अफ़्सानए अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा – पहला हिस्सा
मुख़ालेफ़ीने शीआ़ के इल्ज़ामात में शीओ़ं को काफ़िर और इस्लाम से ख़ारिज क़रार देने में येह भी एक इल्ज़ाम है कि तारीख़े इस्लाम में येह अ़क़ीदा फैलाने वाला अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा था। अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा कौन है? तारीख़े इस्लाम में उसकी क्या हैसीयत है? उसके नज़रियात क्या हैं? उसके बारे में सुन्नी और शीआ़ मज़हब के मशहूर मुवर्रेख़ीन और उ़लमाए केराम के नज़रियात क्या हैं? क्या वाक़ई़ शीआ़ उसकी इत्तेबाअ़् और एह़्तेराम करते हैं?
इस मुख़्तसर से मज़्मून में हम इनके जवाबात देने की कोशिश करेंगे। माज़ी में कई मक़ाले, मज़ामीन और किताबें इस पर लिखी गई हैं। इन तमाम किताबों का इस मज़्मून में ज़िक्र करना मुम्किन नहीं है। लेहाज़ा हम सिर्फ़ अ़ल्लामा सैयद मुर्तज़ा अस्करी रह़्मतुल्लाह अ़लैह की किताब “अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा और दीगर ख़ुराफ़ात” से कुछ ह़वालाजात का यहाँ ज़िक्र करेंगे। इस किताब का अंग्रेज़ी तर्जुमा एम.जे.मुक़द्दस साह़ब ने किया है और “वोफ़िस” ने शाएअ़् किया है।
इस किताब में
सदियों से मुसलमानों ने अपनी तारीख़ी किताबों के साथ इंजील का सा सुलूक किया है। १९५५ ई. में अ़ल्लामा सैयद मुर्तज़ा अस्करी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने अपनी किताब “अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा और दीगर ख़ुराफ़ात” में वाज़ेह़ किया कि मुसलमानों की तारीख़ी किताबों में शीओ़ं के ख़ेलाफ़ बहुत सी ग़लत और ख़ुदसाख़्ता मअ़्लूमात और अफ़्साने हैं और येह कि शीओ़ं पर अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा का पैरवकार होने का इल्ज़ाम बेबुनियाद है। मुसन्निफ़ ने मुनज़्ज़म तरीक़े से तारीख़ी किताबों में इससे मुतअ़ल्लिक़ वाक़ेआ़त का तज्ज़िया करके येह साबित किया है कि अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा, सैफ़ इब्ने उ़मर का ईजादकर्दा एक फ़र्ज़ी किरदार है जिसे उसने मस्लके शीआ़ का बानी बना कर पेश किया है।
मुसन्निफ़ ने इस किताब की इब्तेदा उन दोनों यअ़्नी अफ़्सानए सबाइया (अ़ब्दुल्लाह इब्ने सबा के पैरवकार) और उसके मूजिद सैफ़ बिन उ़मर की वज़ाह़त से की है। सैफ़ बिन उ़मर दूसरी सदी हिजरी में एक क़िस्सागो शख़्स था और उसने अ़मदन इस्लाम की ग़ैर मन्तिक़ी तारीख़ लिखी। इसके अ़लावा मुसन्निफ़ ने उन रवायतों और मोह़क़्क़ेक़ीन पर रोशनी डाली है जिन्होंने अपनी नज़रियाती और तारीख़ी तह़क़ीक़ात में उस पर एअ़्तेमाद किया है और इस्लाम के बुज़ुर्ग उ़लमा के नज़रियात पेश किए हैं कि सैफ़ बिन उ़मर नाक़ाबिले एअ़्तेमाद और ग़ैर मुस्तनद है।
सैफ़ बिन उ़मर कौन था?
