हुज्जते मज़हब, मोअ़्जिज़ नुमा किताब “अ़बक़ातुल अनवार” का तआ़रुफ़
दीने इस्लाम और उसके मुख़्तलिफ़ मसाएल में जो मन्ज़ेलत-ओ-अहम्मीयत इमामत को ह़ासिल है वोह नेहायत दर्जा बलन्द और ग़ैर मअ़्मूली है।
ह़ज़रत ख़ातेमुल अम्बिया सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने रेसालत के आग़ाज़े तब्लीग़ ही में वेलायत-ओ- जानशीनी के मसअले को पेश कर दिया था। और अइम्मए मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम इमामत के मक़ाम-ओ-मन्ज़ेलत को मुसलसल वाज़ेह़ करने के साथ साथ इस्लाम में इसके बारे में बह़्स-ओ-गुफ़्तुगू की अहम्मीयत को भी याद दिलाते रहे हैं। अइम्मए अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के अस्ह़ाब, शीआ़ फ़ुक़्हा-ओ-मुतकल्लेमीन भी इमामों के नक़्शे क़दम पर चलते हुए हर दौर और हर क़र्न में नेहायत सन्जीदा और ह़स्सास होकर इस मन्सबे एलाही की मन्ज़ेलत का देफ़ाअ़् करते रहे और इस मैदान में अस्ह़ाबे अइम्मए मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम और उनके मुख़ालेफ़ीन में बेशुमार मुनाज़ेरे वजूद में आए जिसकी वजह से बेपनाह किताबें इस मौज़ूअ़् पर मुअ़्रिज़े वजूद में आ र्गइं।
इस रोशन और वाज़ेह़ ह़क़ीक़त के राहे देफ़ाअ़् में न जाने कितनी ख़ूँरेज़ी हुई और नहीं मअ़्लूम कितने शीआ़ इस अ़ज़ीमुश्शान इमामत के सामने तस्लीम होने और उस पर एअ़्तक़ाद रखने के जुर्म में दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ हुए हैं। इसके बावजूद इस ह़क़ीक़त पर एअ़्तक़ाद रखने वालों के ईमान-ओ-इख़्लास ने उन्हें राहे ख़ुदा में और ज़्यादा मज़बूती के साथ साबित क़दम बना दिया है।
जिस वक़्त मुबल्लिग़-ओ-मदाफ़ए़ वेलायत जनाब अबू ज़र रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह को शीआ़ होने के पादाश में शाम जेला वतन कर दिया जाता है तो वहाँ एक लम्ह़ा भी ज़ाएअ़् न करते हुए मौक़अ़् ग़नीमत समझ कर इमामत-ओ-वेलायते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की तब्लीग़ शुरूअ़् कर देते हैं और मौला की मन्ज़ेलतों को आश्कार फ़रमाते हैं। और उस इ़लाक़े वालों को अह्लेबैते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की पैरवी की दअ़्वत देते हैं जिसकी बरकत से शाम वालों में ख़ुसूसन बेलाद जबले आ़मिल और जुनूबी लेबनान में बहुत से अफ़राद शीआ़ मज़हब क़बूल कर लेते हैं। आने वाले ज़मानों में भी बुज़ुर्ग उ़लमा जैसे शेख़ सदूक़, शेख़ मुफ़ीद, सैयद मुर्तज़ा, शेख़ तूसी, अ़ल्लामा ह़िल्ली रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैहिम और इनके अ़लावा दूसरे उ़लमाए बुज़ुर्गाने बह़्से इमामत और उसकी मन्ज़ेलत-ओ-अहम्मीयत को दर्क करते हुए बड़ी मअ़्रेकतुल आरा और अ़ज़ीमुश्शान किताबें तदवीन-ओ-तालीफ़ की हैं, जिसकी राह में बेपनाह रन्ज-ओ-मुश्किलात और ज़ह़मतों का सामना भी किया है। मरह़ूम अ़ल्लामा अमीनी रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने “शोहदाउल फ़ज़ीला” में इन तमाम नामवर और पाकीज़ा हस्तियों के नाम दर्ज किए हैं जो अ़क़ीदए इमामत और तरवीजे तशय्योअ़् के जुर्म में दुश्मनाने ह़क़ के हाथों शहादत के दर्जे पर फ़ाएज़ हुए हैं।
मगर इसके बावजूद शम्ए़ इमामत के गिर्द परवाने जमअ़् होते रहे और येह कारवाँ लोगों को हमराह लेता हुआ मन्ज़िल की तरफ़ बढ़ता ही रहा। उसे न कोई ह़ुकूमत रोक सकी न सलतनतों के ज़ुल्म-ओ-जौर का तूफ़ान ख़ामोश कर सका, बल्कि मुसलसल एक चिराग़ से दूसरा चिराग़ जलता रहा और वादिये ज़लालत-ओ-गुमराही की तारीकियों को रोशन करता रहा, हर दौर में एक से बढ़कर दूसरी शम्अ़ जलती रही।
इसी सिलसिले की एक और अ़ज़ीमुश्शान शम्ए़ फ़रोज़ाँ आख़री दौर में हिन्दुस्तान की वादिए तारीकी में रोशन हुई तो उससे सिर्फ़ बर्रे सग़ीर ही नहीं बल्कि पूरा आ़लमे इस्लाम मुनव्वर हो गया। वोह शम्अ़ मोअ़्जिज़ नुमा होने के साथ साथ मज़हब की ह़ुज्जत भी है और इस एअ़्जाज़ आमेज़-ओ-मअ़्रेकतुल आरा शम्अ़ का नाम “अ़बक़ातुल अनवार दर मनाक़िबे अइम्मए अतहार” है, जिसकी नूरानी ख़ुशबू से पूरी इस्लामी दुनिया मुनव्वर-ओ-मोअ़त्तर है।
जिस तरह़ अ़बक़ातुल अनवार मोह़ताजे तआ़रुफ़ नहीं है, उसी तरह़ इस किताब शरीफ़ के मुअल्लिफ़ इमामुल मुतकल्लेमीन अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी हिन्दी नव्वरल्लाहो मरक़दहू भी मोह़्ताजे तआ़रुफ़ नहीं हैं।
अ़बक़ातुल अनवार क्यों और कैसे लिखी गई
अ़बक़ातुल अनवार, किताब “तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया” अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी के मुक़ाबले में इ़ल्मी, मुस्तनद, मुदल्लल, मन्तिक़ी शक्ल में जवाब के तौर से लिखी गई है। मोलवी अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी अह्ले सुन्नत के बरजस्ता उ़लमा में जाने जाते हैं जो इन्तेहाई तअ़स्सुब रखने वालों में मशहूर हैं और “सिराजुल हिन्द” के नाम से शोह्रत रखते हैं।
येह किताब दरअस्ल मुसलमानों में तफ़रक़ा ईजाद करने की ग़र्ज़ से तालीफ़ की गई थी जिसमें शीआ़ अ़क़ाएद-ओ-नज़रियात पर भरपूर तरीक़े से तोहमत-ओ-इल्ज़ाम का सहारा लेकर नाकाम ह़मला किया गया। मोअल्लिफ़ ने इसकी तबअ़् अव्वल में अपना मुस्तआ़र नाम ग़ुलाम ह़लीम क़रार दिया, दूसरी तबाअ़त में अपना असली नाम ज़ाहिर किया।
साह़ेबे अ़बक़ातुल अनवार लिखते है:
इस किताब में शीआ़ अ़क़ाएद-ओ-नज़रियात को बतौरे उ़मूम और मज़हबे शीआ़ इस्ना अ़शरी को ख़ास तौर से उसूल, फ़ुरूअ़्, अख़्लाक़, आदाब और उनके तमाम अअ़्माल-ओ-एअ़्तेक़ादात को इन्तेहाई रकीक ए़बारतों, आदाबे मुनाज़ेरा से ख़ाली, नौ वारिद के मानिन्द जिसकी तह़्रीर ख़िताब से ज़्यादा मुशाबेह हो, जहाँ न कोई मन्तिक़, न बुरहान, इस तरह़ तमाम मुक़द्देसात को निशाना बनाया गया और पूरी किताब इफ़तेरा-ओ-इल्ज़ाम और तोह्मत से भरी हुई है।
मोलवी अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी के पास किताब में कोई नई बात पेश करने के लिए नहीं थी बल्कि अपने गुज़श्ता उ़लमा इब्ने तैमिया, रूज़बहान, जौज़ी, काबुली जैसे मुतअ़स्सिब उ़लमाए अह्ले सुन्नत की बातों को दोहराया है और बस।
दिलचस्प बात येह है कि इस किताब में किसी तरह़ की ख़ल्लाक़ियत या कोई नई बात नहीं पेश की गई बल्कि पूरे तौर से येह एक दूसरी किताब का तर्जुमा है जैसा कि साह़ेबे “नुजूमुस्समा” और अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने तस्रीह़ फ़रमाया है: अस्ल में ख़ाजा नसरुल्लाह काबुली की किताब “सवाक़ेअ़्” है जिसे अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ ने फ़ारसी ज़बान में तर्जुमा करके अपने नाम से छपवा दिया है।
(अ़बक़ातुल अनवार, ह़दीसे सक़लैन, तब्अ़ इस्फ़हान, जि.६, स.९८११)
ख़ुदा जानता है इन्सान जब तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया के वाहियात, फ़ुज़ूल तह़्रीरों को पढ़ने के बअ़्द अ़बक़ातुल अनवार पर निगाह करता है तो वोह अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन हिन्दी रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह के दरियाए इ़ल्म के बे कराँ मअ़्लूमात के मुक़ाबले में एक क़तरा भी नहीं मअ़्लूम होती।
किताब तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया के तमाम मतालिब बारह अबवाब में तदवीन किए गए हैं:
१) मज़हबे तशय्योअ़् के वजूद में आने की कैफ़ीयत और उससे मुख़्तलिफ़ फ़िर्क़ों का वजूद में आना।
२) शीओ़ं का मक्र-ओ-फ़रेब और इन्ह़ेराफ़-ओ-गुमराही के मुख़्तलिफ़ रास्ते।
३) शीओ़ं के इस्लाफ़, उ़लमा और उनकी किताबें।
४) शीआ़ रवायतों का ह़ाल और उनके रुवात का तज़्केरा।
५) एलाहियात के बारे में।
६) नबूवत के सिलसिले में।
७) इमामत के बारे में।
८) मआ़द के सिलसिले में।
९) फ़िक़्ही मसाएल में।
१०) ख़ुलफ़ाए सलासा-ओ-आ़एशा और दूसरे अस्ह़ाब के मताइ़न में।
