़्स का इन्तेख़ाब नहीं कर सकती जो वाक़ेअ़न ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का ब तमाम मअ़्ना कमा ह़क़्क़हू जानशीन हो। येह बात गुज़र चुकी है जो रसूल मुक़र्रर करता है बस उसी को रसूल का जानशीन मुक़र्रर करने का ह़क़ है और बस इसी का मुक़र्रर कर्दा क़ानूनी तौर पर जानशीने रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम होगा। और येह ह़क़ सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुदा को ह़ासिल है। इस बेना पर उम्मत के मुन्तख़ब कर्दा का इन्कार उम्मत की मुख़ालेफ़त नहीं है बल्कि ख़ुदा के ह़क़ के सामने तस्लीम हो जाना है और ख़ुदा के मुक़र्रर कर्दा पर ईमान ले आना है।
अगर ख़ेलाफ़त को मन्सब और ख़ुसूसियात की जानशीनी न तसव्वुर किया जाए बल्कि शख़्स की जानशीनी तस्लीम कर लिया जाए तब भी ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन उनकी औलाद या कम अज़ कम आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के क़रीब तरीन रिश्तेदार को होना चाहिए।
दोनों सूरतों में बस और बस सिर्फ़ और सिर्फ़ ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम जानशीन हो सकते हैं कोई और नहीं।
जिस तरह़ ख़ुदा ने रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को बरह़क़ मुन्तख़ब फ़रमाया उनके जानशीन ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम को भी मुअ़य्यन फ़रमाया उनके जानशीनों का तक़र्रुर–ओ–तअ़य्युन भी बस ख़ुदा का ह़क़ है हमारा काम तस्लीम हो जाना और ईमान ले आना है। ख़ुदा वन्द आ़लम ने इस सिलसिले की आख़री कड़ी ह़ज़रत ह़ुज्जत बिन ह़सन अल अ़स्करी अ़ज्जलल्लाहो तआ़ला फ़रजहुश्शरीफ़ की ज़ाते बाबरकत क़रार दी है। जो इस सिलसिलए हिदायत की आख़री कड़ी हैं ज़िन्दा हैं जिनकी आमद का हम सब शिद्दत से इन्तेज़ार कर रहे हैं ताकि एक जश्ने ग़दीर ताजदारे ग़दीर की सदारत में मुन्अ़क़िद कर सकें।
उस सुब्ह़े दरख़्शाँ की उम्मीदें। वस्सलाम अल्ह़म्दो लिल्लाहे रब्बिल आ़लमीन।
किताब “शवारेक़ुन्नुसूस फ़ी तक्ज़ीबे फ़ज़ाएल…” का तआ़रुफ़
इस्लामी तअ़्लीमात–ओ–एअ़्तेक़ादात में क़ुरआन करीम के बअ़्द जो ह़ैसियत अह़ादीसे मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम की है उससे कोई मुसलमान इन्कार नहीं कर सकता और चूँकि ह़दीस, मअ़्सूम के अ़मल, क़ौल और तक़रीर से, ए़बारत है, इसलिए इन्सान की इज्तेमाई़–ओ–इन्फ़ेरादी ज़िन्दगी में अह़ादीस का इन्तेहाई अहम किरदार होता है। इसीलिए दीनी एअ़्तेक़ादात और मआ़रिफ़े इस्लामी की तब्लीग़–ओ–नश्र में अह़ादीस को नक़्ल करना इन्तेहाई ह़स्सास मसअला माना जाता है कि जैसे दीन का ह़िस्सा समझकर अह़दीस की नश्र–ओ–इशाअ़त कर रहे हैं हो सकता है इस के लिए ह़दीस का ह़िस्सा या ह़दीस होना ही साबित न हो। इस तरह़ हम ग़ैरे इस्लामी तअ़्लीमात–ओ–मआ़रिफ़ की नश्र–ओ–इशाअ़त कर रहे होते हैं जिसका बहुत बड़ा नुक़सान उम्मते मुस्लेमा को उठाना पड़ता है। क्योंकि इस बात से तो कोई मुसलमान इन्कार कर ही नहीं सकता कि वफ़ाते आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के बअ़्द कई सालों तक नक़्लें अह़ादीस पर पाबन्दी रही। ख़लीफ़ए अव्वल–ओ–दुवुम ही के ज़माने में जअ़्ल ह़दीस की बुनियाद, दास्तान सराई–ओ–अफ़साना निगारी की शक़्ल में ढाली जा चुकी थी, और दौरे मुआ़विया बिन अबी सुफ़यान में तो येह कारखाना अपने उ़रूज़ पर था। जहाँ अपनी ह़ुकूमत को शरई़ जवाज़ फ़राहम करने के लिए आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ह़दीस से मिलती जुलती ह़दीसें गढ़ीं र्गइं और अपने मख़्सूस नज़रीए की ह़ेमायत में और अपनी जमाअ़त–ओ–गिरोह को ऊँचा दिखाने के लिए क्या क्या मज़ालिम नहीं ढाए गए। अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की शान में पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बयान कर्दा तमाम फ़ज़ाएल–ओ–मनाक़िब की अह़ादीसे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के मुक़ाबले में खड़े होने वालों के लिए वज़अ़् कर दी र्गइं, ख़ुसूसन अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम के मनाक़िब जो ज़बाने मुबारके रेसालत से बयान हुए वोह सब ख़ुलफ़ाए ज़मान और अपने मअ़्रूफ़ इमामों के लिए क़रार दिए गए। मगर राहे ह़क़–ओ–बातिल से आश्नाई रखने वाले और सह़ीह़ और ग़लत अह़ादीस में पहचान रखने वाले, उ़लेमा–ओ–दानिशमन्दों ने क़ुरआन–ओ–सीरते पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को मेअ़्यार बनाकर इ़ल्मे ह़दीस, रेजाल, दिराया, तारीख़ की बुनियाद पर तमाम रवायतों, उनके तुरुक़ और अस्नाद पर सीरे ह़ासिल बह़्स करते हुए ख़ुद रावीयों की वसाक़त–ओ–अ़दम–ओ–साक़ित, एअ़्तेबार–ओ–अ़दमे एअ़्तेबार की तह़क़ीक़ करते हुए नूर को ज़ुल्मत से, रोशनी को अन्धेरे से, हेदायत को ज़लालत से, दोस्त को दुश्मन से, ह़क़ को बातिल से अलग करके आश्कार कर दिया और बता दिया कि बाबे मदीनतुल इ़ल्म से वाबस्ता लोगों को झूठे प्रोपोगन्डे के ज़रीए़ अन्धेरे में नहीं रखा जा सकता है। बुज़ुर्ग उ़लमा ने इस मैदान में बड़ी ज़ह़मतें उठाकर येह काम आसान बना दिया है। आज हमें न कोई धोका दे सकता है और न ही अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से मुतअ़ल्लिक़ फ़ज़ाएल–ओ–मनाक़िब में कोई शुब्हा दिल में डाल सकता है। इसलिए कि हम ख़ुदा के दोस्त–ओ–दुश्मन दोनों को अच्छी तरह़ पहचानते हैं, दोनों के किरदार–ओ–ज़िन्दगी से वाक़िफ़ हैं, दुनिया ख़ाह कितने ही झूठे गीत गाए, फ़ज़ीलतें मन्सबदार होने से ह़ासिल नहीं होतीं, फ़ज़ीलतों और कमालात से मन्सब मिलता है। जब ज़ाती कोई कमाल और फ़ज़ीलत ही नहीं है तो अल्लाह की तरफ़ से कोई एलाही मन्सब कैसे मिल जाएगा। ख़ाह कितने ही झूठे फ़ज़ाएल–ओ–मनाक़िब वज़अ़् कर दिए जाएँ, रसूल–ओ–नबी जैसा दर्जा ही नहीं ख़ुदा भी बना दिया जाए तो भी उससे कुछ बनने वाला नहीं है। जैसा कि सद्रे अव्वल के मुसलमानों ने ख़ुलफ़ा के लिए बड़े बड़े फ़ज़ाएल–ओ–मनाक़िब की ह़दीसें वज़अ़् कीं, तह़रीफ़े की, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर इल्ज़ाम–ओ–इफ़्तरा बाँधा ताकि बातिल को ह़क़ की तरह़ बनाकर पेश किया जाए। मगर ख़ुद अह्ले सुन्नत के बुज़ुर्ग उ़लमा ने इसकी ह़क़ीक़त वाज़ेह़ कर दी है जैसा की इब्ने जौज़ी, सुयूती और इब्ने अल इ़राक़ ने किया है। मगर येह लोग भी अपने को तअ़्स्सुब और शीई़ ए़नाद से आज़ाद न करा सके।
किताब शवारेक़ुन्नुसूस
हाँ अगर इस मैदान में पूरी देयानत और नेहायत दिक़्क़ते नज़र और इ़ल्मी इस्तेदलाल के ज़रीए़ पर्दए बातिल को चाक किया है तो वोह मैदाने तह़क़ीक़–ओ–तालीफ़ के तन्हा शहसवार इ़ल्मे मुनाज़ेरा में यगाने रोज़गार, मुजद्देदुल मिल्लत, मुह़्युद्दीन, ह़ुज्जतुल ह़क़्क़े अ़लल ख़ल्क़, आ़लिमे जलीलुल क़द्र, लेसानुल फ़ुक़हा वल मुज्तहेदीन, तर्जुमाने ह़ुकमा–ओ–मुतकल्लेमीन, आयतुल्लाह फ़िल आ़लमीन सैयद ह़ामिद ह़ुसैन अल मूसवी लखनवी ने “शवारेक़ुन्नुसूस” जैसी माअ़्रेकतुल आरा किताब तस्नीफ़ करके ह़क़ परस्तों पर ता क़यामत एह़सान फ़रमाया है जो गेराँक़द्र मोह़क़्क़िक़ जनाब ताहेरुस्सलामी की तह़क़ीक़ी काविशों से दो (२) जिल्दों पर मुश्तमिल ९०४ सफ़ह़ात के साथ ज़ेवरे तबअ़् से आरास्ता “मन्शूराते दलीले मा” मत्बअ़ए निगारिश क़ुम के तवस्सुत से पहली बार सन १४२३ हि. में मन्ज़रे आ़म पर आई है। शवारिक़: जम्अ़् शारिक़, अज़ माद्दए शर्क़ यअ़्नी रोशन–ओ–आश्कार, नुसूस: जम्अ़् नस, यअ़्नी दलीलें।
इस किताब की अ़ज़मत–ओ–बलन्दी के लिए ख़ुद साह़ेबे किताब का येह जुम्ला सनद है कि जिससे अ़ज़मते किताब का एह़सास बढ़ जाता है। अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी हिन्दी जैसी शख़्सीयत किसी के लिए अपना नज़रिया पेश करे तो इससे उसका वज़्न समझ में आता है। फ़रमाते हैं:“….जब झूठ और बोहतान–ओ–इल्ज़ाम की इन्तेहा हो गई….तब मैंने फ़ैसला किया कि इस मैदान में ऐसी नायाब किताब तस्नीफ़ करूँ कि इससे पहले किसी ने तस्नीफ़ न किया हो…..”
