आयए तत्हीर और उ़लमाए अह़्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात – पहला हिस्सा
दीने इस्लाम की कली मक्कए मोअ़ज़्ज़मा में खिली और फिर तेईस (२३) साल की ताक़त फ़रसा ज़ह़्मतों के बअ़्द रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और उनके बावफ़ा अस्ह़ाब ने जज़ीरतुल अ़रब को अपने घेरे में ले लिया।
ख़ुदा का येह मिशन १८ ज़िलह़िज्जा को ग़दीरे ख़ुम के मक़ाम तक पहुँचा और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने आ़लमे इस्लाम के अव्वलीन जवाँमर्द यअ़्नी ह़ज़रत अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम के सिपुर्द कर दिया।
इस दिन, अ़ली अ़लैहिस्सलाम की वेलायत-ओ-जानशीनी के एअ़्लान के साथ नेअ़्मते एलाही तमाम, और दीने इस्लाम मुकम्मल हो गया और फिर इस्लाम तन्हा पसन्दीदा दीन के उ़न्वान से एअ़्लान कर दिया गया। येह सबब बना कि काफ़ेरीन-ओ-मुश्रेकीन इस्लाम की नाबूदी से मायूस हो गए।
अभी देर न हुई थी कि पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बअ़्ज़ अतराफ़ेयान ने पहले से रची हुई साज़िश के तह़त पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की रेह़लत के बअ़्द हेदायत-ओ-रहबरी की राहों को मुन्हरिफ़ कर दिया, शहरे इ़ल्म के दरवाज़े को बन्द कर दिया और मुसलमानों को ह़ैरानी-ओ-सरगर्दानी में डाल दिया। उन लोगों ने अपनी ह़ुकूमत के उन्हीं इब्तेदाई अय्याम से, अह़ादीसे नबवी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की किताबत को मम्नूअ़् करके, जअ़्ले ह़दीस के ज़रीए़, शुब्हात को लोगों में डाला और शैतानी फ़रेबकारियों और नैरंगियों के ज़रीए़, ह़क़ाएक़े इस्लाम को (जो कि चमकते हुए सूरज की मानिन्द था) शक-ओ-तरदीद के सेयाह बादलों की पुश्त पर डाल दिया।
येह बात वाज़ेह़ है कि इन तमाम साज़िशों के बावजूद, ह़क़ाएक़े इस्लाम और पैग़म्बरे ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के दुरर्बार अक़वाल, अमीरुल मोअ्मेनीन अ़लैहिस्सलाम और उनके औसिया अ़लैहिमुस्सलाम और कुछ अस्ह़ाबे बावफ़ा के ज़रीए़ हर ज़माने में, जल्वानुमा होते रहे, उन लोगों ने ह़क़ीक़त बयानी के ज़रीए़, शक-ओ-शुब्हात शैतानी वसवसों और दुश्मनाने इस्लाम का मुँह तोड़ जवाब दिया और ह़क़ीक़त को सब पर आश्कार कर दिया।
इस राह में शेख़ मुफ़ीद, सैयद मुर्तज़ा, शेख़ तूसी, ख़ाजा नसीरुद्दीन तूसी, अ़ल्लामा ह़िल्ली, काज़ी नूरुल्लाह शुस्तरी, मीर ह़ामिद ह़ुसैन, सैयद शरफ़ुद्दीन, अ़ल्लामा अमीनी रह़्मतुल्लाह अ़लैहिम, वग़ैरह, रोशन सितारों की तरह़ चमक रहे हैं। क्योंकि इन लोगों ने मैदाने देफ़ाअ़् में ह़क़ाएक़े इस्लामी को और मकतबे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की वाक़ई़यत को बयान करने में ज़बान-ओ-क़लम के ज़रीए़ शक-ओ-शुब्हात के जवाब दिए हैं। और हमारे ज़माने में भी उ़लमा इस काम लगे हुए हैं। इस मज़्मून की तह़रीर के लिए ऐसी ही एक नामवर मोह़क़्क़िक़ ह़ज़रत आयतुल्लाह सैयद अ़ली ह़ुसैनी मीलानी ह़फ़ज़हुल्लाह की तह़क़ीक़, “निगाही बआयए तत्हीर पज़ूहशी दर तफ़सीर व शाने नुज़ूले आयए तत्हीर” के चौथे ह़िस्से, “मआ़नी आयए तत्हीर-ओ-तनाकुज़ गोई उ़लमाए अह्ले सुन्नत” से इस्तेफ़ादा किया गया है।
उ़म्मीद है कि येह सई़-ओ-कोशिश बक़ीयतुल्लाहिल अअ़्ज़म, ह़ज़रत वलीए अ़स्र, इमामे ज़माना अ़लैहिस्सलाम की ख़ुशनूदी और पसन्द का सबब क़रार पाए।
आयए तत्हीर
इन्नमा युरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्ललबैते व योतह्हे–रकुम तत्हीरा.
