ख़ैरुल बरीया – क़ुरआन और अह़ादीस की रोशनी में
सद्रे इस्लाम से लेकर अब तक क़ुरआन के इस नुक़्तए नज़र के बारे में मुख़्तलिफ़ नज़रियात और मुख़्तलिफ़ मआ़ना और मिस्दाक़ बताए जाते हैं और मुफ़स्सेरीन के दरमियान भी एख़्तेलाफ़े नज़र पाया जाता है लेकिन हमेशा से शीअ़याने अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के पैरवकारों के लिए अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम और क़ुरआन हमेशा मश्अ़ले राह रहे हैं। इसलिए हम इस आयत के मिस्दाक़ को क़ुरआन और अह़ादीस की रोशनी में तलाश करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि इस आयत का अव्वल और आख़िर मिस्दाक़ कौन है?
शाने नुज़ूल
येह आयते करीमा अ़ली अ़लैहिस्सलाम के दौर के शीओ़ं के बारे में नाज़िल हुई है। वोह अह़ादीस जो इस आयत के शाने नुज़ूल को मौलाए मुत्तक़ियान अ़लैहिमुस्सलाम और आप के शीओ़ं के लिए बताती हैं, उनकी तअ़्दाद बहुत ज़्यादा है और शीआ़ और सुन्नी उ़लमा ने अपनी अपनी किताबों में तह़्रीर किया है। “ग़ायतुल मराम” में सुन्नियों की तरफ़ से अह़ादीस और शीआ़ तरीक़े से अह़ादीस अलग अलग मज़ामीन के साथ इस आयत के शाने नुज़ूल में मुत्तसिल सनद के साथ रवायत किया है। शेख़ तूसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “अल–अमाली” और साह़ेबे किताबुल अरबई़न अपनी अस्नाद से जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह अन्सारी से रवायत करते हैं:
जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह कहते हैं कि हम अल्लाह के रसूल के मह़्ज़र में थे कि अचानक ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम तश्रीफ़ लाए तो रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया कि मेरा भाई तुम्हारे दरमियान आया और फिर अपना रुख़ कअ़्बा की तरफ़ किया और अपने हाथों को कअ़्बा पर रख कर फ़रमाया: उस अल्लाह की क़सम जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है यक़ीनन सिर्फ़ येह शख़्स और इसके शीआ़ कमियाब हैं और क़यामत में नजात पाने वाले हैं। और फिर आप ने फ़रमाया: सिर्फ़ येह मेरे साथ सब से पहले ईमान को ज़ाहिर करने वाले हैं और सबसे ज़्यादा अल्लाह के अ़ह्द–ओ–पैमान को पूरा करने वाले हैं और तुम में सब से ज़्यादा साबित क़दम हैं। और उम्मत में सब से ज़्यादा बरह़क़ फ़ैसला करने वाले और तुम्हारे दरमियान सबसे ज़्यादा आ़दिलाना तक़सीम करने वाले और अल्लाह के नज़्दीक मक़ाम–ओ–मर्तबे के लेह़ाज़ से सब से ज़्यादा बलन्द। जाबिर कहते हैं फिर येह आयत पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल हुई:
इन्नल लज़ी–न आ–मनू व अ़मेलुस्सालेह़ाते उलाए–क हुम ख़ैरुल्बरीयते
यक़ीनन जो लोग ईमान लाए और अ़मले सालेह़ अन्जाम देते हैं यही लोग बेहतरीन मख़्लूक़ हैं।
जाबिर कहते हैं: पस जब भी अ़ली अ़लैहिस्सलाम वारिद होते थे तो अस्ह़ाबे रसूल कहते थे: ‘ह़ाज़ा ख़ैरुल बरीया’ इस दुनिया का सबसे बेहतरीन शख़्स वारिद हुआ।
इस तरह़ मोह़म्मद इब्ने अ़ब्बास के तरीक़े से जअ़्फ़र इब्ने मोह़म्मद ह़ुसैनी मरह़ूम सैयद बह़्रानी ह़दीस की सनद को अबू राफ़ेअ़् से ज़िक्र करते हैं: ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम ने बेऐ़नेही यही ह़दीस, उ़मर ने जो शूरा तशकील दिया था, उसके सामने एह़्तेजाज करते हुए पेश किया और फ़रमाया: मैं तुम्हें अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ उस दिन को जानते हो जब तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के साथ बैठे हुए थे और मैं तुम्हारी तरफ़ आया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया: येह मेरा भाई और आप ने अपना हाथ कअ़्बा पर रखा और फ़रमाया: अल्लाह की क़सम और इस तअ़्मीर शुदा घर की, सिर्फ़ और सिर्फ़ येह और इसके शीआ़ क़यामत के दिन कामियाब हैं और फिर आप ने अपना चेहरा तुम्हारी तरफ़ किया और फ़रमाया: जान लो कि येह शख़्स मेरे साथ पहला मोअ्मिन है और तुम में से अल्लाह के मुआ़मले में सब से सच्चा है और सबसे ज़्यादा अल्लाह के अ़ह्द–ओ–पैमान को पूरा करने वाला है।
और फिर जब येह आयत नाज़िल हुई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने तकबीर बलन्द की और तुम लोगों ने भी तकबीर कही। ऐ शूरा के लोगों! क्या तुम जानते हो कि ह़क़ीक़त यही थी? उस वक़्त तमाम लोगों ने कहा: हाँ! हम जानते हैं।
अह्ले सुन्नत की बहुत सी ह़दीसें इस आयत की तफ़सीर में कि ख़ैरुल बरीया अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और उनके शीआ़ हैं, दलालत करती हैं। इस ह़दीस को इमाम ख़ारज़्मी ने बेऐ़नेही मौक़िफ़ इब्ने अह़मद ने अपनी मनाक़िब में नवीं फ़स्ल स. ६२ और ह़मवीनी ने “फ़राएदुस्सिमतैन” में पेश किया है। सैयद बह़्रानी शीओ़ं के तरीक़े से अअ़्मश से और अअ़्मश ने अ़तीया से और अ़तीया ने इब्ने ख़ुद्री से और इसी तरह़ साह़ेबे किताबे अरबई़न ने अपनी किताब की चालीसवीं जिल्द में २८ ह़दीस को इस किताब में और ख़तीब ख़ारज़्मी ने अपनी सनद जाबिर इब्ने अ़ब्दुल्लाह अन्सारी से नक़्ल करते हैं।
सुयूती अपनी तफ़सीर में इस आयत के ज़ैल में चार ह़दीसें अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम और उनके शीओ़ं के तअ़ल्लुक़ से नक़्ल करते हैं और इससे पहले कहते हैं:
इब्ने मरदूयह, आ़एशा से मुत्तसिल सनद के साथ, रवायत करते हैं कि आ़एशा कहती हैं: मैंने रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से सुना मैंने अ़र्ज किया अल्लाह के नज़्दीक सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला शख़्स कौन है? आप ने फ़रमाया: ऐ आ़एशा! क्या तुम ने येह आयत नहीं पढ़ी: वोह लोग जो ईमान लाते हैं और नेक अअ़्माल अन्जाम देते हैं यही लोग काएनात के सबसे बेहतरीन अफ़राद हैं?
