अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के वसीले से अल्लाह से मदद मांगना

कुछ मुख़ालेफ़ीन शीओ़ं पर एअ़्‌तेराज़ करते हैं कि अह्ले तशय्योअ़्‌ ह़ज़रात रिज़्क़-ओ-फ़ज़्ल, कामयाबी-ओ-सेहत और दौलत जैसी नेअ़्‌मतों की बाज़याबी के लिए अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के वसीले के क़ाएल हैं यहां तक कि बारिश, अच्छी फ़स्ल वग़ैरह जैसे क़ुदरती मज़ाहिर के लिए भी वोह अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को वसीला बनाते हैं। वोह लोग येह दलील देते हैं कि अल्लाह के अ़लावा किसी ज़रीए़ से ग़ैबी मदद मांगना, उस वसीले या श़िख्सयत की इ़बादत के मुतरादिफ़ है। इसी जवाज़ से वोह शीआ़ ह़ज़रात पर अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की परस्तिश की तोहमत लगाते हैं और उन्हें मुश्रिक बताते हैं। 

 

वसीले की अहमियत

मुसलमानों के चंद नाम नेहाद फ़िक्र-ओ-नज़र के ह़ामिल अफ़राद के अ़लावा सब ही मुसलमान वसीले के क़ाएल हैं लेहाज़ा अह्ले तशय्योअ़्‌ ह़ज़रात का वसीले के तवस्सुत से मदद मांगना किसी भी तरह़ से उन्हें मुश्रिक नहीं साबित करता बल्कि येह तौह़ीद का बलंद तरीन अन्दाज़े अ़मल है। येह तो ख़ुद ख़ुदावंद करीम की ज़ात है जिस ने मोअ्‌मेनीन को वसीला तलाश करने का ह़ुक्म दिया है। इर्शादे बारी तआ़ला है।

 

या अय्योहल्लज़ी-न आ-म-नुत्तक़ुल्ला-ह वब्तग़ू इलैहिल

वसील-त व जाहेदू फ़ी सबीलेही ल-अ़ल्लकुम तुफ़्लेह़ू-न.

 

ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उस तक पहुंचने का वसीला तलाश करो और उसकी राह में जेहाद करो ताकि तुम कामियाब हो जाओ।

(सूरए माएदा (५), आयत ३५)

 

जो भी तवस्सुल के क़ाएल नहीं हैं ह़क़ीक़तन वोह क़ुरआन का इन्कार करते हैं और ख़ुद कुफ़्र इख़्तेयार करने वाले हैं। येह आयत साथ ही साथ इस दलील को भी रद कर देती है कि किसी को वसीला बनाना उसकी इ़बादत करने जैसा है। क्यूंकि अगर ऐसा होता तो अल्लाह मोमेनीन को वसीला तलाश करने का ह़ुक्म न देता।

 

क़ुरआन, अह़ादीस और तारीख़ में मुतअ़द्दिद मिसालें मिलती हैं जहां मुसलमानों ने जिनमें अस्ह़ाबे रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम भी शामिल हैं कि उन्होंने ख़ुदाई मदद और अपने गुनाहों की मग़फ़ेरत वसीले के ज़रीए़ तलब की है जो शीआ़ दलाएल को मज़ीद तक़्‌वीयत देता है और मुख़ालेफ़ीन के तमाम इत्तेहामात को रद कर देता है।

 

इलाही वसीले के ज़रीए़ मदद मांगना

क़ुरआन करीम में मुतअ़द्दिद आयतें पाई जाती हैं जिन में मुख़्तलिफ़ अक़वाम ने इलाही वसीले से मदद मांगी है। हम ने ज़ैल में कुछ आयतों का तज़केरा किया है जो हमारे नुक़्तए नज़र को साबित करने के लिए काफ़ी होंगी।

 

(अ) जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम को (उनकी क़ौम का) वसीला बनाना

सूरए माएदा कि आयत नंबर ११२ से ११५ तक मिलता है।

‘‘और जब ह़वारीईन ने कहा कि ऐ ई़सा इब्ने मरयम क्या आप के रब में येह ताक़त भी है कि हमारे ऊपर आसमान से दस्तरख़ान नाज़िल कर दे तो उन्होंने जवाब दिया कि तुम अगर मोमिन हो तो अल्लाह से डरो।