११) मज़हबे शीआ़ के ख़साएस में जिसे तीन ह़िस्सों में क़रार दिया है – (अ) औहाम (ब) तअ़स्सुबात (ज) लग़ज़िशें इश्तेबाहात।
१२) तवल्ला-ओ-तबर्रा जो दस मुक़द्देमात पर मुश्तमिल है।
(अ़बक़ातुल अनवार, ह़दीसे सक़लैन, तब्अ़ इस्फ़हान, स.१२००)
येह याद रहे कि अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह की किताब अ़बक़ातुल अनवार के अ़लावा दूसरी और भी बहुत सी किताबें जवाब में लिखी गई हैं, उन में बअ़्ज़ मुकम्मल तमाम बारह अबवाब के जवाबात दिए गए हैं, बअ़्ज़ फ़क़त चन्द बाब के जवाब पर मुश्तमिल हैं और बअ़्ज़ एक ही बाब के जवाब में तालीफ़ हुई हैं। जो तमाम अबवाब पर मुश्तमिल जवाब में तह़रीर हुई हैं:
१) मिर्ज़ा मोह़म्मद अख़बारी इब्ने अ़ब्दुन्नबी (मक़तूल १२३२ हि.) बनाम सैफ़ुल्लाह अल-मसलूल अ़ला मुख़रबीये दीनिर्रसूल।
२) मिर्ज़ा मोह़म्मद बिन अह़्मद ख़ान तबीब कश्मीरी देह्लवी (मक़तूल १२३५ हि.) बनाम नज़हतुल इस्ना अ़शरीया, इसके अ़लावा।
३) सैयद मुफ़्ती मोह़म्मद अ़ब्बास शूस्तरी (१३०६ हि.) ने “जवाहिरे अ़बक़रीया दर रद्दे तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया” तालीफ़ फ़रमाई।
४) अ़ल्लामा सैयद जअ़्फ़र मअ़्रूफ़ ब अबू अ़ली ख़ान मूसवी ने दो किताबें तोह़्फ़े की तर्दाrद में तह़्रीर की हैं:
अ) बुरहानुस्सादेक़ीन, सातवें बाब की तर्दीद में।
ब) तकसीरुज़्ज़मीन, दसवें बाब की तर्दीद में।
५) साह़ेबे अ़बक़ात के वालिदे माजिद सैयद मोह़म्मद क़ुली नेशापूरी हिन्दी क़ुद्देसल्लाहो सिर्रहू तोह़्फ़ा के सातवें बाब की तर्दीद में “बुरहानुल सआ़दात” और बाबे अव्वल की रद में “सैफ़े नासिरी” और बाबे दुवुम की रद में “तक़लीबुल मकाएद” और तोह़्फ़े के बाबे दहुम की रद्द में “तशयीदुल मताइ़न” और ग्यारहें बाब के इब्ताल में “मसारेउ़ल इफ़्हाम लेक़लइ़ल औहाम” जैसी मअ़्रेकतुल आरा किताब तालीफ़ फ़रमाई है।
६) सैयद दिलदार अ़ली इब्ने सैयद मोह़म्मद मुई़न लखनवी क़ुद्देसल्लाहो सिर्रहू (सन १२३५ हि.) ने फ़ारसी में तोह़्फ़ा के आठवें बाब की रद्द में “एह़्याउस्सुन्नत व एमामतुल बिद्अ़ह” और छटे बाब की तर्दाrद में “ह़िसामुल इस्लाम व सेहामुल मलाम” और पाँचवें बाब के इब्ताल में “वलसवारेमुल एलाहिया” और तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया के बारहवें बाब की रद्द में “ज़ुल्फ़ेक़ार” तह़्रीर फ़रमाई है।
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह
इमामुल मुतकल्लेमीन, आ़लिम-ओ-फ़क़ीह ज़बरदस्त, अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह तेहरवीं सदी हिजरी में इ़ल्म-ओ-अ़मल और फ़िक़्ह-ओ-कलाम की बलन्द तरीन मन्ज़िल पर फ़ाएज़ थे। उनका ख़ानदान शाह सुलतान ह़ुसैन सफ़वी के दौर में सैयद मोह़म्मद नामी जो उ़लमाए नेशापूर से थे, हिन्दुस्ताम तश्रीफ़ लाए और देह्ली में मुक़ीम हुए। आहिस्ता आहिस्ता ख़ानदान के अफ़राद ने ह़ुकूमत में नुफ़ूज़ पैदा किया और इस तरह़ ख़ानदान का एक फ़र्द सैयद मोह़म्मद बनाम बुरहानुल मालिक सूबा अवध के ह़ाकिम मुक़र्रर हुए तो बहुत से अफ़राद नेशापूर, ख़ुरासान-ओ-मशहद से हिन्दुस्तान आकर शह्रे लखनऊ में आबाद हुए।
और इस तरह़ मरह़ूम अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन हिन्दी, साह़ेबे अ़बक़ात, इस शीआ़ ह़ाकिम के ख़ानदान के सायए उ़तूफ़त-ओ-सरपरस्ती में अपनी फ़आ़लियत अन्जाम दे रहे थे।
(सैयद मोह़म्मद रज़ा ह़ाकीमी, मीर ह़ामिद ह़ुसैन, स.१०५)
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन हिन्दी ५ मुह़र्रम १२४६ हि. में पैदा हुए। नाम सैयद महदी कुनियत अबू ज़फ़र थी सैयद ह़ामिद ह़ुसैन के नाम से शोहरत हुई। आप ने अपने पिदरे बुज़ुर्गवार से उ़लूम-ओ-इस्लामी मआ़रिफ़ ह़ासिल किया और १५ साल की उ़म्र में सायए पिदरी से मह़्रूम हो गए। फिर आप ने अदबीयात और नहजुल बलाग़ा मुफ़्ती सैयद मोह़म्मद अ़ब्बास क़ुद्देस सिर्रहू से और मक़ामाते ह़रीरी मोलवी बरकत अ़ली साह़ब से ह़ासिल किया और ह़िकमत-ओ-फ़ल्सफ़ा सैयद मुर्तज़ा इब्ने सुलतानु उ़लमा और सैयद मोह़म्मद इब्ने दिलदार अ़ली क़ुद्देसल्लाहो सिर्रहु से सीखा।
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मरह़ूम उ़लमाए गुज़श्ता के आसार और अख़बार-ओ-रवायात पर बड़ा तसल्लुत रखते थे और जद्द-ओ-जेहद-ओ-तत्बए़ कुतुब में बड़ी महारत और ख़ास शोह्रत ह़ासिल थी। मअ़्क़ूलात और मन्क़ूलात ह़ासिल करने के बअ़्द अपनी सारी उ़म्र दीनी एअ़्तेक़ादात के तह़फ़्फ़ुज़ ख़ास तौर से इमामत-ओ-वेलायते अह्लेबैत अतहार अ़लैहिमुस्सलाम के देफ़ाअ़् में बसर कर दी और इस मैदान में कई नामवर किताबें तालीफ़-ओ-तस्नीफ़ फ़रमाई हैं। अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह १८ सफ़र १३०८ हि. में दअ़्वते ह़क़ को लब्बैक कहकर आ़लमे इस्लाम-ओ-तशीअ़, ख़ास तौर से हिन्दुस्तान के मोअ्मिनीन को हमेशा के लिए अपने बाबरकत वजूद से मह़्रूम कर दिया। आप को इमामबाड़ा ग़ुफ़राँ मआब लखनऊ में हज़ारों सोगवारों के साए में सिपुर्दे लह़द कर दिया गया।
अ़बक़ातुल अनवार दर मनाक़िबे अइम्मए अतहार
तोह़्फ़ए इस्ना अ़शरीया के जवाब में लिखी जाने वाली किताबों के मुक़ाबले में अ़बक़ातुल अनवार की ख़ुसूसियात येह रही है कि जब भी कोई शीआ़ आ़लिम तोह़्फ़ा का जवाब लिखता तो मोलवी अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी के शागिर्द और उसके हम फ़िक्र उसका जवाब फ़राह़म करते और मुक़ाबला आराई के लिए मैदान में आ जाते। मगर जब अ़बक़ातुल अनवार अपने इ़ल्मी, मन्तिक़ी, मोह़्कम दलाएल के साथ मन्ज़रे आ़म पर आई तो उसके जवाब लिखने की किसी में जुरअत न हुई और अब तक नहीं सुना गया कि इसकी रद्द में कोई किताब लिखी गई है।
(अ़ल्लामा सैयद अ़ली ह़ुसैनी मीलानी, ख़ुलासए अ़बक़ात, जि.१, स.१२८)
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मुस्तनद और मुदल्लल मतालिब नक़्ल करने के अ़लावा इस्लामी आदाब की पूरी तरह़ से रेआ़यत फ़रमाते थे, वोह दलील-ओ-बुरहान और मन्तिक़ के साथ ह़िल्म-ओ-सब्र और अ़द्ल-ओ-इन्साफ़ के दाएरे से बाहर नहीं जाते थे। साह़ेबे तोह़्फ़ा का ख़याल था कि इमामते अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम के सबूत मह़्ज़ छह (६) आयतों और बारह (१२) ह़दीसों में मुन्ह़सिर है। अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन कहते हैं:
सब से पहली बह़्स यही है कि देह्लवी ने ख़ेलाफ़ते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और वेलायते मुत्लक़ा पर दलालत करने वाली अह़ादीसे नबवी को बारह ह़दीसों में मुन्ह़सिर कर दिया है। येह खुली हुई ह़क़ीक़त का इन्कार है और हमें नहीं मअ़्लूम कि आया येह ह़स्र अ़क़्ली है? या इस्तेक़राई है? अगर ह़स्र अ़क़्ली है तो इमामत-ओ-वेलायत जैसे मसअले में और इस तरह़ की बह़्सों में अ़क़्ल का कोई दख़ल नहीं है (कि बात इस्बाते इमामत ह़दीसों की रोशनी में है) और अगर ह़स्र इस्तेक़्राई यअ़्नी तलाश-ओ-जुस्तुजू के बअ़्द कहा है, तो ह़क़ीक़त इसके बर ख़ेलाफ़ है। इस सिलसिले में जो नुसूस वारिद हुई हैं वोह बारह अ़दद से कहीं ज़्यादा और इसके चन्द बराबर पाई जाती हैं, जैसा कि येह बात किसी मुततब्बेअ़् कुतुब और मुन्सिफ़ से पोशीदा नहीं है।
(ख़ुलासए अ़बक़ातुल अनवार, जि.६, स.५१)
अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी ने जिन आयात-ओ-रवायात को तोह़्फ़े में दलालत-ओ-सनद को जई़फ़ क़रार दिया था, साह़ेबे अ़बक़ात ने अपनी सारी तवज्जोह उन्हीं आयात-ओ-रवायात की तरफ़ मब्ज़ूल रखी। इसीलिए अपनी किताब अ़बक़ातुल अनवार को दो नह्ज में तरतीब-ओ-तालीफ़ किया है।
मन्हजे अव्वल
साह़ेबे अ़बक़ात ने इस ह़िस्से में क़ुरआन करीम की उन चन्द आयतों की बह़्स-ओ-गुफ़्तुगू को पेश किया है जो साह़ेबे तोह़्फ़ा की तरफ़ से इमामत-ओ-वेलायत पर दलालत को जई़फ़ क़रार दी गई थीं, जैसे:
इन्नमा वलीयोकुमुल्लाह….