किताब शवारेक़ुन्नुसूस…..के मुक़द्दमे में अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी हिन्दी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने इसका पूरा नाम “शवारेकुन्नुसूस फ़ी तकज़ीब….”रखा है। साह़ेबे किताब ने इसे छह (६) बाब और एक ख़ातमे पर तरतीब फ़रमाया है।
(१) बाबे अव्वल में ख़लीफ़ए अव्वल के जअ़्ली फ़ज़ाएल का ज़िक्र करके उस पर बह़्स की है।
(२) बाबे दुवुम में ख़लीफ़ए दुवुम से मुतअ़ल्लिक़ जअ़्ली फ़ज़ाएल का तज़्केरा किया है और सीरे ह़ासिल बह़्स की है।
(३) बाबे सेवुम में दोनों ख़ोलफ़ा (शेख़ैन) के लिए मुश्तरका जअ़्ली मनाक़िब और गढ़े हुए फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है और एक एक का उ़मदा और मस्कित जवाब दिया है….. और इन्हीं बह़्सों पर किताब ख़त्म हो जाती है।
मोह़क़्क़िक़े किताब लिखते हैं : दीगर अबवाब के बारे में मुझे कोई सुराग़ नहीं मिला यक़ीनन मुआल्लिफ़ गेराँक़द्र का अस्ल ख़ती नुस्ख़ा किताब ख़ानए नासिरिया लखनऊ से नापैद हो गया है वरना इसकी तफ़सील ज़रूर होती। जिस नुस्ख़ए बदल पर एअ़्तेमाद करके तह़क़ीक़ की है वोह आयतुल्लाह सैयद मरअ़शी नजफ़ी क़ुद्देस सिर्रहू के किताब ख़ाने में मौजूद है। हाँ हिन्दुस्तान में ईरानी कल्चर हाऊस की जानिब से जो काग़ज़ात मिले हैं जिनमें साह़ेबे किताब के ख़ानदान, तारीख़े तालीफ़ के साथ मुअल्लिफ़ के बअ़्ज़ ख़त्ती नुस्ख़ों की फ़ेहरिस्त दर्ज थी उसमे मैंने किताब “शवारेक़ुन्नुसूस” नाम पाया। इस की फ़ेहरिस्त से पता चलता है कि मुसन्निफ़ ने मुन्दर्जा ज़ैल किताब के अबवाब क़ाएम किए थे :
१– बाब, अबू बक्र के जअ़्ली फ़ज़ाएल
२– बाब, उ़मर के जअ़्ली फ़ज़ाएल
३– बाब, उ़स्मान के जअ़्ली फ़ज़ाएल
४– बाब, शेख़ैन के (मुश्तरका) जअ़्ली फ़ज़ाएल
५– बाब, तीनों ख़ोलफ़ा के जअ़्ली फ़ज़ाएल
६– बाब, मुआ़विया, आ़एशा, और दीगर अस्ह़ाब के जअ़्ली फ़ज़ाएल
७– बाब, रवाफ़िज़ वग़ैरह की मज़म्मत में जअ़्ली रवायतें
किताब की तसनीफ़ में मुसन्निफ़ की रविश:
येह बात अपनी जगह तय है कि साह़ेबे किताब इ़ल्मे मुनाज़ेरा में जवाब नहीं रखते थे और इसीलिए हमेशा इस ह़क़ीक़त पर निगाह रखते हुए बह़्स करते:
१– मुख़ालिफ़ की ए़बारतों को मिन–ओ–अ़न नक़्ल करके मैदाने बह़्स–ओ–गुफ़्तुगू में पेश करते, फिर फ़ौरन उसमें इश्काल की निशानदेही फ़रमाते ताकि गुफ़्तुगू के लिए मौजूअ़् का दाएरा मुश्ख़्ख़स और वाज़ेह़ हो सके।
२– मुख़ालिफ़ की रवायतों के ज़रीए़ इस्तेदलाल करना।
३– ह़क़ बात पेश करना, मक़ामे इस्तेदलाल और वक़्ते मुनाज़ेरा ह़क़ीक़त का एअ़्तेराफ़ करना।
इसके अ़लावा साह़ेबे किताब ने “शवारेक़ुन्नुसूस” में जो रविश एख़्तेयार की है वोह मुन्दर्जा ज़ैल है:
१– उन्होंने रवायतों के ज़रीए़ इस्तेदलाल पेश किया है जिन्हें ख़ुद अह्ले सुन्नत ने रवायत किया है और ख़ुद उनके अस्ल मसादिर–ओ–मसानीद मतलब को नक़्ल किया है। किसी शीआ़ किताब में सुन्नी किताब से नक़्ल शुदा मतालिब पर भरोसा नहीं किया है।
२– रवायतों की सनदी बह़्स में जब रावियों की तौसीक़–ओ–तज़ई़फ़ की बात आती है तो उसे भी उन्हीं के उ़लमाए रेजाल और जरह़–ओ–तअ़्दील में उसूस और तराजिम के अस्ल किताब पर एअ़्तेमाद करके मतालिब नक़्ल किए हैं।
३– अह़्ले सुन्नत के किसी बुज़ुर्ग आ़लिम से कोई ह़दीस पेश फ़रमाते हैं तो उसके तमाम नाक़िलीन के अक़वाल को दक़ीक़ और नेहायत गहराई से तह़कीक–ओ–जुस्तुजू के बअ़्द ही उसे पेश किया है।
४– रावियों के ह़ालात को इस तरह़ पेश किया है कि उन पर ज़र्रा बराबर भी एअ़्तेबार नहीं किया जा सकता है। जिससे उनकी सारी ह़क़ीक़त वाज़ेह़ हो जाती है।
५– इन तमाम उ़मूर के बअ़्द साह़ेबे किताब इस मन्ज़िल पर एअ़्तेराज़ात के पहलूओं को आश्कार फ़रमाते हैं और फिर उनका इ़ल्मी और इस्तेदलाली अन्दाज़ में जवाब देते हैं।
६– फिर आख़िरी मरह़ले में अपने जवाब की ताई़द में उ़लमाए अह्ले सुन्नत के उन अक़वाल को शाहिद के तौर से पेश करते हैं जिनमें वोह उ़लमा एक दूसरे को बातिल क़रार देते हैं ताकि दलील मुकम्मल हो जाए और ह़ुज्जत तमाम हो जाए इसलिए कि उनके उ़लमा ख़ुद उनके लिए ह़ुज्जत–ओ–दलील हैं और मरजअ़्–ओ–पनाहगाह हैं।
येह किताब:
जैसा कि गुज़श्ता सत्र में ये बता चुके हैं कि येह किताब “शवारेक़ुन्नुसूस फ़ी तकज़ीबे फ़ज़ाएल…” जदीद तह़क़ीक़ के साथ दो जिल्दों में तबअ़् हुई है। किताब में तीन अबवाब हैं और हर बाब चन्द फ़स्लों पर मुश्तमिल है।
पहली जिल्द
बाबे अव्वल:
बाबे अव्वल: ख़लीफ़ए अव्वल की जअ़्ली तअ़्रीफ़ों पर मुश्तमिल है, इसमें छत्तीस (३६) फ़स्लें हैं और हर फ़स्ल में जुदागाना जअ़्ली फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है, इस तरह़ मज्मूई़ तौर से छत्तीस (३६) जअ़्ली फ़ज़ाएल का ज़िक्र करके हर एक का बेहतरीन और मुसकित जवाब पेश किया है।
बतौरे नमूना
फ़ज़ाएले अबू बक्र के ज़िम्न में वलीयुल्लाह देहलवी एज़ालतुल ख़फ़ा में कहते हैं : (एक वाक़ेआ़ के ज़िम्न में ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ख़लीफ़ए अव्वल से फ़रमाया: अल्लाह तआ़ला तुम्हें रिज़वाने अकबर अ़ता करेगा लोगों ने दरयाफ़्त किया: इससे क्या मुराद है?
फ़रमाया: (क़यामत दे दिन) अल्लाह तआ़ला आ़म तौर से अपने बन्दों के लिए और ख़ास तौर से अबू बक्र के लिए (तजल्ली) ज़हूर करेगा।
(एज़ालतुल ख़फ़ा, देहलवी, ३/४९४)
मुसन्निफ़ ने इस ह़दीस को इसके तमाम माख़ज़ से नक़्ल किया है जैसे अनस, जाबिर, अबू हुरैरा और आ़एशा, और अगर एक ही रावी से कई तरीक़ों से नक़्ल हुई है तो उसके हर तरीक़े को नक़्ल किया है जैसे: अनस से तीन तरीक़ों से नक़्ल हुई है। जाबिर से चार तरीक़ों से नक़्ल हुई है। अबू हुरैरा से एक तरीक़े से और आ़एशा से एक तरीक़े से।
साह़ेबे किताब के इसी एक ह़दीस को रद्द करने से इनके इ़ल्मी तबह़्ह़ुर और मुतालआ़ की गहराई और वुस्अ़ते नज़र का अन्दाज़ा होता है। कि तमाम रावियों के हर एक तरीक़े को नक़्ल करके उसका सनदी–ओ–इ़ल्मी जवाब पेश किया है।
फ़रमाते हैं : इस ह़दीस के बारे में अह़्ले सुन्नत के नक़्क़ाद मोह़द्दिस इब्ने अल जौज़ी इन्तेहाई क़ाबिले एअ़्तेमाद, सेक़ह, जिन के फ़ज़्ल–ओ–जलालत में कोई शक नहीं कर सकता है, नेहायत इत्मीनान और यक़ीन के साथ इस ह़दीस के जअ़्ली होने का एअ़्लान करते हैं।
कहते हैं : इस ह़दीस की कोई अस्ल नहीं है, येह ह़दीस मत्न और सनद दोनों एअ़्तेबार से झूठी है।
इसके बअ़्द साह़ेबे किताब “शवारेकुन्नुसूस” ने एक एक रावी और तुरुक़ को मुख़ालिफ़ के उ़लमाए इ़ल्मे रेजाल और उनके तराजिम के तवस्सुत से बातिल क़रार देते हैं। जहाँ उ़लमाए अह़्ले सुन्नत ने इन तमाम रावियों को ग़ैर मोअ़्तबर, काज़िब और ह़दीस गढ़ने वाला क़रार दिया है। मुसन्निफ़ ने इस ह़दीस के तमाम पहलूओं पर तक़रीबन तीस (३०) सफ़ह़ात पर इसी एक ह़दीस के बारे में बह़्स की है जिससे कि मुख़ालिफ़ में ताबे सुख़न नहीं रह जाती।
पहली जिल्द इन्हीं छत्तीस (३६) फ़स्लों में तमाम हो जाती है।
दूसरी जिल्द
इसमें दो बाब हैं, बाबे दुवुम, बाबे सेवुम।
बाबे दुवुम : इस बाब को ख़लीफ़ए दुवुम के बारे में क़ाएम किया है इस में तेईस (२३) जअ़्ली फ़ज़ाएल हैं और हर जअ़्ली फ़ज़ीलत को जुदागाना फ़स्ल में क़रार दिया है इस तरह़ बाबे दुवुम में २३ फ़स्लें होती हैं।
बाबे सेवुम : साह़ेबे किताब ने इसमें शेख़ैन के बारे में मुश्तरका झूठे फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है। इसमें तेरह (१३) झूठे फ़ज़ाएल हैं जो १३ फ़स्लों में बयान हुए हैं और इसी पर किताब ख़त्म हो जाती है।
आख़िर में येह वाज़ेह़ करता चलूँ कि किताब में बाब की शक्ल में साह़ेबे किताब ने मतालिब तरतीब दिए हैं, फ़स्लों का उ़न्वान मोह़क़्क़िक़ किताब ने क़रार दिया है।
मैं समझता हूँ, हर इन्साफ़पसन्द और तलाशे ह़क़ की आर्ज़ू रखने वालों को चाहिए कि इस अ़ज़ीमुश्शान किताब का मुतालेआ़ करें, ग़ौर करें, सेराते मुस्तक़ीम की तरफ़ जाने से रोकने वाले अस्बाब पर फ़िक्र करें, इसलिए कि इसके बअ़्द अब कोई उ़ज़> बाक़ी नहीं रह जाता, किसी तरह़ की तावील नहीं रह जाती। ह़ुज्जत तमाम हो जाती है और दलील मुकम्मल हो जाती है। अल्लाह तआ़ला साह़ेबे किताब नीज़ मोह़क़्क़िक़े किताब के लिए उनकी इस अ़ज़ीमुश्शान ख़िदमत को रोज़े मह़शर ज़रीअ़ए शफ़ाअ़त क़रार फ़रमाए।
