किताब “शवारेक़ुन्नुसूस फ़ी तक्ज़ीबे फ़ज़ाएल अल लुसूस” का तआ़रुफ़ – पहला हिस्सा
इस्लामी तअ़्लीमात-ओ-एअ़्तेक़ादात में क़ुरआन करीम के बअ़्द जो ह़ैसियत अह़ादीसे मअ़्सूमीन अ़लैहिमुस्सलाम की है उससे कोई मुसलमान इन्कार नहीं कर सकता और चूँकि ह़दीस, मअ़्सूम के अ़मल, क़ौल और तक़रीर से, ए़बारत है, इसलिए इन्सान की इज्तेमाई़-ओ-इन्फ़ेरादी ज़िन्दगी में अह़ादीस का इन्तेहाई अहम किरदार होता है। इसीलिए दीनी एअ़्तेक़ादात और मआ़रिफ़े इस्लामी की तब्लीग़-ओ-नश्र में अह़ादीस को नक़्ल करना इन्तेहाई ह़स्सास मसअला माना जाता है कि जैसे दीन का ह़िस्सा समझकर अह़दीस की नश्र-ओ-इशाअ़त कर रहे हैं हो सकता है इस के लिए ह़दीस का ह़िस्सा या ह़दीस होना ही साबित न हो। इस तरह़ हम ग़ैरे इस्लामी तअ़्लीमात-ओ-मआ़रिफ़ की नश्र-ओ-इशाअ़त कर रहे होते हैं जिसका बहुत बड़ा नुक़सान उम्मते मुस्लेमा को उठाना पड़ता है।
क्योंकि इस बात से तो कोई मुसलमान इन्कार कर ही नहीं सकता कि वफ़ाते आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम के बअ़्द कई सालों तक नक़्लें अह़ादीस पर पाबन्दी रही। ख़लीफ़ए अव्वल-ओ-दुवुम ही के ज़माने में जअ़्ल ह़दीस की बुनियाद, दास्तान सराई-ओ-अफ़साना निगारी की शक़्ल में ढाली जा चुकी थी, और दौरे मुआ़विया बिन अबी सुफ़यान में तो येह कारखाना अपने उ़रूज़ पर था। जहाँ अपनी ह़ुकूमत को शरई़ जवाज़ फ़राहम करने के लिए आँह़ज़रत सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की ह़दीस से मिलती जुलती ह़दीसें गढ़ीं र्गइं और अपने मख़्सूस नज़रीए की ह़ेमायत में और अपनी जमाअ़त-ओ-गिरोह को ऊँचा दिखाने के लिए क्या क्या मज़ालिम नहीं ढाए गए। अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम की शान में पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम की बयान कर्दा तमाम फ़ज़ाएल-ओ-मनाक़िब की अह़ादीसे अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम के मुक़ाबले में खड़े होने वालों के लिए वज़अ़् कर दी र्गइं, ख़ुसूसन अमीरुल मोअ्मेनीन अ़ली बिन अबी तालिब अ़लैहेमस्सलाम के मनाक़िब जो ज़बाने मुबारके रेसालत से बयान हुए वोह सब ख़ुलफ़ाए ज़मान और अपने मअ़्रूफ़ इमामों के लिए क़रार दिए गए।
मगर राहे ह़क़-ओ-बातिल से आश्नाई रखने वाले और सह़ीह़ और ग़लत अह़ादीस में पहचान रखने वाले, उ़लेमा-ओ-दानिशमन्दों ने क़ुरआन-ओ-सीरते पैग़म्बर अकरम सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम को मेअ़्यार बनाकर इ़ल्मे ह़दीस, रेजाल, दिराया, तारीख़ की बुनियाद पर तमाम रवायतों, उनके तुरुक़ और अस्नाद पर सीरे ह़ासिल बह़्स करते हुए ख़ुद रावीयों की वसाक़त-ओ-अ़दम-ओ-साक़ित, एअ़्तेबार-ओ-अ़दमे एअ़्तेबार की तह़क़ीक़ करते हुए नूर को ज़ुल्मत से, रोशनी को अन्धेरे से, हेदायत को ज़लालत से, दोस्त को दुश्मन से, ह़क़ को बातिल से अलग करके आश्कार कर दिया और बता दिया कि बाबे मदीनतुल इ़ल्म से वाबस्ता लोगों को झूठे प्रोपोगन्डे के ज़रीए़ अन्धेरे में नहीं रखा जा सकता है।