अल यौ-म अकमल्तो लकुम दी-नकुम….
मगर अफ़सोस! आयात वाली जिल्दें अभी तक तबअ़् नहीं हो सकीं। लेकिन किताब ख़ानए नासिरिया शह्रे लखनऊ और मोलवी सैयद रजब अ़ली ख़ान सुब्ह़ानुज़्ज़मान जकरावान में मौजूद हैं।
(शेख़ आक़ा बुज़ुर्ग तेह्रानी, अज़्ज़रीआ़, जि.१५, स.२१४)
(ख़ुदावन्द आ़लम ख़ानवादए अ़बक़ात और क़ौम के दिलसोज़-ओ-हमदर्द-ओ-मुतदय्यन अफ़राद को तौफ़ीक़ ए़नायत फ़रमाए ताकि अ़बक़ात की मुकम्मल जिल्दें ज़ेवरे तबअ़् से आरास्ता होकर जल्द मन्ज़रे आ़म पर आ सकें। येह मज़हब की बड़ी ख़िदमत और साह़ेबे अ़बक़ात की ज़ह़्मतों और मशक़्क़तों का बेह्तरीन ख़ेराजे तह़्सीन भी होगा।)
अ़ल्लामा सैयद अ़ली ह़ुसैनी मीलानी मुद्दज़िल्लहू ने अपनी किताब ख़ुलासए अ़बक़ात जिसका नाम “नफ़ह़ातुल अज़्हार” रखा है, उसके नए एडीशन की बीसवीं जिल्द में अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन की रविशे तह़्क़ीक़ के मुताबिक़ क़ुरआन करीम की उन छह आयतों की दलालत पर बह़्स की है जो यक़ीनन एक अ़ज़ीम कारनामा है:
१) इन्नमा वलीयोकुमुल्लाहो व रसूलोहू….
२) इन्नमा युरीदुल्लाहो लेयुज़्हे-ब अ़न्कुमर्रिज्स….
३) क़ुल ला अस्अलोकुम अ़लैहे अज्रन इल्लल मवद्द-त….
४) फ़मन ह़ाज्जक फ़ीहे मिन बअ़्दे मा जाअ-क मिनल इ़ल्मे….
५) अन-त मुन्ज़िर….
६) अस्साबेक़ू-न….
मन्हजे दुवुम
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह ने इस मक़ाम पर उन बारह अह़ादीस की सनद-ओ-दलालत पर बह़्स पेश की है जिन के बारे में मोलवी अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ देह्लवी ने एअ़्तेराज़ात-ओ-शुब्ह़ात वारिद किए हैं। इन में से बअ़्ज़ अह़ादीस की बह़्स को साह़ेबे अ़बक़ात के फ़र्ज़न्दों ने मुकम्मल करके शाए़ की हैं। अ़बक़ातुल अनवार की वोह जिल्दें जो अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह के बदस्त लिखी र्गइं हैं वोह ह़स्बे ज़ैल हैं:
जिल्द अव्वल – ह़दीसे ग़दीर
या मअ़्शरल मुस्लेमी-न अलस्तो औला बेकुम मिन अन्फ़ोसेकुम, क़ालू बला, क़ा-ल मन कुन्तो मौलाहो फ़-अ़लीयुन मौलाहो अल्लाहुम्म वाले मन वालाहो व आ़दे मन आ़दोहो
मरह़ूम अ़ल्लामा ने इसकी सनद और दलालत पर सेर ह़ासिल बह़्स की है जिसके बअ़्द किसी में याराए इन्तेक़ाद नहीं रह जाता। इसलिए कि साह़ेबे अ़बक़ात ने वाक़ेअ़ए ग़दीर की बड़ी अ़मीक़-ओ-दक़ीक़ बह़्स की है जहाँ सनद-ओ-मत्न दोनों लेह़ाज़ से तख़रीज-ओ-तस्बीत की है। ग़दीर की येह जिल्द ख़ुद बड़ी तफ़सील के साथ दो फ़स्लों में तदवीन हुई है:
(अ) पहली फ़स्ल में ह़दीसे ग़दीर को सौ से ज़्यादा अस्ह़ाबे पैग़म्बर, ताबेई़न, तबअ़् ताबेई़न और मुह़द्देसीन से तारीख़वार इब्तेदा से अपने अ़ह्द तक दर्ज कर दिया है। और येह सारे उ़लमा-ओ-मुह़द्देसीन और रुवाते अह्ले सुन्नत मसलक से तअ़ल्लुक़ रखते हैं। इसके अ़लावा उन मनाबेअ़् और मोअ़्तबर मुतून को जो ख़ुद उ़लमाए अह्ले सुन्नत के नज़्दीक तौसीक़ शुदा हैं, उनकी बुनियाद पर रेजाल-ओ-रुवात के ह़ालात को मुरत्तब किया है जिसे देखकर वाक़ई़ अ़क्ल हैरान रह जाती है।
(ब) दूसरी फ़स्ल में ह़दीसे ग़दीर के मत्न को तफ़सीली तौर से इमामत-ओ-ख़ेलाफ़ते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम पर दलालत के तमाम पह्लूओं, उसके क़राएन-ओ-शवाहिद के साथ बह़्स पेश की है। और सैर ह़ासिल बह़्स-ओ-गुफ़्तुगू के बअ़्द वोह तमाम एअ़्तराज़ात-ओ-शुब्ह़ात या ख़ाह मख़ाह की तावीलें जिन्हें मुन्किरे ह़दीसे ग़दीर पेश करते हैं, या किसी एह़्तेमाली शुब्हा से अ़वाम के ज़ेह्नों को आशुफ़्ता कर सकते हैं, हर एक को दर्ज करके उनका दन्दान शिकन जवाब दिया है और बातिल होने को आश्कार कर दिया है।
अ़बक़ातुल अनवार के इस ह़िस्से के तआ़रुफ़ के लिए ख़ुद मुस्तक़िल एक किताब या रिसाला दरकार है। अ़बक़ातुल अनवार कोई मअ़्मूली किताब नहीं है येह ह़दीसे शरीफ़ ग़दीर का पहला दाएरतुल मआ़रिफ़ है।
जिल्द दुवुम – ह़दीसे मन्ज़ेलत
येह जिल्द भी इसी रविश और तरतीब से तालीफ़ की गई है।
ह़ज़रत ख़त्मी मरतबत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम से फ़रमाया:
अला तर्ज़ा अन तकू-न मिन्नी बेमन्ज़ेलते हारू-न मिम्मूसा इल्ला अन्नहू ला नबी-य बअ़्दी
ह़दीसे मन्ज़ेलत भी बअ़्ज़ उ़लमाए अह्ले सुन्नत के मुताबिक़ येह सह़ीह़ तरीन ह़दीसों में क़रार दी गई है जो मुसलमान मुह़द्देसीन के दरमियान हमेशा नस्ल ब नस्ल मुतदाविल-ओ-मुतवातिर नक़्ल होती रही है ह़त्ता कि ह़द्दे तवातुर से भी तज़ावुज़ कर गई है। शायद इसीलिए पाँचवीं सदी हिजरी का मुह़द्दिस ह़ाफ़िज़ अबू ह़ाज़िम अ़ब्दवी ने लिखा है:
“मैंने इस ह़दीस को ५००० तुरुक़ से तख़रीज यअ़्नी नक़्ल किया है।”
(तुरासना, साल २, श.१, स.५७)
जिल्द सिवुम – ह़दीसे वेलायत
इन्-न अ़लीयन मिन्नी व अना मिन्हो व हो-व वलीयो कुल्ले मोअ्मेनिन मिन बअ़्दी
ह़दीसे वेलायत भी गुज़श्ता दो जिल्दों की रविश के मुताबिक़ मुरत्तब की गई है जिसे देखकर इन्सान ह़ैरत में पड़ जाता है।
जिल्द चहारुम – ह़दीसे तश्बीह
मन अरा-द अँय्यनज़ो-र एला आद-म फ़ी इ़ल्मेही…..
साह़ेबे अ़बक़ात ने इस ह़दीसे नबवी के तमाम जवानिब से अपनी बह़्स-ओ-तह़्क़ीक़ को सनद-ओ-दलालत दोनों लेह़ाज़ से दर्ज की है कि किसी के लिए मजाले मनाक़शा बाक़ी नहीं रखा है।
जिल्द पन्जुम – ह़दीसे नूर
अना व अ़लीयुब्ने अबी तालेबिन नूरन बै-न यदयल्लाहो अ़ज़्ज़ व जल्ल क़ब्ल अन यख़्लोक़ आद-म बेअर्बअ़तिल आफ़ आ़मे..