ई़दे ग़दीर के मौक़ेअ़् पर मज़हबे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की तरवीज और उनके शीओ़ं के अ़क़ाएद को ताज़ा करने और जेला देने की सआ़दत पर ख़ुदा वन्द आ़लम का शुक्रगुज़ार हूँ। और दुआ़ करता हूँ अल्लाह हम सबको वेलायत–ओ–मोह़ब्बते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की तब्लीग़–ओ–तरवीज करने वालों में शुमार फ़रमाए। और वारिसे कअ़्बा इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमाए। आमीन।
आयए तत्हीर और उ़लमाए अह़्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात
दीने इस्लाम की कली मक्कए मोअ़ज़्ज़मा में खिली और फिर तेईस (२३) साल की ताक़त फ़रसा ज़ह़्मतों के बअ़्द रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और उनके बावफ़ा अस्ह़ाब ने जज़ीरतुल अ़रब को अपने घेरे में ले लिया।
ख़ुदा का येह मिशन १८ ज़िलह़िज्जा को ग़दीरे ख़ुम के मक़ाम तक पहुँचा और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने आ़लमे इस्लाम के अव्वलीन जवाँमर्द यअ़्नी ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के सिपुर्द कर दिया।
इस दिन, अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत–ओ–जानशीनी के एअ़्लान के साथ नेअ़्मते एलाही तमाम, और दीने इस्लाम मुकम्मल हो गया और फिर इस्लाम तन्हा पसन्दीदा दीन के उ़न्वान से एअ़्लान कर दिया गया। येह सबब बना कि काफ़ेरीन–ओ–मुश्रेकीन इस्लाम की नाबूदी से मायूस हो गए।
अभी देर न हुई थी कि पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बअ़्ज़ अतराफ़ेयान ने पहले से रची हुई साज़िश के तह़त पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की रेह़लत के बअ़्द हेदायत–ओ–रहबरी की राहों को मुन्हरिफ़ कर दिया, शहरे इ़ल्म के दरवाज़े को बन्द कर दिया और मुसलमानों को ह़ैरानी–ओ–सरगर्दानी में डाल दिया। उन लोगों ने अपनी ह़ुकूमत के उन्हीं इब्तेदाई अय्याम से, अह़ादीसे नबवी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की किताबत को मम्नूअ़् करके, जअ़्ले ह़दीस के ज़रीए़, शुब्हात को लोगों में डाला और शैतानी फ़रेबकारियों और नैरंगियों के ज़रीए़, ह़क़ाएक़े इस्लाम को (जो कि चमकते हुए सूरज की मानिन्द था) शक–ओ–तरदीद के सेयाह बादलों की पुश्त पर डाल दिया।
येह बात वाज़ेह़ है कि इन तमाम साज़िशों के बावजूद, ह़क़ाएक़े इस्लाम और पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के दुरर्बार अक़वाल, अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और उनके औसिया अ़लैहिमुस्सलाम और कुछ अस्ह़ाबे बावफ़ा के ज़रीए़ हर ज़माने में, जल्वानुमा होते रहे, उन लोगों ने ह़क़ीक़त बयानी के ज़रीए़, शक–ओ–शुब्हात शैतानी वसवसों और दुश्मनाने इस्लाम का मुँह तोड़ जवाब दिया और ह़क़ीक़त को सब पर आश्कार कर दिया।
इस राह में शेख़ मुफ़ीद, सैयद मुर्तज़ा, शेख़ तूसी, ख़ाजा नसीरुद्दीन तूसी, अ़ल्लामा ह़िल्ली, काज़ी नूरुल्लाह शुस्तरी, मीर ह़ामिद ह़ुसैन, सैयद शरफ़ुद्दीन, अ़ल्लामा अमीनी रह़्मतुल्लाह अ़लैहिम, वग़ैरह, रोशन सितारों की तरह़ चमक रहे हैं। क्योंकि इन लोगों ने मैदाने देफ़ाअ़् में ह़क़ाएक़े इस्लामी को और मकतबे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की वाक़ई़यत को बयान करने में ज़बान–ओ–क़लम के ज़रीए़ शक–ओ–शुब्हात के जवाब दिए हैं। और हमारे ज़माने में भी उ़लमा इस काम लगे हुए हैं। इस मज़्मून की तह़रीर के लिए ऐसी ही एक नामवर मोह़क़्क़िक़ ह़ज़रत आयतुल्लाह सैयद अ़ली ह़ुसैनी मीलानी ह़फ़ज़हुल्लाह की तह़क़ीक़, “निगाही बआयए तत्हीर पज़ूहशी दर तफ़सीर व शाने नुज़ूले आयए तत्हीर” के चौथे ह़िस्से, “मआ़नी आयए तत्हीर–ओ–तनाकुज़ गोई उ़लमाए अह्ले सुन्नत” से इस्तेफ़ादा किया गया है।
उ़म्मीद है कि येह सई़–ओ–कोशिश बक़ीयतुल्लाहिल अअ़्ज़म, ह़ज़रत वलीए अ़स्र, इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम की ख़ुशनूदी और पसन्द का सबब क़रार पाए।
आयए तत्हीर
इन्नमा युरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्ललबैते व योतह्हे–रकुम तत्हीरा.
(सूरए अह़ज़ाब, आयत ३३)
बस ख़ुदा चाहता है कि आलूदगी को तुमसे (ऐ) अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम दूर रखे और जो पाक–ओ–पाकीज़ा रखने का ह़क़ है वैसा पाक–ओ–पाकीज़ा रखे।
येह आयत क़ुरआन मजीद में उन आयात के दरमियान में आई है जहाँ पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज का ज़िक्र है।
अलबत्ता इस मज्मून में हम इस के शाने नुज़ूल पर बह़्स नहीं करेंगे बल्कि इसके मअ़्ना और उ़लमाए अह्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात पर रोशनी डालेंगे।
आयए तत्हीर के मअ़्ना और उ़लमाए अह्ले सुन्नत के तीन गिरोह
उ़लमाए अह्ले सुन्नत का एक गिरोह, आयए मुबारका तत्हीर के मअ़्ना–ओ–मफ़हूम और इस बारे में नक़्ल होने वाली अह़ादीस के इदराक के बावजूद, ह़क़ीक़त का एअ़्तेराफ़ नहीं करते, क्योंकि इन मअ़्ना के एअ़्तेराफ़ के बअ़्द एक तरफ़, येह आयत उनके अ़क़ाएद को उसूल–ओ–फ़ुरूअ़् में जड़ से उखाड़ फेंकती है।
दूसरी तरफ़, इन लोगों ने ख़ुद को ‘सुन्नते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम’ से निस्बत दे रखा है और दअ़्वा करते है उनकी सुन्नत पर अ़मल करने और उनकी पैरवी का…..इस बेना पर येह लोग इस आयत के सिलसिले में इज़्तेराब–ओ–तश्वीश का शिकार हो गए हैं और इसीलिए इन नज़रियात में आपस में तज़ाद पाया जाता है। मुलाह़ेज़ा फ़रमाएँ :
पहला गिरोह
येह गिरोह शीआ़ इमामिया से इत्तेफ़ाके नज़र रखता है। ह़क़ीक़त में पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की साबित शुदा सुन्नत की पैरवी की है और ख़ुसूसीयत के साथ इस पर अ़मल पैरा भी रहा।
दूसरा गिरोह
अ़करमा ख़ारिजी और मक़ातिल के नज़रिये से इत्तेफ़ाक़ किया है। मक़ातिल वही शख़्स है कि ज़हबी ने जिसके बारे में कहा कि सब लोग उससे रूगरदानी करने में इत्तेफ़ाक़े नज़र रखते हैं।
तीसरा गिरोह
इस गिरोह ने भी रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और बुज़ुर्ग सह़ाबा के नज़रिये के बरख़ेलाफ़ ज़ह़्ह़ाक के नज़रिये पर अ़मल किया है। ज़ह़्ह़ाक वही शख़्स है कि अह्ले सुन्नत के उ़लमाए रेजाल ने एअ़्तेराफ़ किया है कि नक़्ले रवायत में वोह ज़ई़फ़ है।
पहले गिरोह का एक नमूना
अबू जअ़्फ़र अह़मद बिन मोह़म्मद बिन सलमा मिस्री ह़नफ़ी तह़ावी (मुतवफ़्क़ा सन ३२१ हि.) इस सिलसिले में एक किताब “मुश्किलुल आसार” में एक बाब का उन्वान इस तरह़ दिया है:
“आयए मुबारेका: इन्नमा यूरिदु…….में रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ज़रीए़ मुअ़य्यन कर्दा अफ़राद के बारे में रवायतें।
फिर इस उ़न्वान के तह़्त दर्जे ज़ैल ह़दीस को नक़्ल किया है: रबीअ़् मुरादी असद बिन मूसा से, ह़ातिम बिन इस्माई़ल से, बुकैर बिन मिस्मार से, आ़मिर बिन सअ़्द से, अपने वालिद से इसी तरह़ नक़्ल किया है कि सअ़्द कहते हैं:
जब आयए तत्हीर नाज़िल हुई, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन–ओ–ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम को बुलाया और फ़रमाया:
अल्लाहुम–म हाउलाए अह्लो बैती
बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं।
तह़ावी इस ह़दीस के ज़ैल में कहते हैं: “इस ह़दीस से मअ़्लूम होता है कि इस आयत में जो लोग मुराद हैं वोह रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, .अली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम हैं।
तह़ावी मज़ीद रक़मतराज़ हैं फ़हद से, उ़स्मान बिन अबी शैबा से, जरीर बिन अ़ब्दुल ह़मीद से, अअ़्मश से, जअ़्फ़र से, अ़ब्दुर्रह़मान बजली से, ह़कीम बिन सई़द से नक़्ल करते हैं कि उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा ने कहा:आयए इन्नमा युरीदुल्लाह…….रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन–ओ–ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम के बारे में नाज़िल हुई है।
और उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा के कलाम को नक़्ल करने के बअ़्द लिखते हैं:
इस ह़दीस से भी वही मतलब निकलता है जो पहली ह़दीस से निकलता है।
तह़ावी अपनी बात को जारी रखते हुए, इस वाक़ेअ़् को मुख़्तलिफ़ अस्नाद से उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा के ज़रीए़ नक़्ल करते हैं कि जिसमें इस आयत के अह्लेबैते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से मख़्सूस होने की वाज़ेह़ निशानियाँ मौजूद हैं, जैसे वोह ह़दीस की जिस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा पूछती हैं : आया में भी उनके साथ हूँ?
पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं :
तुम पैग़म्बर की बीवीयों में से हो और अच्छाई पर हो।
या येह फ़रमाया : तुम ख़ैर पर हो।
दूसरी ह़दीस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं : मैंने कहा : ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से हूँ? फ़रमाया :
इन्ना लके इ़न्दल्लाहे ख़ैरन
आप के लिए ख़ुदा के यहाँ ख़ैर है
उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं कि मैं चाहती थी कि पैग़म्बर जवाब में फ़रमाएँ : हाँ : क्योंकि इस तरह़ का जवाब मेरे लिए दुनिया के मशरिक़–ओ–मग़रिब के पसन्द करने से ज़्यादा पसन्दीदा था।
इसी तरह़ दूसरी ह़दीस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं: मैंने चादर को उठाया ताकि उनसे मुल्हिक़ हो जाऊँ। पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उसे खींच लिया और फ़रमाया : इन्नके अ़ला ख़ैरिन. तुम ख़ैर पर हो।
तह़ावी मज़ीद लिखते हैं :
जिन रवायतों में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा को अपना मुख़ातिब क़रार दिया है वोह दलालत करती है कि उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा उन लोगों में से न थी जो इस आयत के मिस्दाक़ है और जो मिस्दाक़ हैं इस आयत में वोह रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम हैं, दूसरे अफ़राद नहीं।
तह़ावी ने इस बाब में ह़दीसों के दरमियान में एक ह़दीस उम्मे सलमा से नक़्ल की है कि जिसमें पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा से फ़रमाया: अन्ते मिन अह्ली, तुम मुझसे हो।
तह़ावी इन ह़दीसों को जो कमाले सराह़त के साथ अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को ख़म्सए तय्यबा से मुख़्तस करती हैं। इस रवायत में जो तआ़रुज़–ओ–टकराव पाया जाता है उसके दूर करने के लिए लिखते हैं:
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के इस मक़सद को “तुम मुझसे हो” एक दूसरी ह़दीस भी वाज़ेह़ करती है कि जिसमें मोह़म्मद बिन ह़ज्जाज ह़ज़रमी और सुलैमान कैसानी ने नक़्ल किया है: बुश्र बिन बक्र ने औज़ाई़ से, अबू अ़म्मार से, वासला से नक़्ल किया है कि वासला ने कहा: मैंने अ़र्ज़ किया: ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या मैं आपके अह्ल से हूँ? रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया: तुम मुझसे हो;
वासला कहता है : येह मेरी बुज़ुर्ग तरीन आर्ज़ूओं में से है। जबकि वासला पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा की बनिस्बत बहुत दूर था, क्योंकि वोह क़बीलए बनी बसस से था, न कि क़ुरैश से। और उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा की क़ुरैश में पैग़म्बर की बीवी होने की वजह से एक ख़ास मन्ज़ेलत थी। पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का वासला से कहना: “तू मुझसे है” इस मअ़्नी में है कि इताअ़त–ओ–पैरवी की वजह से तू मुझसे यअ़्नी अपने ईमान की वजह से मेरे गिरोह में हो, ख़ुदा वन्द मुतआ़ल ने क़ुरआन में एक आयत नाज़िल की है कि जो इसी मअ़्ना पर दलालत करती है। इरशाद होता है:
व नादा नूह़ुर्रब्बहू फ़–क़ा–ल रब्बे इन्नब्नी मिन अह्ली.
(सूरए हूद, आयत ४५)
नूह़ ने अपने परवरदिगार को पुकारा और कहा: मेरा बेटा मुझसे है।
ख़ुदाए सुब्ह़ान ने फ़रमाया:
इन्नहू लै–स मिन अह्ले–क.
(सूरए हूद, आयत ४६)
वोह तुम से नहीं है।
यअ़्नी जो नबी के दीन से मुवाफ़ेक़त रखता है वोह उनसे है; ख़ाह वोह नसबी रिश्तेदार न हो।
और बहुत एह़्तेमाल है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने भी इसी मअ़्ना को मद्दे नज़र रखते हुए फ़रमाया हो।
तह़ावी मज़ीद रक़मतराज़ हैं : ह़दीस सअ़द और उसके हमराह ह़दीसें जो इब्तेदा में नक़्ल र्हुइं, वाज़ेह़ करती हैं कि कौन लोग आयत के अह्ल हैं। क्योंकि हम जानते है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने जब आयत के नुज़ूल के वक़्त अपने अह्ल को बुलाया, सिवाए ख़म्सए तय्यबा के, किसी और को इस आयत का अह्ल क़रार न दिया, इस बेना पर मुह़ाल है कि सिवाए ख़म्सए तय्यबा के कोई और मुराद हो।
एअ़्तेराज़
क़ुरआन ख़ुद दलालत करता है कि इस आयत के मिस्दाक़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज हैं। क्योंकि इसी आयत के पहले, ख़ुदा वन्द मुतआ़ल ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से ख़ेताब करते हुए फ़रमाया है:
या अय्योहन्नबीयो क़ुल्लेअज़्वाजे–क……
(सूरए अह़ज़ाब, आयत २८)
येह ख़ेताब ख़ुद वाज़ेह़ करता है कि आयए तत्हीर से मुराद ख़ुद अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं; चूँकि मूरिदे ख़ेताब औ़रतें हैं, मर्द नहीं और इसके फ़ौरन बअ़्द ही ख़ुदा कहता है:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हेबा अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
जवाब
इन्नमा यूरीदुल्लाहो की इ़बारत से पहले तक इस आयत में मुख़ातिब अज़्वाज पैग़म्बर हैं। फिर इस आयत इन्नमा यूरीदुल्लाहो में मूरिदे ख़ेताब अह्लेबैते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं क्योंकि इसमें, जुम्ला मर्दों से ख़ेताब की सूरत में आया है, क्योंकि येह ख़ेताब ज़मीर, “कुम” के ज़रीए़ है और इस तरह़ का ख़ेताब मर्दों के लिए आता है मुलाह़ेज़ा हो:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
लेकिन इससे पहले की आयत ज़मीर “नून” के साथ आई है कि इस तरह़ का ख़ेताब औ़रतों से मख़्सूस है।
इस बेना पर हमारे लिए वाज़ेह़ है कि इस आयत (इन्नमा यूरीदुल्लाह) में मुख़ातब वोह मर्द हैं जिनकी शराफ़त और बरतरी का ख़ुदा एअ़्लान कर रहा है।२
फिर तह़ावी लिखते हैं : हमारी बातों के सह़ीह़ होने के लिए एक रवायत है जो अनस से नक़्ल हुई है। वोह कहते हैं:
२– (वोह आयतें मुलाह़ेज़ा हों जो आयए तत्हीर से पहले आई हैं:या नेसाअन्नबीये लस्तुन्न कअह़दिम्मिननेसाए इनित्तक़ैतुन्न फ़ला तख़्ज़अ़्–न बिल क़ौले फ़यत्मअ़ल्लज़ी फ़ी क़ल्बेही मरज़ुवँ व क़ुल्न क़ौलम्मअ़्रूफ़न. व क़र्न फ़ी बुयूतेकुन्न व ला तबर्रज्न तबर्रोजल्जाहिलीय तिल्ऊला व अक़िम्नस्सला त व आतीनज़्ज़का त व अतेअ़्नल्ला–ह व रसू–लहू. इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.(सूरए अह़ज़ाब, ३२–३३)। आयत २४ से पहले भी आयतें मुलाह़ेज़ा हो और ४३ के बअ़्द भी।
येह ख़याल ग़लत है कि आयए तत्हीर में अज़्वाज शामिल हैं इसलिए कि अगर अज़्वाज मक़सूद होतीं तो जिस तरह़ पहले और बअ़्द की आयत में ज़मीर जमए़ मोअन्नस ह़ाज़िर है। आयए तत्हीर में भी होना चाहिए। एक बात और येह कि अगर अज़्वाजे नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम इस आयत में शामिल होतीं तो उनकी तअ़्दाद नौ थी और सबको मिलाया जाए तो जनाब ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा को शामिल करके औरतों की तअ़्दाद दस हो जाती है और इस तरह़ औरतों का ग़लबा होगा मर्द पर तो इस सूरत में भी ज़मीर–ओ–सीग़ा मोअन्नस ही लाना चाहिए था न कि मुज़क्कर। इन चीज़ों पर ग़ौर करने के बअ़्द एक बात और भी समझ में आती है कि आयए तत्हीर को इन आयतों के दरमियान से निकाल लिया जाए तो इसमें कोई नुक़्स नज़र नहीं आता। रब्त और भी बढ़ जाता है। जिससे साफ़ पता चलता है कि येह आयत इस जगह की नहीं बल्कि किसी और ग़र्ज़ से यहाँ दाख़िल कर दी गई है।
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम जब नमाज़े सुब्ह़ के लिए घर से निकलते थे फ़रमाते:
अस्सलातो या अह़्लल्बैते! इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब…..
ऐ मेरे अह्लेबैत! वक़्ते नमाज़ है “ख़ुदा चाहता है…..”
इसी तरह़ एक रवायत अबू ह़म्ज़ा से नक़्ल हुई है। वोह कहते हैं:
नौ महीना ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ह़ु़जूर में था, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हर रोज़े सुब्ह़ फ़ातेमा के दरवाज़े पर आते और फ़रमाते:
अस्सलामो अ़लैकुम या अह्लल्बैते. इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स…….
सलाम हो तुम पर ऐ अह्लेबैत! ख़ुदा चहाता है…….
पैग़म्बर का येह अ़मल भी दलील है की येह आयत ख़ुसूसियत के साथ पन्जतन पाक के लिए नाज़िल हुई है।१
१– मुश्केलुल आसार १/३३२–३३९। येह बात क़ाबिले ज़िक्र है कि “मुश्केलुल आसार” की नई इशाअ़त में नाशिर ने तह़रीफ़ से काम लिया है और बअ़्ज़ मक़ामात पर कलेमा “अह्लेबैत” को “अह्ली” लिखा है।
दूसरे गिरोह का एक नमूना
जैसा कि हमने ऊपर बयान किया कि दूसरा गिरोह अह्ले सुन्नत का है जिसने अ़करमा और मक़ातिल के नज़रिए की ताईद की है, तो येह जानना ज़रूरी है कि अ़करमा और मक़ातिल का नज़रिया क्या है और येह कौन लोग हैं। इन दोनों का नज़रीया आयए तत्हीर के सिलसिले में तह़ावी और इमामिया से मुख़्तलिफ़ है।
अ़करमा और मक़ातिल कहते हैं कि इस आयत से मुराद अज़्वाजे पैग़म्बर हैं।
आया मक़सूद अज़ अह्लेबैत अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं?