बुज़ुर्ग उ़लमा ने इस मैदान में बड़ी ज़ह़मतें उठाकर येह काम आसान बना दिया है। आज हमें न कोई धोका दे सकता है और न ही अह्लेबैत अ़लैहिमुस्सलाम से मुतअ़ल्लिक़ फ़ज़ाएल-ओ-मनाक़िब में कोई शुब्हा दिल में डाल सकता है। इसलिए कि हम ख़ुदा के दोस्त-ओ-दुश्मन दोनों को अच्छी तरह़ पहचानते हैं, दोनों के किरदार-ओ-ज़िन्दगी से वाक़िफ़ हैं, दुनिया ख़ाह कितने ही झूठे गीत गाए, फ़ज़ीलतें मन्सबदार होने से ह़ासिल नहीं होतीं, फ़ज़ीलतों और कमालात से मन्सब मिलता है। जब ज़ाती कोई कमाल और फ़ज़ीलत ही नहीं है तो अल्लाह की तरफ़ से कोई एलाही मन्सब कैसे मिल जाएगा। ख़ाह कितने ही झूठे फ़ज़ाएल-ओ-मनाक़िब वज़अ़् कर दिए जाएँ, रसूल-ओ-नबी जैसा दर्जा ही नहीं ख़ुदा भी बना दिया जाए तो भी उससे कुछ बनने वाला नहीं है। जैसा कि सद्रे अव्वल के मुसलमानों ने ख़ुलफ़ा के लिए बड़े बड़े फ़ज़ाएल-ओ-मनाक़िब की ह़दीसें वज़अ़् कीं, तह़रीफ़े की, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अ़लैहे व आलेही व सल्लम पर इल्ज़ाम-ओ-इफ़्तरा बाँधा ताकि बातिल को ह़क़ की तरह़ बनाकर पेश किया जाए। मगर ख़ुद अह्ले सुन्नत के बुज़ुर्ग उ़लमा ने इसकी ह़क़ीक़त वाज़ेह़ कर दी है जैसा की इब्ने जौज़ी, सुयूती और इब्ने अल इ़राक़ ने किया है। मगर येह लोग भी अपने को तअ़्स्सुब और शीई़ ए़नाद से आज़ाद न करा सके।
किताब शवारेक़ुन्नुसूस
हाँ अगर इस मैदान में पूरी देयानत और नेहायत दिक़्क़ते नज़र और इ़ल्मी इस्तेदलाल के ज़रीए़ पर्दए बातिल को चाक किया है तो वोह मैदाने तह़क़ीक़-ओ-तालीफ़ के तन्हा शहसवार इ़ल्मे मुनाज़ेरा में यगाने रोज़गार, मुजद्देदुल मिल्लत, मुह़्युद्दीन, ह़ुज्जतुल ह़क़्क़े अ़लल ख़ल्क़, आ़लिमे जलीलुल क़द्र, लेसानुल फ़ुक़हा वल मुज्तहेदीन, तर्जुमाने ह़ुकमा-ओ-मुतकल्लेमीन, आयतुल्लाह फ़िल आ़लमीन सैयद ह़ामिद ह़ुसैन अल मूसवी लखनवी ने “शवारेक़ुन्नुसूस” जैसी माअ़्रेकतुल आरा किताब तस्नीफ़ करके ह़क़ परस्तों पर ता क़यामत एह़सान फ़रमाया है जो गेराँक़द्र मोह़क़्क़िक़ जनाब ताहेरुस्सलामी की तह़क़ीक़ी काविशों से दो (२) जिल्दों पर मुश्तमिल ९०४ सफ़ह़ात के साथ ज़ेवरे तबअ़् से आरास्ता “मन्शूराते दलीले मा” मत्बअ़ए निगारिश क़ुम के तवस्सुत से पहली बार सन १४२३ हि. में मन्ज़रे आ़म पर आई है। शवारिक़: जम्अ़् शारिक़, अज़ माद्दए शर्क़ यअ़्नी रोशन-ओ-आश्कार, नुसूस: जम्अ़् नस, यअ़्नी दलीलें।
इस किताब की अ़ज़मत-ओ-बलन्दी के लिए ख़ुद साह़ेबे किताब का येह जुम्ला सनद है कि जिससे अ़ज़मते किताब का एह़सास बढ़ जाता है। अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी हिन्दी जैसी शख़्सीयत किसी के लिए अपना नज़रिया पेश करे तो इससे उसका वज़्न समझ में आता है। फ़रमाते हैं:“….जब झूठ और बोहतान-ओ-इल्ज़ाम की इन्तेहा हो गई….तब मैंने फ़ैसला किया कि इस मैदान में ऐसी नायाब किताब तस्नीफ़ करूँ कि इससे पहले किसी ने तस्नीफ़ न किया हो…..”
