अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के वसीले से अल्लाह से मदद मांगना – पहला हिस्सा

कुछ मुख़ालेफ़ीन शीओ़ं पर एअ़्‌तेराज़ करते हैं कि अह्ले तशय्योअ़्‌ ह़ज़रात रिज़्क़-ओ-फ़ज़्ल, कामयाबी-ओ-सेहत और दौलत जैसी नेअ़्‌मतों की बाज़याबी के लिए अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के वसीले के क़ाएल हैं यहां तक कि बारिश, अच्छी फ़स्ल वग़ैरह जैसे क़ुदरती मज़ाहिर के लिए भी वोह अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को वसीला बनाते हैं। वोह लोग येह दलील देते हैं कि अल्लाह के अ़लावा किसी ज़रीए़ से ग़ैबी मदद मांगना, उस वसीले या श़िख्सयत की इ़बादत के मुतरादिफ़ है। इसी जवाज़ से वोह शीआ़ ह़ज़रात पर अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की परस्तिश की तोहमत लगाते हैं और उन्हें मुश्रिक बताते हैं।

वसीले की अहमियत

मुसलमानों के चंद नाम नेहाद फ़िक्र-ओ-नज़र के ह़ामिल अफ़राद के अ़लावा सब ही मुसलमान वसीले के क़ाएल हैं लेहाज़ा अह्ले तशय्योअ़्‌ ह़ज़रात का वसीले के तवस्सुत से मदद मांगना किसी भी तरह़ से उन्हें मुश्रिक नहीं साबित करता बल्कि येह तौह़ीद का बलंद तरीन अन्दाज़े अ़मल है। येह तो ख़ुद ख़ुदावंद करीम की ज़ात है जिस ने मोअ्‌मेनीन को वसीला तलाश करने का ह़ुक्म दिया है। इर्शादे बारी तआ़ला है।

या अय्योहल्लज़ीन आनुत्तक़ुल्लाह वब्तग़ू इलैहिल वसीलत व जाहेदू फ़ी सबीलेही लअ़ल्लकुम तुफ़्लेह़ू.

ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उस तक पहुंचने का वसीला तलाश करो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामियाब हो जाओ।

(सूरए माएदा (५), आयत ३५)

जो भी तवस्सुल के क़ाएल नहीं हैं ह़क़ीक़तन वोह क़ुरआन का इन्कार करते हैं और ख़ुद कुफ़्र इख़्तेयार करने वाले हैं। येह आयत साथ ही साथ इस दलील को भी रद कर देती है कि किसी को वसीला बनाना उसकी इ़बादत करने जैसा है। क्यूंकि अगर ऐसा होता तो अल्लाह मोमेनीन को वसीला तलाश करने का ह़ुक्म न देता।

क़ुरआन, अह़ादीस और तारीख़ में मुतअ़द्दिद मिसालें मिलती हैं जहां मुसलमानों ने जिनमें अस्ह़ाबे रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम भी शामिल हैं कि उन्होंने ख़ुदाई मदद और अपने गुनाहों की मग़फ़ेरत वसीले के ज़रीए़ तलब की है जो शीआ़ दलाएल को मज़ीद तक़्‌वीयत देता है और मुख़ालेफ़ीन के तमाम इत्तेहामात को रद कर देता है।

इलाही वसीले के ज़रीए़ मदद मांगना

क़ुरआन करीम में मुतअ़द्दिद आयतें पाई जाती हैं जिन में मुख़्तलिफ़ अक़वाम ने इलाही वसीले से मदद मांगी है। हम ने ज़ैल में कुछ आयतों का तज़केरा किया है जो हमारे नुक़्तए नज़र को साबित करने के लिए काफ़ी होंगी।

() जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम को (उनकी क़ौम का) वसीला बनाना

सूरए माएदा कि आयत नंबर ११२ से ११५ तक मिलता है।

‘‘और जब ह़वारीईन ने कहा कि ऐ ई़सा इब्ने मरयम क्या आप के रब में येह ताक़त भी है कि हमारे ऊपर आसमान से दस्तरख़ान नाज़िल कर दे तो उन्होंने जवाब दिया कि तुम अगर मोमिन हो तो अल्लाह से डरो।

उन लोगों ने कहा कि हम चाहते हैं कि हम उसमें से खाएं और इत्मीनाने क़ल्ब पैदा करें और येह जान लें कि आप ने हम से सच कहा है और हम ख़ुद भी उसके गवाहों में शामिल हो जाएं।

ई़सा इब्ने मरयम ने कहा ख़ुदाया परवरदिगार! हमारे ऊपर आसमान से दस्तरख़ान नाज़िल कर दे कि हमारे अव्वल-ओ-आख़िर के लिए ई़द हो जाए और  तेरी क़ुदरत की निशानी बन जाए और हमें रिज़्क़ दे कि तू बहतरीन रिज़्क़ देने वाला है।

परवरदिगार ने कहा कि हम नाज़िल तो कर रहे हैं लेकिन उसके बअ़्‌द जो तुम में से इन्कार करेगा उस पर ऐसा अ़ज़ाब नाज़िल करेंगे के आ़लमीन में किसी पर नहीं किया है।

(सूरए माएदा (५), आयात ११२-११५)

जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम के ह़वारीईन ने क्यूं जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम से ही ख़ाने जन्नत का मुतालेबा किया? क्यूं उन्होंने येह मुतालेबा अल्लाह से नहीं किया? और अगर ह़वारीईन ने बिला वास्ता अल्लाह से ग़ेज़ा न तलब करके ग़लती की थी तो ह़ज़रत ईसा ने ख़ाने जन्नत के लिए अल्लाह और ह़वारीईन के दरमियान वसीला बनने के बजाए उनकी इस्लाह़ क्यूं न की। और सब से ज़्यादा क़ाबिले ग़ौर बात येह है कि अल्लाह का जनाब ई़सा की दुआ़ के बअ़्‌द येह कहना कि बेशक मैं तुम्हारे लिए (ग़ेज़ा) नाज़िल करूंगा। येह सारी बातें तो तवस्सुल के सह़ीह़ होने पर दलालत करतीं हैं न कि उसके ख़ेलाफ़।

() ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम का वसीला

और हम ने बनी इसराईल को (यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम की बारह औलाद के) बारह ह़िस्सों पर तक़सीम कर दिया और मूसा अ़लैहिस्सलाम की तरफ़ वह़ी की जब उनकी क़ौम ने पानी का मुतालेबा किया कि ज़मीन पर अ़सा मार दो। तो उन्होंने अ़सा मारा तो बारह चश्मे जारी हो गए इस तरह़ कि हर गरोह ने अपने घाट को पहचान लिया। और हम ने उनके सरों पर अब्र का साया किया और उन पर मन्न-ओ-सलवा जैसी नेअ़्‌मत नाज़िल की कि हमारे दिये हुए पाकीज़ा रिज़्क़ को खाओ और उन लोगों ने मुख़ालेफ़त करके हमारे ऊपर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि येह अपने ही नफ़्स पर ज़ुल्म कर रहे थे।

(सूरए अअ़्‌राफ़ (७), आयत १६०)

यहां पर भी बनी इस्राईल ने पानी जैसी बुनियादी चीज़ के लिए जनाब मूसा से राबेता किया। उन्होंने अल्लाह से बिला वास्ता  मुतालेबा क्यूं नहीं किया। इस मौक़ेअ़्‌ पर भी न तो ख़ुदावंद करीम और न ही ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम ने तवस्सुल से नाराज़गी ज़ाहिर की। बल्कि अल्लाह ने जनाब मूसा को पानी की दस्तयाबी का तरीक़ा बताया।

एक और उलुल अ़ज़्म नबी की क़ौम के ज़रीए़ इलाही वसीले को अपनाने का येह वाक़ेआ़ तवस्सुल को मज़ीद तक़वीयत देता है। दोनों क़ुरआनी वाक़ेआ़त से येह बात मुकम्मल वाज़ेह़ हो जाती है कि जनाब मूसा की क़ौम का पानी मांगना और जनाब ई़सा की क़ौम का ग़ेज़ा तलब करना किसी भी ह़ाल में सूरए शूरा की ७९ आयत : ‘‘और वही मुझे खाने के लिए और वही पीने के लिए देता है।’’ से कोई तज़ाद नहीं है।

इसी तरह़ की मुतअ़द्दिद क़ुरआनी आयतें इस बात की निशानदही करती हैं कि ख़ुदावंद करीम ने अंबिया की उम्मतों को ग़ेज़ा, पानी और सेह़त जैसी नेअ़्‌मतें अंबिया के तवस्सुल से अ़ता की हैं जबकि उन्होंने उन चीज़ों का सवाल अपने अंबिया और औसिया से किया था। क्या कोई और तौह़ीद को ख़ुदावंद करीम से बेहतर जानता है। क्या क़ुरआन मजीद से बेहतर कोई उस्ताद है और हमें ऐसा कोई मरह़ला नहीं मिलता जहां अल्लाह और क़ुरआन ने लोगों को अंबिया और उनके औसिया का वसीला इख़्तेयार करने से मनअ़्‌ किया हो।

() जनाब यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम का वसीला

सूरए यूसुफ़ की ९७ और ९८ आयतों में मिलता है: उन लोगों ने कहा बाबा जान अब आप हमारे गुनाहों के लिए इस्तेग़फ़ार करें हम यक़ीनन ख़ताकार थे। उन्होंने कहा कि मैं अ़न्क़रीब तुम्हारे ह़क़ में इस्तेग़फ़ार करूंगा कि मेरा परवरदिगार बहुत बख़्शने वाला और मेह्रबान है। ह़ज़रत यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम के फ़र्ज़ंद बग़ैर किसी वसीला के अल्लाह से मग़फ़ेरत तलब कर सकते थे लेकिन उन्होंने ख़ुदा के नज़दीक अपने वालिद के अअ़्‌ला मक़ाम दो देखते हुए जनाब यअ़्‌क़ूब को वसीला बनाया, और ह़ज़रत यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम ने भी अपने फ़र्ज़ंदों के इस अ़मल को शिर्क क़रार नहीं दिया बल्कि उन्होंने अपने बेटों से येह वअ़्‌दा भी किया कि वोह उनकी मग़फ़ेरत के लिए अल्लाह की बारगाह में दुआ़ करेंगे।

 

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