अ़करमा येह जानते हुए कि इस आयत का नुज़ूल सिर्फ़ इतरते पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं फिर भी सबसे ज़्यादा मुख़ालेफ़त की है।
अ़करमा के बारे में मशहूर है कि वोह बाज़ार में चिल्लाता था : येह आयत सिर्फ़ अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की शान में नाज़िल हुई है।२
वोह कहता था : जो चाहे मुझसे मुबाहेला कर ले, क्योंकि ह़क़ मेरे साथ है और येह आयत अज़्वाजे पैग़म्बर की शान में नाज़िल हुई है।३
२– तफ़सीरे तबरी, १०/२९८ ह़दीस २८५०३, तफ़सीर इब्ने कसीर, ३/४६५, अस्बाबे नुज़ूल १९८। तालीफ़ इमाम वाह़ेदी निशापूरी।
३– अद्दुर्रुल मन्सूर, ६/६०३ (सुयूती), तफ़सीर इब्ने कसीर ३/४६५
अ़करमा मुसलमानों के मुसल्लेमा अ़क़ीदे की येह आयए इ़तरते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की शान में नाज़िल हुई है बर ख़ेलाफ़ कहता है: जिसके तुम (मुसलमान) मोअ़्तक़िद हो, सह़ीह़ नहीं है, बल्कि मक़सूद सिर्फ़ अज़्वाजे पैग़म्बर हैं।१
अ़करमा का येह नज़रिया दुरुस्त नहीं है सब्त इब्ने जौज़ी और ज़हबी ने इसकी ताईद की है। दुश्मनीए अह्लेबैत रखने वालों से इसी तरह़ की उम्मीद की जा सकती है।
१– अद्दुर्रुल मन्सूर, ६/६०३
अ़करमा के ह़ालाते ज़िन्दगी पर एक नज़र
अ़करमा बरबरी२ मशहूर तरीन ज़िन्दिकियों में था। इस्लाम में शक–ओ–शुब्ह ईजाद करने के लिए ह़दीस जअ़्ल करता था। मोअ़्तबर किताबों से इसके ह़ालाते ज़िन्दगी के कुछ गोशे पेश करते हैं।३
२– मग़रिबी अफ्रीक़ा की एक क़ौम “बराबर” है इससे बरबरी मन्सूब हैं। रुजूअ़् कीजिए फ़र्हन्गे अबजदी १/१८०
३– अ़करमा के ह़ालात के लिए रुजूअ़् कीजिए: अत्तबक़ातुल कुबरा ५/१२९ (मोह़म्मद बिन सअ़्द बसरी), वफ़यातुल अअ़्यान ३/२६५ (मोह़म्मद बिन ख़ल्लकान), मीज़ानुल एअ़्तेदाल ५/११६ (ज़हबी, शम्सुद्दीन)
१– दीन में शुब्हा इजाद करना
नक़्ल है कि अ़करमा इस्लाम में शुब्हे पैदा करता था और दीन का मज़ाक़ उड़ाता था और येह मशहूर तरीन गुमराहों और बद ख़ाहों में था…….
वोह कहता था : ख़ुदा ने आयाते मुतशाबेह क़ुरआन को नाज़िल किया ताकि इसके ज़रीए़ गुमराह करे!
ह़ज के ज़माने में भी कहता था : मुझे पसन्द है कि आज ह़ज के मौक़ेअ़् पर हूँ और वोह नैज़ा जो मेरे हाथ में है, ह़ाज़ेरीन पर दाएँ से और बाएँ से ह़मला करूँ।
वोह मस्जिदुन्नबी के दरवाज़े पर खड़ा होकर कहता है: इस मस्जिद में, फ़क़द एक मट्टी भर के अफ़राद मौजूद हैं!
कहते हैं कि वोह नमाज़ नहीं पढ़ता था, सोने की अंगूठी पहनता और मौसीक़ी–ओ–ग़ेना सुनता था।
२– वोह ख़वारिज का ह़ामी था
अफ़्रीक़ा के लोगों ने अ़क़ीदए सफ़रिया ख़वारिज इफ़राती को अ़करमा से लिया है। नक़्ल है कि उसने इस अ़क़ीदे की झूठी निस्बत इब्ने अ़ब्बास की तरफ़ दी है। यह़्या बिन मोई़न कहते हैं: मालिक, ने अ़करमा का ज़िक्र नहीं किया है, क्योंकि अ़करमा ने अ़क़ीदए सफ़रिया को क़बूल किया था। ज़हबी इसके बारे में कहते हैं : लोग अ़करमा के बुरा कहते थे उसके ख़ारिजी अ़क़ीदे की वजह से।
३– अ़करमा का झूठा होना
अ़करमा अपने झूठ को इब्ने अ़ब्बास की तरफ़ निस्बत देता था। इसी वजह से अ़ली बिन अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास ने उसे अपने घर के बैतुल ख़ला में बन्द किया था।
अ़ली बिन अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास से पूछा गया: क्यों अपने ग़ुलाम से इस तरह़ का सलूक करते हो?
जवाब दिया: वोह मेरे वालिद पर झूठ की निस्बत देता है।
नक़्ल हुआ है कि: सई़द बिन मुसीब ने अपने ग़ुलाम से कहा: ऐ ग़ुलाम! ऐसा न हो कि तू भी अ़करमा की तरह़ मुझसे झूठी बातें मन्सूब कर दे जैसा कि वोह इब्ने अ़ब्बास की निस्बत झूठी बातें कहता था।
इब्ने उ़मर से भी नक़्ल हुआ है कि अपने ग़ुलाम से कहा: ऐ नाफ़ेअ़् आगाह रहो! तक़वए एलाही एख़्तेयार करो और अ़करमा की तरह़ कि जिसने इब्ने अ़ब्बास पर झूठ की निस्बत दी, तू मुझ पर झूठ की निस्बत न देना!
क़ासिम, सैयदीन–ओ–यह़्या बिन सई़द और मालिक ने भी मुत्तफ़ेक़ा तौर पर कहा कि अ़करमा बहुत झूठा है। यहाँ तक कि मालिक ने इसकी रवायत को नक़्ल करने का ह़राम क़रार दिया।
इब्ने अबी ज़हब से नक़्ल हुआ है कि अ़करमा क़ाबिले एअ़्तेमाद नहीं है। मुस्लिम बिन ह़ेजाज ने भी इससे मुँह मोड़ लिया और मोह़म्मद बिन सई़द अ़करमा के बारे में कहते हैं : इसकी ह़दीस से इस्तेनाद नहीं हो सकता।
४– लोगों ने इसके जनाज़े का तन्हा छोड़ दिया
लोगों ने इसकी इन ह़रकतों की वजह से इसके जनाज़े को तन्हा छोड़ दिया। कोई इसकी मय्यत को उठाने तैयार न हुआ यहाँ तक कि चार सियाह पुस्त सूडानी ग़ुलामों को अजीर बनाया गया।
तज़क्कुर
अ़करमा जैसा दुश्मने अह्लेबैत की ख़बासत–ओ–नजासत के ह़ालात किताबों में दर्ज हैं। अ़करमा से ह़दीसों को नक़्ल करने वाले और उसकी ताईद करने वाले अपनी अस्लीयत की तरफ़ मुतवज्जेह हों। दुनिया शक़ावत से सआ़दत में बदलने के लिए है। दुनिया में मिलने वाली मोहलत का फ़ाएदा उठाना चाहिए। अब मुलाह़ेज़ा हो एख़्तेसार के साथ मक़ातिल और ज़ह़्ह़ाक के ह़ालात।
मक़ातिल कौन है?
मक़ातिल बिन सुलेमान बलख़ी ने भी आयए तत्हीर के बारे में अ़करमा के नज़रीए की ताई़द की है। इसकी ज़िन्दगी पर भी नज़र डाली जाए तो मअ़्लूम होगा कि वोह भी अ़करमा की तरह़ था। इसीलिए दारे क़तनी, अ़क़ीली, इब्ने जौज़ी, और ज़हबी ने इसका नाम उन अफ़राद में लिया है जो नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ है और उनके ज़रीए़ रवायत नक़्ल नहीं की जा सकती……
एख़्तेसार की बेना पर हम सिर्फ़ ज़हबी का क़ौल नक़्ल करते हैं। वोह कहते हैं: तमाम उ़लेमा मक़ातिल बिन सुलेमान को तर्क करने पर इत्तेफ़ाक़ रखते हैं।१
ज़ह़्ह़ाक ने दूसरे नज़रियात के मुक़ाबिले में नज़रिया पेश किया कि आयए तत्हीर में “अह्लेबैत” से मुराद अह्ले पैग़म्बर और उनकी अज़्वाज भी हैं। इब्ने जूज़ी ने इस नज़रीये को नक़्ल किया और लिखा कि येह नज़रीया सिर्फ़ ज़ह़्ह़ाक बिन मज़ाह़िम का है।
१– सीरे एअ़्लामुल बला ७/२०१, शुमारह ७९
ज़ह़्ह़ाक कौन था?
इब्ने जौज़ी ने अ़क़ीली की तरह़ ज़ह़्ह़ाक को उन अफ़राद में शुमार किया है जो नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ हैं। ज़हबी ने भी उन दोनों की पैरवी में उसे नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ क़रार दिया और उसके नाम को अपनी किताब “अल मुग़नी फ़िज़्ज़ोअ़फ़ा” में ज़िक्र किया है।
उन लोगों ने इस एह़तेमाल को कि उसने इब्ने अ़ब्बास को देखा है, इन्कार किया है, बल्कि उनमें से बअ़्ज़ ने लिखा है कि: ज़ह़्ह़ाक ने किसी एक सह़ाबिए पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से गुफ़्तुग़ू भी नहीं किया है।
ज़ह़्ह़ाक के बारे में यह़्या बिन सई़द से यूँ नक़्ल हुआ है: हमारी नज़र में ज़ह़्ह़ाक नक़्ले ह़दीस में ज़ई़फ़ है। कहते हैं कि वोह दो साल तक शिकमे मादर में रहा।१
१– तहज़ीबुल कमाल, ९/१७३, मीज़ानुल एअ़्तेदाल, ३/४४६, अल मुग़नी फ़िज़्ज़ोअ़फ़ा १/३१२
तीसरे गिरोह का एक नमूना
जैसा कि हमने इब्तेदा ही में येह बात नक़्ल की है कि तीसरे गिरोह ने भी रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और बुज़ुर्ग अस्ह़ाब के नज़रिए के बर ख़ेलाफ़ ज़ह़्ह़ाक के नज़रिए पर अ़मल किया है। ज़रा मुलाह़ेज़ा हो।
इब्ने कसीर दमिश्क़ी का शुमार हम तीसरे गिरोह में करते हैं। उन्होंने अ़करमा के झूठ को नक़्ल करने के बअ़्द लिखा:
“अगर अ़करमा का मक़सद येह है कि सिर्फ़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज इस आयत की शाने नुज़ूल हैं और अफ़रादे दीगर नहीं तो सह़ीह़ है और अगर मुराद येह है कि अज़्वाजे पैग़म्बर के अ़लावा कोई दूसरा इस आयत में मुराद नहीं है, तो येह बात मह़ल्ले तअम्मुल और ग़ौर–ओ–फ़िक्र के लाएक़ है। क्योंकि इस सिलसिले में वारिद होने वाली ह़दीसों में मुराद उससे वसीअ़् तर है।”
इसके बअ़्द इब्ने कसीर बहुत सी ह़दीसों को नक़्ल करते हैं जो सराह़त से इस बात को बयान करती हैं कि येह आयत पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम उनके ज़ानशीन अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली, ह़सनैन और सिद्दीक़ा ताहेरा अ़लैहिमुस्सलाम से मख़्सूस है और साबित करती हैं कि अ़करमा की बात किताब–ओ–सुन्नत के ख़ेलाफ़ है।
हाए रे तअ़स्सुब
लेकिन इसका तअ़स्सुब इजाज़त नहीं देता कि इस मौजूअ़् का एअ़्तेराफ़ करे। यहाँ तक कि सेयाक़े आयत से रब्त के बअ़्द कहता है: आयत से मुराद अज़्वाजे पैग़म्बर भी हैं।
फिर इन्तेहाई ताकीद से कहता है: “जो क़ुरआन की आयतों में तदब्बुर करता है वोह तरदीद नहीं करेगा कि अज़्वाजे पैग़म्बर इस आयत के मसादीक़ से हैं।” क़ुरआन कहता है:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
क्योंकि सियाक़े आयत अज़्वाज के बारे में है।२
२– तफ़सीरुल क़ुरआनिल अ़ज़ीम, ३/४६५। तफ़सीरे इब्ने कसीर के नाम से मअ़्रूफ़ है। तालीफ़ अबुल फ़ेदा इस्माई़ल बिन कसीर क़रशी दमिश्क़ी, दारुल मअ़्रिफ़, बेरूत, लेबनान, तबअ़् सेवुम, सन १४०९ हि.