पहली ह़दीस
इब्ने अ़साकिर ने जो ह़दीस ज़िक्र की है येह वही ह़दीस है जो इससे पहले अमाली, अरबई़न, मनाक़िबे ख़ारज़्मी और फ़राएदुस्सिम्तैन और अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने शूरा के सामने एह़्तेजाज करते हुए पेश की है। इब्ने अ़साकिर का सुन्नियों के बड़े उ़लमा में शुमार होता है।
दूसरी ह़दीस
इब्ने अ़दी और इब्ने अ़साकिर, अबू सई़द ख़ुद्री से ह़दीस मर्फ़ूअ़् से रवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया: अ़ली अ़लैहिस्सलाम काएनात के सबसे बेहतर फ़र्द हैं।
तीसरी ह़दीस
इब्ने अ़दी अपनी सनद से नक़्ल करते हुए कहते हैं कि इब्ने अ़ब्बास ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से नक़्ल किया है कि जब येह आयत नाज़िल हुई तो आप ने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम से फ़रमाया: तुम और तुम्हारे शीआ़ क़यामत के दिन इस ह़ालत में कि तुम लोग “अल्लाह” से राज़ी हो और अल्लाह तुम लोगों से राज़ी है, वारिद होंगे।
चौथी ह़दीस
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम से रवायत हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मुझ से फ़रमाया: क्या आप ने इस आयत को नहीं सुना है? ख़ैरुल बरीया इस आयत में तुम और तुम्हारे शीआ़ हैं। मेरा और तुम्हारा वअ़्दा ह़ौज़े कौसर का किनारा होगा। जब मैं उम्मतों का ह़िसाब लेने आऊँगा और आप उस वक़्त सफ़ेद चेहरे वाले और पाकीज़ा अफ़राद के नाम से बुलाए जाएँगे।
ख़ारज़्मी ने मनाक़िब की सत्रह्वीं (१७वीं) फ़स्ल में इसी को अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम से नक़्ल किया है। लेकिन इस ह़दीस के ज़ैल में जाअतल ओमम लिल ह़िसाब ज़िक्र किया है।
इसी तरह़ कुछ रवायात में, शीआ़ और सुन्नी किताबों में इस आयत का मिस्दाक़ बयान किया गया है।
इमाम सादिक़ अ़लैहिस्सलाम से रवायत है कि एक दिन ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से उम्मे सलमा के घर मिलने गए। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने आप को देखा तो आप ने फ़रमाया: ऐ अ़ली! आप की ह़ालत उस वक़्त क्या होगी जब सारी उम्मतों को जमअ़् किया जाएगा और अ़द्ल–ओ–इन्साफ़ का तराज़ू नस्ब किया जाएगा और लोग ह़िसाब–ओ–किताब के लिए आमादा होंगे। येह सुनकर अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की आँखों से मोतियों की झड़ी लग गई। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने सवाल किया: ऐ अ़ली! आप क्यों रो रहे हैं। अल्लाह की क़सम! उस दिन आप और आप के शीआ़ सफ़ेद चेहरों और सैराब होकर मैदाने मह़शर में ह़ाज़िर होंगे उनके चेहरे शादाब और मुस्कुराते हुए होंगे और उस दिन आप के दुश्मनों को ह़ाज़िर किया जाएगा जबकि उनके चेहरे सियाह और वोह लोग शक़ी और उनकी आख़ेरत ख़राब होगी और उन पर अल्लाह का अ़ज़ाब नाज़िल होगा। क्या तुम ने नहीं सुना है कि अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है:
इन्नल लज़ी–न आमनू व अ़मेलुस्सालेह़ाते उलाए–क हुम ख़ैरुल बरीयते
इसका मिस्दाक़ आप और आप के शीआ़ हैं लेकिन वोह लोग जो काफ़िर हो गए हैं और हमारी फ़ज़ीलतों का इन्कार करते हैं, वोह बदतरीन लोग हैं। उलाए–क हुम शर्रुल बरीयते? और येह गिरोह तुम्हारे दुश्मन हैं।
यहाँ पर एक क़ाबिले ज़िक्र नुक्ता पाया जाता है वोह येह है कि ईमान और उसके साथ मोअ्मिनीन मुख़्तलिफ़ मरातिब के ह़ामिल हैं उन में से हर एक ख़ास रुत्बे पर फ़ाएज़ है और हर एक के लिए एक ख़ास जगह मुअ़य्यन है। इन रवायतों को देखते हुए अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और आप के शीआ़ इस गिरोह के सद्र नशीन नबूवत के बअ़्द हैं यअ़्नी जब नबी अकरम रिसालत पर मब्ऊ़स हुए और इस्लाम ने अपने से पहले दीन को नस्ख़ कर दिया तो मुसलमान वाक़ई़ मोअ्मिन बन गए और उन्हीं में ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम और आप के शीआ़ हैं जिन्हें सिर्फ़ हम वाक़ई़ तौर पर ख़ैरुल बरीया कह सकते हैं।
बअ़्ज़ ह़ज़रात येह एअ़्तेराज़ कर सकते हैं कि इस आयत की शाने नुज़ूल में येह बात दर्ज की गई है कि आयत अल्लाह के घर में नाज़िल हुई जबकि येह सूरह मदनी है। इसका जवाब येह है कि बहुत से सूरे और आयतें मुतअ़द्दिद बार नाज़िल हुई हैं और अह्ले सुन्नत के बड़े बड़े उ़लमा इस बात का एअ़्तेराफ़ करते हैं इसलिए मुम्किन है कि येह आयत मिस्दाक़ को वाज़ेह़ तौर पर बताने के लिए नाज़िल हुई हो इसके अ़लावा येह भी मुम्किन है कि इस आयत का नुज़ूल पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के किसी सफ़र में हुआ जो आप ने मदीना से मक्का की तरफ़ किया है ख़ास तौर पर जब इसके रावी जाबिर इब्ने अ़ब्दुल्लाह अन्सारी हैं, जो आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से मदीना ही में मुलह़क़ हुए हैं। इस बेना पर इस तरह़ की कई आयतों को मदनी, मुत्लक़ तौर पर, कह देना बई़द है।
इन अह़ादीस में से कुछ ह़दीसों को इब्ने ह़जर ने अपनी किताब “सवाए़क़े मुह़रेका” में और कुछ को मोह़म्मद शबलंजी ने “नूरुल अब्सार” में ज़िक्र किया है। जलालुद्दीन सियूती ने अपनी तफ़सीर “दुर्रुल मन्सूर” में भी कुछ अह़ादीस का ज़िक्र किया है।
ख़ुलासा येह है कि ऊपर ज़िक्र की गई अह़ादीस बहुत मशहूर और मअ़्रूफ़ हैं जिन्हें आ़म तौर से उ़लमा, इस्लामी इस्कालर ने क़बूल किया है और येह अ़ज़ीम फ़ज़ीलत और कमाल ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम के लिए है। ज़िम्नन इन रवायतों से येह ह़क़ीक़त बहुत अच्छी तरह़ वाज़ेह़ हो जाती है कि लफ़्ज़े शीआ़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ज़माने में ख़ुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ज़रीए़ मुसलमानों के दरमियान नश्र किया गया है और अ़ली अ़लैहिस्सलाम के फ़रमाँबरदारों की तरफ़ इशारा करता है।
