ग़दीर

हुज्जते मज़हब, मोअ़्‌जिज़ नुमा किताब “अ़बक़ातुल अनवार” का तआ़रुफ़

दीने इस्लाम और उसके मुख़्तलिफ़ मसाएल में जो मन्ज़ेलत-ओ-अहम्मीयत इमामत को ह़ासिल है वोह नेहायत दर्जा बलन्द और ग़ैर मअ़्‌मूली है। ह़ज़रत ख़ातेमुल अम्बिया सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने रेसालत के आग़ाज़े तब्लीग़ ही में वेलायत-ओ- जानशीनी के मसअले को पेश कर दिया था। और अइम्मए मअ़्‌सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम इमामत के मक़ाम-ओ-मन्ज़ेलत को मुसलसल […]

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रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने शेख़ैन को इस क़द्र अपने क़रीब क्यों आने दिया?

इस तारीख़ी ह़क़ीक़त से इन्कार नहीं किया जा सकता कि “शेख़ैन” यअ़्‌नी ख़लीफ़ए अव्वल–ओ–दुवुम दोनों का शुमार हिजरत करने वालों में होता है, यअ़्‌नी वोह गिरोह जिसने ह़ुज़ूर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की हिजरत से पहले ही मक्का में इस्लाम क़बूल कर लिया था। इस गिरोह का इस्लामी समाज में शुरूअ़्‌ से ही […]

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पैग़ामे ग़दीर इस्लामी इत्तेह़ाद का मह़्वर है

अगरचे वाक़अ़ए ग़दीर आज चौदह सौ साल से ज़्यादा अपना तारीख़ी सफ़र तय कर चुका है, मगर ह़क़ीक़ते ग़दीर हर रोज़ और आने वाले दिनों में हर उस मुसलमान के लिए दीनी अ़क़ीदे और आईनए इस्लाम–ओ–क़ुरआन और आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर ईमान रखने वाले सुन्नत पर अ़मल करने के तक़ाज़ों के […]

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वेलायत-ओ-बराअत

येह एक दिलचस्प ह़क़ीक़त है कि किसी भी मौज़ूअ़्‌ में अज़्दाद–ओ–तनाक़ुज़ात को बाहम यक्साँ मक़ाम देकर मुस्बत पह्लू से लेबासे ह़क़ीक़त नहीं पहनाया जा सकता ख़ाह वोह किसी शक्ल में हो जैसे अ़द्‌ल–ओ–ज़ुल्म, ख़ैर–ओ–शर…. इस्लाम ने एक ही को ह़क़ीक़त का उ़न्वान देकर अहम्मीयत दी है अ़द्‌ल पसन्दीदा है, ज़ुल्म नापसन्दीदा, ख़ैर मम्दूह़ है शर […]

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गो टू ऊपर