इब्ने तैमिया का इस ह़दीस के सह़ीह़ होने का एअ़्तेराफ़: तअ़ज्जुब येह है कि इब्ने तैमिया ने इन दोनों नज़रियात में से किसी को क़बूल नहीं किया है, बल्कि अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह के इस ह़दीस के सह़ीह़ होने का इस्तेदलाल का इक़रार किया है।
अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह फ़रमाते हैं : हम यहाँ सिर्फ़ कुछ रवायतों को नक़्ल करते है जो अह्ले सुन्नत के नज़रिये के तह़त सह़ीह़ रवायतें हैं और उन लोगों ने अपने मोअ़्तबर अक़वाल–ओ–आसार के तह़त नक़्ल किया है। उन रवायतों को नक़्ल करते है ताकि रोज़े क़यामत उन पर हमारी ह़ुज्जत तमाम हो जाए। मिनजुम्ला एक रवायत है कि अबुल ह़सन अन्दलेसी ने अपनी किताब अल जमओ़ बैनस्से़हाह़िस्सित्ता में “मोवत्ता” मालिक, सह़ीह़ बुख़ारी, सह़ीह़ मुस्लिम, सुनने अबी दाऊद, सह़ीह़ तिरमिज़ी और सह़ीह़ नेसाई से नक़्ल किया है।
इस रवायत में उम्मे सलमा कहती हैं:
आयत (इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा) मेरे घर में नाज़िल हुई इस ह़ालत में कि मैं दरवाज़े के सामने बैठी थी। मैंने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से कहा: ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या मैं अह्लेबैत से नहीं हूँ?
पैग़म्बर ने फ़रमाया:
इन्नके अ़ला ख़ैरिन. इन्नके मिन अज़्वाजिन्नबीये.
तुम ख़ैर पर हो और पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बीवियों से हो।
उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा फ़रमाती हैं: मेरे घर में, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम थे, ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इन लोगों को अपनी अ़बा में दाख़िल किया और फ़रमाया:
अल्लाहुम्म हा ऊलाए अह्लो बैती फ़ज़्हब अ़न्हुमुर्रिज्स व तह्हेर्हुम तत्हीरा।१
बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं। आलूदगी को इनसे दूर रख और इन्हें वैसा पाक–ओ–पाकीज़ा रख जैसा पाक–ओ–पाकीज़ा होना चाहिए।
१– मिन्हाजुल करामत, फ़ी मअ़्रेफ़तिल इमामत/८४,८५ वज्हे शशुमे अज़ फ़स्ले दुवुम, तालीफ़ अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह
इब्ने तैमिया इस बारे में एक अलग फ़स्ल में कहता है: ह़दीसे किसा एक सह़ीह़ ह़दीस है, अह़मद बिन हम्बल और तिरमिज़ी ने इसे उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा से नक़्ल किया है। इस ह़दीस को मुस्लिम ने अपनी सह़ीह़ में आ़एशा से इस तरह़ नक़्ल किया है:
“एक रोज़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम घर से जल्दी निकले, इस ह़ालत में कि उन के दोशे मुबारक पर ऊन की एक सेयाह़ अ़बा थी। इस मौक़ेअ़् पर ह़सन इब्ने अ़ली अ़लैहेमस्सलाम उनके नज़्दीक आए और आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उन्हें अपनी चादर में ले लिया, फिर ह़ुसैन बिन अ़ली अ़लैहेमस्सलाम आए और उन्हें भी अ़बा के दामन में ले लिया। कुछ देर बअ़्द फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहार् आइं वोह भी ज़ेरे किसा क़रार र्पाइं और उनके बअ़्द, अ़ली अ़लैहिस्सलाम आए और वोह भी चादर में आ गए।
फिर ह़ज़रत ने फ़रमाया:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
इब्ने तैमिया इस ह़दीस के नक़्ल करने के बअ़्द लिखता है:
पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इस ह़दीसे फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहा में ह़सन–ओ–ह़ुसैन को अ़ली अ़लैहिस्सलाम के साथ शरीक किया है, इस बेना पर येह फ़ज़ीलत (इ़स्मत) ह़दीस में सिर्फ़ उनसे मख़्सूस फ़ज़ीलत नहीं है और वाज़ेह़ है कि औ़रत इमामत की सलाह़ियत नहीं रखती, इस तरह़ मअ़्लूम हुआ कि येह फ़ज़ीलत (इ़स्मत) अइम्मा से मख़्सूस नहीं है। बल्कि अइम्मा के अ़लावा वोह भी इसमें शरीक़ हैं।
दूसरी तरफ़, मज़्कूरा ह़दीस का मज़्मून येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ कि ताकि वोह लोग आलूदगी से दूर हो जाएँ और पाक–ओ–मुनज़्ज़ह हो जाएँ और जो इन्तेहाई बात इस ह़दीस से इस्तेफ़ादा की जा सकती है येह है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ की ताकि वोह लोग परहेज़गारों में से हो जाएँ कि ख़ुदा ने रिज्स को उनसे दूर किया और उन्हें पाकीज़ा किया है, जब कि आलूदगी से इज्तेनाब मोअ्मिन के लिए वाजिब था और तमाम मोअ्मिन इसके लिए मामूर हैं। ख़ुदा का इरशाद है।
मा यूरीदुल्लाहो लेयज्अ़ल अ़लैकुम मिन ह़रजिव्वलाकिय्यूरीदो लेयोतह्हेरा कुम वलेयोतिम्मा नेअ़्मतहू अ़लैकुम
(सूरए माएदा, आयत ६)
ख़ुदा नहीं चाहता कि तुम पर किसी तरह़ की तंगी करे बल्कि वोह चाहता है कि तुमको पाक कर दे और तुम पर अपनी नेअ़्मत तमाम कर दे।
दूसरी आयत में इरशाद होता है:
ख़ुज़ मिन अम्वालेहिम सदक़तन तोतह्हेरहुम व तोज़क्कीहीम बेहा
(सूरए तौबा, आयत १०३)
ऐ रसूल तुम उनके माल की ज़कात लो और उसके वसीले से उन्हें पाक–ओ–पाकीज़ा कर दो।
एक दूसरी आयत में आया है:
इन्नल्लाहा योह़िब्बुत्तवाबीना व योह़िब्बुल मोततह्हेरीना.
(सूरए बक़रा, आयत २२२)
ख़ुदा तौबा करने वालों को और जो लोग पाकीज़गी की तलाश करते हैं, पसन्द करता है।
ख़ुलासा येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने दुआ़ की कि वोह लोग वाजेबात पर अ़मल कर सकें और मोह़र्रेमात को तर्क करें।
एक तरफ़ ख़ुदा ने अबू बक्र के लिए यूँ फ़रमाया:
व सयोजन्नबोहल्अत्का. अल्लज़ी यूअ्ती मा लहू यतज़क्का. वमा लेअह़दिन इ़न्दहू मिन नेअ़्मतिन तुज्ज़ा.इल्लब्तेग़ाअ वज्हे रब्बेहिल अअ़्ला. वलसौफ़ यर्ज़ा.
(सूरए लैल, आयत १७–२१)
और जो बड़ा परहेज़गार है वोह उससे (नार से) बचा लिया जाएगा जो अपना माल (ख़ुदा की राह में) देता है ताकि वोह पाक हो जाए और किसी पर उसका कोई अह़सान नहीं जिसका उसे बदला दिया जाता हो बल्कि वोह तो सिर्फ़ अपने बलन्द–ओ–अ़ज़ीम परवरदिगार की ख़ुशनूदी ह़ासिल करने के लिए देता है और अनक़रीब ही ख़ुश हो जाएगा।
इसी तरह़ इब्ने तैमिया सूरए तौबा की आयत नम्बर १०० के ह़वाले से नक़्ल किया है कि मुह़ाजेरीन–ओ–अन्सार ने ख़ुदा के फ़रमान को अन्जाम दिया और जो मनअ़् किया गया उससे ख़ुद को रोका यअ़्नी उन लोगों ने ख़ुदा की रेज़ायत और दीन की पैरवी के ज़रीए़ ख़ुद को पाक–ओ–पाकीज़ा कर लिया। ख़ुलासा येह कि इब्ने तैमिया के मुताबिक़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ जो अह्ले किसा के लिए थी। इस दुआ़ का कुछ ह़िस्सा अन्सार–ओ–मुहाजेरीन के लिए भी था और इब्ने तैमिया ने इसीलिए येह कहा कि अन्सार–ओ–मुहाजेरीन से अफ़ज़ल नहीं हैं अह्ले किसा।१
१– तफ़सील के लिए रुजूअ़् करो मिन्हाजुस्सुन्ना ५/१३–१५ (तालीफ़ इब्ने तैमिया ह़र्रानी, मिस्र चाप दुवुम १४०९)
इब्ने तैमिया की बातों का ख़ुलासा
१– एअ़्तेराफ़ किया है कि येह ह़दीस सह़ीह़ है कि आयए तत्हीर अह्ले किसा के लिए नाज़िल हुई और किसी दूसरे शख़्स के लिए नहीं।
२– एअ़्तेराफ़ है कि अ़ली–ओ–फ़ातेमा, ह़सन–ओ–ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम के अ़लावा इस आयत में कोई दूसरा शामिल नहीं हैं।
इस बेना पर पूछना चाहिए: अ़करमा की बातें, आयत का सेयाक़ और इब्ने कसीर के अ़क़ीदे का क्या हुआ?