(सूरए अह़ज़ाब, आयत ३३)
बस ख़ुदा चाहता है कि आलूदगी को तुमसे (ऐ) अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम दूर रखे और जो पाक–ओ–पाकीज़ा रखने का ह़क़ है वैसा पाक–ओ–पाकीज़ा रखे।
येह आयत क़ुरआन मजीद में उन आयात के दरमियान में आई है जहाँ पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज का ज़िक्र है।
अलबत्ता इस मज्मून में हम इस के शाने नुज़ूल पर बह़्स नहीं करेंगे बल्कि इसके मअ़्ना और उ़लमाए अह्ले सुन्नत के एख़्तेलाफ़ी नज़रियात पर रोशनी डालेंगे।
आयए तत्हीर के मअ़्ना और उ़लमाए अह्ले सुन्नत के तीन गिरोह
उ़लमाए अह्ले सुन्नत का एक गिरोह, आयए मुबारका तत्हीर के मअ़्ना-ओ-मफ़हूम और इस बारे में नक़्ल होने वाली अह़ादीस के इदराक के बावजूद, ह़क़ीक़त का एअ़्तेराफ़ नहीं करते, क्योंकि इन मअ़्ना के एअ़्तेराफ़ के बअ़्द एक तरफ़, येह आयत उनके अ़क़ाएद को उसूल-ओ-फ़ुरूअ़् में जड़ से उखाड़ फेंकती है।
दूसरी तरफ़, इन लोगों ने ख़ुद को ‘सुन्नते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम’ से निस्बत दे रखा है और दअ़्वा करते है उनकी सुन्नत पर अ़मल करने और उनकी पैरवी का…..इस बेना पर येह लोग इस आयत के सिलसिले में इज़्तेराब-ओ-तश्वीश का शिकार हो गए हैं और इसीलिए इन नज़रियात में आपस में तज़ाद पाया जाता है। मुलाह़ेज़ा फ़रमाएँ :
पहला गिरोह
येह गिरोह शीआ़ इमामिया से इत्तेफ़ाके नज़र रखता है। ह़क़ीक़त में पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की साबित शुदा सुन्नत की पैरवी की है और ख़ुसूसीयत के साथ इस पर अ़मल पैरा भी रहा।
दूसरा गिरोह
अ़करमा ख़ारिजी और मक़ातिल के नज़रिये से इत्तेफ़ाक़ किया है। मक़ातिल वही शख़्स है कि ज़हबी ने जिसके बारे में कहा कि सब लोग उससे रूगरदानी करने में इत्तेफ़ाक़े नज़र रखते हैं।
तीसरा गिरोह
इस गिरोह ने भी रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम और बुज़ुर्ग सह़ाबा के नज़रिये के बरख़ेलाफ़ ज़ह़्ह़ाक के नज़रिये पर अ़मल किया है। ज़ह़्ह़ाक वही शख़्स है कि अह्ले सुन्नत के उ़लमाए रेजाल ने एअ़्तेराफ़ किया है कि नक़्ले रवायत में वोह ज़ई़फ़ है।
पहले गिरोह का एक नमूना
अबू जअ़्फ़र अह़मद बिन मोह़म्मद बिन सलमा मिस्री ह़नफ़ी तह़ावी (मुतवफ़्क़ा सन ३२१ हि.) इस सिलसिले में एक किताब “मुश्किलुल आसार” में एक बाब का उन्वान इस तरह़ दिया है:
“आयए मुबारेका: इन्नमा यूरिदु…….में रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ज़रीए़ मुअ़य्यन कर्दा अफ़राद के बारे में रवायतें।
फिर इस उ़न्वान के तह़्त दर्जे ज़ैल ह़दीस को नक़्ल किया है: रबीअ़् मुरादी असद बिन मूसा से, ह़ातिम बिन इस्माई़ल से, बुकैर बिन मिस्मार से, आ़मिर बिन सअ़्द से, अपने वालिद से इसी तरह़ नक़्ल किया है कि सअ़्द कहते हैं:
जब आयए तत्हीर नाज़िल हुई, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन-ओ-ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम को बुलाया और फ़रमाया:
अल्लाहुम–म हाउलाए अह्लो बैती
बारे एलाहा! येह मेरे अह्लेबैत हैं।
तह़ावी इस ह़दीस के ज़ैल में कहते हैं: “इस ह़दीस से मअ़्लूम होता है कि इस आयत में जो लोग मुराद हैं वोह रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, .अली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम हैं।