उन लोगों ने कहा कि हम चाहते हैं कि हम उसमें से खाएं और इत्मीनाने क़ल्ब पैदा करें और येह जान लें कि आप ने हम से सच कहा है और हम ख़ुद भी उसके गवाहों में शामिल हो जाएं।

ई़सा इब्ने मरयम ने कहा ख़ुदाया परवरदिगार! हमारे ऊपर आसमान से दस्तरख़ान नाज़िल कर दे कि हमारे अव्वल-ओ-आख़िर के लिए ई़द हो जाए और  तेरी क़ुदरत की निशानी बन जाए और हमें रिज़्क़ दे कि तू बहतरीन रिज़्क़ देने वाला है।

परवरदिगार ने कहा कि हम नाज़िल तो कर रहे हैं लेकिन उसके बअ़्‌द जो तुम में से इन्कार करेगा उस पर ऐसा अ़ज़ाब नाज़िल करेंगे के आ़लमीन में किसी पर नहीं किया है।

(सूरए माएदा (५), आयात ११२-११५)

 

जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम के ह़वारीईन ने क्यूं जनाब ई़सा अ़लैहिस्सलाम से ही ख़ाने जन्नत का मुतालेबा किया? क्यूं उन्होंने येह मुतालेबा अल्लाह से नहीं किया? और अगर ह़वारीईन ने बिला वास्ता अल्लाह से ग़ेज़ा न तलब करके ग़लती की थी तो ह़ज़रत ईसा ने ख़ाने जन्नत के लिए अल्लाह और ह़वारीईन के दरमियान वसीला बनने के बजाए उनकी इस्लाह़ क्यूं न की। और सब से ज़्यादा क़ाबिले ग़ौर बात येह है कि अल्लाह का जनाब ई़सा की दुआ़ के बअ़्‌द येह कहना कि बेशक मैं तुम्हारे लिए (ग़ेज़ा) नाज़िल करूंगा। येह सारी बातें तो तवस्सुल के सह़ीह़ होने पर दलालत करतीं हैं न कि उसके ख़ेलाफ़।

 

(ब) ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम का वसीला

और हम ने बनी इसराईल को (यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम की बारह औलाद के) बारह ह़िस्सों पर तक़सीम कर दिया और मूसा अ़लैहिस्सलाम की तरफ़ वह़ी की जब उनकी क़ौम ने पानी का मुतालेबा किया कि ज़मीन पर अ़सा मार दो। तो उन्होंने अ़सा मारा तो बारह चश्मे जारी हो गए इस तरह़ कि हर गरोह ने अपने घाट को पहचान लिया। और हम ने उनके सरों पर अब्र का साया किया और उन पर मन्न-ओ-सलवा जैसी नेअ़्‌मत नाज़िल की कि हमारे दिये हुए पाकीज़ा रिज़्क़ को खाओ और उन लोगों ने मुख़ालेफ़त करके हमारे ऊपर ज़ुल्म नहीं किया बल्कि येह अपने ही नफ़्स पर ज़ुल्म कर रहे थे।

(सूरए अअ़्‌राफ़ (७), आयत १६०)

 

यहां पर भी बनी इस्राईल ने पानी जैसी बुनियादी चीज़ के लिए जनाब मूसा से राबेता किया। उन्होंने अल्लाह से बिला वास्ता  मुतालेबा क्यूं नहीं किया। इस मौक़ेअ़्‌ पर भी न तो ख़ुदावंद करीम और न ही ह़ज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम ने तवस्सुल से नाराज़गी ज़ाहिर की। बल्कि अल्लाह ने जनाब मूसा को पानी की दस्तयाबी का तरीक़ा बताया।

 

एक और उलुल अ़ज़्म नबी की क़ौम के ज़रीए़ इलाही वसीले को अपनाने का येह वाक़ेआ़ तवस्सुल को मज़ीद तक़वीयत देता है।

दोनों क़ुरआनी वाक़ेआ़त से येह बात मुकम्मल वाज़ेह़ हो जाती है कि जनाब मूसा की क़ौम का पानी मांगना और जनाब ई़सा की क़ौम का ग़ेज़ा तलब करना किसी भी ह़ाल में सूरए शूरा की ७९ आयत : ‘‘और वही मुझे खाने के लिए और वही पीने के लिए देता है।’’ से कोई तज़ाद नहीं है। 