सनद-ओ-दलालत दोनों एअ़्तेबार से भरपूर बह़्स हुई है और इससे इमामते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम साबित फ़रमाया है।
इसके बअ़्द अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन कुद्देस सिर्रहू को अजल ने मोह़्लत न दी कि बक़िया अह़ादीस को इसी रविश के मुताबिक़ मुकम्मल फ़रमाते। उन के बअ़्द उनके फ़र्ज़न्दे अर्जुमन्द अ़ल्लामा सैयद नासिर ह़ुसैन नासिरुल मिल्लत क़ुद्देस सिर्रहू जो यक़ीनन अपने वालिदे माजिद की तरह़ आसमाने फ़ज़ीलत के दरख़्शाँ सितारे थे, उन्होंने दूसरी चार ह़दीसों को उसी उस्लूब और रविश के मुताबिक़ तमाम किया।
जिल्द शशुम – ह़दीसे तैर
अल्लाहुम-म एअ्तेनी बेअह़ब्ब ख़ल्क़े-क इलै-क व एलै-य यअ्कुल मइ़-य फ़जाअ अ़लीयुन
साह़ेबे किताब ने सौ तरीक़े से मुदल्लल और मुस्तनद तौर से मुकम्मल बह़्स का ह़क़ अदा किया है और इस तरह़ इमामत को साबित किया कि इससे सारे एअ़्तेराज़ात के दरवाज़े बन्द कर दिये। जिस मक़ाम पर साह़ेबे तोह़्फ़ा ने येह एअ़्तेराज़ किया कि (अह़ब्ब) “मह़्बूब” से मुराद अह़ब्बफ़िल अकल “खाने में मह़बूब” मुराद है न मख़्लूक़ात में, तो उसे अ़ल्लामा ने सत्तर तरीक़ो से बातिल किया है।
जिल्द हफ़्तुम – ह़दीसे बाब
अना मदी-नतुल इ़ल्मे व अ़लीयुन बाबोहा…अलख़
येह भी सनद-ओ-दलालत दोनों एअ़्तेबार से इन्तेहाई दक़ीक़ और वसीअ़् पैमाने पर तदवीन की है। इन बह़्सों के तआ़रुफ़ के लिए मज़्मून तवील हो जाएगा सिर्फ़ इसके एक मक़ाम के फ़स्ल की सुर्ख़ी मुलाह़ेज़ा फ़रमाएँ बह़्स की वुस्अ़त-ओ-गीराई का अन्दाज़ा हो जाएगा:
“अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम से इमाम रज़ा अ़लैहिस्सलाम तक २४५ तुरुक (तरीक़ों) से ह़दीसे मदीना का इस्बात और उस पर वारिद किए जाने वाले एअ़्तेराज़ात के जवाबात।”
जिल्द हश्तुम – ह़दीसे सक़लैन
इन्नी तारेकुन फ़ीकुमुस्सक़लैन मा इन तमस्सक्तुम बेहेमा लन तज़िल्लू बअ़्दी अह़द्होमा अअ़्ज़मो मिनल आ़ख़रे किताबुल्लाहे व इ़त-रती
येह ह़दीसे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम भी सेह़त-ओ-एअ़्तेबार के मेअ़्यार से बहुत बढ़कर मुसलमानों में जानी जाती है। और साह़ेबे अ़बक़ात ने तस्रीह़ की है कि ह़दीसे सक़लैन को अह्ले सुन्नत के १८७ उ़लमा ने लिखा है। ह़दीस के क़तइ़स्सुदूर और मुतवातिर होने की बह़्स में साह़ेबे किताब ने पूरा ह़क़ अदा कर दिया है। नूरुल अनवार के नाम से अ़ज़ीज़ दोस्त मौलाना शुजाअ़त ह़ुसैन साह़ब क़िब्ला के तर्जुमे के साथ उर्दू में भी शाएअ़् हो चुकी है।
जिल्द नहुम – ह़दीसे सफ़ीना
अला इन-न म-स-ल अह्लो बैती फ़ीकुम क-म-सले सफ़ी-नते नूह़िन मन रके-बहा नजा व मन तख़ल्ल-फ़ अ़न्हा ह-ल-क
इस ह़दीस को भी सनद-ओ-दलालत दोनों लेह़ाज़ से नक़्ल किया है जो कई बार हिन्दुस्तान-ओ-ईरान में तबअ़् हो चुकी है।
शायद ख़ुदाए तआ़ला को इस अ़ज़ीम ख़ानदान के हर बुज़ुर्ग से देफ़ाए़ इमामत और अ़बक़ातुल अनवार की ख़िदमत का शरफ़ अ़ता करना था कि पैग़ामे अजल ने मरह़ूम नासिरुल मिल्लत क़ुद्देस सिर्रहू को भी मोह्लत न दी तो उन के बअ़्द उनके बासलाह़ियत फ़र्ज़न्द सैयद मोह़म्मद सई़द, सई़दुल मिल्लत क़ुद्देस सिर्रहू ने दूसरी दो ह़दीसों को तकमील फ़रमाया।
जिल्द दहुम – ह़दीस मुनासेबत
मन ना-स-ब अ़लीयल ख़ेला-फ़-त फ़ हो-व का़fफरुन
फ़ारसी ज़बान में सनद-ओ-दलालत दोनों लेह़ाज़ से गुफ़्तुगू की गई है। मगर जैसा कि मअ़्लूम है अभी तक ग़ैर मत्बूआ़ है और इसके इ़ल्मी-ओ-मन्तिक़ी बह़्स-ओ-गुफ़्तुगू से आ़शिक़ाने वेलायत मह़्रूम हैं। ख़ुदावन्द से दुआ़ है जल्द अज़ जल्द इसकी तबाअ़त के वसाएल फ़राहम फ़रमाए ताकि आ़शिक़ान-ओ-मुदाफ़ेआ़ने इमामत इससे मुस्तफ़ीद हो सकें।
जिल्द याज़्दहुम – ह़दीसे ख़ैबर
ल-उअ़्तेयन्नर्रायत ग़दन रजोलन युह़िब्बुल्लाहा व रसूलहू व युहिब्बोहुल्लाहो व रसूलोहू यफ़्तहल्लाहो अ़ला यदैहे
येह जिल्द भी ग़ैर मत्बूआ़ है। कहते है येह सिर्फ़ क़िस्मे अव्वल ही के लेह़ाज़ से मुरत्तब हो पाई है।
आख़िर की छह (६) ह़दीसें मरह़ूम अ़ल्लामा सैयद ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी रह़्मतुल्लाह अ़लैह के नामे नामी से मन्सूब किया है ताकि इस अ़ज़ीमुश्शान शख़्सीयत को ख़ेराज तह़सीन पेश कर सकें।
अब तक जो ह़दीसें जिल्दों की शक़्ल में छपी हैं, वोह नौ ह़दीसें हैं। और दो हदीसें: “ह़दीसे मुनासेबत” और “ह़दीसे ख़ैबर” (क़िस्मे अव्वल) तह़्रीर हुई हैं लेकिन ग़ैर मत्बूआ़ हैं।
(अ़बक़ातुल अनवार, ग़ुलाम रज़ा मौलाना बुरूजर्दी दर मुक़द्देमा, जि.१)
और दो ह़दीसें: “ह़दीसे ह़क़” (रह़ेमल्लाहो अ़लीयन अल्लाहुम-म अद्रिल्ह़क़्क़ म-अ़ ह़ैसो दा-र) और “ह़दीसे “ख़ैबर” (क़िस्मे दुवुम-दलालत) मज्मूई़ बारह ह़दीसों में से तालीफ़ नहीं हो सकी हैं।
(अ़ल्लामा सैयद अ़ली ह़ुसैनी मीलानी, ख़ुलासए अ़बक़ात, जि.१, स.१२४)
बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त में दुआ़ है इस अ़ज़ीम कारनामे की तकमील और मुकम्मल कुतुब की तबाअ़त के लिए फ़र्ज़न्दाने साह़ेबे अ़बक़ात की तौफ़ीक़ात में एज़ाफ़ा फ़रमाए और अपने अस्लाफ़ की रविश-ओ-उस्लूबे तह़्रीर को जारी-ओ-सारी रखें। आमीन।
उ़लमा के तअस्सुरात
अ़बक़ातुल अनवार आ़लमे इस्लाम ख़ुसूसन आ़लमे तशीअ़् के लिए एक शाहकार है, तो उ़लमाए हिन्द की इ़ल्मी और मन्तिक़ी सलाह़ियतों का इब्तेकार भी है। अगर बर्रे सग़ीर से बाहर की दुनिया इस पर फ़ख़्र करती है तो हम हिन्दुस्तानी भी इस पर नाज़ करते हैं कि वोह दुश्मनाने अह्लेबैत अ़लैहिस्सलाम के बातिल ख़यालात के लिए शम्शीरे बुर्रां है तो इस के आ़लेमाना-ओ-मुस्तनद-ओ-मुदल्लल मतालिब, एअ़्जाज़ आमेज़ और ह़ुज्जते मज़हब भी है।
अ़ल्लामा अमीनी रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह फ़रमाते हैं:
जिसने भी इस किताब को देखा तो रोशन-ओ-वाज़ेह़ मोअ़्जिज़ा पाया। कोई बातिल इसकी तरफ़ आ नहीं सकता। मैंने इसके नेहायत बलन्द और इ़ल्मी मतालिब से बहुत ज़्यादा इस्तेफ़ादा किया है इसी लिए मुसलसल इसका शुक्रिया अदा करता रहा हूँ।
(अल-ग़दीर, जि.१, स.१५६)
मरह़ूम मिर्ज़ा अबुल फ़ज़्ल कलान्तरी तेह्रानी लिखते हैं:
सैयद जलील, मुह़द्दिस, आ़लिम, आ़मिल…..मेरे ख़याल में जब से इ़ल्मे कलाम की बुनियाद रखी गई है, कोई ऐसी किताब जो मुख़ालिफ़ किताबों की तमाम रवायतों पर नज़र और बाबे फ़ज़ाएल में कसरत से इत्तेलाअ़् रखता हो, अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन हिन्दी रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह के अ़लावा मज़हबे शीआ़ में अब तक किसी ने ऐसी किताब तस्नीफ़ नहीं की है।
(किताब शेफ़ाउस्सुदूर ज़ैले जुम्ला: अस्सलामो अ़लै-क यब-न फ़ातेमतज़्ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा, स.१००)
इस के अ़लावा उ़लमा-ओ-मराजेअ़् ए़ज़ाम रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैहिम के बहुत से ख़ुतूत इस किताब की तअ़्रीफ़-ओ-तम्जीद में मौजूद हैं यहाँ उनसे सर्फ़े नज़र करते हैं।
रविशे तह़्क़ीक़
साह़ेबे अ़बक़ात, अ़बक़ात की तदवीन-ओ-तरतीब में पहले साह़ेबे तोह़्फ़ा के मतलब को उसके दक़ीक़-ओ-कामिल मुस्तनदात के साथ दर्ज करते हैं। फिर उसका जवाब तह़्रीर फ़रमाते हैं और अपने जवाब में पहले मूरिदे नज़र ह़दीस की सनद का तज्ज़िया करते है फिर अह्ले सुन्नत ही की मोअ़्तबर किताबों और उनके तुरुक़ के मुअस्सक़ मदारिक से उस के क़तइ़स्सुदूर और मुतवातिर होने को साबित करते हैं। और उस सिलसिले में उस ह़दीसे शरीफ़ के तमाम रावियों के अस्मा को उनके तारीख़े-ओ-वफ़ात के साथ दूसरी सदी हिजरी से तेरहवीं सदी हिजरी तक सिलसिले वार नक़्ल फ़रमाते हैं। फिर उस रावी की मूरिदे नज़र रवायत को ज़िक्र करते हुए रावी का तआ़रुफ़ कि अस्ह़ाब में है या ताबई़ आ़लिम है या मुअ़ल्लिफ़, फिर उस रावी के ह़ाल को उन्हीं के कुतुब तराजिम-ओ-रेजाल को बुनियाद बनाकर पेश करते हैं। फिर ह़दीस के मत्न और शीआ़ अ़क़ीदे के मुताबिक़ इमामते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम पर दलालत की कैफ़ीयत के बारे में उ़म्दा बह़्स पेश करके आख़िर में एक एक एअ़्तेराज़ात-ओ-शुब्ह़ात के मुदल्लल और मुस्तनद और मोह़्कम जवाब दर्ज करते हैं।
