किताब “शवारेक़ुन्नुसूस फ़ी तक्ज़ीबे फ़ज़ाएल अल लुसूस” का तआ़रुफ़ – दूसरा हिस्सा
किताब की तसनीफ़ में मुसन्निफ़ की रविश:
येह बात अपनी जगह तय है कि साह़ेबे किताब इ़ल्मे मुनाज़ेरा में जवाब नहीं रखते थे और इसीलिए हमेशा इस ह़क़ीक़त पर निगाह रखते हुए बह़्स करते:
१- मुख़ालिफ़ की ए़बारतों को मिन-ओ-अ़न नक़्ल करके मैदाने बह़्स-ओ-गुफ़्तुगू में पेश करते, फिर फ़ौरन उसमें इश्काल की निशानदेही फ़रमाते ताकि गुफ़्तुगू के लिए मौजूअ़् का दाएरा मुश्ख़्ख़स और वाज़ेह़ हो सके।
२- मुख़ालिफ़ की रवायतों के ज़रीए़ इस्तेदलाल करना।
३- ह़क़ बात पेश करना, मक़ामे इस्तेदलाल और वक़्ते मुनाज़ेरा ह़क़ीक़त का एअ़्तेराफ़ करना।
इसके अ़लावा साह़ेबे किताब ने “शवारेक़ुन्नुसूस” में जो रविश एख़्तेयार की है वोह मुन्दर्जा ज़ैल है:
१- उन्होंने रवायतों के ज़रीए़ इस्तेदलाल पेश किया है जिन्हें ख़ुद अह्ले सुन्नत ने रवायत किया है और ख़ुद उनके अस्ल मसादिर-ओ-मसानीद मतलब को नक़्ल किया है। किसी शीआ़ किताब में सुन्नी किताब से नक़्ल शुदा मतालिब पर भरोसा नहीं किया है।
२- रवायतों की सनदी बह़्स में जब रावियों की तौसीक़-ओ-तज़ई़फ़ की बात आती है तो उसे भी उन्हीं के उ़लमाए रेजाल और जरह़-ओ-तअ़्दील में उसूस और तराजिम के अस्ल किताब पर एअ़्तेमाद करके मतालिब नक़्ल किए हैं।
३- अह़्ले सुन्नत के किसी बुज़ुर्ग आ़लिम से कोई ह़दीस पेश फ़रमाते हैं तो उसके तमाम नाक़िलीन के अक़वाल को दक़ीक़ और नेहायत गहराई से तह़कीक-ओ-जुस्तुजू के बअ़्द ही उसे पेश किया है।
४- रावियों के ह़ालात को इस तरह़ पेश किया है कि उन पर ज़र्रा बराबर भी एअ़्तेबार नहीं किया जा सकता है। जिससे उनकी सारी ह़क़ीक़त वाज़ेह़ हो जाती है।
५- इन तमाम उ़मूर के बअ़्द साह़ेबे किताब इस मन्ज़िल पर एअ़्तेराज़ात के पहलूओं को आश्कार फ़रमाते हैं और फिर उनका इ़ल्मी और इस्तेदलाली अन्दाज़ में जवाब देते हैं।
६- फिर आख़िरी मरह़ले में अपने जवाब की ताई़द में उ़लमाए अह्ले सुन्नत के उन अक़वाल को शाहिद के तौर से पेश करते हैं जिनमें वोह उ़लमा एक दूसरे को बातिल क़रार देते हैं ताकि दलील मुकम्मल हो जाए और ह़ुज्जत तमाम हो जाए इसलिए कि उनके उ़लमा ख़ुद उनके लिए ह़ुज्जत-ओ-दलील हैं और मरजअ़्-ओ-पनाहगाह हैं।
येह किताब:
जैसा कि गुज़श्ता सत्र में ये बता चुके हैं कि येह किताब “शवारेक़ुन्नुसूस फ़ी तकज़ीबे फ़ज़ाएल…” जदीद तह़क़ीक़ के साथ दो जिल्दों में तबअ़् हुई है। किताब में तीन अबवाब हैं और हर बाब चन्द फ़स्लों पर मुश्तमिल है।
पहली जिल्द
बाबे अव्वल:
बाबे अव्वल: ख़लीफ़ए अव्वल की जअ़्ली तअ़्रीफ़ों पर मुश्तमिल है, इसमें छत्तीस (३६) फ़स्लें हैं और हर फ़स्ल में जुदागाना जअ़्ली फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है, इस तरह़ मज्मूई़ तौर से छत्तीस (३६) जअ़्ली फ़ज़ाएल का ज़िक्र करके हर एक का बेहतरीन और मुसकित जवाब पेश किया है।
बतौरे नमूना
फ़ज़ाएले अबू बक्र के ज़िम्न में वलीयुल्लाह देहलवी एज़ालतुल ख़फ़ा में कहते हैं : (एक वाक़ेआ़ के ज़िम्न में ) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने ख़लीफ़ए अव्वल से फ़रमाया: अल्लाह तआ़ला तुम्हें रिज़वाने अकबर अ़ता करेगा लोगों ने दरयाफ़्त किया: इससे क्या मुराद है?