सैफ़ बिन उ़मर अल-तमीमी दूसरी सदी हिजरी में था (आठवीं सदी ई़सवी) और उसका इन्तेक़ाल १७० हि. (७५० ई.) में हुआ। उसने दो किताबें तस्नीफ़ कीं:
“अल–फ़ुतूह़ुल कबीर वर्रद्दा” – येह तारीख़ी किताब क़ब्ले शहादते रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम से उ़स्मान बिन अ़फ़्फ़ान के ख़लीफ़ा बनने के दौरान की है।
“अल–जमल व मसीरे आ़एशा व अ़ली” – येह उ़स्मान के क़त्ल और जंगे जमल के दौर के बारे में है।
येह दोनों किताबें ह़क़ीक़त से ज़्यादा अफ़्साना, कुछ मनघड़त वाक़ेआ़त के साथ साथ कुछ सच्चे वाक़ेआ़त जो अ़मदन तज़्ह़ीक के लिए हैं, पर मुश्तमिल हैं। चूँकि सैफ़ ने अस्हाबे रसूल सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का ज़िक्र किया है और कुछ को जअ़्ल किया है लेहाज़ा उसकी बयान कर्दा कहानियों ने तारीख़े सद्रे इस्लाम को काफ़ी मुतासर किया है।
सैफ़ की ज़िन्दगी पर तह़क़ीक़ करने से पता चलता है कि सैफ़ एक माद्दा परस्त और ग़ैर मोअ़्तबर क़िस्सागो था। उसके क़िस्से मश्कूक और कुल्ली या जुज़्ई तौर पर जअ़्ल कर्दा हैं। ज़ैल में उसकी कुछ जअ़्ली रवायात पेशे ख़िदमत हैं:
१ – लश्करे ओसामा
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम ने शाम के लिए एक लश्कर तश्कील दिया, उस लश्कर का सिपह सालार ओसामा था। फ़ौज की आख़िरी सफ़ के मदीने की ह़द से बाहर जाने से पहले रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का इन्तेक़ाल हो गया। ओसामा ने ख़लीफ़ए रसूल अबू बक्र की मन्ज़ूरी ह़ासिल करने के लिए उ़मर को वापस किया। उ़मर अन्सार में से बअ़्ज़ के ख़ुतूत भी साथ लाया जिसमें ओसामा की फ़ौज की सिपह सालारी की मअ़्ज़ूली की तज्वीज़ थी। जब अबू बक्र ने येह सुना तो उसने छलांग मार कर उ़मर की डाढ़ी पकड़ी और उसकी तौहीन करते हुए कहा: “रसूले ख़ुदा ने ओसामा को सिपह सालार मुक़र्रर किया है, मैं उसे तब्दील नहीं करूँगा।” उसने फ़ौरन फ़ौज को रवाना होने का ह़ुक्म येह कहते हुए दिया कि: “खुदा तुम्हें क़त्ल-ओ-ताऊ़न से नाबूद होने से बचाए।” दूसरे तारीख़दानों ने इस वाक़ेआ़ को मुख़्तलिफ़ तरीक़े से लिखा है।
२ – सक़ीफ़ा बनी साए़दा
जिस रोज़ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम का इन्तेक़ाल हुआ, तमाम मुहाजेरीन ने अबू बक्र की ख़लीफ़ए रसूल बनने में ह़ेमायत की, सिवाए उन लोगों के जिन्होनें इस्लाम से मुँह मोड़ लिया था। अबू बक्र के इन्तेख़ाब की ख़बर सुन कर इमाम अ़ली .अलैहिस्सलाम बहुत ज़्यादा ख़ुश हुए और सिर्फ़ क़मीस पहन कर आ गए (नऊ़ज़ो बिल्लाह)। उन्होंने अबू बक्र से दोस्ताना अन्दाज़ से हाथ मिलाया और फिर जब उनका लेबास लाया गया तो उन्होनें उसे ज़ेबे तन किया और अबू बक्र के पास बैठ गए।
सैफ़ ने सक़ीफ़ा के मुतअ़ल्लिक़ सात क़िस्से कहे हैं। इन क़िस्सों में अस्ह़ाबे रसूल में से तीन हीरो हैं। येह तीनों नाम सैफ़ के क़िस्से के अ़लावा कहीं और मौजूद नहीं हैं। येह ख़ुसूसियत सोचने पर मजबूर करती है और क़िस्से की सच्चाई को मुश्तबा बनाती हैं। जब अह्ले सुन्नत की मोअ़्तबर किताबों का जाएज़ा लिया जाए तो सैफ़ का क़िस्सा बयान करने में सच्चाई से मुन्ह़रिफ़ होना साफ़ ज़ाहिर होता है।