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन क़ुद्देस सिर्रहू मतालिब या अह़ादीस के नक़्ल करने में इन्तेहाई दिक़्क़ते नज़र से काम लेते हैं। मसादिर-ओ-मदारिक ह़त्ता बाब, फ़स्ल, सफ़ह़ा भी मुकम्मल तौर से नक़्ल फ़रमाते हैं। यही साह़ेबे अ़बक़ात की रविश रही है और उनके बअ़्द बक़िया किताबों को मुकम्मल करने वालों (एख़्तेलाफ़) की भी यही रविश रही है।
अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन रिज़वानुल्लाह तआ़ला अ़लैह की रविशे तह़्क़ीक़ ह़क़ीक़त में मुख़्तलिफ़ उ़लूम जैसे इ़ल्मे तफ़सीर, कलाम, ह़दीस, दरायत, तारीख़, अदबीयात…..की बह़्स के हमराह होती है इस बेना पर अ़बक़ातुल अनवार की बह़्सें इन्तेहाई कामिल, जामेअ़् और हर मुफ़स्सिर, मुतकल्लिम-ओ-मुह़द्दिस और अदीब के लिए क़ाबिले इस्तेफ़ादा हैं।
शेख़ आक़ा बुज़ुर्ग तेह्रानी मीर ह़ामिद ह़ुसैन क़ुद्देस सिर्रहू के अख़्लाक़ी-ओ-रूह़ानी नुक्ते की तरफ़ तवज्जोह दिलाते हुए लिखते हैं :
“ह़ैरत की बात येह है कि इस अ़ज़ीमुश्शान कारनामे और नफ़ीस किताबों के दाएरतुल मआ़रिफ़ की तालीफ़ में सिर्फ़ इस्लामी सर ज़मीन या मुसलमानों के बदस्त तैयार होने वाली रोशनाई और काग़ज़ ही से इस्तेफ़ादा किया है येह उनके अ़ज़ीम तक़्वा-ओ-परहेज़गारी का बय्यन सबूत है।”
(मोह़म्मद रज़ा ह़कीमी, मीर ह़ामिद ह़ुसैन, दफ़्तरे नशे्र फ़रहंगे इस्लामी १३५९)
साह़ेबे अ़बक़ात ने इस दाएरतुल मआ़रिफ़ की तदवीन में बड़ी बड़ी ज़ह़्मतें बर्दाश्त की हैं क्योंकि उस दौर में आज के किताबख़ानों जैसे किताबख़ाने नहीं थे। उस दौर में ज़्यादा तर अहम किताबें ख़त्ती या नायाब होती थीं और मनाबेअ़्-ओ-मुतून के तदारुक के लिए सफ़र-ओ-ह़ज़र में ही मुतालेआ़-ओ-इस्तेन्साख़े मनाबेअ़् में उ़म्र सर्फ़ हो जाती थी मगर इसके लिए मरह़ूम अ़ल्लामा ने अपने को तैयार किया। एक मुल्क से दूसरे मुल्क, इ़राक़ से अ़रबिस्तान मक्का मोअ़ज़्ज़मा में किताब ख़ानए ह़रमैन शरीफ़ैन की किताबों की ख़ाक छानते हुए अपने लिए नायाब गौहर तलाश करके यकजा करते रहे, यहाँ तक कि जब सुनते हैं कि उनके मक़सद का अहम तरीन गौहर और नायाब नुस्ख़ा मक्का के देहातों में किसी देहात के किताबख़ाने में है जिसका मालिक किसी भी शक्ल में उसे दिखाने तक कि लिए राज़ी नहीं है तो आप आराम से नहीं बैठते। आख़िरकार उसे ह़ासिल करने कि लिए सफ़र की सऊ़बतों को तह़म्मुल करते हुए और शिक्सता नफ़्सी का सबूत फ़राह़म करते हुए रातों को जाग कर नुस्ख़ा बरदारी करने के अ़लावा चन्द दिन अपनी इज़्ज़त और शान-ओ-ह़ैसीयत की परवाह किए बग़ैर दुश्मन और मुतअ़स्सिब तरीन मुख़ालिफ़ के किताबख़ाने में नौकरी करने के लिए जान ख़तरे में डाल कर अपने गौहरे मक़सूद को ह़ासिल कर लेते हैं।
इस तरह़ के वाक़ेआ़त बेशुमार हैं जिनको यहाँ नक़्ल करने की गुन्जाइश नहीं है वरना कौन नहीं जानता जब साह़ेबे अ़बक़ात लिखते लिखते थक जाते तो दूसरे हाथ से लिखते इस तरह़ दोनों हाथों से तह़्रीर फ़रमाते थे यहाँ तक कि एक हाथ लिखने से जवाब दे दिया आख़िरकार बैठ कर भी लिखना मुतालेआ़ करना मुश्किल हो गया तो लेट कर मुतालेआ़ फ़रमाते और अपना काम जारी रखा क्योंकि इस आ़शिक़े वेलायते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के दिल में सिर्फ़ एक ही आर्ज़ू थी कि दुश्मने अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की ज़बान पर मोह़्कम-ओ-मुस्तनद और इ़ल्मी तरीक़ए इस्तेदलाल से हमेशा के लिए मुह्र सब्त कर दी जाए कि फिर कभी कोई मुख़ालिफ़ इमामते अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम और दलाएल में शुब्ह़ा न कर सके। और शाएद येह तमन्ना पूरी भी हो गई क्योंकि अ़बक़ातुल अनवार के मतालिब के बारे में फिर किसी ने लब कुशाई की जुरअत नहीं की।
ख़ुदाया! इस मुदाफ़ेए़ वेलायत, इमामे मुतकल्लेमीन को उनके जद अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के साथ मह़्शूर फ़रमा और हम सब को इस इमामत-ओ-वेलायत की तर्वीज-ओ-तब्लीग़ की तौफ़ीक़ ए़नायत फ़रमा ताकि वारिसे ताजदारे ग़दीर इमामे अ़स्र अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर का मैदान फ़राहम हो और हम सब को उनके अअ़्वान-ओ-अन्सार में शुमार फ़रमा। आमीन।
दीसे ग़दीर में मअ़्नए वेलायत – ओदबा और शोअ़रा की नज़र में (२)
अल्ह़म्दो लिल्लाहे व सलामुन अ़ला ए़बादिल्लज़ी-न इस्तफ़ा
ख़ुदा का शुक्र कि उसने हमें मौक़अ़् फ़राहम किया और गुज़श्ता चन्द बरसों से मैगज़ीन “आफ़ताबे वेलायत” के ज़रीए़ ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की वेलायत-ओ-वसायत और उन ह़ज़रत अ़लैहिस्सलाम के फ़ज़ाएल-ओ-कमालात पर मबनी मज़ामीन पेश करने की सआ़दत मरह़मत फ़रमाई।
गुज़श्ता साल यअ़्नी सन १४४१ हि. ज़िलह़िज्जा के शुमार में मज़्कूरा उ़न्वान के तह़त एक मज़्मून आफ़ताबे वेलायत सफ़ह़ा १२ ता २१ शाएअ़् हो चुका है और अब उसी मज़्मून को आगे बढ़ाते हुए दूसरी क़िस्त ह़ाज़िरे ख़िदमत है।
बात को आगे बढ़ाने से पहले गुज़श्ता मज़्मून का ख़ुलासा चन्द सतरों में मुलाह़ेज़ा फ़रमाएँ:
अइम्मए हुदा अ़लैहिमुस्सलाम और उ़लमाए इमामिया ने मौला के मअ़्ना सद्रे इस्लाम के अ़रब और बअ़्द की नस्लों के अ़रब ने जो समझा है उसे बयान किया है।
मौला के मअ़्ना नामवर ओदबा और शोअ़रा ने अपने अश्आ़र-ओ-बयान में वही बयान किया है जिसे पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ख़ुदा के ह़ुक्म से बयान किया है।
शोअ़रा ने ह़दीसे ग़दीर को मुनासिब क़ाफ़िया के साथ शेअ़्र की शक्ल में उतारा है जो ह़दीसे ग़दीर के मुस्तनद होने को साबित करते हैं।
इस मज़्मून का माख़ज़-ओ-मदरक, किताब “अल ग़दीर फ़िल किताबे वस्सुन्नते वल अदब” है जो “अल ग़दीर” के नाम से मशहूर है। इसके मुअल्लिफ़ शेख़ अ़ब्दुल ह़ुसैन अह़्मद अल अमीनी अल नजफ़ी क़ुद्देस सिर्रहू हैं जो अ़ल्लामा अमीनी के नाम से मशहूर हैं। येह किताब अ़रबी ज़बान में लिखी गई थी। फ़ारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी ज़बान में तर्जुमा हो चुका है।
अ़ल्लामा अमीनी और किताब अल ग़दीर का मुख़्तसर तआ़रुफ़।
शेअ़्र और शोअ़रा की अहम्मीयत पर रोशनी डाली गई है। अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम, पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम शेअ़र-ओ-शोअ़रा की क़द्र करते थे और बअ़्ज़ मौक़ों पर तो शोअ़रा से शेअ़्र कहने और पढ़ने की फ़रमाइश करते थे। शोअ़रा की तश्वीक़-ओ-तरग़ीब के लिए अइम्मा की ज़बाने मुबारक से इस तरह़ के जुम्ले नज़र आते हैं:
“जो एक शेअ़्र हमारे बारे में कहे, ख़ुदावन्द आ़लम बेहिश्त में उसके लिए एक घर बनाता है।”
पहली सदी हिजरी के शोअ़रा का तज़्केरा करते हुए सबसे पहले अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के शेअ़्र बयान किए गए हैं। अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने मन कुन्तो मौलाहो फ़-हाज़ा अ़लीयुन मौला में मौला के मअ़्ना को बयान करते हुए कहा है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एताअ़त की तरह़ उनकी एताअ़त भी तमाम लोगों पर वाजिब है।
दूसरे शाए़र ह़स्सान बिन साबित अन्सारी हैं। ह़स्सान बिन साबित के अश्आ़र को तर्जुमा-ओ-तज्ज़िया के साथ बयान किया गया है।
अब इस मज़्मून में दीगर शोअ़रा और उनके अश्आ़र का तज़्केरा किया जाएगा:
बुज़ुर्गाने दीन की नज़र में शेअ़्र और शोअ़रा का मक़ाम
गुज़श्ता शुमारा में हम ने शेअ़्र-ओ-शोअ़रा की अहम्मीयत को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और अइम्मए ह़ुदा अ़लैहिमुस्सलाम की नज़र में इशारा किया और अब यहाँ इख़्तेसार के साथ बुज़ुर्गाने दीन की नज़र में उसकी तरफ़ इशारा करेंगे और फिर अस्ल मतलब की तरफ़ पलटेंगे।