 

इसी तरह़ की मुतअ़द्दिद क़ुरआनी आयतें इस बात की निशानदही करती हैं कि ख़ुदावंद करीम ने अंबिया की उम्मतों को ग़ेज़ा, पानी और सेह़त जैसी नेअ़्‌मतें अंबिया के तवस्सुल से अ़ता की हैं जबकि उन्होंने उन चीज़ों का सवाल अपने अंबिया और औसिया से किया था। क्या कोई और तौह़ीद को ख़ुदावंद करीम से बेहतर जानता है। क्या क़ुरआन मजीद से बेहतर कोई उस्ताद है और हमें ऐसा कोई मरह़ला नहीं मिलता जहां अल्लाह और क़ुरआन ने लोगों को अंबिया और उनके औसिया

का वसीला इख़्तेयार करने से मनअ़्‌ किया हो।

 

(ज) जनाब यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम का वसीला 

सूरए यूसुफ़ की ९७ और ९८ आयतों में मिलता है: उन लोगों ने कहा बाबा जान अब आप हमारे गुनाहों के लिए इस्तेग़फ़ार करें हम यक़ीनन ख़ताकार थे। उन्होंने कहा कि मैं अ़न्क़रीब तुम्हारे ह़क़ में इस्तेग़फ़ार करूंगा कि मेरा परवरदिगार बहुत बख़्शने

वाला और मेह्रबान है। ह़ज़रत यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम के फ़र्ज़ंद बग़ैर किसी वसीला के अल्लाह से मग़फ़ेरत तलब कर सकते थे

लेकिन उन्होंने ख़ुदा के नज़दीक अपने वालिद के अअ़्‌ला मक़ाम दो देखते हुए जनाब यअ़्‌क़ूब को वसीला बनाया, और ह़ज़रत यअ़्‌क़ूब अ़लैहिस्सलाम ने भी अपने फ़र्ज़ंदों के इस अ़मल को शिर्क क़रार नहीं दिया बल्कि उन्होंने अपने बेटों से येह वअ़्‌दा भी किया कि वोह उनकी मग़फ़ेरत के लिए अल्लाह की बारगाह में दुआ़ करेंगे।

 

तवस्सुल का अन्दाज़

शीआ़ अपनी ह़ाजात की बरआवरी के लिए अह्लेबैत अलैहिमुस्सलाम का वसीला इख़्तेयार करने के लिए मुख़्तलिफ़ दुआ़ओं, ज़ियारतों, मुनाजात और सलवात वग़ैरा का सहारा लेते हैं। उनमें से किसी भी ज़िक्र ख़ुदा को जो मोअ़्‌तबर ज़राए़ से वारिद हुए हैं पढ़ते वक़्त क्या शीआ़ ह़ज़रात अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को अल्लाह रब्बुल इ़ज़्ज़त से बे नियाज़ या उन्हें अल्लाह की क़ुदरत में उसका शरीक जानते हैं? नहीं ऐसा नहीं है। शीआ़ ह़ज़रात इस बात के मोअ़्‌तक़िद हैं चूँकि अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम मअ़्‌सूम हैं और अल्लाह के नज़्दीक बलंद मक़ाम रखते हैं और हमेशा अल्लाह के ह़ुक्म और क़ुदरत को तसलीम करते हैं इसलिए उन्हें शीआ़ अपने और ख़ुदावंद करीम के दरमियान वसीला बनाते हैं।

 

ज़ियारते जामेआ़

मुख़ालेफ़ीन ज़ियारते जामेआ़ पढ़ने पर एअ़्‌तेराज़ करते हुए कहते हैं कि येह ज़ियारत शिर्क से भरी हुई है क्यूंकि इसमें अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को अल्लाह का शरीक जानते हुए ख़ेताब किया गया है। (मआ़ज़ल्लाह) 

 

मुख़ालेफ़ीन की येह इल्ज़ाम तराशी बहुत ही ज़्यादा गुमराह कुन है। क्यूंकि इस ज़ियारत के किसी भी ह़िस्सोमें अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को अल्लाह का शरीक क़रार नहीं दिया गया है और ह़क़ीक़तन येह ज़ियारत तौह़ीद के मौज़ूअ़्‌ से लबरेज़ है।