फ़रमाया: (क़यामत दे दिन) अल्लाह तआ़ला आ़म तौर से अपने बन्दों के लिए और ख़ास तौर से अबू बक्र के लिए (तजल्ली) ज़हूर करेगा।
(एज़ालतुल ख़फ़ा, देहलवी, ३/४९४)
मुसन्निफ़ ने इस ह़दीस को इसके तमाम माख़ज़ से नक़्ल किया है जैसे अनस, जाबिर, अबू हुरैरा और आ़एशा, और अगर एक ही रावी से कई तरीक़ों से नक़्ल हुई है तो उसके हर तरीक़े को नक़्ल किया है जैसे: अनस से तीन तरीक़ों से नक़्ल हुई है। जाबिर से चार तरीक़ों से नक़्ल हुई है। अबू हुरैरा से एक तरीक़े से और आ़एशा से एक तरीक़े से।
साह़ेबे किताब के इसी एक ह़दीस को रद्द करने से इनके इ़ल्मी तबह़्ह़ुर और मुतालआ़ की गहराई और वुस्अ़ते नज़र का अन्दाज़ा होता है। कि तमाम रावियों के हर एक तरीक़े को नक़्ल करके उसका सनदी-ओ-इ़ल्मी जवाब पेश किया है।
फ़रमाते हैं : इस ह़दीस के बारे में अह़्ले सुन्नत के नक़्क़ाद मोह़द्दिस इब्ने अल जौज़ी इन्तेहाई क़ाबिले एअ़्तेमाद, सेक़ह, जिन के फ़ज़्ल-ओ-जलालत में कोई शक नहीं कर सकता है, नेहायत इत्मीनान और यक़ीन के साथ इस ह़दीस के जअ़्ली होने का एअ़्लान करते हैं।
कहते हैं : इस ह़दीस की कोई अस्ल नहीं है, येह ह़दीस मत्न और सनद दोनों एअ़्तेबार से झूठी है।
इसके बअ़्द साह़ेबे किताब “शवारेकुन्नुसूस” ने एक एक रावी और तुरुक़ को मुख़ालिफ़ के उ़लमाए इ़ल्मे रेजाल और उनके तराजिम के तवस्सुत से बातिल क़रार देते हैं। जहाँ उ़लमाए अह़्ले सुन्नत ने इन तमाम रावियों को ग़ैर मोअ़्तबर, काज़िब और ह़दीस गढ़ने वाला क़रार दिया है। मुसन्निफ़ ने इस ह़दीस के तमाम पहलूओं पर तक़रीबन तीस (३०) सफ़ह़ात पर इसी एक ह़दीस के बारे में बह़्स की है जिससे कि मुख़ालिफ़ में ताबे सुख़न नहीं रह जाती।
पहली जिल्द इन्हीं छत्तीस (३६) फ़स्लों में तमाम हो जाती है।
दूसरी जिल्द
इसमें दो बाब हैं, बाबे दुवुम, बाबे सेवुम।
बाबे दुवुम : इस बाब को ख़लीफ़ए दुवुम के बारे में क़ाएम किया है इस में तेईस (२३) जअ़्ली फ़ज़ाएल हैं और हर जअ़्ली फ़ज़ीलत को जुदागाना फ़स्ल में क़रार दिया है इस तरह़ बाबे दुवुम में २३ फ़स्लें होती हैं।
बाबे सेवुम : साह़ेबे किताब ने इसमें शेख़ैन के बारे में मुश्तरका झूठे फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है। इसमें तेरह (१३) झूठे फ़ज़ाएल हैं जो १३ फ़स्लों में बयान हुए हैं और इसी पर किताब ख़त्म हो जाती है।
आख़िर में येह वाज़ेह़ करता चलूँ कि किताब में बाब की शक्ल में साह़ेबे किताब ने मतालिब तरतीब दिए हैं, फ़स्लों का उ़न्वान मोह़क़्क़िक़ किताब ने क़रार दिया है।
मैं समझता हूँ, हर इन्साफ़पसन्द और तलाशे ह़क़ की आर्ज़ू रखने वालों को चाहिए कि इस अ़ज़ीमुश्शान किताब का मुतालेआ़ करें, ग़ौर करें, सेराते मुस्तक़ीम की तरफ़ जाने से रोकने वाले अस्बाब पर फ़िक्र करें, इसलिए कि इसके बअ़्द अब कोई उ़ज़> बाक़ी नहीं रह जाता, किसी तरह़ की तावील नहीं रह जाती। ह़ुज्जत तमाम हो जाती है और दलील मुकम्मल हो जाती है। अल्लाह तआ़ला साह़ेबे किताब नीज़ मोह़क़्क़िक़े किताब के लिए उनकी इस अ़ज़ीमुश्शान ख़िदमत को रोज़े मह़शर ज़रीअ़ए शफ़ाअ़त क़रार फ़रमाए।
ई़दे ग़दीर के मौक़ेअ़् पर मज़हबे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की तरवीज और उनके शीओ़ं के अ़क़ाएद को ताज़ा करने और जेला देने की सआ़दत पर ख़ुदा वन्द आ़लम का शुक्रगुज़ार हूँ। और दुआ़ करता हूँ अल्लाह हम सबको वेलायत-ओ-मोह़ब्बते अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम की तब्लीग़-ओ-तरवीज करने वालों में शुमार फ़रमाए। और वारिसे कअ़्बा इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम के ज़हूर में तअ़्जील फ़रमाए। आमीन।