फ़ुक़्हाए उम्मत और ज़अ़्माए मज़हब ने भी मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम की सीरत की पैरवी की है और दीन की ख़िदमत की राह में और मज़हब की इज़्ज़त-ओ-तकरीम की हिमायत में और अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के आसार की ह़ेफ़ाज़त में क़याम किया और अ़वाम के दरमियान अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम के नाम को रवाज देने के लिए शोअ़रा की हिम्मत अफ़ज़ाई की और उन्हें इन्आ़मात से नवाज़ा और जहाँ फ़िक़्ही किताबों की तालीफ़ और मआ़रिफ़े इस्लामी को अहम्मीयत दी वहीं शेअ़्री किताबों और अदबी फ़ुनून की तशरीह़ की तदवीन में किताबें तह़्रीर की ताकि शेअ़्र-ओ-अदब के उसूल को तक़्वीयत पहुँचाएँ।
हमारे अ़ज़ीमुश्शान आ़लिमे बुज़ुर्गवार मरह़ूम शेख़ कुलैनी रह़्मतुल्लाह अ़लैह जिन्होंने किताब अल-काफ़ी लिखी है, उनकी एक किताब अश्आ़र पर मुश्तमिल है और येह अश्आ़र अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की शान में कहे गए हैं। इसी तरह़ हमारे बुज़ुर्ग आ़लिम अ़याशी जिन्होंने बहुत सी किताबें लिखी हैं, एक किताब मआ़रीज़ुश्शेअ़्र लिखा है। मरह़ूम शेख़ सदूक़ रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अश्आ़र पर मुश्तमिल एक किताब लिखी है। मरह़ूम जलूदी बसरा के एक मअ़्रूफ़ शीआ़ आ़लिम की एक किताब है जिस में आप ने अ़ली अ़लैहिस्सलाम के बारे में जो भी शेअ़्र हैं उन्हें जमअ़् किया है।
अबुल ह़सन शमशाती मुअल्लिफ़े किताब “मुख़्तसर फ़िक़्हे अह्लेबैत” ने एक किताब फ़ुनूने शेअ़्र पर लिखी है। शेख़ मुफ़ीद रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने भी शेअ़्र-ओ-शाए़री से मरबूत मसाएल पर एक किताब लिखी है। सैयद मुर्तज़ा (अ़लमुल हुदा) का एक शेअ़्री दीवान मौजूद है।
इन फ़ुक़्हा के अ़लावा दीग़र फ़ुक़्हा-ओ-उ़लमाए शीआ़ ने भी शेअ़्र-ओ-शाए़री की तश्वीक़ की है और मुख़्तलिफ़ ई़दों मसलन अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम की वेलादत और ई़दे ग़दीर वग़ैरह पर मजालिस-ओ-मह़ाफ़िल का इनए़क़ाद करते रहे हैं और अइम्मा अ़लैहिमुस्सलाम की शहादत के मौक़ों पर शोअ़रा को अपनी मजालिस में जमअ़् करते रहे हैं ताकि वोह मरसिया सराई करें और मकतबे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को ज़िन्दा रखें।
येह तरीक़ा हर ज़माने में राएज रहा है और इसे रौनक़ मिलती रही है, हमारे बुज़ुर्ग आ़लिम आ़यतुल्लाह बह़्रुल उ़लूम और उस्तादे गेराँ क़द्र मरह़ूम काशेफ़ुल ग़ेता को ख़ास अहम्मीयत ह़ासिल है।
बात को ख़त्म करते हुए एक छोटा सा वाक़ेआ़ नक़्ल करते है:
रोशन दिल शाए़रे अह्लेबैते इ़स्मत ‘सैयद ह़ैदर ह़िल्ली’ ने एक मज़हबी मजलिस में एक क़सीदा पढ़ा और सैयद शीराज़ी को मुतास्सिर किया। मजलिस के ख़त्म होने के बअ़्द सैयद शीराज़ी ने क़स्द किया कि २० लीरा उ़स्मानी सिला के तौर पर सैयद ह़ैदर ह़िल्ली को देंगे। लेकिन जब उन्होंने इस बात को अपने चचा हाज मिर्ज़ा इस्माई़ल के सामने रखा तो उन्होंने इसे मुनासिब नहीं समझा और कहा कि येह रक़म बहुत कम है और फ़रमाया वोह अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के दरबार के शाए़र है और रक़म की येह मेक़दार उनके शायाने शान नहीं है। सैयद ह़ैदर, देअ़्बल-ओ-ह़ुमयरी की तरह़ हैं और इन दोनों की तरह़ बलन्द मर्तबा हैं। अइम्मए हुदा अ़लैहिमुस्सलाम अपने ज़माने के शोअ़रा को सोने के सिक्कों से पुर थैली दिया करते थे और मुनासिब है कि तुम एक सौ लीरा उन्हें दो। इस बेना पर आ़यतुल्लाह बुज़ुर्ग और मरजए़ आ़ली क़द्र सैयद ह़ैदर की ज़ियारत को पहुँचे और मुब्लिग़ सौ लीरा बउ़न्वाने सिला तज्लील-ओ-एह़्तेराम के साथ उन्हें मरह़मत किया और शाए़रे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के हाथों को बोसा दिया।
गुज़श्ता शुमारे में हम ने पहली सदी के शाए़र ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और मअ़्रूफ़ सह़ाबी ह़स्सान बिन साबित और उन के अश्आ़र का तज़्केरा किया। अब मुलाह़ेज़ा हो पहली सदी के शाए़र क़ैस अन्सारी के ह़ालात और उनके अश्आ़र:
क़ैस बिन उ़बादा अन्सारी
क़ैस बिन उ़बादा बिन दुलैम (दुलैहम) बिन ह़ारिस बिन ह़ुज़ैमा (ख़ुज़ैमा) इब्ने सअ़्लबा बिन ज़रीफ़ बिन ख़ज़रज बिन साए़दा बिन कअ़्ब बिन ख़ज़रज अल-अकबर इब्ने ह़ारिसा और आप की माँ का नाम फ़क़ीहा बिन्ते उ़बैद बिन तअ़्लीम बिन ह़ारिसा है।
आप क़बीलए ख़ज़रज से तअ़ल्लुक़ रखते थे और आप का ख़ानदान ज़मानए जाहिलीयत में भी और इस्लाम के ज़हूर के बअ़्द भी अ़ज़मत-ओ-जलालत का ह़ामिल रहा है।
क़ैस की कुनियत अबुल क़ासिम, अबुल फ़ज़्ल, अबू अ़ब्दिल्लाह, अबू अ़ब्दिल मलिक भी थी।
क़ैस एक शुजाअ़् और सख़ी इन्सान थे। क़ैस अ़ली अ़लैहिस्सलाम के शीओ़ं और उनके तरफ़दारों में थे। अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने उन्हें सफ़र के महीने ३६ हि. में मिस्र का ह़ाकिम बनाकर भेजा था और ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने फ़रमाया: मिस्र जाओ, मैं तुम्हें वहाँ का ह़ाकिम बनाता हूँ। मदीना के बाहर ठहरो और अपने दोस्तों और जो भी तुम्हारे लिए मूरिदे एअ़्तेमाद हैं, अपने साथ यहाँ से ले जाओ ताकि जब मिस्र में दाख़िल हो, तो एक बड़ी जमाअ़त के साथ दाख़िल हो और शिकोह-ओ-अ़ज़मत का मुज़ाहेरा हो। येह काम दुश्मन की आँखों में ख़ौफ़ पैदा करेगा और दोस्तों के दिलों को ख़ुश करेगा और येह उनकी इज़्ज़त-ओ-शौकत का बाइ़स होगा। जब तुम इन्शाअल्लाह मिस्र पहुँचो तो नेक लोगों के साथ नेकी करो और मश्कूक लोगों के साथ सख़्ती से पेश आओ और तमाम अफ़रादे ख़ास-ओ-आ़म के साथ नर्म-ओ-मुलाएम, मेह्रबान रहो क्योंकि नर्मी और मेह्रबानी में बरकत-ओ-अम्न है।
क़ैस ने जवाब में कहा: ऐ अमीरुल मोअ्मेनीन! ख़ुदा आप पर रह़्मत करे, जो कुछ आप ने फ़रमाया मैं समझ गया लेकिन लश्कर और सिपाहे लश्कर को आप की ख़िदमत में लाता हूँ और ह़स्बे ज़रूरत उनकी इस्लाह़ फ़रमाएँ ताकि वोह फ़ौरन रवाना हों और मैं अपने अह्ल-ओ-अ़याल के साथ मिस्र रवाना हो जाऊँ और आप ने जो ख़ुश ख़ूई और नर्मी-ओ-मेह्रबानी के बारे में सिफ़ारिश की है ख़ुदा से मदद तलब करता हूँ कि उसी तरह़ कर सवूँÀ।
क़ैस अपने ख़ानदान के साथ लोगों के हमराह मिस्र की तरफ़ चले और पहली रबीउ़ल अव्वल को मिस्र में दाख़िल हुए और मिम्बर पर पहुँचे और एक ख़ुत्बा पढ़ा और ख़ुदा की हम्द-ओ-तअ़्रीफ़ की और कहा ख़ुदा का शुक्र है कि उस ने ह़क़ को ज़ाहिर और बातिल को मिटा दिया और ज़ालेमीन को सरकूब किया। ऐ लोगो! हम ने रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के बअ़्द बेह्तरीन फ़र्द को पहचाना और उनकी बैअ़त की। तुम भी आओ, ख़ुदा और सुन्नते रसूले ख़ुदा की बुनियाद पर बैअ़त करो और अगर हम ख़ुद इस रविश पर न हों तो तुम्हारी गर्दन पर कोई बैअ़त न होगी। लोग खड़े हुए और बैअ़त की और मिस्र के ह़ाकिमों ने अह्ले मिस्र के साथ क़ैस के सामने अपने सरों को तअ़्ज़ीम से झुका दिया।
क़ैस मख़्सूस सूझ बूझ के इन्सान थे। आप चार महीने और पाँच रोज़ मिस्र की वेलायत के ओ़ह्दे पर थे और फिर ५ रजब को मिस्र से निकले और उसके बअ़्द आप कूफ़ा आए और फिर ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने आप को आज़रबाईजान की वेलायत सौंपी और इसके बअ़्द आप जंगे जमल में शरीक हुए। आप की तकनीकी महारत और होशियारी की वजह से ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने आप को शुर्ततुल ख़मीस का सालार बनाया था।
तज़क्कुर
जनाब क़ैस अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के एक मख़्सूस सह़ाबी थे और सारी ज़िन्दगी ह़ज़रत के साथ रहे और अपनी महारत-ओ-होशियारी और निज़ामी और जंगी फ़ुनून पर तसल्लुत की बेना पर सालारी-ओ-गवर्नरी के ओ़ह्दों पर फ़ाएज़ रहे। अ़ल्लामा अमीनी क़ुद्देस सिर्रोहू ने तफ़सील के साथ उनके ह़ालात को दर्ज किया है। मुलाह़ेज़ा हो किताब अल-ग़दीर, हमारा मौज़ूअ़् फ़िलह़ाल इन तफ़्सीलात से मर्बूत नहीं है।
