मोह़ब्बते अ़ली अ़लैहिस्सलाम – जुम्ला एअ़्तेक़ादात
अगर तमाम बनी आदम चाहें कि सिवाए अम्बियाए ए़ज़ाम अ़लैहिमुस्सलाम किसी और शख़्स को जामेअ़् जुम्ला फ़ज़ाएल का ह़ामिल साबित करें तो हरगिज़ किसी फ़र्दे बशर को न पाएंगे……..
……..बल्कि अगर येह कहा जाए कि हर नबी अ़लैहिस्सलाम में भी तमाम सिफ़ाते कमाल का साबित होना मुश्किल है, तो ह़क़ है।
लेकिन अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वोह ज़ात है जिसमें हर कमाल मौजूद है और जिस पर अम्बिया अ़लैहिमुस्सलाम भी रश्क करते हैं।
मौलाए काएनात ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम का नाम सुनते ही उनके चाहनेवालों के चेहरे खिल उठते हैं, आँखें रौशन हो जाती हैं, दिल मसरूर हो जाता है। अ़ली अ़लैहिस्सलाम का मक़ाम रेगिस्तान में नख़लिस्तान का मिस्ल है।
अल्लाह की जानिब से अ़ली अ़लैहिस्सलाम की मोह़ब्बत मोअ्मिन के लिए बेहतरीन नेअ़्मत है और इसी नेअ़्मत के “ज़िक्र” को पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ए़बादत कहा है। येह कैसे मुम्किन है कि एक मोअ्मिन ज़िक्रे अ़ली अ़लैहिस्सलाम तो करे और ज़िक्रे ख़ुदा को फ़रामोश कर दे?
दिल में अ़ली अ़लैहिस्सलाम की मोह़ब्बत है तो शुजाअ़त है, शुजाअ़त इन्सान को ऐसा बहादुर बनाती है कि बन्दा सिवाए अपने मअ़्बूद के किसी से नहीं डरता। ख़ौफ़े ख़ुदा ह़क़ की राह पर चलने की दअ़्वत देता है और ह़क़ अ़ली अ़लैहिस्सलाम के साथ है। अगर किसी को ह़क़ की मअ़्रेफ़त हुई तो अ़ली अ़लैहिस्सलाम की मअ़्रेफ़त हुई और वोह नजात पा गया। जो अ़ली अ़लैहिस्सलाम तक नहीं पहुँचा वोह ह़क़ से मुन्ह़रिफ़ हो गया और बेहिश्त से मह़्रूम हो गया।
रोज़े ग़दीर, इक्मालुद्दीन और इत्मामे नेअ़्मत पर जिन्होंने अ़ली अ़लैहिस्सलाम की मौलाइयत का एक़रार किया और बैअ़त करने के साथ साथ मुबारकबाद भी पेश की लेकिन मोह़ब्बत न होने की वजह से ह़क़ से दूर हो गए और अ़ली अ़लैहिस्सलाम से किनारा कशी एख़्तेयार की……वोह ज़लालत की वादी में गुम हो गए और सक़र ही उनका अबदी ठिकाना है।
जब ह़क़ का साथ छूट गया तो अ़द्ल भी हाथ से गया और उसकी जगह ज़ुल्म आ गया……जब अ़द्ल नहीं तो तौह़ीद के क्या मअ़्ना, फिर नबूवत क्या शय है और मआ़द पर से भी यक़ीन उठ गया……कैसा ह़िसाब और कैसी किताब।
जब दीन ही नहीं रहा तो वह़्ये एलाही भी नबूवत का ढोंग नज़र आई।
ज़ालिम जब ज़ुल्म ढाता है तो मोह़ब्बत ग़ाएब हो जाती है और नफ़रत जनम लेती है। फिर तो मसाजिद के मिम्बरों से सब–ओ–शितम की यलग़ार होती है……नतीजा येह कि क़ल्ब क़ासी में ईमान की चिंगारी भी मअ़्दूम हो जाती है। जब कुल्ले ईमान से बुग़्ज़–ओ–अ़दावत होगी तो ईमान का एक ज़र्रा भी दिल में बाक़ी न रहेगा। दूसरी तरफ़ मज़्लूम पर जैसे जैसे ज़ुल्म बढ़ता जाता है, उसके दिल में अपने मह़बूब के लिए मोह़ब्बत में एज़ाफ़ा होता जाता है।
अ़ली अ़लैहिस्सलाम, इसी दुनिया में क़सीमे जन्नत–ओ–नार हो गए। जो उनसे मुतमस्सिक हुआ उसकी आख़ेरत कामियाब और जो अ़ली अ़लैहिस्सलाम से दूर हुआ वोह दुनिया–ओ–आख़ेरत में ख़सारे का ह़क़दार हुआ। उसको न कोई फ़ातेह़ा और न कोई दुरूद फ़ाएदा पहुँचाएगा। वोह अल्लाह के अ़ज़ाब से मह़्फ़ूज़ नहीं रहेगा। अल्लाह तआ़ला ने अपने अ़ज़ाब से सिर्फ़ उन लोगों को अमान की ज़मानत दी है जो अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत के क़िल्ए़ (क़िले) में दाख़िल हो गए हैं।
फिर उनका ह़श्र क्या होगा……जो अ़ली अ़लैहिस्सलाम की मोह़ब्बत का सिर्फ़ अपनी ज़बान से दअ़्वा करते हैं?……एक तरफ़ा मोह़ब्बत……
अ़ली अ़लैहिस्सलाम के आख़िरी फ़र्ज़न्द ह़ज़रत ह़ुज्जत इब्निल ह़सन (अ़ज.) के हुज़ूर में कैसे जाएँगे?
अल्लाह तआ़ला ऐसे अफ़राद की हेदायत करे।