 

ज़ियारते जामेआ़ उन ज़ियारतों में से है जो बहुत ही मुस्तनद है और इमाम मअ़्‌सूम से मरवी है। ह़ज़रत इमाम अ़ली इब्ने मोह़म्मद अल हादी अ़लैहेमस्सलाम वोह फ़र्द हैं जिन्होंने तौह़ीद को बिल्कुल उसी तरह़ दर्क किया है जिस तरह़ तौह़ीद के मौज़ूआ़त क़ुरआन में नाज़िल हुए हैं और रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने बयान किया है। इस वक़्त के जय्यद उ़लमा जिन में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के दुश्मन भी शामिल हैं वोह इमाम अ़ली इब्ने मोह़म्मद अल-हादी अ़लैहेमस्सलाम और दूसरे आइम्मए मअ़्‌सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम के दर पर तौह़ीद और शिर्क के दुरूस ह़ासिल करने के लिए ह़ाज़िरी देते हुए नज़र आते हैं। येह ज़ियारत उन्हीं जनाब अ़लैहिस्सलाम से वारिद हुई है।

 

नमूने के तौर पर हम यहां ज़ियारत जामेआ़ के कुछ फ़िक़रे बयान करते हैं। क़ारेईन ख़ुद येह फ़ैसला करें कि क्या येह ज़ियारत शिर्क है। 

 

आप की वजह से वोह कसरत और दूर दराज़ तक पहुंचने वाली बारिश नाज़िल करता है। और आप ही की वजह से आसमान ख़ुद को ज़मीन पर नहीं गिराता यहां तक कि वोह (ख़ुदावंद करीम) ह़ुक्म दे। और आप की बेना पर वोह मुश्किलों को दूर और

सख़्तियों को ख़त्म करता है। और उन लोगों के पास वोह है जो उसने अपने रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर नाज़िल किया है।

 

इन फ़िक़रों से येह बात बिल्कुल साफ़ है कि ज़ियारते जामेआ़ में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को वसीला बनाया गया है जब्कि ख़ुदावंद करीम को उन अफ़आ़ल का ह़त्मी मालिक-ओ-मुख़्तार माना गया है। यहां पर अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के बलंद-ओ-बाला मर्तबा दिखाने उन्हें बारिश के नुज़ूल का ज़रीआ़, मुसीबतों और सख़्तियों के लिए सद्दे राह के तौर पर पेश किया गया है। यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका येह मतलब निकाला जाए कि अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम बज़ाते ख़ुद बारिश को नाज़िल करते

हैं या वोह बज़ाते ख़ुद मुसीबतों को रोकते हैं।

 

और अगर अज़कार में ऐसा है कि जहां अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम बज़ाते ख़ुद किसी फ़ेअ़्‌ल को अंजाम देते हैं तो उसका सिर्फ़ यही मक़सद है कि वोह येह अफ़आ़ल अल्लाह के ह़ुक्म से अंजाम देते हैं। जैसा कि अल्लाह रब्बुल इ़ज़्ज़त ने क़ुरआन मजीद में रूह़ों के क़ब्ज़ करने के बारे में इर्शाद फ़रमाया है:

 

आप सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम कह दीजिए कि:

मौत का फ़रिश्ता जो तुम्हारे ऊपर तई़नात है वोह तुम्हें मौत देगा।

(सूरए सज्दा (४२), आयत ११)

 

देखिए यहां तो मौत का फ़रिश्ता लोगों की रूह़ क़ब्ज़ करता नज़र आ रहा है? लेकिन जो क़ुरआन के अन्दाज़े बयान से वाक़िफ़ हैं और तौह़ीद-ओ-शिर्क के मौज़ूआ़त को समझते हैं वोह इस बात से मुकम्मल तौर से आश्ना है कि मौत का फ़रिश्ता आज़ादाना तौर पर बा इख़्तेयार नहीं है। उसका इख़्तेयार अल्लाह के ह़ुक्म के ताबेअ़्‌ है।

 