तवज्जेाह
इमाम अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की शहादत के बअ्द आप इमाम ह़सन अ़लैहिस्सलाम की वेलायत में थे। जनाब क़ैस की मुआ़विया के साथ सुल्ह़ के वाक़ेआ़त तारीख़ में मौजूद हैं। लेकिन तवज्जोह रहे कि जनाब क़ैस ने मुआ़विया को कभी भी ख़लीफ़ा या वली नहीं माना बल्कि ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और ख़ानदाने अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को ख़लीफ़ए बरह़क़ जान, इसलिए क़ारेईन मोह़्तरम मुग़ालता में न पड़ें। क़ैस की वफ़ात सन ६० हि. या ५९ हि. लिखी गई है। बअ़्ज़ लोगों ने ८५ हि. लिखा है।
अश्आ़रे क़ैस बिन उ़बादा
जनाब क़ैस ने अ़लानिया और वाज़ेह़ तौर पर इमामते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम पर गवाही दी है और दुश्मने अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की मज़म्मत की है और ख़ास तौर पर मुआ़विया लअ़्नतुल्लाह अ़लैह को जगह जगह लताड़ा है। यहाँ हम क़ैस अन्सारी के चन्द शेअ़र नक़्ल कर रहे हैं। येह अश्आ़र क़ैस बिन सअ़्द ने जंगे सिफ़्फ़ीन के मौक़ेअ़् पर इमाम अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के सामने पेश किए थे। येह क़सीदए “लामीया” से है। इस क़सीदे की इब्तेदा येह है:
क़ुल्तो लम्मा बग़लअ़दूवो अ़लैना
ह़स्बोना रब्बोना व नेअ़्मल वकीलो
“मैंने कहा उस वक़्त जब सितम किया दुश्मनों ने हम पर हमारा ख़ुदा हमारे लिए काफ़ी है और अच्छा वकील है (ह़िफ़ाज़त करने वाला है)।”
ह़स्बोना रब्बोनल्लज़ी फ़-तह़ल बसरह
बिल्अम्से वल ह़दीसो यतूलो
“हमारे लिए काफ़ी है वोह ख़ुदा जिसने बसरा को फ़तह़ कराया और उसकी दास्तान तूलानी है।”
मज़ीद तीन शेअ़्र मुलाह़ेज़ा हों:
व अ़लीयुन इमामोना व इमामो
ले-सेवाना अता बेहित्तन्ज़ीलो
यौमा क़ालन्नबीयो मन कुन्तो मौलाहो
फ़हाज़ा मौलाहो ख़-तबुन जलीलुन
इन-न मा क़ालहुन्नबीयो अ़लल उम्मते
ह़-तमुन मा फ़ीहे क़ा-ल वक़ी-ल
“अ़ली अ़लैहिस्सलाम हमारे इमाम-ओ-पेशवा हैं और हमारे अ़लावा अफ़राद के, क़ुरआन ने इस मअ़्ना को (अपने अन्दर) बयान किया है।
उस रोज़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया कि मैं जिस का मौला हूँ पस उसके येह अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम मौला हैं। येह बात बहुत अ़ज़ीम है और बड़ी अ़ज़मत वाली है।
जो कुछ पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया है, ह़त्मी और मुसल्लम है और उसमें चूँ चेरा की गुन्जाइश नहीं है।”
तज्ज़ियए अश्आ़र
क़ैस बिन सअ़्द बिन उ़बादा ने जंगे सिफ़्फ़ीन में इमाम अमीरुल मोअ्मेनीन ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम के ह़ुज़ूर में पेश किया।
शाए़र ने ग़दीर के दिन, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ख़ुत्बे का मफ़हूम यही समझा है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ह़ज़रत अ़ली अ़लैहिस्सलाम को सब का मौला क़रार दिया है और इस्लामी दुनिया के तमाम लोगों पर पेशवाई-ओ-वेलायत को वाजिब जाना है।
इब्तेदाए कलाम में शाए़र ने अपने और अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के दुश्मनों के मुक़ाबले में ख़ुदा को वकील और ह़ेफ़ाज़त करने वाला क़रार दिया है।
अस्नाद-ओ-मनाबेअ़्
१) इस क़सीदे को सैयद रज़ी क़ुद्देस सिर्रहू (मुतवफ़्फ़ा सन ४०६ हि.) ने ख़साएसुल अइम्मा में नक़्ल किया है।
२) शेख़ मुफ़ीद रह़्मतुल्लाह अ़लैह (मुतवफ़्फ़ा सन ४१३ हि.) ने अपनी किताब ‘अल फ़ुसूलुल मुख़्तारा’ जिल्द दुवुम सफ़ह़ा ८७ पर इन अश्आ़र को नक़्ल करने के बअ़्द लिखा है: येह अश्आ़र अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की इमामत-ओ-पेशवाई पर दलील होने के साथ इस बात की भी दलील पेश करते हैं कि शीआ़ अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के ज़माने में भी मौजूद थे और मोअ़्तज़ेला जो ए़नाद-ओ-दुश्मनी की बेना पर कहते हैं कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के दौर में शीआ़ के उ़न्वान से कोई वजूद नहीं था, उसे येह अश्आ़र रद्द करते हैं।
शेख़ मुफ़ीद रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने एक रेसाला वेलायत के मअ़्ना-ओ-मफ़हूम पर लिखा है उस में भी इन अश्आ़र को नक़्ल किया है और क़ैस के बारे में लिखा है कि: क़ैस का क़सीदा ऐसा है कि मुवर्रेख़ीन और रावियों में से कोई भी इन अश्आ़र के बारे में उन पर शक और कोई तरदीद नहीं की है और यक़ीन की बुनियाद पर उसे क़बूल किया है और बिल्कुल उसी तरह़ है कि जैसे जंगे जमल-ओ-सिफ़्फ़ीन में अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की मदद करने में शक-ओ-शुब्हा नहीं है। और क़सीदा का पहला शेअ़र येह है:
क़ुल्तो लम्मा बग़लअ़दूवो अ़लैना
ह़स्बोना रब्बोना व नेअ़्मल वकीलो
“जब दुश्मनों ने हम पर सितम किया तो मैंने कहा: हमारा ख़ुदा हमारे लिए काफ़ी है और अच्छा वकील है ह़िफ़ाज़त करने वाला है।”
३) अ़ल्लामा कराजकी (मुतवफ़्फ़ा सन ४४९ हि.) ने कन्ज़ुल फ़वाएद सफ़ह़ा २३४ पर रवायत की है और कहा: येह क़सीदा क़ैस बिन सअ़द के मिनजुम्ला अश्आ़र में से है कि जो आज तक मह़फ़ूज़ है और उसे उन्होंने जंगे सिफ़्फ़ीन में ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के ह़ुज़ूर में पेश किया था।
४) अबुल मुज़फ़्फ़र सब्त इब्ने जौज़ी ह़नफ़ी (मुतवफ़्फ़ा ६५४ हि.) ने किताब “अत्तज़्केरा” के सफ़ह़ा २० पर इस क़सीदे को मुकम्मल सनद की तह़्क़ीक़ के साथ नक़्ल किया है और फ़रमाते हैं: क़ैस ने इन अश्आ़र को अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के सामने जंगे सिफ़्फ़ीन में पढ़ा है।
५) मुफ़स्सिरे कबीर शेख़ अबुल फ़ुतूह़ राज़ी ने अपनी तफ़सीर की जिल्द २ के सफ़ह़ा १९३ पर इन अश्आ़र को बयान किया है।
६) हमारे बुज़ुर्ग हेबतुद्दीन रावन्दी ने “अल मज्मूउ़र्राएक़” में इस क़सीदे को नक़्ल किया है।
७) आक़ाए बुज़ुर्गवार क़ाज़ी नूरुल्लाह मरअ़शी शूस्तरी शहीदे सालिस रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “मजालिसुल मोअ्मिनीन” स. १०१ पर नक़्ल किया है।
८) अ़ल्लामा मजलिसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह (मुतवफ़्फ़ा सन ११११ हि.) ने “बेह़ारुल अनवार” जि.९, स.२४५ (क़दीम) में इन अश्आ़र को बयान किया है।
९) सैयद अ़ली ख़ान (मुतवफ़्फ़ा सन ११२० हि.) ने “अद्दरजातुर्रफ़ीआ़” में जंगे सिफ़्फ़ीन के ज़ैल में इन अश्आ़र को नक़्ल किया है।
और दूसरे बहुत से शीआ़ उ़लमाए मुताख़्ख़ेरीन ने इन अश्आ़र को क़ैस बिन सअ़द बिन उ़बादा से रवायत किया है।
क़ैस अपने इमाम के सामने पूरी तरह़ तस्लीम थे
आप का मक़ाम-ओ-मर्तबा ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के सामने ऐसा था कि बारहा अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की ख़िदमत में अ़र्ज़ करते थे कि मुआ़विया से मुक़ाबला किया जाए और उसे क़त्ल कर दिया जाए और मशवरा देते कि मुख़ालेफ़ीन के ख़िलाफ़ क़याम करें और इस तरह़ कहते:
“ऐ अमीरुल मोअ्मेनीन! पूरी ज़मीन पर आप से ज़्यादा किसी को मह़्बूब नहीं रखता जो हमारे उमूर की निगरानी अपने हाथ में ले और अ़द्ल-ओ-इन्साफ़ के क़ाएम करने और अह़्कामे इस्लामी को जारी कर सके क्योंकि आप चमकते हुए सितारा हैं और तारीक रातों में हमारे राहनुमा हैं, आप हमारे पनाहगाह हैं कि सख़्तियों में आप की पनाह में आ जाते और अगर आप को छोड़ दें तो हमारे लिए ज़मीन-ओ-आसमान तारीक हो जाएँगे लेकिन ख़ुदा की क़सम अगर मुआ़विया को उसके ह़ाल पर छोड़ दिया तो वोह जो चाहे हर मक्र-ओ-फ़रेब अन्जाम दे। वोह मिस्र की तरफ़ जाएगा और यमन के ह़ालात को दरहम बरहम कर देगा और मुल्के इ़राक़ की लालच करेगा, उसके हमराह यमन के कुछ लोग हैं जो क़त्ले उ़स्मान को बहाना बनाकर ज़ुल्म-ओ-सितम के तौर पर अपने दिलों में छिपाए हुए हैं और उ़स्मान के क़ातिलों से कीनाजूई और इन्तेक़ाम लेने को तुले हुए हैं। वोह लोग बजाए इ़ल्म-ओ-यक़ीन की पैरवी करने के और ह़क़ाएक़ को चश्मे वाक़ई़ से देखने के बजाए गुमान पर इक्तेफ़ा करते हैं और यक़ीन के बजाए शक में गिरफ़्तार हैं और ख़ूबियों के बजाए हवाए नफ़्स के पीछे भाग रहे हैं। ह़ेजाज़-ओ-इ़राक़ के लोगों को अपने साथ लीजिए और उस (मुआ़विया) की राहों को तंग कर दें और उसका मुह़ासिरा करके ऐसा काम करें कि वोह ख़ुद अपने अन्दर एह़्सासे नातवानी करे और ख़ुद से मायूस हो जाए।”
