अफ़्सानए अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा- दूसरा हिस्सा

अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा कौन था?

अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा से मुतअ़ल्लिक़ मुख़्तलिफ़ नज़रियात हैं, मुवर्रेख़ीन के नज़्दीक मश्हूर तरीन नज़रिया येह है कि अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा सैफ़ बिन उ़मर का ईजाद किया हुआ एक ख़याली शख़्स है। जिन मुवर्रेख़ीन ने तबरी को नक़्ल किया है उनके मुताबिक़ अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा एक यहूदी था जो यमन के शहर सनआ़ से तअ़ल्लुक़ रखता था जिसने उ़स्मान बिन अ़फ़्फ़ान के ज़माने में बज़ाहिर इस्लाम क़बूल किया था और इस्लाम और मुसलमानों के ख़ेलाफ़ साज़िश की। उसने कूफ़ा, बसरा, दमिश्क़ और मिस्र जैसे बड़े शहरों का सफ़र किया और अपने अ़क़ीदे की तब्लीग़ की जिसमें उसने ह़ज़रत ई़सा .अलैहिस्सलाम की रजअ़त की तरह़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की रजअ़त के अ़क़ीदे को पेश किया।

उसने अ़क़ीदए वेसायत की तब्लीग़ की और उसका येह दअ़्‌वा था कि ह़ज़रत अ़ली .अलैहिस्सलाम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ह़क़ीक़ी जानशीन थे और उ़स्मान बिन अ़फ़्फ़ान पर ख़ेलाफ़त ग़स्ब करने का इल्ज़ाम लगाया। उसने लोगों को उ़स्मान के क़त्ल के लिए उकसाया जिसे बअ़्‌द में क़त्ल कर दिया गया। मुवर्रेख़ीन ने येह भी लिखा है कि उसने सह़ीह़ इस्लाम की तब्लीग़ के नाम पर अपने मुबल्लिग़ मुख़्तलिफ़ शहरों में भेजे। जिस में उसने अम्र-बिल-मअ़्‌रूफ़ और नही-अ़निल-मुन्कर पर ज़ोर दिया और लोगों को उकसाया कि वोह अपने ह़ाकिम के ख़ेलाफ़ बग़ावत करें ह़त्ता कि उन्हें क़त्ल कर दें। जिन अस्ह़ाब को अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा का पैरवकार बताया गया है उन में अबू ज़र ग़फ़ारी और मालिक अश्तर जैसे गराँक़द्र अस्ह़ाब के भी नाम हैं।

तारीख़ी मनाबेअ़्

अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा की कहानी बारह सौ (१२००) बरस पुरानी है और मुवर्रेख़ीन-ओ-मुसन्नेफ़ीन ने एक के बअ़्‌द दीगर उसको नक़्ल किया और उसमें एज़ाफ़ा किया। इस क़िस्से के रावियों के सिलसिले पर एक नज़र से हमें येह पता चलता है कि इसमें सैफ़ मौजूद है। इन तारीख़दानों ने बराहे रास्त सैफ़ से येह रवायत नक़्ल की है:

१ – अबू जअ़्‌फ़र मोह़म्मद बिन जरीर अल-तबरी (वफ़ात ३१० हि.) ने अपनी किताब “तारीख़ुल उमम वल मुलूक” में ख़ुसूसी तौर पर सैफ़ से नक़्ल किया है। तबरी अपने क़िस्से को दो लोगों के ज़रीए़ सैफ़ से नक़्ल करते हैं।

(अ) उ़बैदुल्लाह बिन सअ़्‌द ज़ोहरी ने अपने चचा यअ़्‌क़ूब बिन इब्राहीम से और उन्होंने सैफ़ से।

(ब) सरी बिन यह़्या ने शोऐ़ब बिन इब्राहीम से और उन्होंने सैफ़ से।

२ – इब्ने अ़साकीर (वफ़ात ५७१ हि.) ने अपनी किताब “तारीख़े दमिश्क़” में इस वाक़ेए़ को अबुल क़ासिम समरक़न्दी से, उन्होंने अबू ह़ुसैन नुक़ूर से, उन्होंने अबू ताहिर मुख़ल्लिस से, उन्होंने अबू बक्र बिन सैफ़ से, उन्होंने सरी से, उन्होंने शोऐ़ब बिन इब्राहीम से, उन्होंने सैफ़ से। लेहाज़ा, यहाँ पर भी सैफ़ ही इसका अस्ली ज़रीआ़ है, जिसके तसलसुल से तबरी ने नक़्ल किया है।

३ – इब्ने असीर (वफ़ात ६३० हि.) ने अपनी किताब “अल-कामिल” में तबरी के ज़रीए़ नक़्ल किया है।

४ – इब्ने अबी बक्र (वफ़ात ७४१ हि.) की “अत्तम्हीद” नामी एक किताब है, जिससे कुछ क़लमदानों ने नक़्ल किया है। येह किताब उ़स्मान के क़त्ल के बारे में है और इसके दीबाचे में “अल-फ़ुतूह़” किताब का ज़िक्र है जो सैफ़ की है, और इसी तरह़ इब्ने असीर का भी नाम मर्क़ूम है। इब्ने असीर ने तबरी से और तबरी ने सैफ़ से नक़्ल किया है।