इब्ने तैमिया अ़करमा के नज़रिए को और दूसरों के नज़रियात को रद्द करने के बअ़्द और आयत का इ़तरते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से मख़्सूस होने का एअ़्तेराफ़ करने के बअ़्द, अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह के इस आयत के ज़ैल में इस्तेदलाल को रद्द करते हुए, इस अन्दाज़ में इस्तेदलाल करता है कि उसका बुतलान कामिल तौर पर आश्कार है।
पहली बात येह कहता है कि “फ़ातेमा सलामुल्लाह अ़लैहा आयत की मिस्दाक़ हैं पस……”
अ़ल्लामा ह़िल्ली रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपने इस्तेदलाल में दअ़्वा नहीं किया है कि येह ह़दीस ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की ख़ुसूसियात को बयान करती है, बल्कि येह आयए मुबारेका और ह़दीस शरीफ़ सिर्फ़ अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम यअ़्नी पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली मुर्तज़ा, फ़ातेमा ज़हरा, ह़सन–ओ–ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम की इ़स्मत पर दलालत करती है।
वाज़ेह़ है कि सिर्फ़ मअ़्सूम, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की इमामत के बअ़्द इमामत के लिए सलाह़ियत रखता है और जो बात ह़ज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा के लिए कही जा सकती है, ख़ुदा ने इमामत को मअ़्सूम मर्दों से मख़्सूस क़रार दिया है।
इसके आगे इब्ने तैमिया कहता है:
मज़्कूरा ह़दीस का मज़्मून येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उन लोगों के लिए दुआ़ की कि परहेज़गारों में हों कि ख़ुदा ने आलूदगी को उनसे दूर किया है……
लेहाज़ा ह़दीस का बलन्द तरीन मतलब येह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उनके लिए दुआ़ की है कि अम्र–ओ–नही पर अ़मल करें।
इब्ने तैमिया की कम फ़ह्मी या शिद्दते तअ़स्सुब
इब्ने तैमिया के तमाम एअ़्तेराज़ात के लिए एक अलग मज़्मून की ज़रूरत है इसलिए हम एख़्तेसार के साथ जवाबों पर इक्तेफ़ा करते हैं।
पहली बात येह कि इब्ने तैमिया की बातें सराह़त के साथ आयए मुबारका से मनाफ़ात रखती हैं, क्योंकि कलमा “इन्नमा” अ़रबी ज़बान में “ह़स्र” पर दलालत करता है, लेकिन उसकी बातें अ़दमे ह़स्र पर हैं। इस बेना पर उसकी बातें, ख़ुदा और रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बातों को रद्द करती हैं।
दूसरी बात येह कि दूसरी बहुत सी सह़ीह़ रवायतों मे आया है कि जब आयए मुबारका नाज़िल हुई तो रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अ़ली–ओ–फ़ातेमा–ह़सन–ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम को बुलाया और अ़बा में लेकर फ़रमाया:
अल्लाहुम्–म हाऊलाए अह्लो बैती?
बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं……
जब ख़ुदा वन्द तआ़ला फ़रमाता है:
इन्नमा युरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते……
और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम भी इस आयत के मिस्दाक़ को मुअ़य्यन फ़रमाते हैं तो क्या इब्ने तैमिया की अ़दमे हस्र की बात को क़बूल किया जा सकता है?
तीसरे येह कि फ़र्ज़ करें की पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ उन लोगों के लिए थी कि परहेज़गार हो जाएँ, और “तमाम मोअ्मिनीन को पाकी का ह़ुक्म दिया गया है” और उस दुआ़ का मक़सद “अम्र” के बजा लाने और नह़्य के तर्क करने के लिए है, तो इस सूरत में इस आयत में और ह़दीसे किसा में कोई फ़ज़ीलत की बात नहीं है जब कि ख़ुद उस (इब्ने तैमिया) ने पहले येह बात कही है कि: “मअ़्लूम हुआ कि येह फ़ज़ीलत सिर्फ़ अइम्मा के लिए नहीं है बल्कि दुसरों के लिए भी है”“!!
चौथे येह कि अगर “दुआ़ का मक़सद जिन चीज़ों के करने का ह़ुक्म हुआ है और जिन चीज़ों से मनअ़् किया गया, उन पर अ़मल पैरा हों तो पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा को साथ होने की इजाज़त क्यों नहीं दी?
क्या उम्मे सलमा “मुत्तक़ीन और परहेज़गारों में से थी कि ख़ुदा ने उनसे आलूदगी को दूर कर दिया……” और वोह दुआ़ की ज़रूरत नहीं रखती थीं? या पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम नहीं चाहते थे कि वोह मुत्तक़ीन परहेज़गारों में से हों……..?
बहरह़ाल इब्ने तैमिया की येह कोशिश कि आयए तत्हीर में सिवाए इसके और कुछ नहीं कि ख़ुदा का इरादा और पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की दुआ़ है अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के ह़क़ में वोह परहेज़गार बनें ख़ेलाफ़ वाक़ेअ़् है। और इब्ने तैमिया का अपने ख़याल को तक़वीयत देकर येह कहना कि येह दुआ़ क़बूल भी हो सकती है और रद्द भी, तो येह भी ख़ुद इब्ने तैमिया की अपनी सोच है, ह़क़ीक़त से इसका कोई तअ़ल्लुक़ नहीं है।
इन्शा अल्लाह अगर ख़ुदा ने ज़िन्दगी दी और तौफ़ीक़ रही तो किसी मौक़ेअ़् पर एक मज़्मून इब्ने तैमिया के इन ख़ुराफ़ाती नज़रियात की रद्द में तह़रीर करेंगे और साबित करेंगे कि अन्सार–ओ–मुहाजेरीन, अबू बक्र–ओ–आ़एशा–ओ–दीगर अज़्वाज, किसी का अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से कोई मुक़ाबला नहीं है। जो लोग मुक़ाबले में आएँ या जो लोग मुक़ाबले में लाए जाएँ सब का अन्जाम ख़ुदा ही जानता है।
ख़ुदाया! मिस्दाक़े आयए तत्हीर ह़ज़रत महदी अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमा और हमें उनके अअ़्वान–ओ–अन्सार में शुमार फ़रमा।
क़ुरआन में अहम्मीयते मन्सबे इमामत
यौ–म नद्ऊ़ कुल्ल ओनासिम बेइमामेहिम.
“उस दिन (को याद कीजिए) जब हम तमाम इन्सानों को उनके इमाम के साथ बुलाएँगे।”
(सूरए असरा: आयत ७१)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने दीने इस्लाम की तब्लीग़ बेहतरीन अन्दाज़ में फ़रमाई। आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हमेशा अपनी उम्मत की हेदायत के लिए कोशाँ रहे। आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हर लम्ह़ा इसी फ़िक्र में रहते थे। उम्मते मुस्लेमा की रह्नुमाई के लिए आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मुतअ़द्दिद मक़ामात–ओ–मुख़्तलिफ़ मवाक़ेअ़् पर नसीह़तें फ़रमाई हैं। बिलख़ुसूस अपनी ज़िन्दगी के आख़री साल में आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बारहा इस मौज़ूअ़् पर ख़ुत्बे दिए हैं। ऐ़ने रेह़लत के वक़्त जब आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अ़लालत ने शिद्दत एख़्तेयार कर ली तो आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अपने अस्ह़ाब से काग़ज़–ओ–क़लम तलब किया ताकि उनकी रह्नुमाई के लिए एक नविश्ता तैयार कर दें जो उनको गुमराही से बचा सके। मगर अफ़सोस आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को लोगों ने येह काम नहीं करने दिया नतीजे के तौर पर आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की रेह़लत के फ़ौरन बअ़्द ही मुसलमान गुमराही का शिकार हो गए। नतीजतन आज ह़ालत येह है कि हर फ़िर्क़ा ख़ुद को हेदायत याफ़्ता और दूसरों को गुमराह और इस्लाम से ख़ारिज समझता है। येह एख़्तेलाफ़ात मअ़्मूली नहीं हैं सिर्फ़ फ़िक़्ही भी नहीं हैं बल्कि इनमें उसूली तौर पर अ़क़ाएद और बुनियादी मुआ़मेलात में भी इन्ह़ेराफ़ हैं। इन मुतनाज़अ़् मौज़ूआ़त में सबसे अहम मसअला, मसअलए इमामत है।
मुसलमानों की अक्सरीयत इमामत को दुनियवी अम्र समझती है जबकि शीओ़ं के यहाँ येह दीन के उसूलों में सबसे अहम उसूल है। अह्ले तसन्नुन के यहाँ इमामत एक दुनियवी मन्सब है यअ़्नी एक ह़ाकिमे दौराँ ही इमाम होता है। जिसकी ह़ुकूमत है वही इमाम है जबकि शीओ़ं के यहाँ इमामत को एलाही मन्सब माना जाता है। यअ़्नी ख़ुद अल्लाह बनाता है। इस बात के दलाएल क़ुरआन में मौजूद हैं।
इमाम के मअ़्ना सरबराह, सरपरस्त और रहनुमा के होते हैं। क़ुरआन करीम में इस लफ़्ज़ को मुतअ़द्दिद आयतों में देखा जा सकता है। इसी लफ़्ज़ के एक और हम मअ़्ना लफ़्ज़ “उलुल अम्र” भी क़ुरआन में इस्तेअ़्माल हुआ है। हर मआ़शरा और समाज को एक सरबराह और रहनुमा की ज़रूरत होती है। येह वोह शख़्स होता है जिसके हाथों में ज़मामे उमूर होते हैं। उसकी सरपरस्ती से समाज के एख़्तेलाफ़ात रफ़अ़् होते हैं और फ़ित्ना–ओ–फ़साद दूर रहते हैं। क़ुरआन करीम ने भी इस बात की तरफ़ इशारा करते हुए मोअ्मिनों पर एक उलुल अम्र की एताअ़त को लाज़िम क़रार दिया है।
या अय्योहल्लज़ी–न आ–मनू अतीउ़ल्ला–ह व अतीउ़र्रसू–ल व उलिल अम्रे मिन्कुम. फ़इन तनाज़अ़्तुम फ़ी शैइन फ़रुद्दूहो एलल्लाहे वर्रसूले इन कुन्तुम तोअ्मेनू–न बिल्लाहे वल यौमिल्आख़ेरे. ज़ाले–क ख़ैरुन व अह़्सनो तअ्वीला.
(सूरए निसा, आयत ५९)
“ऐ ईमान लाने वालों एताअ़त करो अल्लाह की और उसके रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की और उन लोगों की एताअ़त करो जो साह़ेबे अम्र हैं। अगर तुम में आपस में कोई तनाज़अ़् हो तो उसको अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की तरफ़ पलटा दो (यअ़्नी उन से फ़ैसला लो) अगर तुम्हारा अल्लाह और रोज़े क़यामत पर ईमान है यही ख़ैर है बेहतरीन तावील है।”
इस आयत में उलुल अम्र की एताअ़त को रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एताअ़त से मुत्तसिल कर दिया है यअ़्नी येह उन्हीं अह़काम पर अ़मल करेगा जो रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल हुए हैं। दरअस्ल रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ग़ैर मौजूदगी में इस उलुल अम्र की एताअ़त ही रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की जानशीनी है। इस इमाम की ज़रूरत समाज को बिल्कुल उसी तरह़ है जैसे उनको ख़ुद पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़रूरत होती है। उसकी ज़िम्मेदारियों में येह है कि वोह मुसलमानों में अ़द्ल–ओ–इन्साफ़ क़ाएम करे, उनको क़ुरआन की तअ़्लीम दे। लोगों के एख़्तेलाफ़ात को रफ़अ़् करे, इस्लामी ह़ुदूद जारी करे, वग़ैरह। इन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए उसके पास क़ुरआन का मुकम्मल इ़ल्म होना चाहिए। उसमें येह सलाह़ियत होनी चाहिए कि वोह क़ुरआन–ओ–सुन्नते रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से पूरी तरह़ वाक़िफ़ हो। येह सब उसी वक़्त मुम्किन है जब उसके पास बराहे रास्त अल्लाह से हेदायत ह़ासिल हो। क़ुरआन में भी इस बात का ज़िक्र है:
व जअ़ल्नाहुम अइम्मतय्यँह्दून बेअम्रेना व अव्ह़ैना इलैहिम फ़ेअ़्लल्ख़ैराते व एक़ामस्सलाते व ईताअज़्ज़काते. व कानू लना आ़बेदी–न.