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने उनके जवाब में फ़रमाया: ख़ुदा की क़सम, ऐ क़ैस! तुम ने अच्छी बात कही और ख़ूबसूरत मतलब और मौक़अ़्-ओ-मह़ल से बात पेश की है।
तज़क्कुर
क़ैस बिन उ़बादा एक शाए़र-ओ-अदीब, एक माहिरे जंग, एक मुतफ़क्किर-ओ-मुदब्बिर, एक शुजाअ़्-ओ-बहादुर और आ़शिक़े अ़ली अ़लैहिस्सलाम थे, नादान और जाहिल न थे। इन तमाम कमालात के साथ बेह्तरीन मुबल्लिग़-ओ-मुनाज़िर भी थे। अपनी दलीलों से सामने वालों को बेबस कर देते थे। एक मुख़्तसर वाक़ेआ़ नक़्ल कर रहे हैं:
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने क़ैस को अपने पाक-ओ-पाकीज़ा फ़र्ज़न्द इमाम ह़सन अल-मुज्तबा अ़लैहिस्सलाम और अ़म्मार यासिर रह़्मतुल्लाह अ़लैह के हमराह कूफ़ा भेजा ताकि वहाँ के लोगों को अपनी मदद के लिए दअ़्वत दें। इब्तेदा में इमाम ह़सन अ़लैहिस्सलाम और फिर जनाब अ़म्मारे यासिर ने तक़रीरें कीं और फिर इन दोनों बुज़ुर्गवार के बअ़्द क़ैस खड़े हुए और ह़म्द-ओ-सनाए परवरदिगार के बअ़्द इस तरह़ फ़रमाया:
तल्ह़ा-ओ-ज़ुबैर ने ह़सद किया
ऐ लोगो! अगर ख़िलाफ़त-ओ-पेशवाई के मौज़ूअ़् में शूरा को क़बूल कर लें और उसे मेअ़्यार-ओ-मलाक क़रार दें तो जान लो कि अ़ली अ़लैहिस्सलाम तमाम लोगों के मुक़ाबले में इस्लाम लाने में सबक़त ले जाने में और रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के साथ हिजरत करने में और इ़ल्म-ओ-दानिश के मुआ़मले में, सबसे ज़्यादा हैं और इस मन्सब के लिए ह़क़दार हैं। जो भी इस ह़क़ीक़त-ओ-वाक़ई़यत का मुन्किर हो उसका क़त्ल मुबाह़ और ह़लाल है और किस तरह़ ह़लाल न हो? और अब येह तल्ह़ा-ओ-ज़ुबैर के लिए जो ख़ुद उन ह़ज़रत की बैअ़त की और ह़सद की बेना पर अपने शाना को बैअ़त के बोझ से झटक लिया और उन ह़ज़रत को छोड़ दिया और उनके लिए इत्मामे ह़ुज्जत हुई और फिर वोह कोई दलील नहीं रखते। (यअ़्नी तल्ह़ा-ओ-ज़ुबैर क्या दलील रखते हैं कि इब्तेदा में बैअ़त कर ली और बअ़्द में ह़सद की बेना पर ह़ज़रत से किनारा कश हो गए जब कि दीनदार मुहाजिर-ओ-अन्सार अ़ली अ़लैहिस्सलाम के रकाब में ह़ाज़िर हो गए और उनका साबिक़ रोशन-ओ-दरख़्शाँ था।)
कूफ़ा के मुक़र्रेरीन और ख़ुतबा अपनी जगह से उठे और बड़ी तेज़ी के साथ क़ैस की आवाज़ पर लब्बैक कही और मुकम्मल हिमायत की तो क़ैस ने येह शेअ़्र पढ़ा:
रज़ीना बेक़िस्मिल्लाहे इज़ का-न क़सम्ना
अ़लीया व अब्नाइर्रसूले मोह़म्मद
“हम उस चीज़ से राज़ी हैं जो ख़ुदा ने हमारे ह़िस्से में रखी। इस मौक़ेअ़् पर कि अ़ली अ़लैहिस्सलाम और फ़र्जन्दाने ह़ज़रत मोह़म्मद सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को हमारे ह़िस्से में रखा।”
(यअ़्नी हम राज़ी हैं ख़ुदा की तक़सीम से कि उसने हमारी क़िस्मत में मोह़ब्बते अ़ली अ़लैहिस्सलाम रखी)
क़ैस ने इसके बअ़्द जो शेअ़्र पढ़े उनका तर्जुमा नक़्ल कर रहे हैं:
“हम ने उनके मुक़द्दम का ख़ैर मक़दम किया और उनके हाथों को इ़श्क़-ओ-मोह़ब्बत की बेना पर बोसा दिया।”
“फिर ज़ुबैर वअ़्दा शिकन के लिए कोई एह़्तेराम नहीं है और उसके भाई तल्ह़ा के लिए भी कोई ख़ुसूसियत-ओ-एह़्तेराम नहीं है।”
“फ़र्ज़न्दे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और उनके वसी तुम्हारे पास आए और तुम तो परवरदिगार की ह़म्द-ओ-सना से आ़री हो।”
“हमारे दरमियान ऐसे अफ़राद हैं जो कि अपने तुन्द-ओ-तेज़ घोड़ों को मअ़्रकए जंग तक पहुँचाया और बलन्द नैज़ों और काटने वाली बरह्ना तलवारों के साथ आमाद जंग हैं।”
“जिसको भी आप (ऐ अमीरुल मोअ्मेनीन) हमारे लिए ह़ाकिम-ओ-आक़ा चुनें बग़ैर किसी चूँ चेरा के उसकी ह़ाकिमीयत-ओ-आक़ाइयत को क़बूल कर लेंगे, अगरचे वोह शख़्स हम पर आक़ाई-ओ-बुज़ुर्गी न रखता हो।”
कूफ़ा के लोगों ने जब ह़िमायत की तो क़ैस ने कहा:
जज़ल्लाहो अह्लल कू-फ़तुल यौ-म नज़रतो
अजाबू व लम या-बू बे-ख़ज़लाने मन ख़-ज़-ल
“ख़ुदा कूफ़ा के लोगों को मदद के लिए नेक अज्र ए़नायत करे, मुस्बत जवाब दिया और उन लोगों की तरफ़ कोई तवज्जोह न दी जिन्होंने मदद नहीं की।”
“तल्ह़ा और ज़ुबैर ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बीवी को अ़मदन जंग पर उकसाया और घर से बाहर निकाला और ऊँट पर सवार करके उसके ऊँट को दौड़ाया।”
“तुम्हारे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की वसीयत-ओ-सिफ़ारिश इस तरह़ की न थी। येह इन्साफ़ नहीं है और इससे बढ़कर कोई नाइन्साफ़ी नहीं है।”
“क्या इस रूदाद के बअ़्द किसी के लिए जाए सुख़न है जो कहे? ख़ुदा बुरा करता है ख़ाएनों की आर्ज़ूओं पर और उनकी मुख़ालिफ़तों पर।”
शेख़ुत्ताएफ़ा शेख़ तूसी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “अल-अमाली” के सफ़ह़ात ८७ व ९४ पर और शेख़ मुफ़ीद रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “अन्नुसरतुस्सैयदिल इ़तरते” में इन वाक़ेआ़त को नक़्ल किया है और इन को ‘अबयाते दालीया’ कहा है।
क़ैस मुअ़ल्लिमे दीन
क़ैस को मआ़लिमे दीनीया में महारत, क़ुरआन-ओ-सुन्नत पर उ़बूर और इब्हाम कलाम की मअ़्रेफ़त थी। वोह या वोह गोई में शिगाफ़ पैदा कर देते थे, नज़रियाती वकालत मुस्तरद करने का अच्छा सलीक़ा था। कलाम को अस्ल सरचश्मा से सँवारते थे, उनकी ख़िताबत वक़ीअ़् होती थी, बात को तोड़ कर रब्त पैदा करते थे। सलाबते बयान, ह़ुस्ने तक़रीर, एह़्तेजाज और मुनाज़रा की बरजस्ता गोई का दिल आवेज़ उस्लूब था। तमाम बातों को पूरे इस्तेद्लाल के साथ सुनने वाले तक पहुँचाते थे। वोह तलवार के साथ ज़बान के भी धनी थे। वोह अन्सार-ओ-ख़ज़रज के ख़तीब, शीई़यत के बलन्द क़ामत मुतकल्लिम और इ़तरते ताहिरा की बोलती ज़बान थे।
दुश्मने अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम मुआ़विया बिन अबू सुफ़यान ने सिफ़्फ़ीन में कहा था: अस्ल में अन्सार का ख़तीब क़ैस है, वोह रोज़ाना नए आहन्ग के साथ गुफ़्तुगू करता है।
और अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम ने इनकी शोअ़्ला बयानी पर फ़रमाया था: ख़ुदा की क़सम, वाह! तुम ने नफ़ीस तरीन बात कही, अब मुझे किसी दूसरे मशवरे की ज़रूरत नहीं है।
तज़क्कुर
अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम की ऐसी ताई़द के बअ़्द दूसरी गुन्जाइश ही कहाँ रह जाती है।
ख़ुदाया! हमें ख़िदमत-ओ-तब्लीग़े इमामत की तौफ़ीक़ अ़ता कर और इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम के सामने सुर्ख़रू होने की तौफ़ीक़ मरह़मत फ़रमा।
क़ैस बिन सअ़्द के ह़ालात के लिए एक मुफ़स्सल किताब की ज़रूरत है। एख़्तेसार के तक़ाज़े के तह़त इतने पर ही इक्तेफ़ा करते हैं। बक़िया उदबा-ओ-शोअ़रा जिन्होंने ग़दीर के दिन लफ़्ज़े ‘मौला’ के मअ़्ना अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत समझा है, नक़्ल करेंगे। इन्शा अल्लाह।
येह मज़्मून ऐसे ह़ालात में लिखा गया है जबकि सारी दुनिया कोरोना जैसी वबा में गिरफ़्तार है। दुनिया के अक्सर ह़िस्से में इस वबा ने सब को ख़ाएफ़ कर दिया है। इस साल ह़ज नहीं होगा और ज़ियारते अ़तबाते आ़लियात के रास्ते भी बन्द हैं, ग़दीर और अय्यामे मुहर्रम क़रीब हैं। ख़ुदाया! ह़क़्क़े ग़दीर के इन्ए़क़ाद और अ़ज़ाए सैयदुश्शोहदा अ़लैहिस्सलाम के क़याम के लिए ह़ालात को अम्न-ओ-अमान में बदल दे। वारिसे मौलाए ग़दीर-ओ-सैयदुश्शोहदा के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमा।
ख़ुदाया! शबे अव्वले क़ब्र, नूरे अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम से मेरी क़ब्र को मुनव्वर फ़रमा। आमीन।