ख़ुदावन्द आ़लम की बारगाह में दस्त ब दुआ़ हैं कि अल्लाह तआ़ला तमाम मोअ्मिनीन को अ़ली अ़लैहिस्सलाम के शीओ़ं में क़रार दे और वारिसे ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमाए और हम सब को आक़ा के ह़क़ीक़ी ग़ुलामों में शुमार फ़रमाए। आमीन या रब्बल आ़लमीन।
ख़ुत्बए ग़दीर के बअ़्ज़ अहम नुकात
अहम्मीयते इमामत
अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इमामत–ओ–वेलायत दीन का वोह अहम सुतून है जिसकी बुनियाद पर दीन की इ़मारत क़ाएम है। इस रुक्न के बग़ैर दीन की इ़मारत न सिर्फ़ येह कि नाक़िस है बल्कि वोह दीन ही नहीं है जो ख़ुदावन्द आ़लम ने ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल फ़रमाया था। येह बात ज़ेह्न में रहे कि अरकाने दीन क़र्ज़ की रक़म की तरह़ नहीं है। अगर सौ रूपये क़र्ज़ लिए हैं और उस में से कुछ अदा कर दिया मसलन पचास रूपये अदा कर दिए है तो निस्फ़ की अदाएगी होगी और हम निस्फ़ क़र्ज़ से बरीयुज़्ज़िम्मा हो गए। इस निस्फ़ के बारे में अब हम से सवाल नहीं किया जाएगा। अरकाने दीन नमाज़े सुब्ह़ की तरह़ हैं। अगर एक भी रकअ़त छोड़ दें या एक भी रकअ़त तर्क कर दी तो गोया नमाज़ पढ़ी ही नहीं। सुब्ह़ की नमाज़ उस वक़्त अदा होगी और हम उस वक़्त नमाज़े सुब्ह़ की ज़िम्मेदारी से बरीयुज़्ज़िम्मा होंगे जब हम तमाम अरकान वाजिबात के साथ अदा करेंगे। वेलायत–ओ–इमामते अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम दीन की बुनियाद और रुक्न है। अगर येह रुक्न उस तरह़ अदा नहीं किया गया जिस तरह़ ख़ुदावन्द आ़लम ने नाज़िल किया है, तो हमारे पास ख़ुदा का नाज़िल कर्दा इस्लाम नहीं है। वेलायत–ओ–इमामते इमाम इस क़द्र अहम है कि ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़े अव्वल से इसका न सिर्फ़ एअ़्लान किया बल्कि इसकी अहम्मीयत को बयान किया।
ख़ुत्बए ग़दीर
ख़ुत्बए ग़दीर एअ़्लाने वेलायत का रोशन सूरज है जो आज भी अपनी तमाम ख़ूसूसियात के साथ चमक रहा है और तमाम लोगों को हिदायत का रास्ता दिखा रहा है। ख़ुत्बए ग़दीर अपनी सनदों के साथ मोअ़्तबर तरीन किताबों में मौजूद है। इसकी सनद इस क़द्र मुस्तह़्कम है जिसमें शक की कोई गुन्जाइश नहीं है मगर इस तरह़ जिस तरह़ लोग दोपहर में सूरज के वुजूद का इन्कार करें। उ़लमा ने इस सिलसिले में इस क़द्र दक़ीक़ बह़्सें की हैं जिसकी कोई मिसाल नहीं है।
सवाल: जब वाक़ेअ़ए ग़दीर, ख़ुत्बए ग़दीर, ह़दीसे ग़दीर इस क़द्र मुस्तनद है और इसकी दलालत इस क़द्र वाज़ेह़ है तो लोग इसका इन्कार क्यों करते हैं? और इसकी तौजीह क्यों करते हैं?
जवाब: इस वक़्त येह ख़ुत्बए ग़दीर, ह़दीसे ग़दीर मुख़्तलिफ़ वास्तों से हम तक पहुँची है जिन लोगों ने ख़ुद अपने कान से इस ख़ुत्बे और इस ह़दीस को सुना था और इस पर ख़ुदा को गवाह भी क़रार दिया था, जब उन लोगों ने फ़ौरन भुला दिया और उस पर अ़मल नहीं किया तो आज लोगों से क्या शिकायत जबकि येह लोग उन्हीं इन्कार करने वालों के रास्ते पर चल रहे हैं।
ख़ुत्बए ग़दीर – ह़दीसे क़ुद्सी
इस तारीख़ी ख़ुत्बे के आग़ाज़ में ह़ज़रत इमाम मोह़म्मद बाक़िर अ़लैहिस्सलाम ने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत के बारे में जिब्रईल अमीन की ज़बानी ख़ुदावन्द आ़लम का ह़ुक्म बयान फ़रमाया है इस बेना पर ख़ुत्बए ग़दीर का येह जुम्ला ह़दीसे क़ुद्सी है, कलामे एलाही है। जिब्रईल अमीन ने ख़ुदावन्द आ़लम का पैग़ाम इस तरह़ बयान किया है:
“आप के पास जो गुज़श्ता अम्बिया की निशानियाँ हैं। आप उसे अपने जानशीन और मेरी मख़्लूक़ात पर ह़ुज्जते बालिग़ा अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम के सिपुर्द कर दें। उनको लोगों के लिए परचमे हिदायत क़रार दें और उनके अ़ह्द–ओ–पैमान की तज्दीद करें और उनको इस अ़ह्द–ओ–पैमान की याद दिलाएँ जो मैंने उन से लिया है।
मैंने उन लोगों से अपने वली और उनके सरपरस्त और हर मोअ्मिन मर्द और मोअ्मिना औ़रत से अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत का अ़ह्द लिया है।”
यअ़्नी वेलायते ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम कोई आ़म अ़ह्द–ओ–पैमान नहीं है, येह ख़ुदा का अ़ह्द–ओ–पैमान है। इस अ़ह्द–ओ–पैमान की वफ़ादारी ख़ुदा के अ़ह्द–ओ–पैमान की वफ़ादारी है और इससे बेवफ़ाई ख़ुदा से बेवफ़ाई है और ख़ुदा से बेवफ़ाई वही कर सकता है जो या ख़ुदा पर ईमान नहीं रखता या क़यामत पर।
“मैंने अपने औलिया की वेलायत और अपने दुश्मनों की दुश्मनी और अपनी नेअ़्मतों के इत्माम और दीन की तक्मील के बअ़्द अपने अम्बिया को दुनिया से वापस बुलाया।”
यही मेरी तौह़ीद और मेरे दीन की तकमील है और मेरी मख़्लूक़ात पर मेरी नेअ़्मतों का इतमाम है कि मेरे वली की पैरवी करें और उसकी एताअ़त करें।