तह़ावी मज़ीद रक़मतराज़ हैं फ़हद से, उ़स्मान बिन अबी शैबा से, जरीर बिन अ़ब्दुल ह़मीद से, अअ़्मश से, जअ़्फ़र से, अ़ब्दुर्रह़मान बजली से, ह़कीम बिन सई़द से नक़्ल करते हैं कि उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा ने कहा:आयए इन्नमा युरीदुल्लाह…….रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन-ओ-ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम के बारे में नाज़िल हुई है।
और उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा के कलाम को नक़्ल करने के बअ़्द लिखते हैं:
इस ह़दीस से भी वही मतलब निकलता है जो पहली ह़दीस से निकलता है।
तह़ावी अपनी बात को जारी रखते हुए, इस वाक़ेअ़् को मुख़्तलिफ़ अस्नाद से उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा के ज़रीए़ नक़्ल करते हैं कि जिसमें इस आयत के अह्लेबैते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से मख़्सूस होने की वाज़ेह़ निशानियाँ मौजूद हैं, जैसे वोह ह़दीस की जिस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा पूछती हैं : आया में भी उनके साथ हूँ?
पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं :
तुम पैग़म्बर की बीवीयों में से हो और अच्छाई पर हो।
या येह फ़रमाया : तुम ख़ैर पर हो।
दूसरी ह़दीस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं : मैंने कहा : ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से हूँ? फ़रमाया :
इन्ना लके इ़न्दल्लाहे ख़ैरन
आप के लिए ख़ुदा के यहाँ ख़ैर है
उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं कि मैं चाहती थी कि पैग़म्बर जवाब में फ़रमाएँ : हाँ : क्योंकि इस तरह़ का जवाब मेरे लिए दुनिया के मशरिक़-ओ-मग़रिब के पसन्द करने से ज़्यादा पसन्दीदा था।
इसी तरह़ दूसरी ह़दीस में उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा कहती हैं: मैंने चादर को उठाया ताकि उनसे मुल्हिक़ हो जाऊँ। पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उसे खींच लिया और फ़रमाया : इन्नके अ़ला ख़ैरिन. तुम ख़ैर पर हो।
तह़ावी मज़ीद लिखते हैं :
जिन रवायतों में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा को अपना मुख़ातिब क़रार दिया है वोह दलालत करती है कि उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा उन लोगों में से न थी जो इस आयत के मिस्दाक़ है और जो मिस्दाक़ हैं इस आयत में वोह रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम, अ़ली, फ़ातेमा, ह़सन, ह़ुसैन अ़लैहिमुस्सलाम हैं, दूसरे अफ़राद नहीं।
तह़ावी ने इस बाब में ह़दीसों के दरमियान में एक ह़दीस उम्मे सलमा से नक़्ल की है कि जिसमें पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा से फ़रमाया: अन्ते मिन अह्ली, तुम मुझसे हो।
तह़ावी इन ह़दीसों को जो कमाले सराह़त के साथ अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को ख़म्सए तय्यबा से मुख़्तस करती हैं। इस रवायत में जो तआ़रुज़-ओ-टकराव पाया जाता है उसके दूर करने के लिए लिखते हैं:
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के इस मक़सद को “तुम मुझसे हो” एक दूसरी ह़दीस भी वाज़ेह़ करती है कि जिसमें मोह़म्मद बिन ह़ज्जाज ह़ज़रमी और सुलैमान कैसानी ने नक़्ल किया है: बुश्र बिन बक्र ने औज़ाई़ से, अबू अ़म्मार से, वासला से नक़्ल किया है कि वासला ने कहा: मैंने अ़र्ज़ किया: ऐ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम! क्या मैं आपके अह्ल से हूँ? रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया: तुम मुझसे हो;
वासला कहता है : येह मेरी बुज़ुर्ग तरीन आर्ज़ूओं में से है। जबकि वासला पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा की बनिस्बत बहुत दूर था, क्योंकि वोह क़बीलए बनी बसस से था, न कि क़ुरैश से। और उम्मे सलमा रह़्मतुल्लाह अ़लैहा की क़ुरैश में पैग़म्बर की बीवी होने की वजह से एक ख़ास मन्ज़ेलत थी। पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का वासला से कहना: “तू मुझसे है” इस मअ़्नी में है कि इताअ़त-ओ-पैरवी की वजह से तू मुझसे यअ़्नी अपने ईमान की वजह से मेरे गिरोह में हो, ख़ुदा वन्द मुतआ़ल ने क़ुरआन में एक आयत नाज़िल की है कि जो इसी मअ़्ना पर दलालत करती है। इरशाद होता है:
व नादा नूह़ुर्रब्बहू फ़–क़ा–ल रब्बे इन्नब्नी मिन अह्ली.
(सूरए हूद, आयत ४५)
नूह़ ने अपने परवरदिगार को पुकारा और कहा: मेरा बेटा मुझसे है।
ख़ुदाए सुब्ह़ान ने फ़रमाया:
इन्नहू लै–स मिन अह्ले–क.
(सूरए हूद, आयत ४६)
वोह तुम से नहीं है।
यअ़्नी जो नबी के दीन से मुवाफ़ेक़त रखता है वोह उनसे है; ख़ाह वोह नसबी रिश्तेदार न हो।
और बहुत एह़्तेमाल है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने भी इसी मअ़्ना को मद्दे नज़र रखते हुए फ़रमाया हो।
तह़ावी मज़ीद रक़मतराज़ हैं : ह़दीस सअ़द और उसके हमराह ह़दीसें जो इब्तेदा में नक़्ल र्हुइं, वाज़ेह़ करती हैं कि कौन लोग आयत के अह्ल हैं। क्योंकि हम जानते है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने जब आयत के नुज़ूल के वक़्त अपने अह्ल को बुलाया, सिवाए ख़म्सए तय्यबा के, किसी और को इस आयत का अह्ल क़रार न दिया, इस बेना पर मुह़ाल है कि सिवाए ख़म्सए तय्यबा के कोई और मुराद हो।
एअ़्तेराज़
क़ुरआन ख़ुद दलालत करता है कि इस आयत के मिस्दाक़ पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की अज़्वाज हैं। क्योंकि इसी आयत के पहले, ख़ुदा वन्द मुतआ़ल ने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से ख़ेताब करते हुए फ़रमाया है:
या अय्योहन्नबीयो क़ुल्लेअज़्वाजे–क……
(सूरए अह़ज़ाब, आयत २८)
येह ख़ेताब ख़ुद वाज़ेह़ करता है कि आयए तत्हीर से मुराद ख़ुद अज़्वाजे पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं; चूँकि मूरिदे ख़ेताब औ़रतें हैं, मर्द नहीं और इसके फ़ौरन बअ़्द ही ख़ुदा कहता है:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हेबा अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
जवाब
इन्नमा यूरीदुल्लाहो की इ़बारत से पहले तक इस आयत में मुख़ातिब अज़्वाज पैग़म्बर हैं। फिर इस आयत इन्नमा यूरीदुल्लाहो में मूरिदे ख़ेताब अह्लेबैते पैग़म्बर सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हैं क्योंकि इसमें, जुम्ला मर्दों से ख़ेताब की सूरत में आया है, क्योंकि येह ख़ेताब ज़मीर, “कुम” के ज़रीए़ है और इस तरह़ का ख़ेताब मर्दों के लिए आता है मुलाह़ेज़ा हो:
इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.