(सूरए अम्बिया, आयत ७३)
“हमने उनको अइम्मा बनाया है जो हमारे अम्र से हेदायत करते हैं। हम उनकी तरफ़ वह़्य करते हैं नेक कामों के लिए, नमाज़ क़ाएम करने के लिए और ज़कात की अदाएगी के लिए और वोह हमारी ही ए़बादत करने वाले हैं।”
इस आयत में और इस तरह़ की दूसरी आयात में लफ़्ज़ “जअ़ल्ना” इस्तेअ़्माल हुआ है। जिसका मतलब यही है कि अइम्मा का इन्तेख़ाब ख़ुद अल्लाह करता है। जिस तरह़ दीन की तब्लीग़ के लिए अम्बिया और रसूल को ख़ुदा चुनता है इसी तरह़ इमाम का इन्तेख़ाब भी उसी का काम है। इसमें उम्मत का दखल नहीं है। उम्मत ख़ुद अपने लिए इमाम चुनने की सलाह़ियत भी नहीं रखती। शेख़ तबरसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह अपनी किताब अल एह़्तेजाज में येह रवायत नक़्ल करते हैं कि सई़द बिन अ़ब्दुल्लाह एक मर्तबा इमाम ह़सन अस्करी अ़लैहिस्सलाम की ख़िदमत में कुछ सवालात लेकर ह़ाज़िर हुए। वहाँ उन्होंने देखा कि इमाम अ़लैहिस्सलाम की गोद में एक कमसिन बच्चा बैठा हुआ है। जब सई़द ने अपने सवालात पूछने शुरूअ़् किए तो ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम ने उस बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया कि अपने सवालात को अपने साह़ेबे अम्र अ़लैहिस्सलाम से पूछो। इन सवालात में एक सवाल येह भी था कि उम्मत अपने लिए इमाम ख़ुद क्यों नहीं मुन्तख़ब कर सकती? ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम ने इस सवाल की वज़ाह़त चाही। “तुम किस इमाम की बात कर रहे हो। जो इमामे आ़दिल है और लोगों की इस्लाह़ करता है या वोह जो कि मुफ़सिद है और लोगों में फ़साद बर्पा करता है?”
सई़द ने कहा: “जो इमाम आ़दिल है और लोगों की इस्लाह़ करता है।”
ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम ने फ़रमाया: क्या येह मुम्किन है कि लोग एक शख़्स को आ़दिल और मुस्लेह़ समझ कर मुन्तख़ब करें जब कि ख़ुद उसके दिल में फ़साद भरा हुआ हो। जिसका लोगों को इ़ल्म नहीं है? सई़द ने जवाब दिया: हाँ! मुम्किन है। ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम ने फ़रमाया: यही वजह है कि उम्मत के बस का नहीं है कि वोह ख़ुद अपने लिए इमाम मुन्तख़ब करे। इस बात को मैं एक मिसाल के ज़रीए़ वाज़ेह़ करता हूँ ताकि तुम इसे अच्छी तरह़ समझ जाओ। अल्लाह ने अपने रसूलों अ़लैहिमुस्सलाम को लोगों की हेदायत के लिए भेजा। उनको इ़ल्म–ओ–ह़िकमत से आरास्ता किया। उनको इ़स्मत अ़ता फ़रमाई, बलन्द दरजात पर फ़ाएज़ किया। उन पर किताब नाज़िल फ़रमाई ताकि वोह अपनी उम्मत की हेदायत कर सकें। उनमें जनाब मूसा अ़लैहिस्सलाम और जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम भी हैं। क्या येह हो सकता है कि वोह अपने कामिल इ़ल्म–ओ–ह़िकमत के बावजूद लोगों के इन्तेख़ाब में ग़लती करें और मुनाफ़िक़ों को मोअ्मिन समझ बैठें। सई़द ने जवाब दिया! नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
“कलीमुल्लाह जनाबे मूसा अ़लैहिस्सलाम ने अपनी ह़िकमत–ओ–इ़ल्म के बावजूद अपनी उम्मत से जिन सत्तर अफ़राद को ख़ुदा की मुलाक़ात के लिए चुना था येह समझ कर कि वोह सब अपने ईमान में बलन्द हैं और नेकूकार हैं। वोह सब के सब वैसे नहीं थे बल्कि मुनाफ़िक़ निकले।”
(सूरए अअ़्राफ़, आयत १५५)
जब अल्लाह के बनाए हुए नबी ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम के इन्तेख़ाब में बुरे लोग निकल आए और उनके ज़ाहिर की बेना पर बदतरीन, मुफ़सिद लोगों को नेकूकार और मोअ़्तबर समझ लिया तो आ़म लोगों के इन्तेख़ाब का क्या एअ़्तेबार किया जाए जब कि उनको किसी दूसरे के दिल के ह़ाल की कोई ख़बर नहीं होती। इसलिए इमाम का इन्तेख़ाब उसी के लिए दुरुस्त है जो लोगों के ज़ाहिर–ओ–बातिन दोनों से बख़ूबी वाक़िफ़ हो। इसका इ़ल्म सिर्फ़ अल्लाह के पास ही है। जब एक नबी अ़लैहिस्सलाम अपनी क़ौम के बेहतरीन अफ़राद को नहीं चुन सकता तो फिर अन्सार–ओ–मुहाजेरीन किस तरह़ अपने लिए एक इमाम चुन सकते हैं?
क़ुरआन ने जनाब इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम के इमाम बनाए जाने की पूरी दास्तान बयान की है।
व इज़िब्तला इब्राही–म रब्बोहू बे–कलेमातिन फ़अतम्महुन्न. क़ा–ल इन्नी जाए़लो–क लिन्नासे इमामन. क़ा–ल व मिन ज़ुर्रीयती. क़ा–ल ला यनालो अ़ह्दिज़्ज़ालेमी–न.
(सूरए बक़रा, आयत १२४)
“जब इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम के सामने उनका इम्तेह़ान कलेमात के ज़रीए़ लिया और उनको उस इम्तेह़ान में कामियाब पाया तो उन से कहा: (ऐ इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम) मैंने तुमको लोगों का इमाम बनाया। (इस पर इब्राहीम अ़लैहिस्सलाम) ने दर्ख़ास्त की (मालिक इस मन्सब को) मेरी ज़ुर्रीयत में भी मुन्तक़िल कर दे। ख़ुदा ने जवाब दिया: मेरा येह ओ़ह्दा ज़ालिमों को नहीं मिल सकता।”
अल्लाह और उसके ख़लील की इस गुफ़्तुगू से दो बातें वाज़ेह़ हो र्गइं : इस मन्सबे इमामत को नबी अ़लैहिस्सलाम भी अपनी ज़ुर्रीयत में बग़ैर ख़ुदा की इजाज़त के मुन्तक़िल नहीं कर सकता। येह मक़ाम सिर्फ़ अल्लाह ही अ़ता करता है। दूसरे येह कि इस मन्सब के लिए मअ़्सूम होना शर्त है। गुनहगार इस मन्सब को नहीं पा सकता। इसलिए इमाम का मअ़्सूम होना ज़रूरी है।
इमामत के मौज़ूअ़् पर क़ुरआनी आयतों पर नज़र करने से येह बात भी वाज़ेह़ हो जाती है कि इमाम अ़लैहिस्सलाम उम्मत के हादी होते हैं। मसलन येह फ़िक़्रा “यह्दू–न बेअम्रेना” येह हमारे अम्र से लोगों की हेदायत करते हैं। येह ऐ़ने मक़सदे नबूवत है। लोग इस बात से वाक़िफ़ नहीं हैं कि किस तरह़ अल्लाह की ए़बादत करें या येह की ख़ुदा की ए़बादत का सह़ीह़ तरीक़ा क्या है। इन्सान अपनी अ़क्ल–ओ–फ़ह्म से इन बातों को नहीं समझ सकते। इसलिए अल्लाह ने उनके दरमियान अम्बिया को मब्ऊ़स किया जो लोगों तक ख़ुदा के क़वानीन और शरीअ़त को दीन की शक्ल में पेश करते हैं। ख़ुदा अपने नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम तक इन हेदायत को वह़ी के ज़रीए़ पहुँचाता है और नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम अपनी उम्मत को इन चीज़ों की तअ़्लीम देते हैं। क्योंकि इमामत नबूवत का बदल और लाज़ेमा है इसलिए इन उमूर को पूरा करना इमाम की ज़िम्मेदारी होती है। इस आयत में इस बात का वाज़ेह़ ज़िक्र है “व अव्ह़ैना इलैहिम फ़ेअ़्लल ख़ैरात…..”
इस तरह़ उम्मत की ए़बादत का दार–ओ–मदार इमाम अ़लैहिस्सलाम की हेदायात पर होता है। अगर इमाम सह़ीह़ नहीं है तो पूरी उम्मत की ए़बादतें ख़राब हो जाएँगी। जनाब मूसा अ़लैहिस्सलाम जब कोहे तूर पर तश्रीफ़ ले गए तो आप अ़लैहिस्सलाम ने अपने भाई और वसी जनाब हारून अ़लैहिस्सलाम को क़ौम का सरपरस्त और ख़लीफ़ा मुअ़य्यन किया था। ताकि उनकी ग़ैरमौजूदगी में क़ौम गुमराह न हो जाए। मगर उनकी उम्मत ने अपने लिए सामरी को इमाम चुन लिया और उसकी हेदायात पर अ़मल करना शुरूअ़् कर दिया। नतीजा येह हुआ कि पूरी क़ौम गुमराह हो गई। यही माजरा तमाम उम्मतों का हुआ। जिन उम्मतों ने ख़ुदा के मुन्तख़ब कर्दा इमाम–ओ–सरपरस्त की एताअ़त नहीं की वोह गुमराह हो गई। उनकी पैरवी ने उन्हें जहन्नम कार् इंधन बना दिया। इसलिए ज़रूरी है कि मुसलमान भी अपनी नजात के लिए उन्हीं की इमामत को तस्लीम कर लें जिनको ख़ुदा ने बनाया है और रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने लोगों के सामने उसका एअ़्लान किया है और वोह अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम और उनकी ज़ुर्रीयत के ग्यारह इमामे मअ़्सूम अ़लैहिमुस्सलाम हैं।
अल्लाह तआ़ला हम सब मुसलमानों को इमाम बरह़क़ की एताअ़त–ओ–फ़रमाबरदारी की तौफ़ीक़ अ़ता फ़रमाए और उनके ह़क़ीक़ी वारिस ह़ुज्जते ख़ुदा इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमाए। आमीन।