किताब शवारेक़ुन्नुसूस…..के मुक़द्दमे में अ़ल्लामा मीर ह़ामिद ह़ुसैन मूसवी हिन्दी रह़्मतुल्लाह अ़लैह ने इसका पूरा नाम “शवारेकुन्नुसूस फ़ी तकज़ीब….”रखा है। साह़ेबे किताब ने इसे छह (६) बाब और एक ख़ातमे पर तरतीब फ़रमाया है।
(१) बाबे अव्वल में ख़लीफ़ए अव्वल के जअ़्ली फ़ज़ाएल का ज़िक्र करके उस पर बह़्स की है।
(२) बाबे दुवुम में ख़लीफ़ए दुवुम से मुतअ़ल्लिक़ जअ़्ली फ़ज़ाएल का तज़्केरा किया है और सीरे ह़ासिल बह़्स की है।
(३) बाबे सेवुम में दोनों ख़ोलफ़ा (शेख़ैन) के लिए मुश्तरका जअ़्ली मनाक़िब और गढ़े हुए फ़ज़ाएल को नक़्ल किया है और एक एक का उ़मदा और मस्कित जवाब दिया है….. और इन्हीं बह़्सों पर किताब ख़त्म हो जाती है।
मोह़क़्क़िक़े किताब लिखते हैं : दीगर अबवाब के बारे में मुझे कोई सुराग़ नहीं मिला यक़ीनन मुआल्लिफ़ गेराँक़द्र का अस्ल ख़ती नुस्ख़ा किताब ख़ानए नासिरिया लखनऊ से नापैद हो गया है वरना इसकी तफ़सील ज़रूर होती। जिस नुस्ख़ए बदल पर एअ़्तेमाद करके तह़क़ीक़ की है वोह आयतुल्लाह सैयद मरअ़शी नजफ़ी क़ुद्देस सिर्रहू के किताब ख़ाने में मौजूद है। हाँ हिन्दुस्तान में ईरानी कल्चर हाऊस की जानिब से जो काग़ज़ात मिले हैं जिनमें साह़ेबे किताब के ख़ानदान, तारीख़े तालीफ़ के साथ मुअल्लिफ़ के बअ़्ज़ ख़त्ती नुस्ख़ों की फ़ेहरिस्त दर्ज थी उसमे मैंने किताब “शवारेक़ुन्नुसूस” नाम पाया। इस की फ़ेहरिस्त से पता चलता है कि मुसन्निफ़ ने मुन्दर्जा ज़ैल किताब के अबवाब क़ाएम किए थे :
१- बाब, अबू बक्र के जअ़्ली फ़ज़ाएल
२- बाब, उ़मर के जअ़्ली फ़ज़ाएल
३- बाब, उ़स्मान के जअ़्ली फ़ज़ाएल
४- बाब, शेख़ैन के (मुश्तरका) जअ़्ली फ़ज़ाएल
५- बाब, तीनों ख़ोलफ़ा के जअ़्ली फ़ज़ाएल
६- बाब, मुआ़विया, आ़एशा, और दीगर अस्ह़ाब के जअ़्ली फ़ज़ाएल
७- बाब, रवाफ़िज़ वग़ैरह की मज़म्मत में जअ़्ली रवायतें