लेकिन इससे पहले की आयत ज़मीर “नून” के साथ आई है कि इस तरह़ का ख़ेताब औ़रतों से मख़्सूस है।
इस बेना पर हमारे लिए वाज़ेह़ है कि इस आयत (इन्नमा यूरीदुल्लाह) में मुख़ातब वोह मर्द हैं जिनकी शराफ़त और बरतरी का ख़ुदा एअ़्लान कर रहा है।२
फिर तह़ावी लिखते हैं : हमारी बातों के सह़ीह़ होने के लिए एक रवायत है जो अनस से नक़्ल हुई है। वोह कहते हैं:
२- (वोह आयतें मुलाह़ेज़ा हों जो आयए तत्हीर से पहले आई हैं:या नेसाअन्नबीये लस्तुन्न कअह़दिम्मिननेसाए इनित्तक़ैतुन्न फ़ला तख़्ज़अ़्–न बिल क़ौले फ़यत्मअ़ल्लज़ी फ़ी क़ल्बेही मरज़ुवँ व क़ुल्न क़ौलम्मअ़्रूफ़न. व क़र्न फ़ी बुयूतेकुन्न व ला तबर्रज्न तबर्रोजल्जाहिलीय तिल्ऊला व अक़िम्नस्सला त व आतीनज़्ज़का त व अतेअ़्नल्ला–ह व रसू–लहू. इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स अह्लल्बैते व युतह्हे–रकुम तत्हीरा.(सूरए अह़ज़ाब, ३२–३३)। आयत २४ से पहले भी आयतें मुलाह़ेज़ा हो और ४३ के बअ़्द भी।
येह ख़याल ग़लत है कि आयए तत्हीर में अज़्वाज शामिल हैं इसलिए कि अगर अज़्वाज मक़सूद होतीं तो जिस तरह़ पहले और बअ़्द की आयत में ज़मीर जमए़ मोअन्नस ह़ाज़िर है। आयए तत्हीर में भी होना चाहिए। एक बात और येह कि अगर अज़्वाजे नबी सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम इस आयत में शामिल होतीं तो उनकी तअ़्दाद नौ थी और सबको मिलाया जाए तो जनाब ज़हरा सलामुल्लाह अ़लैहा को शामिल करके औरतों की तअ़्दाद दस हो जाती है और इस तरह़ औरतों का ग़लबा होगा मर्द पर तो इस सूरत में भी ज़मीर-ओ-सीग़ा मोअन्नस ही लाना चाहिए था न कि मुज़क्कर। इन चीज़ों पर ग़ौर करने के बअ़्द एक बात और भी समझ में आती है कि आयए तत्हीर को इन आयतों के दरमियान से निकाल लिया जाए तो इसमें कोई नुक़्स नज़र नहीं आता। रब्त और भी बढ़ जाता है। जिससे साफ़ पता चलता है कि येह आयत इस जगह की नहीं बल्कि किसी और ग़र्ज़ से यहाँ दाख़िल कर दी गई है।
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम जब नमाज़े सुब्ह़ के लिए घर से निकलते थे फ़रमाते:
अस्सलातो या अह़्लल्बैते! इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब…..
ऐ मेरे अह्लेबैत! वक़्ते नमाज़ है “ख़ुदा चाहता है…..”
इसी तरह़ एक रवायत अबू ह़म्ज़ा से नक़्ल हुई है। वोह कहते हैं:
नौ महीना ह़ज़रत रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के ह़ु़जूर में था, रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम हर रोज़े सुब्ह़ फ़ातेमा के दरवाज़े पर आते और फ़रमाते:
अस्सलामो अ़लैकुम या अह्लल्बैते. इन्नमा यूरीदुल्लाहो लेयुज़्हे–ब अ़न्कुमुर्रिज्स…….
सलाम हो तुम पर ऐ अह्लेबैत! ख़ुदा चहाता है…….
पैग़म्बर का येह अ़मल भी दलील है की येह आयत ख़ुसूसियत के साथ पन्जतन पाक के लिए नाज़िल हुई है।१
१- मुश्केलुल आसार १/३३२-३३९। येह बात क़ाबिले ज़िक्र है कि “मुश्केलुल आसार” की नई इशाअ़त में नाशिर ने तह़रीफ़ से काम लिया है और बअ़्ज़ मक़ामात पर कलेमा “अह्लेबैत” को “अह्ली” लिखा है।