५ – ज़हबी (वफ़ात ७४८ हि.) ने अपनी किताब “तारीख़ुल इस्लाम” में जि.२, स. १२२-१२८ पर इस कहानी को सैफ़ की किताब “अल-फ़ुतूह़” से नक़्ल किया है। तबरी भी इसका एक ज़रीआ़ है।

६ – इब्ने कसीर (वफ़ात ७७४ हि.) ने अपनी किताब “अल-बदाया वन्नेहाया” की जि.७ में तबरी से नक़्ल किया है।

इसके अ़लावा बहुत से तारीख़दानों ने इसको बिल वास्ता नक़्ल किया है मगर ज़्यादातर ने तबरी से बराहे रास्त नक़्ल किया है। येह इस ह़क़ीक़त का बय्यिन सबूत है कि अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा का मूजिद सैफ़ बिन उ़मर है जिसकी किताब से तबरी ने नक़्ल करने का दअ़्‌वा किया है। ज़्यादा तफ़्‌सीलात के लिए तारीख़े तबरी में अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा से मुतअ़ल्लिक़ रवायतों के रावियों के सिलसिले का जाएज़ा लिया जा सकता है। मिसाल के तौर पर अंग्रेज़ी तर्जुमे की पंद्रहवीं जिल्द में सैफ़ बिन उ़मर या अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा के ज़ैल में मुलाह़ेज़ा करें।

किताब का ख़ुलासा

इस किताब के ख़ुलासे में मुसन्निफ़ कहते हैं कि किस तरह़ सैफ़ बिन उ़मर के जअ़्‌ली क़िस्सों ने इस्लामी तारीख़ में जगह पाई। फिर लिखते हैं कि मैं ने इस अफ़्साने और जअ़्‌ली शख़्सीयत का पता लगाया जो तारीख़े इस्लाम की किताबों में मौजूद है ख़ुसूसन जो मुस्तश्रेक़ीन की किताबों का अहम ज़रीआ़ है। दक़ीक़ मुतालेआ़ के बअ़्‌द मैं मुत्मइन हुआ कि उनमें कुछ ख़ास मक़ासिद के लिए घड़े गए हैं। इन अफ़्सानों और जअ़्‌ली शख़्सीयात का मम्बअ़्‌ सैफ़ बिन उ़मर है, जो मुस्तनद रावियों से मन्क़ूल नहीं हैं, न सिर्फ़ अपने मत्न के लेहाज़ से बल्कि अपने सिलसिलए सनद में फ़र्ज़ी रावियों की मौजूदगी से भी जअ़्‌ली हैं। सैफ़ ने येह जअ़्‌ल साज़ी उन लोगों की रज़ामन्दी ह़ासिल करने के लिए जो ह़क़ाएक़ पर पर्दा डालने और तारीख़ को उसकी ह़क़ीक़त के बर अ़क्स पेश करना चाहते थे। इसके अ़लावा, सद्रुल इस्लाम के बादशाह, ह़ाकिम, सिपह सालार और बा असर अफ़्राद भी इसमें मुलव्विस थे, जो कुछ उनके लिए नामुनासिब था, सैफ़ के अफ़्सानों ने उन उ़यूब पर बहानों के ज़रीए़ पर्दा डाल दिया और उसके ज़रीए़ उनको तन्क़ीद के ह़मलों से बचा लिया।

मुफ़स्सल तौर पर सैफ़ बिन उ़मर के अफ़्सानों को कश्फ़ करने के लिए क़ारेईन इस किताब का जाएज़ा ले सकते हैं।

अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा शीआ़ तारीख़ में

कामियाब तज्ज़िया और सैफ़ बिन उ़मर की झूठी रवायतों की तर्दीद के बअ़्‌द, आएँ मुख़्तसर तौर पर देखें कि शीआ़ मज़हब में अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा के बारे में रवायतें क्या कहती हैं। येह रवायतें ज़्यादातर अल-कश्शी की किताब अर्रेजाल से नक़्ल की गई हैं। मगर यहाँ भी मुसन्निफ़ ने उन रवायतों का ज़िक्र किया है जो अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा की मज़म्मत करती हैं। इब्ने शोअ़्‌बा अल-ह़र्रानी की किताब “तोह़फ़ुल उ़क़ूल” के स. ११८ के ह़ाशिए में ज़िक्र किया गया है कि अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा मुर्तद हो गया था और मुबालग़ा (ग़ुलुव) किया। इसी ह़ाशिए में मज़ीद ह़ज़रत इमाम मोह़म्मद बाक़िर .अलैहिस्सलाम से नक़्ल किया गया है कि “अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा नबूवत का (झूठा) दअ़्‌वेदार था और उसका ख़याल था कि अमीरुल मोअ्‌मेनीन .अलैहिस्सलाम अल्लाह हैं (तआ़लल्लाहो अ़म्मा युश्रेकून)।” येह ख़बर अमीरुल मोअ्‌मेनीन .अलैहिस्सलाम तक पहुँची। आपने उसे तलब किया और दरियाफ़्त किया। मगर वोह अपने उस दअ़्‌वे पर साबित रहते हुए कहने लगा कि आप वोह (अल्लाह) हैं और मुझ पर वह़ी नाज़िल हुई है कि आप अल्लाह हैं और मैं नबी हूँ। अमीरुल मोअ्‌मेनीन .अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:

वाए हो तुझ पर! शैतान ने तेरा मज़ाक़ बना दिया है। तूने जो कहा उससे तौबा कर। तेरी माँ तेरे ग़म मे मातम करे! तौबा कर (अपने दअ़्वे से)

मगर उसने इन्कार किया, तो आप .अलैहिस्सलाम ने उसे क़ैद कर दिया और तीन दिन तक उसे तौबा करने की मोह्लत दी। मगर जब उसने तौबा न किया तो उसे ज़िन्दा जला दिया गया।

शेख़ सदूक़ रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब ख़ेसाल की जि.२, स.६२९ पर अमीरुल मोअ्‌मेनीन .अलैहिस्सलाम के अह़्कामात अपने अस्ह़ाब के लिए को नक़्ल करते हुए, उसके ह़ाशिए में बयान करते हैं कि “अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा के बारे में कहते हैं कि अल-कश्शी ने उसकी मज़म्मत में रवायतें नक़्ल की हैं और उनके मुआ़सिर ने उसके वुजूद का सरीह़न येह कहते हुए इन्कार किया है कि वोह एक फ़र्ज़ी शख़्स था जो सैफ़ बिन उ़मर की ईजाद थी।”

आख़िर में इन पेशकर्दा ह़क़ाएक़ के बअ़्‌द हम कह सकते हैं कि तारीख़दानों के ज़रीए़ अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा को शीअ़त का बानी क़रार देने की बज़ाहिर येह बुनियादी वजह सामने आती है कि शीआ़ सिवाए रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के इब्ने अ़म्म और दामाद अ़ली इब्ने अबी तालिब .अलैहेमस्सलाम के किसी को आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का ह़क़ीक़ी जानशीन नहीं मानते और उन्होंने उ़स्मान को ख़लीफ़ा मानने से इन्कार कर दिया था। शीओ़ं का येह अ़क़ीदा उनका ख़ुद साख़्ता नहीं है बल्कि येह अ़क़ीदा क़ुरआन और मोअ़्‌तबर अह़ादीस से जिनको मुत्तफ़ेक़ा तौर पर तमाम मुसलमान तस्लीम करते हैं साबित है, ख़ास कर दसवीं हिजरी में अपने आख़िरी ह़ज से वापसी के मौक़ेअ़्‌ पर ग़दीरे ख़ुम में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के अ़ली इब्ने अबी तालिब .अलैहेमस्सलाम को मौला-ओ-जानशीन मुक़र्रर करने की बुनियाद पर अह्ले तशैयोअ़्‌ को किसी जअ़्‌ली रवायत पर भरोसा करने की ज़रूरत नहीं है।

वाक़ई़ अफ़्सोस का मक़ाम है! किस तरह़ तारीख़दानों ने ऐसे जअ़्‌ली दस्तावेज़ नक़्ल करते वक़्त अपनी आँख़ों पर पट्टी बाँध रखी थी और उसमें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और अ़ली इब्ने अबी तालिब .अलैहेमस्सलाम को भी शामिल कर लिया। तारीख़दानों का येह फ़रीज़ा है कि वोह तारीख़ को उस तरह़ नक़्ल करें जिस तरह़ वोह वाक़ेअ़्‌ हुई है। तारीख़ नक़्ल करने में किसी ख़ास अ़क़ीदे या किसी ख़ास मक़सद का तास्सुर न हो। ऐसा लगता है कि अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा को बानिए मज़हबे शीआ़ क़रार देते हुए कुछ बुनियादी उसूल को नज़र अन्दाज़ किया गया। बदक़िस्मती से मुसलमानों ने उस अ़र्से में शीओ़ं पर ह़मले करने के लिए आसान तरीक़ों को ईजाद किया है और अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा उनमें से एक है। इस मज़्मून के ज़रीए़, हम ने इस जअ़्‌ली दअ़्‌वे को रद किया है। तल्ख़ ह़क़ाएक़ और सच्चाई कश्फ़ करने के लिए कोई भी तारीख़ का मुतालेआ़ कर सकता है मगर बग़ैर तअ़स्सुब के।

आख़िर में हम ख़ुदावन्द आ़लम से दुआ़ करते हैं कि वोह हमारे मौला, ह़ज़रत वलीये अ़स्र, अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़ली इब्ने अबी तालिब .अलैहेमस्सलाम की वेलायत के ह़क़ीक़ी वारिस के ज़हूर में तअ़्‌जील फ़रमाए ताकि हर कोई येह जान ले कि:

मन अस्ह़ाबुस्सेरातिस्सवीये मनेह्तदा

सीधी राह वाले कौन हैं और कौन हेदायत याफ़्ता हैं!”

(सूरए ताहा (२०), आयत १३५)

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