“लोगों को येह मअ़्लूम होना चाहिए कि मैंने अपनी ज़मीन को अपने वली और सरपरस्त के बग़ैर क़रार नहीं दिया है। आज मैंने अपने वली और तमाम मोअ्मिन और मोअ्मिना के वली मेरे बन्दे मेरे नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के वसी और उनके जानशीन अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत की बेना पर मैंने तुम्हारे लिए दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेअ़्मत तमाम की और तुम्हारे लिए दीने इस्लाम से राज़ी हुआ। येह मेरी मख़्लूक़ात पर मेरी ह़ुज्जते बालिग़ा हैं उनकी एताअ़त–ओ–पैरवी मेरे नबी मोह़म्मद की एताअ़त–ओ–पैरवी है। मेरे नबी की एताअ़त मेरी एताअ़त है, जिसने उनकी (अ़ली अ़लैहिस्सलाम की) एताअ़त की, उसने मेरी एताअ़त की और जिसने उनकी (अ़ली अ़लैहिस्सलाम की) नाफ़रमानी की, उसने मेरी नाफ़रमानी की और मैंने उनको अपने और अपनी मख़्लूक़ात के दरमियान परचमे हिदायत बनाया है।
जो उनकी मअ़्रेफ़त रखता है वोह मोअ्मिन है जो उनका इन्कार करे वोह काफ़िर है जो उनकी बैअ़त के साथ किसी और की बैअ़त करे वोह मुश्रिक है। जो मैदाने क़यामत में उनकी वेलायत के साथ मुझ से मुलाक़ात करेगा वोह जन्नत में जाएगा और जो मैदाने क़यामत में उनकी अ़दावत के साथ मुलाक़ात करेगा वोह जहन्नम में जाएगा।”
इस ह़दीसे क़ुद्सी में जिन अहम बातों का तज़्केरा ख़ुदावन्द आ़लम ने फ़रमाया है, उन में से चन्द का ज़िक्र करते हैं:
१) पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के पास जो गुज़श्ता अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम की निशानियाँ और मीरास थी, वोह सब ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम के सिपुर्द कर दीं।
२) ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत–ओ–इमामत का अ़ह्द–ओ–पैमान पहले से लिया जा चुका है। ख़ुदावन्द आ़लम ने आलमे अलस्त में हर एक से येह अ़ह्द–ओ–पैमान ले लिया है। हाँ! अ़ह्द–ओ–पैमान जो दअ़्वते ज़ुलअ़शीरा से आज तक बार बार लिया जा चुका है, उसकी तज्दीद की जा रही है।
३) दीन, औलियाए ख़ुदा की मोह़ब्बत और उनके दुश्मनों की दुश्मनी से कामिल होता है।
४) ज़मीन कभी ह़ुज्जते ख़ुदा के वजूद से ख़ाली नहीं है।
५) दीन की तक्मील नेअ़्मतों का इत्माम और दीने इस्लाम से ख़ुदा की रज़ा–ओ–ख़ुशनूदी की वजह ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत है।
६) ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की एताअ़त रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एताअ़त और रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एताअ़त ख़ुदा की एताअ़त है।
७) ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की नाफ़रमानी–ओ–मुख़ालेफ़त ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की नाफ़रमानी–ओ–मुख़ालेफ़त और ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की नाफ़रमानी–ओ–मुख़ालेफ़त ख़ुदा की नाफ़रमानी–ओ–मुख़ालेफ़त है।
लेहाज़ा हर वोह शख़्स जो ख़ुदा और रसूल की एताअ़त करना चाहता है और उनकी मुख़ालेफ़त से मह़्फ़ूज़ रहना चाहता है, उसके लिए ज़रूरी है कि वोह ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की एताअ़त करता रहे और उनकी मुख़ालेफ़त से परहेज़ करता रहे।
८) जो ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की मअ़्रेफ़त रखता है, वोह मोअ्मिन है।
९) जो ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम का इन्कार करे, वोह काफ़िर है।
१०) जो ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की बैअ़त के साथ साथ किसी और की बैअ़त करे, वोह मुश्रिक है।
११) जो मैदाने क़यामत में ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत के साथ आएगा, बस वही जन्नत में जाएगा।
१२) जो मैदाने क़यामत में ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की दुश्मनी के साथ आएगा, उसका ठिकाना जहन्नम होगा।
ज़मानते ख़ुदा
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम इब्तेदाए तब्लीग़े रेसालत से ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की ख़ेलाफ़त–ओ–वेलायत का एअ़्लान करते आए थे। मुनाफ़ेक़ीन की साज़िशों से ख़ूब अच्छी तरह़ वाक़िफ़ थे। वोह बार बार ख़ुदा से इस लिए ज़मानत की दरख़ास्त कर रहे थे कि उनकी वफ़ात के बअ़्द येह अहम एअ़्लान कहीं मुनाफ़िक़ों की साज़िशों का शिकार न हो जाए और येह आख़री दीन कहीं इस तरह़ अपने लोगों के ज़रीए़ तह़्रीफ़ का शिकार न हो जाए जिस तरह़ इससे पहले जनाब मूसा अ़लैहिस्सलाम और जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम का दीन अपने ही लोगों के हाथों तह़्रीफ़ का शिकार हुआ था। येह ह़क़ीक़त है कि इस वक़्त जो यहूदियत और ई़साइयत है, वोह नहीं है जो जनाब मूसा अ़लैहिस्सलाम और जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम लेकर आए थे। ख़ुदावन्द आ़लम ने वल्लाहो यअ़्सेमो–क मिनन्नास (ख़ुदावन्द आ़लम आप को लोगों से मअ़्सूम रखेगा), यहाँ ख़ुदा ने यह़्फ़ेज़ो–क (ख़ुदा आप को मह़्फ़ूज़ रखेगा) नहीं फ़रमाया बल्कि ‘इ़स्म’ इस्तेअ़्माल किया है। यअ़्नी ख़ुदा इस दीन को तह़्रीफ़ से मह़्फ़ूज़ रखते हुए इसकी इ़स्मत को बाक़ी रखेगा। मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम की वेलायत दीन की इ़स्मत का सबब है।
ग़दीरी इस्लाम अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इ़स्मत–ओ–वेलायत की बेना पर आज हर तरह़ की तह़्रीफ़ से मह़्फ़ूज़ है।
एअ़्लाने वेलायते आ़म्मा
ख़ुदावन्द आ़लम की तरफ़ से ज़मानत मिलने से दीन तह़्रीफ़ से मह़्फ़ूज़ रहेगा। मुनाफ़ेक़ीन की साज़िश कामियाब नहीं होंगी। ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अस्ह़ाब की एक कसीर तअ़्दाद (बअ़्ज़ मुवर्रेख़ीन ने एक लाख से ज़्यादा तअ़्दाद बताई है) के सामने तारीख़ी ख़ुत्बे का आग़ाज़ फ़रमाया। इब्तेदा में तौह़ीद के बलन्द तरीन मआ़रिफ़ बयान फ़रमाए। तौह़ीद तमाम इस्लामी तअ़्लीमात की असास और बुनियाद है इसके बअ़्द फ़रमाया:
“मैं आज यहाँ हर एक के लिए, हर गोरे काले पर येह वाज़ेह़ कर देना चाहता हूँ और येह एअ़्लान करता हूँ अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम मेरे भाई, मेरे वसी, मेरे जानशीन और मेरे बअ़्द इमाम हैं। उनको मुझसे वही निस्बत ह़ासिल है जो हारून को जनाब मूसा से ह़ासिल थी।”
मुनाफ़ेक़ीन का तज़्केरा
किसी भी मसलक की कामियाबी के लिए, किसी भी मिशन की कामियाबी के लिए दुश्मनों की शनाख़्त के साथ साथ मुनाफ़ेक़ीन की शनाख़्त भी बहुत ज़रूरी है बल्कि मुनाफ़ेक़ीन की शनाख़्त दुश्मनों की शनाख़्त से ज़्यादा ज़रूरी है इसलिए कि अन्दरूनी दुश्मन बाहरी दुश्मन से ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को अपने अस्ह़ाब में मुनाफ़ेक़ीन का बाक़ाए़दा इ़ल्म था। इस तारीख़ी ख़ुत्बे में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने मुनाफ़ेक़ीन का बाक़ाए़दा ज़िक्र किया है। ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को सिर्फ़ मुनाफ़ेक़ीन की मौजूदगी का इ़ल्म नहीं था बल्कि वोह उनको बाक़ाए़दा नाम ब नाम पहचानते थे। उन्होंने अपने वसीअ़् तरीन क़ल्ब और अख़्लाक़े अ़ज़ीम की बेना पर मज्मेअ़् में मुनाफ़ेक़ीन का नाम नहीं लिया। ख़ुत्बे का येह ह़िस्सा मुलाह़ेज़ा हो:
“मुझे मअ़्लूम है मुत्तक़ी और परहेज़गार अफ़राद की तअ़्दाद कम है, मुनाफ़ेक़ीन की तअ़्दाद और गुनहगारों की तबाहकारियाँ ज़्यादा हैं, इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाने वाले भी कम नहीं हैं।” मुनाफ़ेक़ीन की ख़ुसूसियात का तज़्केरा करने के बअ़्द फ़रमाते हैं:
“अगर मैं चाहूँ तो इन में से एक एक नाम बता सकता हूँ। अगर इशारा करना चाहूँ तो एक एक की तरफ़ इशारा कर सकता हूँ एक एक की निशानदेही कर सकता हूँ लेकिन येह काम मेरी शराफ़त के मुताबिक़ नहीं हैं और ख़ुदा भी इससे राज़ी नहीं है। ख़ुदावन्द आ़लम ने जिस बात के पहुँचाने का ह़ुक्म दिया है मैं उसको पहुँचा देता हूँ।”
मुनाफ़ेक़ीन की मौजूदगी और उनकी साज़िशों के इ़ल्म से इस सवाल का जवाब वाज़ेह़ हो जाता है इस तरह़ ह़ालात के ख़राब होने का अन्देशा ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को पहले ही से था जिसका ज़िक्र ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बार बार इस तरह़ किया था “मैं देखता हूँ तुम मेरे बअ़्द मेरे अह्लेबैत से किस तरह़ पेश आते हो।”
वेलायते इमाम और इमामते अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम और दीगर ग्यारह इमामों की इमामत का एअ़्लान इस तरह़ फ़रमाया:
“ऐ लोगो! यक़ीनन ख़ुदावन्द आ़लम ने अ़ली अ़लैहिस्सलाम को तुम्हारा वली–ओ–इमाम मुअ़य्यन किया है और उनकी मुत्लक़ एताअ़त हम पर वाजिब की है। यहाँ तमाम मुहाजेरीन पर, अन्सार और उसी तरह़ उनकी पैरवी करने वालों पर वाजिब–ओ–लाज़िम है, ह़ाज़िर पर, ग़ाएब पर, अ़जम पर, अ़रब पर, आज़ाद पर, ग़ुलाम पर, छोटे पर, बड़े पर, गोरे पर, काले पर वाजिब है। हर ख़ुदा परस्त पर उन का ह़ुक्म नाफ़िज़ है उनकी बात ज़रूरी है उनका कहा मानना ज़रूरी है।
उनकी मुख़ालेफ़त करने वाले पर लअ़्नत है, उनकी एताअ़त करने वाले पर रह़मत है। जो शख़्स उनकी तस्दीक़ करेगा उनकी बातों को सुनेगा और उनकी एताअ़त करेगा ख़ुदावन्द आ़लम उसकी गुनाहों को मआ़फ़ कर देगा।
….. ख़ुदावन्द आ़लम ने मुझे तमाम ह़राम–ओ–ह़लाल का इ़ल्म दिया है और जो कुछ ख़ुदा ने मुझे अपनी किताब का इ़ल्म दिया है और जो कुछ ह़लाल–ओ–ह़राम का इ़ल्म दिया है वोह सब कुछ अ़ली अ़लैहिस्सलाम को दे दिया है।
ऐ लोगो! कोई ऐसा इ़ल्म नहीं है जो ख़ुदा ने मुझे न दिया हो ख़ुदा ने जो भी इ़ल्म मुझे तअ़्लीम दिया है वोह सब मैंने इमामुल मुत्तक़ीन को दे दिया है। मैंने सारा इ़ल्म अ़ली अ़लैहिस्सलाम को तअ़्लीम दे दिया है, वही इमामे मुबीन हैं।”
वेलायते अ़ली अ़लैहिस्सलाम के इक़रार के बग़ैर तौबा क़बूल नहीं होगी
“ऐ लोगो! ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम को हर एक पर फ़ज़ीलत दो क्योंकि ख़ुदा ने उनको फ़ज़ीलत दी है ख़ुदा ने उनको मन्सूब किया है उनके मन्सब को क़बूल करो और उनके सामने तस्लीम रहो।
ऐ लोगो! येह ख़ुदा के मुअ़य्यन कर्दा इमाम हैं। जो शख़्स उनकी वेलायत का इन्कार करेगा, ख़ुदावन्द आ़लम हरगिज़ हरगिज़ उसकी तौबा क़बूल नहीं करेगा और ख़ुदा उसको हरगिज़ मआ़फ़ नहीं करेगा। जो ख़ुदा के ह़ुक्म की मुख़ालेफ़त करे, ख़ुदा के लिए ज़रूरी है वोह उसके साथ उसी तरह़ का बर्ताव करे और ख़ुदा उसको अबदी अबदी अ़ज़ाब में गिरफ़्तार करे और हमेशा हमेशा उसको अ़ज़ाब में मुब्तेला करे। उनकी मुख़ालेफ़त हरगिज़ मत करो वरना जहन्नम में डाल दिए जाओगे जिसकार् इंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जो इन्कार करने वालों के लिए तैयार की गई है।”
इन जुम्लों पर ग़ौर फ़रमाएँ ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत का इन्कार करने की बेना पर न तौबा क़बूल होगी और न ख़ुदा ही मआ़फ़ करेगा। अन्जाम में अबदी अ़ज़ाब है।
वेलायते अ़ली अ़लैहिस्सलाम के इक़रार का मतलब येह नहीं है कि हम उनको वली तस्लीम करें बल्कि वेलायते अ़ली अ़लैहिस्सलाम का मतलब येह है कि हम उस वेलायत को तस्लीम करें जो ख़ुदा ने उनके लिए क़रार दी है। जिस तरह़ ख़ुदा ने ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के अ़लावा किसी और को ख़ातेमुन्नबीयीन क़रार नहीं दिया है, अगर कोई ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की नबूवत को तस्लीम करते हुए किसी और की नबूवत का क़ाएल हो वोह ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर ईमान नहीं लाया है यअ़्नी दूसरों की बालादस्ती का क़ाएल हो उसने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की इस वेलायत को तस्लीम नहीं किया है जो ख़ुदा ने उनके लिए क़रार दी है। येह बिल्कुल उसी तरह़ है जिस तरह़ कोई शख़्स उस तरह़ नमाज़ न पढ़े जिस तरह़ ख़ुदा ने नाज़िल की है।
