ख़ेलाफ़त-जानशीनी दर सेफ़ात-ओ-कमालात – दूसरा हिस्सा
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की एक और ज़िम्मेदारी लोगों के नफ़्स को पाक-ओ-पाकीज़ा करना था जैसा सूरए मुबारका जुमुआ़ में इरशादे ख़ुदा वन्दी है: “वयुज़क्कीहिम”
जिसकी ज़िम्मेदारी लोगों के नफ़्स को पाक बनाना हो ख़ुद उसको पाकीज़गी की बलन्द तरीन मन्ज़िल पर फ़ाएज़ होना चाहिए। ख़ुदा ने अ़ज़मते रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को इस तरह़ बयान फ़रमाया:
इन्न–क लअ़ला ख़ोलोक़िन अ़ज़ीमिन.
“आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का दर्जा ख़ुल्क़े अ़ज़ीम से भी बलन्द तर है।”
एक और ज़िम्मेदारी: आयाते एलाही की तिलावत है।
यत्लू अ़लैहिम आयातेही।
“वोह उनके सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत करते हैं।”
यहाँ सिर्फ़ आयात की तिलावत नहीं है बल्कि उसके मफ़ाहीम-ओ-मतालिब को इस तरह़ बयान करना है कि बात दिल की गहराइयों तक भी उतर जाए और इस तरह़ घर कर जाए कि नफ़्स-ओ-शैतान का ग़ुलाम ख़ुदा का ख़ालिस बन्दा हो जाए। क़ुरआन करीम सिर्फ़ आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़बाने मुबारक पर नहीं था बल्कि इसका मर्कज़ आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का क़ल्ब भी था जैसा कि इरशादे ख़ुदा वन्दी है:
न–ज़–ल बेहिर्रूह़ुल अमीनो.
(सूरए शोअ़रा, आयत १९३)
“रूह़ुल अमीन आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के क़ल्बे मुतह्हर पर क़ुरआन लेकर नाज़िल हुए।”
व बिल ह़क़्क़े अन्ज़ल्नाहो व बिल ह़क़्क़े नज़ल. व मा अर्सल्ना–क इल्ला मुबश्शेरवँ व नज़ीरा.
(सूरए बनी इस्राईल, आयत १०५)
“हम ने येह क़ुरआन ह़क़ के साथ नाज़िल किया और येह ह़क़ के साथ नाज़िल हुआ येह अव्वल से आख़िर तक ह़क़ है इसमें ज़र्रा बराबर बातिल का गुज़र नहीं है।”
क़ुरआन मजीद ने तमाम जुम्ला उ़लूम के बारे में इस तरह़ इरशाद फ़रमाया:
व अन्ज़ल्ना इलै कज़् ज़िक–र लेतोबय्ये–न लिन्नासे मा नुज़्ज़ेला इलैहिम.
(सूरए नह़्ल, आयत ४४)
“और हमने आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर ज़िक्र नाज़िल किया ताकि जो कुछ हमने नाज़िल किया है आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम लोगों के लिए उसकी बाक़ाएदा वज़ाह़त कर सकें।”
इसके अ़लावा और भी ज़िम्मेदारियाँ है। अगर हम रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ज़िम्मेदारी या सबसे अहम ज़िम्मेदारी सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त और मुल्क की इन्तेज़ामिया क़रार दें तो मक्का की १३ साल की ज़िन्दगी में रेसालत का काम क्या था?
सिर्फ़ इन्हीं चन्द बातों की रोशनी में हर साह़ेबे अ़क़्ल-ओ-फ़ह्म के लिए येह बात बिल्कुल वाज़ेह़ है अगर तअ़स्सुब और आबा-ओ-अज्दाद की अन्धी तक़लीद ने दिल की बसारत-ओ-बसीरत न छीन ली हो या कुछ लोगों की मोह़ब्बत अ़क्ल के फ़ैसले की राह में रुकावट न हो तो येह बातें सामने आती हैं। रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बअ़्ज़ बुनियादी ज़िम्मेदारियाँ इस तरह़ हैं:
(१) लोगों को तौह़ीद की तअ़्लीम देना, ख़ुदा की मअ़्रेफ़त अ़ता करना।
(२) नफ़्स को पाक-ओ-पाकीज़ा करना।
(३) क़ुरआनी आयात की तिलावत।
(४) आयाते क़ुरआनी की वज़ाह़त।
और जब इस्लामी मआ़शरा वजूद में आ जाए तो सरह़दों की ह़ेफ़ाज़त और मुल्क के तश्कील के बअ़्द इन्तेज़ामिया का सवाल है।
इसके अ़लावा ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बेअ़्सत सिर्फ़ एक ख़ास जगह और इ़लाक़े से मख़्सूस नहीं थी बल्कि येह तो सारी दुनिया के लिए थी। लेहाज़ा सारी दुनिया तक तौह़ीद का पैग़ाम पहुँचाना, ख़ुदा की मअ़्रेफ़त अ़ता करना, तमाम लोगों के नफ़्सों को पाक करना, हर एक तक क़ुरआन का पैग़ाम पहुँचाना और हर एक को क़ुरआनी आयात से आश्ना करना।
अब आप अपने आप से ख़ुद सवाल करें ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के जानशीन में किन ख़ुसूसियात को होना ज़रूरी है। वोह:
(१) बाक़ाएदा मअ़्रेफ़ते ख़ुदा रखता हो और मअ़्रेफ़ते ख़ुदा के बलन्द दर्जे पर फ़ाएज़ हो।
(२) बलन्द तरीन अख़्लाक़ का मालिक हो।
(३) क़ुरआन की तमाम आयात से वाक़िफ़ हो।
(४) तमाम क़ुरआनी उ़लूम से आश्ना हो।
ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के बअ़्द वोह कौन है जिनमें येह तमाम ख़ुसूसियात मौजूद हों। वोह कौन है जिसने येह फ़रमाया हो:
“अगर आसमान के पर्दे हटा के भी रखे जाएँ तो मेरे यक़ीन में एज़ाफ़ा न होगा।”
वोह कौन है जिसकी तहारत के सिलसिले में आयए तत्हीर नाज़िल हुई हो।
वोह कौन है जिसके बारे में ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हो:
“अ़ली मअ़ल् क़ुरआन व क़ुरआन मअ़ल् अ़ली।”
वोह कौन है जिसके इ़ल्म के बारे में फ़रमाया हो:
“अना मदी-नतुल इ़ल्म व अ़लीयुन बाबोहा।”
वोह कौन है जिसके बारे में लोगों ने कहा: “अगर अ़ली अ़लैहिस्सलाम न होते तो मैं हलाक हो गया होता।”
अब आख़िर में एक बात और बता दें। वोह कौन है जो येह बता सके किस शख़्स में येह तमाम सेफ़ात और ख़ुसूसियात पाई जाती हैं क्योंकि इन तमाम बातों का तअ़्ल्लुक़ बातिन से है।
मअ़्रेफ़ते ख़ुदा वन्दी, पाकीज़गीये नफ़्स, बलन्द अख़्लाक़ी, इ़ल्मुल क़ुरआन…..वोह कौन बता सकता है। उस शख़्स का नफ़्स वाक़ेअ़न पाक-ओ-पाकीज़ा है उसका वजूद मअ़्रेफ़ते ख़ुदा से माला माल है। पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ख़ुसूसियात की गवाही लोगों ने नहीं दी बल्कि ख़ुदा ने फ़रमाया:
इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकज़्ज़िक–र
तो अब ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन बस वही बन सकता है जिसकी ख़ुसूसियात की गवाही या ख़ुदा दे या उसका रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम।
चूँकि दुनिया का कोई एक शख़्स बल्कि सारी दुनिया मिल कर भी किसी एक शख़्स के अख़्लाक़-ओ-किरदार-ओ-मअ़्रेफ़ते ख़ुदा वन्दी की ज़मानत नहीं ले सकती है। इस बेना पर सारी दुनिया मिलकर किसी ऐसे शख़्स का इन्तेख़ाब नहीं कर सकती जो वाक़ेअ़न ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का ब तमाम मअ़्ना कमा ह़क़्क़हू जानशीन हो। येह बात गुज़र चुकी है जो रसूल मुक़र्रर करता है बस उसी को रसूल का जानशीन मुक़र्रर करने का ह़क़ है और बस इसी का मुक़र्रर कर्दा क़ानूनी तौर पर जानशीने रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम होगा। और येह ह़क़ सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुदा को ह़ासिल है। इस बेना पर उम्मत के मुन्तख़ब कर्दा का इन्कार उम्मत की मुख़ालेफ़त नहीं है बल्कि ख़ुदा के ह़क़ के सामने तस्लीम हो जाना है और ख़ुदा के मुक़र्रर कर्दा पर ईमान ले आना है।
अगर ख़ेलाफ़त को मन्सब और ख़ुसूसियात की जानशीनी न तसव्वुर किया जाए बल्कि शख़्स की जानशीनी तस्लीम कर लिया जाए तब भी ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का जानशीन उनकी औलाद या कम अज़ कम आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के क़रीब तरीन रिश्तेदार को होना चाहिए।
दोनों सूरतों में बस और बस सिर्फ़ और सिर्फ़ ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम जानशीन हो सकते हैं कोई और नहीं।
जिस तरह़ ख़ुदा ने रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को बरह़क़ मुन्तख़ब फ़रमाया उनके जानशीन ह़ज़रत अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम को भी मुअ़य्यन फ़रमाया उनके जानशीनों का तक़र्रुर-ओ-तअ़य्युन भी बस ख़ुदा का ह़क़ है हमारा काम तस्लीम हो जाना और ईमान ले आना है। ख़ुदा वन्द आ़लम ने इस सिलसिले की आख़री कड़ी ह़ज़रत ह़ुज्जत बिन ह़सन अल अ़स्करी अ़ज्जलल्लाहो तआ़ला फ़रजहुश्शरीफ़ की ज़ाते बाबरकत क़रार दी है। जो इस सिलसिलए हिदायत की आख़री कड़ी हैं ज़िन्दा हैं जिनकी आमद का हम सब शिद्दत से इन्तेज़ार कर रहे हैं ताकि एक जश्ने ग़दीर ताजदारे ग़दीर की सदारत में मुन्अ़क़िद कर सकें।
उस सुब्ह़े दरख़्शाँ की उम्मीदें। वस्सलाम अल्ह़म्दो लिल्लाहे रब्बिल आ़लमीन।