बिल्कुल उसी तरह़ जो लोग ज़ियारते जामेआ़ की तिलवात करते हैं वोह इस बात से वाक़िफ़ हैं कि अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम भी अल्लाह के ह़ुक्म के ताबेअ़्‌ हैं और उनके अफ़आ़ल अल्लाह की मरज़ी-ओ-मन्शा के मुताबिक़ होते हैं। क्यूंकि वोह मलकुल मौत से ज़्यादा अल्लाह के मुतीअ़्‌ और उनका मर्तबा अल्लाह के नज़्दीक तमाम फ़रिश्तों से अफ़ज़ल है।

 

दुआ़ए तवस्सुल

येह दूसरी अहम दुआ है जिस की तिलावत अह्ले तशय्योअ़्‌ ह़ज़रात के यहां की जाती है। जैसा कि इस दुआ़ के नाम से ज़ाहिर है इस दुआ़ में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के वसीले से इलाही मदद मांगी जाती है। इस नुक़्ते पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि इस दुआ़ में भी अपनी ह़ाजात की बरआवरी के लिए अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को अल्लाह की बारगाह में वसीला और ज़रीआ़ बनाया गया है। और इस से हरगिज़ येह नतीजा अख़ज़ किया जा सकता है कि अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम नेअ़्‌मतों की शरफ़याबी का ह़त्मी मंबअ़्‌ और वसीला हैं।

 

मसलन अमीरुल मोअ्‌मेनीन ह़ज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम को वसीला बनाते हुए हम कहते हैं। 

ऐ अबल ह़सन, ऐ अमीरल मोअ्‌मेनीन, ऐ अ़ली इब्ने अबी तालिब, ऐ अल्लाह की ह़ुज्जत उसकी ख़िल्क़त पर, ऐ

हमारे सरदार, ऐ हमारे मौला, हम आप की तरफ़ तवज्जोह मरकूज़ करते हैं, हम आप को अल्लाह की बारगाह में

अपना सिफ़ारिशी और वसीला बनाते हैं। हम आप के सामने अपनी ह़ाजत रखते हैं। ऐ अल्लाह के नुमाइन्दे

अल्लाह से हमारी सिफ़ारिश कीजिए।

 

इसी तरह़ हम दूसरे मअ़्‌सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम को अल्लाह की बारगाह में वसीला क़रार देते हैं।

 

जैसा कि साफ़ ज़ाहिर है अमीरुल मोअ्‌मेनीन अ़लैहिस्सलाम को इस दुआ़ में अल्लाह के नज़्दीक बहुत ही बलंद अअ़्‌ला मक़ाम वाली शख़्सियत क़रार दिया गया है न कि उन्हें अल्लाह का शरीक या अल्लाह की ज़ात क़रार दिया गया है।

 

हर एक वारिद होने वाली मोअ़्‌तबर दुआ़-ओ-ज़ियारत जिन में अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम को वसीला बनाया गया है उसका लुब-ओ-लबाब यही है। और उनमें से किसी भी दुआ़-ओ-ज़ियारत में ख़ालिस तौह़ीद के तअ़ल्लुक़ से किसी भी तरह़ का शक-ओ-शुब्हा नहीं है। बल्कि ह़क़ीक़त में इन सारी मुनाजातों में तौह़ीद-ओ-शिर्क की मुकम्मल तशरीह़ है और मुख़ालेफ़ीन येह उसी वक़्त दर्क कर सकते हैं जब वोह क़ुरआनी आयात और ह़क़ीक़ी सुन्नते रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर और ज़्यादा ग़ौर-ओ-फ़िक्र करें।

 

जब येह साबित हो चुका है कि ख़ुद अल्लाह सुब्ह़ानहू तआ़ला ने क़ुरआन करीम में वसीला इख़्तेयार करने का ह़ुक्म दिया है। अब हर एक मुसलमान मर्द-ओ-औ़रत के लिए येह वाजिब है कि वोह इलाही ह़ुक्म की तअ़्‌मील करे क्यूंकि अगर कोई उसका इन्कार करे तो ह़क़ीक़त में उसने अल्लाह की ना फ़रमानी की है और इस बेना पर वोह दाएरए इस्लाम से ख़ारिज हो

जाएगा।

 

अल्लाह तआ़ला हम सब को अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की मोह़ब्बत-ओ-वेलायत पर क़ाएम रखे और उनके वसीले से हमारी मग़फ़ेरत फ़रमाए। आमीन

गो टू ऊपर