नुज़ूले रिज़्क़ और बक़ाए काएनात
ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत सिर्फ़ चन्द बातों में मुन्हसिर नहीं है बल्कि इसका दाएरा सारी काएनात को शामिल है। इसी ख़ुत्बए ग़दीर में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं:
“ऐ लोगो! अ़ली अ़लैहिस्सलाम को हर एक पर बरतरी दो। तमाम मर्द–ओ–औ़रत में मेरे बअ़्द सबसे अफ़ज़ल अ़ली अ़लैहिस्सलाम हैं। हमारी बेना पर रिज़्क़ नाज़िल होता है और हमारी बेना पर मख़्लूक़ात बाक़ी हैं।
वोह शख़्स मलऊ़न है मलऊ़न है उस पर अल्लाह का ग़ज़ब है उस पर अल्लाह का ग़ज़ब है जो मेरी इस बात को रद्द करे और क़बूल न करे।
आगाह हो जाओ जिब्रईल ने ख़ुदा की तरफ़ से मुझे येह ख़बर दी है कि ख़ुदा फ़रमाता है जिसने अ़ली अ़लैहिस्सलाम से दुश्मनी की और उनकी वेलायत को क़बूल नहीं किया उस पर मेरी लअ़्नत और ग़ज़ब है। देखो कल तुम अपने लिए क़यामत में क्या भेजते हो।”
ख़ुत्बे के इस ह़िस्से में एक तरफ़ नुज़ूले रिज़्क़ और बक़ाए काएनात उन ह़ज़रात की बेना पर है दूसरी तरफ़ बार बार उन लोगों को ख़ुदा की लअ़्नत और ग़ज़ब का मुस्तह़क़ क़रार दिया गया है जो ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत को क़बूल नहीं करते हैं।
येह बात ख़ूब अच्छी तरह़ ज़ेह्न में रहे कि ख़ुदा और रसूल के कलेमात हरगिज़ जज़्बात के ताबेअ़् नहीं होते हैं और कोई शख़्स उसी वक़्त ख़ुदा की लअ़्नत और ग़ज़ब का मुस्तह़क़ क़रार पाता है जब ख़ुदा की वसीअ़् रह़्मत के सारे दरवाज़े बन्द हो जाते हैं। ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत की इन्कार वोह गुनाहे अ़ज़ीम है जो रह़्मते ख़ुदा वन्दी के तमाम दरवाज़े बन्द कर देती है।
इन्कारे वेलायत से अअ़्माल बर्बाद हो जाते हैं
येह बात अ़र्ज़ कर चुके हैं ग़दीर में सिर्फ़ ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत–ओ–इमामत का एअ़्लान नहीं किया गया बल्कि तमाम बारह इमामों की वेलायत–ओ–इमामत का एअ़्लान किया गया है।
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं:
“ऐ लोगो! ख़ुदावन्द आ़लम ने अ़ली अ़लैहिस्सलाम की इमामत की बेना पर तुम्हारे दीन को कामिल किया है।
देखो जो मैदाने क़यामत में जिस दिन ख़ुदा के सामने अअ़्माल पेश किए जाएँगे इस तरह़ आए कि वोह अ़ली अ़लैहिस्सलाम की इमामत का क़ाएल न हो और उनकी सुल्ब से मेरी औलाद की इमामत का क़ाएल न हो, उसके सारे अअ़्माल ह़ब्त हो जाएँगे, बर्बाद हो जाएँगे और वोह हमेशा जहन्नम में रहेगा। न उनको मोह्लत दी जाएगी और न ही अ़ज़ाब में तख़्फ़ीफ़ होगी।”
इन्कारे वेलायत का सबब – ह़सद
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अपने इस तारीख़ी ख़ुत्बे में एक अ़ज़ीम ह़क़ीक़त की तरफ़ मुतवज्जेह किया। शैतान ने आदम अ़लैहिस्सलाम से ह़सद किया और उसका अन्जाम क्या हुआ। अगर किसी ने ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत–ओ–इमामत से ह़सद किया तो उसका भी अन्जाम शैतान की तरह़ होगा।
“ऐ लोगो! शैतान ने अपने ह़सद की बेना पर ह़ज़रत आदम को जन्नत में रहने नहीं दिया। देखो ह़सद मत करना वरना तुम्हारे सारे अअ़्माल बर्बाद हो जाएँगे और तुम्हारे क़दम फिसल जाएँगे। जनाब आदम (सफ़वतुल्लाह) अल्लाह के मुन्तख़ब बन्दे थे, एक तर्के औला की बेना पर ज़मीन पर भेजे गए तो तुम्हारा क्या ह़ाल होगा जब कि तुम तुम हो और तुम में कुछ लोग अल्लाह के दुश्मन हैं।
हाँ, याद रखो! अ़ली अ़लैहिस्सलाम से बुग़्ज़ वही रखेगा जो शक़ी–ओ–बदबख़्त होगा पस वही अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत को तस्लीम करेगा जो मुत्तक़ी और परहेज़गार होगा और वही उन पर ईमान लाएगा जो ख़ालिस मोअ्मिन होगा।”
नूरे ख़ुदा क़यामत तक नस्ले ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम में बाक़ी रहेगा
“ऐ लोगो! अल्लाह का नूर मेरी ज़ात में जारी–ओ–सारी है इसके बअ़्द येह अ़ली में जारी रहेगा उन के बअ़्द उनकी नस्ल में क़ाएम महदी तक जो ख़ुदा के तमाम ह़ुक़ूक़ और हमारे ह़ुक़ूक़ को ह़ासिल करेंगे ख़ुदावन्द आ़लम ने उनको दुनिया के तमाम कोताही करने वालों, दुश्मनों, मुख़ालेफ़ीन, ख़यानतकारों और ज़ालिमों पर ह़ुज्जत क़रार दिया।”
येह जुम्ले इस बात को बयान कर रहे हैं कि ख़ुदा ने जो नूरे हिदायत क़रार दिया है वोह ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़ाते अक़दस से है उनके बअ़्द ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम और उनके बअ़्द उनकी नस्ल में ह़ज़रत महदी क़ाएम अ़लैहिस्सलाम में क़यामत तक जारी रहेगा ख़ुदावन्द आ़लम ने इन ह़ज़रात को सारी काएनात पर ह़ुज्जत क़रार दिया है कोई तस्लीम करे या न करे इनका ह़ुज्जते ख़ुदा होना किसी के तस्लीम करने पर मुन्ह़सिर नहीं है। जो तस्लीम नहीं करेगा वोह ख़ुद अपना नुक़सान करेगा वोह ख़ुद जहन्नम में जाएगा।
जहन्नमी क़ाएदीन
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने जहाँ मैदाने ग़दीर में ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम और अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इमामत–ओ–वेलायत का एअ़्लान फ़रमाया वहीं लोगों को इस ह़क़ीक़त की तरफ़ मुतवज्जेह फ़रमाया कि कुछ लोग नाह़क़ ख़ेलाफ़त–ओ–क़यादत का दअ़्वा करेंगे इस तरह़ के तमाम लोग जहन्नमी इमाम हैं इमामुन्नार हैं।
“ऐ लोगो! अ़नक़रीब मेरे बअ़्द ऐसे इमाम रह़नुमाई करेंगे जो लोगों को जहन्नम की तरफ़ दअ़्वत देंगे। मैदाने क़यामत में उनका कोई नासिर–ओ–मददगार नहीं होगा।
ऐ लोगो! येह लोग उनकी मदद करने वाले उनकी पैरवी करने वाले उनका साथ देने वाले येह सब के सब जहन्नम के पस्त तरीन दर्जे में होंगे और तकब्बुर करने वालों का क्या बुरा ठिकाना होगा। येह लोग एक सह़ीफ़ा वाले हैं हर एक को अपना सह़ीफ़ा देखना चाहिए।”
अ़ल्लामा मजलिसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने बेह़ारुल अनवार जिल्द २८ सफ़ह़ा १०३ पर इस सह़ीफ़े का ज़िक्र तफ़सील से किया है जो अस्ह़ाब ने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की ख़ेलाफ़त के बारे में लिखा था। और येह तय किया था कि हम लोग बुनियादी तौर पर इस बात का इन्कार ही कर देंगे कि ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने किसी को अपने बअ़्द अपना जानशीन और उम्मत का इमाम मुअ़य्यन फ़रमाया है। अस्मा बिन्ते उ़मैस, ज़ौजए अबू बक्र, की रवायत है कि एक येह मुआ़हिदा भी मेरे घर में तह़्रीर किया गया। सई़द बिन आ़स ओमवी ने येह मुआ़हिदा तह़्रीर किया और अबू उ़बैदा जर्राह़ को सिपुर्द किया उन्होंने जाकर वहाँ उसको एक जगह रख दिया।
अ़ल्लामा मजलिसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने इसी जिल्द में उन वाक़ेआ़त का ज़िक्र फ़रमाया जो एअ़्लाने ग़दीर से रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की वफ़ात तक रूनुमा हुए जिससे अन्दाज़ा हो जाएगा कि लोगों ने किस तरह़ ख़ेलाफ़ते अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम का इन्कार करके ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम से ख़ेलाफ़त ग़स्ब करने की मुनज़्ज़म साज़िश की थी। अगर पहले बाक़ाएदा मन्सूबा न बनाया गया होता और तय शुदा प्रोगराम न होता तो सिर्फ़ दो से तीन दिन की मुद्दत में इस क़द्र उलट फेर न हुई होती। जनाब अ़ल्लामा मजलिसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने तह़्रीर फ़रमाया है ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को बाक़ाए़दा मुआ़हेदा का इ़ल्म था और वोह उन अफ़राद को भी ख़ूब पहचानते थे जो इस मुआ़हेदे में शरीक थे। ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने सिर्फ़ इसलिए कोई सख़्त एक़दाम नहीं किया ताकि दुश्मनाने इस्लाम येह न कहें जब मोह़म्मद को ह़ुकूमत–ओ–इक़्तेदार मिल गया तो अपनों को क़त्ल करना शुरूअ़् कर दिया।
दूसरी वजह शायद येह हो सकती है अगर कोई सख़्त इक़दाम करते तो इस आख़री उम्मत का इतना अ़ज़ीम इम्तेह़ान किस तरह़ होता।
वेलायत–ओ–इमामत का उ़मूमी एअ़्लान और ग़ासेबीन पर लअ़्नत
इसके बअ़्द ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने इस तरह़ वेलायत–ओ–इमामत की उ़मूमीयत का एअ़्लान फ़रमाया किसी एक को इन्कार की गुन्जाइश नहीं थी इसके साथ साथ इस बात की भी वज़ाह़त फ़रमाई कि कुछ लोग इस वेलायत को ग़स्ब करेंगे और ख़ुदा की लअ़्नत के मुस्तह़क क़रार पाएँगे, फ़रमाते हैं:
“ऐ लोगो! मैं सुब्ह़े क़यामत तक इस इमामत–ओ–वेलायत को अपनी ज़ुर्रियत में क़रार दे रहा हूँ मुझे जिसकी तब्लीग़ का ह़ुक्म दिया गया था मैंने हर ह़ाज़िर–ओ–ग़ाएब पर ह़ुज्जत तमाम कर दी है। हर वोह शख़्स जो यहाँ मौजूद है और जो यहाँ मौजूद नहीं है जो अभी पैदा हो चुका है या अभी दुनिया में नहीं आया है सब पर ह़ुज्जत तमाम कर दी है जो लोग मौजूद हैं उनकी ज़िम्मेदारी है कि उन लोगों तक पैग़ाम पहुँचाते रहें जो यहाँ मौजूद नहीं हैं और क़यामत तक हर वालिद की ज़िम्मेदारी है कि अपनी औलाद तक इस पैग़ाम को पहुँचाता रहे।
हाँ कुछ लोग इसको ह़ुकूमत–ओ–सल्तनत क़रार देकर ग़स्ब करेंगे। जो लोग इसको ग़स्ब करें और जो इस काम में उनका साथ देंगे उन पर ख़ुदा की लअ़्नत है। ऐ इन्सान–ओ–जिन्नात! अन्क़रीब तुम्हारा ह़िसाब किताब होगा तुम पर जहन्नम के शोअ़्ले और पिघला हुआ तांबा बरसाया जाएगा और कोई तुम्हारी मदद करने वाला न होगा।”
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बार बार एअ़्लान फ़रमाया: येह वेलायत, इमामत–ओ–ख़ेलाफ़त सुब्ह़े क़यामत तक जारी रहेगी, अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की नस्ल में जारी रहेगी, कोई एक वेलायत और इमामत के क़बूल करने से मुस्तस्ना नहीं है। येह एअ़्लान सिर्फ़ उस मैदान और उस दिन से मख़्सूस नहीं है बल्कि सुब्ह़े क़यामत तक हर एक की ज़िम्मेदारी है कि आइन्दा नस्लों तक बाक़ाए़दा इस एअ़्लान को पहुँचाता रहे। येह इमामत नस्ल दर नस्ल मुन्तक़िल होती रहेगी। इस वक़्त जो लोग मिम्बरों से बराबर इस वेलायत का तज़्केरा कर रहे हैं, वोह ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एताअ़त कर रहे हैं। अगर किसी को एअ़्तेराज़ है, वोह ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को जवाब दे।
ह़ज़रत इमामे अ़स्र अ़लैहिस्सलाम की इमामत और ख़ुसूसियात का तज़्केरा
इस ख़ुत्बे में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की इमामत और वेलायत के साथ ह़ज़रत इमामे अ़स्र अ़लैहिस्सलाम की इमामत और वेलायत का ज़िक्र तफ़सील से फ़रमाया है। वोह शायद इसलिए कि इमामते अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इब्तेदा ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम और इन्तेहा ह़ज़रत इमाम महदी अ़लैहिस्सलाम हैं। येह वोह इब्तेदा और इन्तेहा है जिसके दरमियान में मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम के अ़लावा कोई दूसरा शामिल नहीं है। पूरी दुनिया में शायद एक फ़र्द भी ऐसा न हो जो पहला इमाम ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम और आख़री इमाम ह़ज़रत महदी अ़लैहिस्सलाम को तस्लीम करता हो और दरमियान में ग़ैर अह्लेबैत और अइम्मा मअ़्सूमीन अ़लैहस्सलाम के अ़लावा किसी और की इमामत का क़ाएल हो।
“ऐ लोगो! मैं नबी और अ़ली मेरे वसी हैं। सिलसिलए इमामत का आख़री इमाम हम में से क़ाएम महदी है।”
अब इसके बअ़्द ह़ज़रत इमाम महदी अ़लैहिस्सलाम की ख़ुसूसियात का ज़िक्र फ़रमाते हैं इस तरह़ सेफ़ात किसी और की बयान नहीं फ़रमाई है। इससे ह़ज़रत इमाम महदी अ़लैहिस्सलाम की अ़ज़मतों का पता चलता है। ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ह़ज़रत इमामे अ़स्र अ़लैहिस्सलाम की २५ ख़ुसूसियात बयान फ़रमाई हैं:
१) वोह दीन को ज़ाहिर और ग़ल्बा अ़ता करने वाले हैं।
२) हाँ वही ज़ालिमों से इन्तेक़ाम लेने वाले हैं।
३) वही कुफ़्र–ओ–शिर्क–ओ–ज़ुल्म के क़िल्ओ़ं को फ़त्ह़ करने और उनको मिस्मार करने वाले हैं।
४) वही हर क़बीले के मुश्रेकीन को क़त्ल करेंगे।
५) वही तमाम औलियाए ख़ुदा के ख़ून का बदला लेंगे।
६) वही दीने ख़ुदा की नुसरत–ओ–मदद करेंगे।
७) वही मअ़्रेफ़ते ख़ुदा के बह़्रे अ़मीक़ से सैराब करने वाले और शनावर हैं।
८) वोह हर साह़ेबे फ़ज़ीलत को उसकी फ़ज़ीलत के एअ़्तेबार से इज़्ज़त–ओ–मन्ज़ेलत देंगे।
९) वही जाहिलों को उनकी जिहालत के एअ़्तेबार से दर्जा देंगे।
१०) वही ख़ुदा के मुन्तख़ब और बेह्तरीन हैं।
११) वही तमाम उ़लूम के वारिस और उसका एह़ाता किए हुए हैं।
१२) वही सबको ख़ुदा के बारे में बाख़बर करेंगे और उसकी मअ़्रेफ़त अ़ता करेंगे।
१३) वही उसके ईमान की तरफ़ लोगों को मुतवज्जेह करेंगे।
१४) वही साह़ेबे अ़क़्ल और साबित क़दम हैं।
१५) ख़ुदावन्द आ़लम ने तमाम उमूर उनके ह़वाले कर दिए हैं।
१६) गुज़श्ता अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम ने उनके बारे में बशारत दी है।
१७) वही अल्लाह की बाक़ी ह़ुज्जत हैं।
१८) उनके बअ़्द कोई ख़ुदा की ह़ुज्जत नहीं है।
१९) ह़क़ बस उनके पास है।
२०) ख़ुदा का नूर बस उनके पास है।
२१) कोई उन पर ग़ालिब नहीं आएगा।
२२) वोह किसी एक से शिकस्त नहीं खाएँगे।
२३) ज़मीन पर बस वही अल्लाह के वली हैं।
२४) मख़्लूक़ात पर उसकी तरफ़ से ह़ाकिम हैं फ़ैसला करने वाले हैं।
२५) ख़ुदा के ज़ाहिर–ओ–बातिन उमूर के बस वही अमानतदार हैं।
ऐ लोगों! मैंने पूरी तरह़ बात वाज़ेह़ कर दी है और ख़ूब अच्छी तरह़ तुम को समझा दिया है मेरे बअ़्द येह तुम को समझाएँगे।
इस तरह़ ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने सुब्ह़े क़यामत तक अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इमामत–ओ–वेलायत का एअ़्लान फ़रमा दिया और सब पर ह़ुज्जत तमाम कर दी।
सबक़त ले जाने वाले कामियाब होंगे
ऐ लोगों! जो ख़ुदा की, रसूल की, अ़ली की और जिन इमामों का मैंने ज़िक्र किया है उन की पैरवी करेगा, वोह अ़ज़ीम तरीन कामियाबी पर फ़ाएज होगा।
ऐ लोगो! जो भी अ़ली की बैअ़त करने में सबक़त ले जाएगा और सबसे पहले उनकी वेलायत को क़बूल करेगा और अमीरुल मोअ्मेनीन कह कर उन को सलाम करेगा वही जन्नत की नेअ़्मतों से लुत्फ़ अन्दोज़ होगा और कामियाब होगा।
ख़ुत्बए ग़दीर से येह बात पूरी तरह़ वाज़ेह़ है:
१) अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की इमामत–ओ–वेलायत सुब्ह़े क़यामत तक जारी है।
२) अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के अ़लावा कोई और ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन नहीं है।
३) ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत हर एक पर वाजिब और ज़रूरी है।
४) सुब्ह़े क़यामत तक हर एक की शरई़ ज़िम्मेदारी है कि इस पैग़ामे वेलायत–ओ–इमामत को दूसरों तक पहुँचाता रहे।
५) जो इस वेलायत को क़बूल करेगा बस उसके अअ़्माल क़बूल होंगे।
६) जो इस वेलायत का इन्कार करेगा उसके तमाम अअ़्माल बर्बाद हो जाएँगे।
७) जो इस वेलायत को क़बूल करेगा ख़ुदा उससे राज़ी होगा।
८) जो इस वेलायत का इन्कार करेगा उस पर ख़ुदा की लअ़्नत और ग़ज़ब होगा।
९) मुनाफ़ेक़ीन के वुजूद से ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पूरी तरह़ वाक़िफ़ हैं।
१०) मुनाफ़ेक़ीन ने वेलायते अह्लेबैत के ख़िलाफ़ एक मुनज़्ज़म साज़िश तैयार की थी।
११) मुनाफ़ेक़ीन ने वेलायत के ख़िलाफ़ एक मुआ़हेदा तैयार किया था।
१२) ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ग़ासेबीन पर लअ़्नत की है।
१३) कुछ रह़नुमा–ओ–क़ाएद ऐसे हैं जो लोगों को जहन्नम की तरफ़ ले जाएँगे।
१४) ह़ज़रत वलीये अ़स्र अ़लैहिस्सलाम का तज़्केरा।
१५) ह़ज़रत इमाम महदी अ़लैहिस्सलाम की २५ ख़ुसूसियात का तज़्केरा।
१६) जो लोग इस वेलायत को क़बूल करने में सबक़त ले जाएँगे वही कामियाब होंगे।
ख़ुदावन्द आ़लम हम सब को इस वेलायत को दिल से क़बूल करने, उस पर अ़मल करने और बैअ़त करने में सबक़त ले जाने वालों में शुमार करे।
ख़ुदाया! दुनिया–ओ–आख़ेरत में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की शफ़ाअ़त नसीब फ़रमा और एक मर्तबा ग़दीर के दिन वारिसे ग़दीर के दस्ते मुबारक पर इस अ़ह्द की तज्दीद करने की सआ़दत मरह़मत फ़रमा। आमीन।